RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
पर जीवन एक झटके में उसके हाथ से चाकू छीन लेता है.
रेणुका एक नज़र सरिता पर डालती है. सरिता की हालत देख कर उसकी आँखे नम हो जाती हैं. सरिता भी ना-उम्मिदि लिए उसकी ओर देखती है और अपनी आँखे बंद कर लेती है.
जीवन रेणुका के मूह पर एक थप्पड़ जड़ देता है जिसके कारण रेणुका लड़खड़ा कर वहीं गिर जाती है
भीमा भाग कर वाहा आता है पर जीवन को देख कर ठिठक जाता है.
“भीमा तुम जाओ अपना काम करो यहा सब ठीक है” --- जीवन ने कहा
“मालिक पर”
“पर क्या…. मेरा दीमाग खराब मत करो और जाओ यहा से”
भीमा चुपचाप वापिस मूड कर चल देता है.
रेणुका कमरे के बाहर पड़ी रह जाती है और जीवन दरवाजा वापिस बंद कर लेता है.
अचानक भीमा कुछ अजीब करता है. वो रुद्र प्रताप के कमरे की तरफ जाता है और उसके कमरे को बंद करके बाहर से कुण्डी लगा देता है.
फिर वो भाग कर रेणुका के पास आता है और कहता है, “मेम-साब उठो”
“उस लड़की को बचा लो भीमा… वरना मैं भगवान को क्या मूह देखाउन्गि”
“मैं कुछ करता हूँ मेम-साब आप उठो यहा से”
रेणुका वाहा से खड़ी होती है.
भीमा दरवाजे को ज़ोर से धकैल कर खोल देता है.
“भीमा ये क्या कर रहे हो”
“वही जो बहुत पहले करना चाहिए था”
भीमा ने जीवन की टाँग पकड़ कर उसे सरिता के उपर से खींच लिया और उसे एक तरफ पटक दिया
“लगता है तुझे अपनी जान प्यारी नही”
भीमा जीवन को कुछ नही कहता और कमरे के बाहर आ कर रेणुका से कहता है “मेम-साब….कपड़े”
“रूको मैं अभी अपने कुछ कपड़े लाती हूँ”
इतने में भीमा जीवन को रस्सी से बाँध कर एक तरफ बैठा देता है
रेणुका भाग कर अपने कमरे से सरिता के लिए कपड़े लाती है और कमरे में आकर सरिता को कपड़े देते हुवे कहती है, “लो जल्दी से कपड़े पहन लो और यहा से निकल जाओ”
सरिता मुस्किल से उठती है और धीरे-धीरे कपड़े पहनती है
मेम-साब मुझे भी इसके साथ ही जाना होगा, आपने मेरी आँखे खोल दी वरना मैं जींदगी भर खुद से नज़रे नही मिला पाता
“इन बातो का वक्त नही है अभी जल्दी यहा से निकलो…सरिता को इसके ससुराल पहुँचा देना”
“जी मेम-साब मैं सरिता को लेकर अभी इसके ससुराल चल पड़ूँगा आप अपना ख्याल रखना”
“अब जल्दी जाओ यहा से”
“जी मेम-साब”
सरिता हाथ जोड़ कर रेणुका का धन्यवाद करती है
रेणुका भावुक हो कर उसे गले लगा लेती है और कहती है , “जो भी तुम्हारे साथ हुवा उसके लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ. जाओ अपना ख्याल रखना”
भीमा सरिता को लेकर हवेली से निकल पड़ता है.
रेणुका उन्हे जाते हुवे देखती रहती है. वो मन ही मन सोचती है की उशे भी यहा से कहीं चले जाना चाहिए. ऐसे नरक में रहने से क्या फ़ायडा. फिर वो मूड कर अपने कमरे की तरफ चल देती है.
अचानक उसे अपने पीछे हलचल सुनाई देती है. वो मूड कर देखती है कि वीर, अपने आदमियों के साथ चला आ रहा है
वीर जैसे ही उस कमरे के सामने पहुँचता है तो समझ जाता है कि रेणुका ने मदन की बहन को भगा दिया है.
