RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“मैं सच कह रहा हूँ बलवंत, मैने खुद किसी को अभी अभी खेत के उस पार जो जुंगल है उसमे जाते हुवे देखा है, मुझे पूरा यकीन है कि वो मदन की बहन ही होगी, दूर से वो कोई लड़की जैसी ही लग रही थी”
“बलवंत जल्दी से सभी को बुलाओ हूमें उसे हर हाल में पकड़ना है” --- वीर ने कहा
“मालिक इस वक्त उस जंगल में जाना ख़तरे से खाली नही है, मेरी बात मानिए हम उशे सुबह ढूंड लेंगे, वो अकेली लड़की भाग कर जाएगी भी कहा”
“पर मुझे डर है कि सुबह तक उसकी लाश ही मिलेगी” --- वीर ने कहा
“वो तो है मालिक पर इसके अलावा हम कर भी क्या सकते हैं, आप तो जानते ही हैं सतपुरा के इन जुंगलों को”
वीर किसी सोच में डूब जाता है और कहता है, “ठीक है चलो… कल सुबह देखेंगे”
वीर सभी को लेकर वाहा से चल देता है.
साधना साँस रोके चुपचाप बैठी है. वो सूकर मना रही है की वो लोग जा रहे हैं. पर एक बात मन ही मन उशे परेशान कर रही है कि ठाकुर के आदमियों ने जंगल में जाते हुवे किसको देखा है ?
इधर हवेली में रेणुका अपने कमरे से निकल कर उस कमरे की तरफ देखती है जिसमे सरिता बंद है. वो मन ही मन सोचती है कि जा कर कमरे का दरवाजा खोल कर उशे वाहा से भगा दे.
रेणुका ये सब सोच ही रही है कि अचानक उसे उस कमरे से चीन्ख सुनाई देती है. वो वाहा जाना चाहती है पर चाह कर भी जा नही पाती.
थोड़ी देर बाद उशे उस कमरे से रुद्रा प्रताप निकलता हुवा दीखाई देता है
वो मन ही मन कहती है छी !!…जब बाप ही ऐसा हो तो बेटा क्यों नही बुरे काम करेगा.
तभी अचानक रेणुका को घर के पीछे कुछ हुलचल सुनाई देती है.
वो भाग कर वाहा जाती है तो पाती है कि भीमा वाहा अपने हाथ को एक चाकू से चीर रहा है
“अरे ये क्या कर रहे हो तुम भीमा ?”
“म ..म ..में-सब कुछ नही”
“कुछ नही मतलब !! ये खून क्यों बहा रहे हो तुम”
“मेम-साब किसी से कहना मत”
“हाँ-हाँ बोलो क्या बात है ?”
“ये जो लड़की बाहर के कमरे में बंद है, उसका नाम सरिता है, मैं कभी उशे चाहता था. उसकी आँखो में भी मेरे लिए प्यार था, पर हम कभी कह नही पाए. और अचानक उसकी शादी हो गयी. आज सालो बाद उसे इस हालत में देख रहा हूँ. पर मैं चाह कर भी कुछ नही कर सकता… इश्लीए खुद को सज़ा दे रहा हूँ”
“तो जाकर चुलु भर पानी में डूब मरो” ---- रेणुका ने गुस्से में कहा और कह कर वाहा से मूड कर अपने कमरे की तरफ चल दी.
जाते-जाते उसने मूड कर देखा तो पाया कि जीवन चाचा उस कमरे में घुस रहा था जिसमे सरिता बंद थी
रेणुका ने मन ही मन में कहा, ‘इस घर में सभी आदमी एक जैसे हैं…बस नाम, शकल और उमर अलग-अलग हैं’
रेणुका से ये सब देखा नही गया और वो वापिस मूड कर भीमा के पास आ गयी और बोली, “तुम उशे कैसा प्यार करते थे !! तुम्हे शरम नही आती, यहा खड़े-खड़े तमासा देख रहे हो, तुम्हे कुछ करना चाहिए”
“मैं इस घर का नौकर हूँ मेम-साब, आप ही बताओ मैं क्या कर सकता हूँ”
“नौकर होने का ये मतलब तो नही की तुम इंसानियत भूल जाओ ?”
“मेम-साब में कुछ नही कर सकता, मैं मजबूर हूँ”
“ठीक है फिर मुझे ही कुछ करना पड़ेगा”
ये कह कर रेणुका भाग कर हवेली की रसोई में जाती है और एक लंबा सा चाकू लेकर उस कमरे की तरफ भागती है जिसमे सरिता बंद है. भीमा एक तक उशे देखता रह जाता है.
रेणुका उस कमरे के बाहर आकर देखती है कि दरवाजा अंदर से बंद है और अंदर से सरिता के सिसकने की आवाज़ आ रही है. वो हिम्मत करके दरवाजा खड़काती है.
“कौन है ?”
पर रेणुका जीवन के सवाल का कोई जवाब नही देती और एक बार फिर से दरवाजा खड़काती है. वो चाकू एक हाथ से पीठ के पीछे छुपा लेती है
जीवन दरवाजा खोलता है.
“अरे रेणुका बेटी तुम यहा क्या कर रही हो ?”
“ये सवाल मुझे आपसे करना चाहिए चाचा जी”
“चुप कर, अपना काम कर जा कर ?”
“अपना काम ही कर रही हूँ चाचा जी चुपचाप पीछे हट जाओ वरना ये खंजर शीने में उतार दूँगी” --- रेणुका चाकू जीवन को दीखाते हुवे कहती है.
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