RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“चल उल्टी हो जा… आज तेरे पीचवाड़े की बारी है”
“नही ऐसे ही कर लीजिए ना”
“घूमती है कि नही या फिर मारु एक थप्पड़”
रेणुका सुबक्ते हुवे लेते-लेते घूम जाती है
“साली हमेशा बात-बात पर नखरे करती है, तेरे मा-बाप ने क्या तुझे कुछ तमीज़ नही सीखाई”
“मेरे मा-बाप ने आपका क्या बिगाड़ा है जो बात बात पर उन्हे बीच में ले आते हैं, जो कहना है मुझे कहिए”
“साली फिर ज़ुबान लड़ाती है” --- वीर ने रेणुका के बाल खींचते हुवे कहा
“आहह………. आप क्यों मेरे मा-बाप के पीछे पड़े हैं फिर” --- रेणुका ने कराहते हुवे कहा
“तेरे बाप के कारण, यहा की ज़मींदारी हाथ से चली गयी कुतिया…वरना आज मैं जाने कहा होता”
“इसमें उनकी कोई ग़लती नही थी”
“अभी बता-ता हूँ तुझे, ये जाएगे ना अंदर तो पता चलेगा तुझे”
वीर अपने लिंग पर हल्का सा थूक लगा कर रेणुका के गुदा द्वार में समा जाता है
“आअहह……..नही…. धीरे से कीजिए ना, हमें बहुत दर्द हो रहा है”
“आ गयी अकल ठीकाने, मुझ से ज़बान लड़ाती है… हा…. आगे से मेरे साथ बकवास की ना तो तेरी फाड़ कर रख दूँगा ?”
रेणुका सर को तकिये पर रख कर सूबक-सूबक कर रोने लगती है, पर वीर उसकी परवाह किए बिना उसके साथ सहवास जारी रखता है
ये है वीर प्रताप सिंग, वर्षा का बड़ा भाई और रुद्र प्रताप सिंग का बड़ा बेटा. रेणुका से वीर की शादी कोई एक साल पहले ही हुई है, पर उनकी शादी शुदा जींदगी में इस सब के अलावा और कुछ नही है.
वीर अपनी हवश की प्यास भुजा कर सो चुका है पर रेणुका अभी भी करवट लिए सूबक रही है.
अचानक उसे बाहर से कोई चीन्ख सुनाई देती है, जिशे सुन कर वो घबरा जाती है और वीर से लिपट जाती है
वीर हड़बड़ा कर उठ जाता है
“क्या बात है” --- वियर रेणुका को डाँट कर पूछता है
“आप को कुछ सुन रहा है क्या ?”
“क्या है…….. सो जाओ आराम से”
“अरे आपको कुछ सुनाई नही दे रहा क्या ?”
“रेणुका चुपचाप सोती हो या नही, या फिर दूं एक थप्पड़ गाल पे” --- वीर प्रताप ने रेणुका को डाँट कर कहा
रेणुका बिना कुछ कहे करवट ले कर लेट जाती है और अपनी किस्मत को रोने लगती है. वो सोच रही है कि उसकी जींदगी में शायद पति का प्यार है ही नही
रेणुका को कब नींद आ जाती है उसे पता ही नही चलता
पर वो रोजाना की तरह सुबह जल्दी उठ जाती है.
जैसे ही वो अपने कमरे से बाहर निकलती है उसे जीवन प्रताप सिंग मिल जाता हैं
“चाचा जी सुप्रभात” --- रेणुका पाँव छूते हुवे कहती है
“अरे रेणुका बेटी पाँव मत छुवा करो”
“क्या हुवा चाचा जी”
“कुछ नही-कुछ नही, अछा ये बता वीर ने फिर तो कुछ नही कहा”
“जी….. नही” --- रेणुका ने सोचते हुवे कहा. वो और कहती भी क्या
पीछले दिन जीवन ने वीर को रसोई में रेणुका के मूह पर थप्पड़ मारते हुवे देख लिया था. उस वक्त जीवन ने आकर वीर को समझाया था कि बहू पर इस तरह हाथ उठाना अछा नही होता.
“क्या मंदिर जा रही हो बेटी” --- जीवन प्रताप ने पूछा
“जी चाचा जी, वर्षा के साथ मंदिर जाउन्गि, अभी देखती हूँ कि वो उठी है या नही”
“हाँ-हाँ जाओ बेटा…जाओ ”
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