RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“तुम मुझे हर बात के लिए मना लेते हो” – रूपा ने कहा
“यही तो प्यार है रूपा.. और प्यार क्या होता है ?”
“वैसे तुम्हारा ये बहुत प्यारा लग रहा है”
“ऐसा है क्या ?”
“हाँ..” --- रूपा शर्मा कर कहती है.
“तो फिर चलो इसको इसकी मंज़िल पर पहुँचा दो”
“क्या मतलब..?” रूपा ने पूछा
“मतलब की इसको अपने अंदर छुपा लो.. वही तो इसकी मंज़िल है.. हहे”
“हटो मुझ से वो नही होगा.. बहुत दर्द हुवा था मुझे खेत में”
“अब खुद खेत की बात कर रही हो.. मैं करता हूँ तो तुम्हे बुरा लगता है”
“पर सच कह रही हूँ किशोर, मुझे दर्द हुवा था”
“तुम वाहा डर रही थी ना इसलिए दर्द हुवा होगा.. यहा तो हम इस गुफा में हैं.. अब किसी बात की चिंता नही है.. चलो आराम से करूँगा”
किशोर रूपा को अपनी बाहों में लेकर अपने नीचे लेता लेता है और उसका नाडा खोल कर उसके कपड़े नीचे सरका देता है
रूपा, किशोर के लिंग को थामे रहती है.
“अब छ्चोड़ दो इस बेचारे को… इसको अब लंबे सफ़र पे जाना है” --- किशोर हंसते हुवे कहता है
“पहले खुद हाथ में देते हो फिर ऐसा कहते हो… हटो मुझे कुछ नही करना”
“अरे प्यार में ऐसे मज़ाक तो चलते रहते हैं… बुरा क्यों मानती हो.. अछा चलो थोड़ी देर और पकड़ लो”
“मुझे नही पकड़ना अब कुछ…. तुम अपना काम करो”
“मतलब की तुमसे इंतेज़ार नही हो रहा.. हहे”
“हे भगवान तुम सच में बहुत बदमाश हो”
“क्या बात है… अपने बारे में कुछ नही कहती जिसने मुझे अपने रूप के जाल में फँसा रखा है. कैसा इतेफ़ाक है ना… मैं रूपा के रूप के जाल में फँसा हूँ”
“और अब सारी उमर फँसे रहोगे हहहे” --- रूपा हंसते हुवे कहती है
“रूपा अंधेरे में मुझे रास्ता नही मिल रहा.. पकड़ कर सही जगह लगा दो ना”
“मैं खूब समझती हूँ तुम्हारी चालाकी… कल तो बड़ी जल्दी मिल गया था तुम्हे रास्ता !! क्या कल खेत में अंधेरा नही था ?”
“अरे वाहा चाँद की चाँदनी थी.. यहा गुफा में बिल्कुल अंधेरा है”
“तुम मज़ाक कर रहे हो ना ?”
“नही रूपा मैं भला मज़ाक क्यों करूँगा.. मैं तो खुद बहुत जल्दी में हूँ”
रूपा किशोर का लिंग पकड़ कर अपने योनि द्वार पर रख देती है और कहती है, “लो अब ठीक है”
“रूपा मैं मज़ाक कर रहा था हहे”
“बदमाश छोड़ो मुझे” --- रूपा ने गुस्से में कहा
रूपा छटपटा कर वाहा से उठने लगती है
“अरे-अरे रूको ना…. तुम तो मज़ाक का बुरा मान जाती हो”
“बात-बात पर मज़ाक अछा नही होता”
“पर एक बात है.. तुमने बड़े प्यार से लगाया था वाहा”
“अछा… अब आगे से कभी ऐसा नही करूँगी”
“देखेंगे… अब में तुम्हारे अंदर आ रहा हूँ”
“धीरे से…. किशोरे मुझे सच में कल बहुत दर्द हुवा था”
“तुम चिंता मत करो… मैं धीरे-धीरे तुम्हारे अंदर आउन्गा.. तुम बस अपना दरवाजा प्यार से खुला रखना”
“ऊओ…….. किशोर बस रुक जाओ”
“अभी तो बहुत थोड़ा ही गया है ” – किशोर ने कहा
“रूको ना.. अभी दर्द है”
“ठीक है थोड़ी देर रुकता हूँ”
“सूकर है” --- रूपा ने गहरी साँस ले कर कहा
“ऐसा क्यों कह रही हो”
“खेत में तुम बड़ी बेरहमी से डाँट रहे थे मुझे..याद है ना”
“हाँ तब मुझे लगा था कि तुम बहुत ज़ोर से चीन्ख रही हो… उसके लिए मुझे माफ़ कर दो”
“ठीक है… अछा चलो अब थोडा और आ जाओ”
“ऐसे प्यार से बुलाओगी तो मैं पूरा एक बार में आ जाउन्गा”
“नही बाबा… धीरे-धीरे आओ” – रूपा ने कहा
“अरे मज़ाक कर रहा हूँ… लो थोड़ा और..”
“आअहह…… बस”
उसके बाद दोनो उशी अवस्था में रुक जाते हैं और एक दूसरे में खो जाते हैं
थोड़ी देर बाद किशोर रूपा से पूछता है, “अब कैसा है….क्या अभी भी दर्द है”
“हां है तो…. पर थोड़ा कम… थोड़ा और आ जाओ”
“क्या बात है… लगता है सरूर में आ गयी हो”
ये सुन कर रूपा शर्मा जाती है. किशोर आगे बढ़ कर उसके होंटो को चूम लेता है और दोनो एक गहरे चुंबन में डूब जाते हैं
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