वो भाग कर रेणुका के बाल पकड़ लेता है और कहता है, “तो तूने अपनी औकात दीखा ही दी. अब मैं तेरा वो हाल करूँगा कि तू सोच भी नही सकती”
बलवंत कमरे में जाकर देखता है कि जीवन वाहा बँधा पड़ा है, वो झट से उसकी रस्सिया खोलता है और मूह में से कपड़ा निकालता है.
जीवन भाग कर वीर के पास आता है और कहता है, “वीर उस लड़की को भीमा ले गया है, और बहू ने उसकी मदद की है”
“क्या भीमा ? भीमा ने ऐसा क्यों किया ?”
“पता नही वीर… उसी ने मुझे रस्सी से बाँधा था और मेरे मूह में कपड़ा ठूंस दिया था”
“आप चिंता मत करो चाचा जी वो लोग बच कर कही नही जा सकते. भीमा को मैं जींदा नही छोड़ूँगा”
वीर, रुद्रा प्रताप के कमरे की तरफ बढ़ता है तो देखता है कि बाहर से कुण्डी लगी है. वो खोल कर देखता है तो पता है कि उसके पिता जी सो रहे हैं.
वीर, बलवंत को बुला कर पूछता है, “ये भीमा किस रास्ते से गया होगा ?”
मालिक वो ज़रूर हवेली के पीछले रास्ते से गया होगा, हम सामने से आ रहे थे, वो हमे तो दीखा नही. हवेली के पीछे खेत हैं और खेतो के पार जंगल, वो ज़रूर पीछले रास्ते से गया होगा
“हां-हां वो पीछले रास्ते से ही गया है मैने कमरे से उन्हे जाते देखा था” – जीवन ने वीर से कहा
इधर खेत में साधना अभी भी चुपचाप मक्की की फसलों में बैठी है. अंधेरा घिर आया है और चाँद की चाँदनी चारो और फैलने लगी है.
साधना चुपचाप बाहर निकलती है. लेकिन बाहर निकलते ही वो काँप उठती है. उसे दूर से अपनी और आता एक साया दीखाई देता है. वो डर कर वापिस मक्की की फसलों में घुस्स जाती है.
वो साया भी उसके पीछे पीछे मक्क्की की फसलों में घुस्स जाता है.
साधना एक जगह रुक जाती है ताकि उसके कदमो की आहट ना हो.
लेकिन तभी उसे कदमो की तेज आहट सुनाई देती है.
वो पीछे मूड कर देखती है तो पाती है की वो साया बिल्कुल उसके पीछे 4 कदम की दूरी पर है.
वो तेज़ी से मूड कर भागती है लेकिन वो साया उसे दबोच लेता है.
“ क..क..कौन हो तुम..छ्चोड़ो मुझे” साधना चील्ला कर कहती है
वो साया साधना के मूह पर हाथ रख देता है.
“चुप रहो साधना….ये मैं हूँ”
वो साया उसके मूह से हाथ हटा देता है
साधना अंधेरे में उस साए की शकल तो ठीक से नही देख पाती लेकिन फिर भी उसकी आवाज़ सुन कर रोने लगती है
“प्रेम……..क्या ये तुम हो ?”
“तुम्हे क्या लगता है ?”
साधना उस साए के गले लग जाती है और कहती है, “तुम कहा चले गये थे प्रेम !!….. मैं आज इतनी परेशान हूँ कि अपने प्रेम के कदमो की आहट भी पहचान नही पाई..मुझे माफ़ कर दो”
“चुप रहो ये वक्त बाते करने का नही है ठाकुर के आदमी इसी तरफ आ रहे हैं”
“तुम्हे ये सब कैसे पता…..वो तो अभी यहा से गये हैं”
“बतावँगा सब कुछ बतावँगा अभी तुम थोड़ी देर चुप रहो”
क्रमशः......................
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