RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
गतान्क से आगे..............
हवेली में सभी घबराए हुवे हैं. वर्षा का अभी तक कुछ पता नही चला और उपर से हवेली के पीछे के खेतो से ये भयानक चीन्खे …हर किशी के दिल को दहला रही हैं.
इधर खेत में प्रेम साधना को कहता है, “साधना चुपचाप मेरे पीछे आओ हमे यहा से निकलना है”
“पर प्रेम ये खेत में कौन है ?”
“श्ह… चुप रहो ज़्यादा बाते मत करो पहले यहा से निकलते हैं फिर बाते करेंगे”
“पर वो हमारे पीछे आया तो?”
“काफ़ी देर से कोई हलचल या आवाज़ नही हुई है, मुझे लगता है जो कोई भी वो था अब यहा नही है, और अगर हुवा भी तो देखा जाएगा..चलो अब”
प्रेम साधना का हाथ पकड़ कर उसे घनी फसलों से बाहर लाता है और गाँव की तरफ चल पड़ता है
“प्रेम तुम्हे डर नही लग रहा”
“मुझे बस तुम्हारी चिंता है, और मैं किसी चीज़ से नही डरता, बाते कम करो और तेज-तेज चलो”
लेकिन अभी वो चार कदम ही चलते हैं कि उन्हे किसी के अपने पीछे भागने की आहट सुनाई देती है. प्रेम मूड कर देखता है. दूर से उसे सॉफ सॉफ तो कुछ नही दीखता पर वो अंदाज़ा लगाता है, “अरे कहीं ये भीमा और सरिता तो नही ?”
“हो सकता है…….हमे रुकना चाहिए प्रेम”
“हां रुकने में कोई परेसानि नही है…देखते हैं वो कौन हैं”
जब वो 2 साए नज़दीक पहुँचते हैं तो प्रेम उन्हे पहचान जाता है और पूछता है, “तुम दोनो यहा क्या कर रहे हो ?”
“स्वामी जी आप ठीक तो हैं ?”
“हाँ-हाँ मैं ठीक हूँ…… पर तुम दोनो यहा क्यों आए ? ….मैने तुम्हे गाँव में रुकने को कहा था ना….. और गोविंद कहा है ?”
“जी वो गाँव में ही हैं, हम तो इसलिए आए थे कि यहा आपको हमारी कोई ज़रूरत हो तो हम काम आ सकें”
साधना ये सब सुन कर हैरान रह जाती है. वो धीरे से प्रेम से पूछती है, “ये तुम्हे स्वामी जी क्यों कह रहे हैं ?”
“चलो पहले यहा से चलते हैं…आराम से सब कुछ बताउन्गा” ---- प्रेम ने साधना से कहा
“स्वामी जी वो आवाज़े कैसी थी ?”
“क्या तुम दोनो ने भी वो सुनी”
“जी स्वामी जी तभी तो हम यहा भाग कर आए हैं. पूरे गाँव में वो चीन्खे गूँज रही थी”
“अभी कुछ नही कह सकते ….बाद में बात करेंगे”
“जी स्वामी जी” --- उन दोनो ने कहा
“साधना ये है धीरज और ये है नीरज दोनो मेरे ख़ास शिष्या हैं” ---- प्रेम ने उन दोनो का परिचय देते हुवे कहा
साधना की समझ से सब कुछ बाहर था. उसके मन में बहुत सारे सवाल उभर आए थे… जिनका जवाब वो जान-ना चाहती थी. पर उस वक्त उसने कुछ नही पूछा और चुपचाप प्रेम के साथ गाँव की तरफ चल दी.
अचानक फिर से वही चीन्ख ज़ोर से गूँजती है और वो सभी रुक जाते हैं.
“साधना तुम इन दोनो के साथ घर जाओ, तुम्हारे पिता जी वही हैं. मेरा एक मित्र गोविंद भी वही होगा. मैं यहा देखता हूँ कि क्या चक्कर है” --- प्रेम ने कहा
“नही प्रेम तुम यहा अकेले…….. ?”
ये सुन कर धीरज और नीरज हँसने लगते हैं
धीरज कहता है, “स्वामी जी किसी से नही डरते, बल्कि इनको देख कर तो आछे-आछे भूत-पिशाच भी भाग जाते हैं”
“चुप रहो धीरज” – प्रेम ने कहा
“जी स्वामी जी… माफ़ कीजिए” धीरज ने कहा
“साधना, मुझे जाकर देखना ही होगा कि आख़िर यहा खेत में हो क्या रहा है”--- प्रेम ने कहा
“फिर मैं भी यही रहूंगी तुम्हारे साथ प्रेम..तुम्हारे बिना मैं यहा से नही जा पाउन्गि” – साधना ने कहा
प्रेम किसी सोच में डूब जाता है
कुछ सोचने के बाद वो कहता है, “चलो पहले तुम्हारे घर चलते हैं….फिर देखेंगे की आगे क्या करना है ?”
साधना ये सुन कर मन ही मन थोडा खुस होती है…… पर अगले ही पल पूरे दिन को सोच कर गहरे गम में डूब जाती है.
|