RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“हाँ तो मैं ये कह रहा था कि हमे एक जुट होना होगा. बात सिर्फ़ इस गाँव के ठाकुर की नही है. ठाकुर की अकल तो हम सब आज ठीकाने लगा सकते हैं. हमारी असली लड़ाई अंग्रेज़ो के खीलाफ है, जिन्होने हमे गुलाम बना रखा है, लेकिन उस से पहले हमे अपने सभी भेद-भाव भुला कर एक होना होगा…. उँछ-नीच, जात-पात की जंजीरो को तोड़ देना होगा, तभी हम एक होकर विदेशी ताक्तो का मुकाबला कर पाएँगे. हम 1857 का संग्राम हार गये क्योंकि हम में एकता नही थी वरना आज अंग्रेज इस धरती पे ना होते. हमने छोटे-छोटे टुकड़ो में यहा वाहा लड़ाई लड़ी और नतीज़ा ये हुवा कि हम बुरी तरह हार गये”
ऐसी बाते हर किसी को समझ नही आती. ज़्यादा-तर लोग बहुत आश्चर्या से प्रेम की बात सुन रहे थे. ऐसा उन्होने पहली बार सुना था. 1857 तक का किसी को पता नही था. पता हो भी कैसे, देश का आम आदमी अपनी रोटी-टुकड़े की दौड़ में इतना डूब जाता है की उसे कुछ और ध्यान ही नही रहता. लेकिन कुछ नवयुवक ऐसे थे जो प्रेम की बात बड़े गौर से सुन रहे थे.
प्रेम, को कुल मिला कर गाँव वालो से कोई अछा रेस्पॉन्स नही मिला. ये सब देख कर गोविंद ने कहा, “प्रेम लगता है इनको इन सब बातो से कोई मतलब नही है”
“ऐसा नही है गोविंद, तुम सोते हुवे इंसान को अचानक उठा कर भागने के लिए नही कह सकते. इन सब बातो में वक्त लगता है. बरसो की गुलामी ने इन लोगो को जाकड़ दिया है. मुझे ही इस गुलामी का कहा पता था. मैं खुद अध्यतम में डूब चुक्का था. ये तो स्वामी विवेकानंद जी की मेहरबानी है कि मेरी आँखे खुल गयी. उनसे एक मुलाकात ने मेरे जीवन का उदेश्य बदल दिया और मैं भी देश सेवा के लिए निकल पड़ा. मैने समाज सुधार का रास्ता चुना है, बिल्कुल स्वामी विवेकानंद की तरह. पूरे देश में समाज सुधार की लहर चल रही है, हमे भी उसमे अपनी और से योगदान देना है. काम लंबा है..इशे धीरे धीरे आगे बढ़ाना होगा”
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ठाकुर की हवेली का दृश्या :
“ठाकुर साहिब- ठाकुर साहिब”
“क्या हुवा बलवंत ?” –रुद्र प्रताप ने पूछा
“गाँव में आपके खीलाफ बग़ावत के सुर उठ रहे हैं” --- बलवंत ने रुद्र प्रताप से कहा
वीर भी उस वक्त वही था, वो ये सुन कर बोखला उठा और बोला, “किसमे इतनी हिम्मत आ गयी आज ?”
“मालिक वो अपने मंदिर के पुजारी का लोंदा प्रेम वापिस आ गया है.. वही सब को आपके खीलाफ भड़का रहा है. बोलता है ठाकुर को तो हम आज देख ले, हमारी असली लड़ाई तो अंग्रेज़ो के साथ है”
“क्या केसाव पंडित का लड़का !! वो तो 3 साल से गायब था ?” ---- रुद्र प्रताप ने कहा
“हाँ मालिक वही.. वो कोई स्वामी बन कर लौटा है ?”
“पिता जी ये सब मुझ पर छ्चोड़ दीजिए… मैं अभी जा कर उसकी अकल ठीकाने लगता हूँ” --- वीर ने कहा
“ठीक है वीर जाओ, इस से पहले की बग़ावत के सुर ज़्यादा ज़ोर पकड़े उन्हे कुचल दो”
“मालिक एक बात और पता चली है”
“हां बोलो क्या बात है” – रुद्र प्रताप ने पूछा
“खबर है कि भीमा ने पीचली रात मदन की बहन को उसके घर छोड़ दिया था”
“क्या ? अब कहा है वो नमक-हराम”” --- रुद्र प्रताप ने पूछा
“वो प्रेम के साथ ही था मालिक, समशान में वो उसी के साथ खड़ा था ?”
“पिता जी आप चिंता मत करो में भीमा की भी अकल ठीकने लगा दूँगा”
“पर वीर, ये हवेली के पीछे के खेतो से जो कल रात चीन्खे आ रही थी उसके बारे में क्या करोगे तुम ?” ---- रुद्र ने गंभीरता से पूछा
“पिता जी वो भी देख लूँगा आज” --- वीर ने कहा
“ये सब काम करके सारे आदमी वर्षा को ढूँडने में लगा दो, मुझे जल्द से जल्द अपनी बेटी वापिस यहा चाहिए”
“जी पिता जी” ---- वीर ने कहा
क्रमशः......................
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