RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--8
गतान्क से आगे..............
वीर रुद्र प्रताप के कमरे से बाहर आता है और बलवंत से कहता है, “सभी आदमियों को तैयार करो, आज गाँव के एक-एक आदमी की खाल खींचनी है”
“जो होकम मालिक” – बलवंत ने कहा
“बेटा उस भीमा को पकड़ कर यहा लाना, मैं खुद उसे अपने हाथो से मारूँगा” – जीवन प्रताप ने कहा
“आप चिंता मत करो चाचा जी, भीमा के साथ-साथ मैं मदन की दोनो बहनो को भी लेकर अवंगा” --- वीर ने कहा
ये सुन कर जीवन की आँखो में अजीब सी चमक आ गयी.... उनमे हवश साफ़ दीखाई दे रही थी.
वीर, गाँव में तूफान मचाने की तैयारी कर रहा है और रेणुका रसोई में व्यस्त है. हवेली का बावरची माधव भी उसके साथ है.
“मालकिन, आप रहने दीजिए, हम कर लेंगे” – माधव ने कहा
“कोई बात नही काका, काम करके मेरा मन बहल जाता है” --- रेणुका ने कहा
“जैसी आपकी इक्षा मालकिन”
तभी उन्हे कुछ सुनाई देता है ----- "आज तुम्हे नही छोड़ूँगा मैं"
“ये कैसी आवाज़ है मालकिन ?”
“पता नही ?”
रेणुका रसोई से बाहर आ कर देखती है, पर उसे कुछ नही दीखता.
“हटो ना” – ये आवाज़ आती है.
रेणुका हैरानी में फिर से चारो तरफ देखती है.
“देखो हट जाओ, कोई सुन लेंगे”
रेणुका हैरान, परेशान फिर से हर तरफ देखती है.
वो वापिस रसोई में आती है और माधव से पूछती है, “काका, क्या तुमने फिर से कुछ सुना?”
“हां मालकिन, सुना तो… पर बहुत हल्का सा”
“मुझे लगा मेरे कान बज रहे हैं” – रेणुका ने कहा
उस घर में उस वक्त रेणुका के अलावा और कोई औरत नही थी. इसलिए रेणुका काफ़ी हैरत में थी
उस ने मन ही मन में सोचा, कहीं ये लोग फिर से तो किसी ग़रीब को यहा नही ले आए
वो फॉरन अपने ससुर के कमरे की तरफ चल दी. कमरे के बाहर वीर बलवंत से बाते कर रहा था. वो वीर को देख कर रुक गयी.
वीर ने पूछा, “क्या बात है ?”
“कुछ नही” – रेणुका ने कहा और वापिस मूड गयी.
“कल इसने बहुत बुरा किया हमारे साथ बेटा” --- जीवन ने रेणुका के लिए वीर से कहा
“सब काम निपटा कर इसकी भी खबर लूँगा चाचा जी, पहले बाहर वालो को देख लूँ” --- वीर ने कहा
रेणुका वापिस रसोई की तरफ बढ़ती है. पर वो जैसे ही रसोई के दरवाजे पर कदम रखती है उसे आवाज़ आती है.
“उउऊयययी मानते हो की नही”
रेणुका पूरी हवेली को देखने का फ़ैसला करती है. बारी बारी से वो सभी कमरे देख लेती है. इतनी बड़ी हवेली में ज़्यादातर कमरे खाली पड़े थे. रेणुका को थोडा डर भी लग रहा था पर फिर भी वो एक-एक करके सभी कमरो के अंदर झाँक कर देखती है.
पर उशे किसी कमरे में कुछ नही मिलता.
“बस चाचा जी और पिता जी का कमरा रह गया. पर वाहा से तो मैं आ ही रही हूँ. पिता जी और चाचा जी का कमरा आमने सामने है. वाहा तो ऐसा कुछ नही था. वैसे भी आवाज़ तो रसोई के पास से ही आ रही थी और वो कमरे तो रसोई से दूर हैं” --- रेणुका मन ही मन खुद से बाते कर रही है
ये सब सोचते-सोचते वो रसोई के बाहर पहुँच जाती है.
तभी अचानक उसे ध्यान आया, “अरे वर्षा का कमरा तो मैं भूल ही गयी”
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