RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“साली ज़बान लड़ाती है, लगता है सबसे पहले तेरी अकल ठीकाने लगानी पड़ेगी… चल तू अंदर बिना थूक लगाए तेरे चूतदों को रोन्दता हूँ” --- वीर ने रेणुका के बाल खींचते हुवे कहा और उसे खींच कर अपने कमरे की तरफ ले चला.
“ऊऊहह और तेज…. मज़ा आ रहा है”
वीर ये आवाज़ सुन कर रुक जाता है
“चिंता मत कर अभी तूफान आने वाला है” – फिर से आवाज़ आती है
“ये आवाज़े कहा से आ रही हैं !! ?” --- वीर ने रेणुका से पूछा
“वही तो मैं आपको बताने आ रही थी, पर मेरी सुनता कौन है” – रेणुका ने कहा
“बकवास बंद कर और ये बता कि ये आवाज़ कहा से आ रही है” – वीर ने गुस्से में पूछा
“वर्षा के कमरे से आ रही हैं, वर्षा कमरे में ही है”
“क्या !!!” --- वियर ने हैरानी में कहा
वीर रेणुका को छोड़ कर तेज़ी से सीढ़ियों की तरफ बढ़ता है
“आप वाहा मत जाओ… आपको दुख होगा” --- रेणुका ने कहा
पर वीर ने रेणुका की बात पर कोई ध्यान नही दिया
वीर वर्षा के कमरे के बाहर पहुँच कर दरवाजे को खोलने लगता है. पर दरवाजा पहले की तरह अंदर से बंद था.
वीर भी रेणुका की तरह वर्षा के कमरे की खिड़की की तरफ बढ़ता है
खिड़की से उसने जो देखा वो उसके लिए विस्वाश करने लायक नही था
“आअहह….रुक जाओ भैया देख रहे हैं”
“इस कामीने को भी देख लेने दो, इसे पता तो चले की मर्द क्या होता है………. नामार्द कहीं का !!”
“कामीने !! कौन हो तुम ??… वर्षा ये सब क्या है ?? --- वीर ने गुस्से में चील्ला कर कहा
“चुप कर छक्के….. आवाज़ नीचे रख.. और यहा से दफ़ा हो जा. हमे मज़े करने दे” – वो ये कह कर आगे बढ़ कर खिड़की बंद कर देता है.
वीर आग बाबूला होकर दरवाजे की तरफ दौड़ता है और उस पर ज़ोर से धक्का मारता है. पर दरवाजा नही खुलता.
“इस से पहले भैया अंदर आए… काम ख़तम करो”
“चिंता मत करो उस नामार्द के बस का नही है ये दरवाजा खोलना”
रेणुका भी भाग कर आती है. साथ ही रुद्र प्रताप और जीवन प्रताप भी आवाज़े सुन कर रसोई की तरफ आते हैं. वो देखते हैं कि वीर वर्षा के कमरे के दरवाजे को तोड़ने की कोशिश कर रहा है. वो भी भाग कर सीढ़ियाँ चड़ते हैं
इतने में दरवाजा टूट जाता है और वीर लड़खड़ा कर कमरे के अंदर गिर जाता है
रेणुका भी कमरे में आ जाती है
दोनो हैरानी से कमरे को देखते हैं. उनकी सिट्टी-पिटी गुम हो जाती है
“कहा गये वो दोनो” – रेणुका ने पूछा
वीर ने हैरानी भारी आँखो से रेणुका की ओर देखा
इतने में रुद्र प्रताप भी जीवन के साथ कमरे में आ जाता है.
“क्या हुवा वीर ? ये दरवाजा क्यों तोड़ दिया तुमने ? ” – रुद्र ने हैरानी में पूछा
“वो..वो.. वर्षा थी कमरे में पिता जी” – रेणुका ने कांपति आवाज़ में कहा
वीर कुछ भी कहने की हालत में नही था. वो खड़ा होता है और कमरे के उस दरवाजे की तरफ बढ़ता है जो कमरे की बाल्कनी में खुलता है. वो अंदर से बंद है. वो रेणुका की तरफ देखता है.
रेणुका भी दरवाजे की कुण्डी देख कर हैरान रह जाती है. रेणुका और वीर आँखो ही आँखो में कुछ कहते है. सिर्फ़ वो दोनो जानते हैं कि इस बंद दरवाजे का क्या मतलब है. रेणुका थर-थर काँपने लगती है और कमरे से बाहर आ जाती है.
“कोई हमे बताएगा की यहा क्या हो रहा है” --- रुद्र ने गुस्से में कहा
वीर बिना कुछ कहे कमरे से बाहर आ गया. वो गहरे सदमे में है….बहुत गहरे सदमे में.
क्रमशः......................
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