RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
ऱुद्र प्रताप और वीर दौनो के चेहरे गुस्से से लाल हो जाते हैं. दोनो बलवंत की बात सुन कर तिलमिला उठे हैं.
“पिता जी देख लिया सराफ़ात का नतीज़ा आपने, इन गाँव वालो को हमेसा ज़ूते के नीचे रखने की ज़रूरत है. आप सब कुछ मुझ पर छ्चोड़ दीजिए, मैं अभी उस हराम खोर मदन की बहन को नंगी करके यहा घसीट कर लाता हूँ” – वीर प्रताप ने कहा
“वीर शांत रहो, अगर वाकाई में इसमे उस मदन का हाथ है तो हम किसी को नही बक्सेंगे”
वीर दाँत भीच कर रह जाता है
“अपने चाचा को यहा बुला कर लाओ, हम खुद उस से बात करेंगे” --- रुद्र ने बलवंत से कहा
बलवंत अपने चाचा को बुला कर लाता है.
उसका चाचा डरते -डरते ठाकुर के सामने आता है और सर झुका कर चुपचाप खड़ा हो जाता है
“क्या देखा था तुमने कल मंदिर के बाहर, सब सच-सच बताओ” --- रुद्र ने पूछा
“जी मालिक……. मैने वर्षा मेम-साब को मदन से बाते करते देखा था. मैने पेड़ के पीछे खड़े हो कर उनकी बाते भी सुनी थी. मदन, वर्षा मेम-साब को रात में खेत में आने को कह रहा था. बस इतना ही सुना था मैने मालिक… और मुझे कुछ नही पाता”
“अगर ये झूठ हुवा तो हम तुम्हारा वो हाल करेंगे कि तुम सोच भी नही सकते”
“मालिक…. आपसे झूठ बोल कर हम कहा जाएँगे, हम तो आपके गुलाम हैं”
“ठीक है-ठीक है…दफ़ा हो जाओ यहा से”
“जी मालिक”
ये कह कर बलवंत का चाचा वाहा से चला जाता है.
“पिता जी अब सब कुछ मुझ पर छ्चोड़ दीजिए” ---- वीर ने कहा और कह कर कमरे से बाहर चला गया
ऱुद्र प्रताप उसे जाते हुवे देखता रहा, शायद उसकी भी यही इच्छा थी कि मदन के घर को बर्बाद कर दिया जाए, इश्लीए उसने वीर को जाते हुवे नही टोका
“बलवंत, वीर के साथ जाओ और हाँ अपने कुछ ख़ास आदमी साथ ले लो” --- रुद्र प्रताप ने कहा
“जी मालिक”
“क्या तुम्हारी बहन का कुछ पता चला ?”
“वो तो पक्का कहीं किशोर के साथ ही होगी मालिक, वो मिल गया तो मैं उसे जिंदा नही छोड़ूँगा”
“ठीक है…. अब जाओ और वीर का ध्यान रखना”
“आप चिंता मत करो मालिक”
ये कह कर बलवंत वाहा से चला जाता है.
इधर खेत में साधना और उसके पिता जी गुलाब चंद मूह लटकाए बैठे हैं, सुबह से शाम हो चुकी है पर मदन का कहीं आता पता नही. सरिता अपनी मा के पास घर जा चुकी है. वो दोनो इस बात से अंजान हैं कि एक बहुत बड़ा तूफान उनके घर की तरफ बढ़ रहा है, जो कि अगर ना रुका तो उनका सब कुछ निगल जाएगा.
“पिता जी भैया कहा जा सकते हैं ?”
“क्या पता बेटी, अब तो जब वो लोटेगा तो वही बताएगा कि कहा गया था, चल हम घर चलते हैं. मैं खाना खा कर वापस आ जाउन्गा..लगता है आज रात मुझे ही खेत में रुकना पड़ेगा ?”
“तभी वाहा उनके पड़ोसी का लड़का मुन्ना भाग कर आता है”
“दीदी-दीदी तुम्हारे घर पर ठाकुर के लोग हुन्गामा कर रहे हैं”
“कैसा हुंगमा मुन्ना… ये क्या कह रहे हो ?”
“दीदी… तुम घर मत जाना”
“ये सब क्या कह रहे हो तुम ?” साधना ने पूछा
“बेटी मैं जा कर देखता हूँ, तुम यहीं रूको”
“वो….वो ठाकुर का बड़ा बेटा सरिता दीदी के कपड़े उतार कर उन्हे घसीट कर ले जा रहा है, आप घर मत जाना”
“ये सुन कर गुलाब चंद घर की तरफ भागता है”
“पिता जी मैं भी आ रहीं हूँ”
“नही बेटी तुम्हे मेरी कसम… तुम यहीं रूको, मैं देखता हूँ कि क्या बात है” गुलाब चंद रुक कर कहता है और फिर से अपने घर की तरफ दौड़ पड़ता है
“मुन्ना तुम भी जाओ, अंधेरा होने को है”
“दीदी आप को यहा डर नही लगेगा”
“नही लगेगा.. मुन्ना तुम जाओ”
“अगर डर लगे भी ना दीदी… तो भी घर मत आना”
“ये कह कर मुन्ना रोने लगता है, साधना उसकी उन्कहि बात समझ कर उसे गले लगा लेती है और उसकी आँखो में भी आँसू उतर आते हैं”
“जाओ मुन्ना इस से पहले की अंधेरा हो जाए तुम यहा से निकल जाओ”
मुन्ना के जाने के बाद साधना अकेली खेत में बैठी हुई सोचती है कि ‘हे भगवान !! आज ये हमारे साथ क्या हो रहा है ?, दीदी का ख्याल रखना वरना हम जीजा जी को क्या मूह दीखाएँगे
इधर जब गुलाब चंद घर पहुँचता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. उसकी बीवी घर के दरवाजे पर पड़ी मिलती है. कोई भी उसके पास नही है. ठाकुर के दर के कारण कोई भी उसे देखने तक नही आता
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