RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
गतान्क से आगे..............
वीर को इतना बड़ा सदमा लगा था कि वो कुछ भी नही बोल पा रहा था.
उसके पीछे-पीछे रुद्र प्रताप और जीवन प्रताप भी कमरे से बाहर आ जाते हैं. वो दोनो बहुत हैरान और परेशान हैं. उन्हे कुछ समझ नही आ रहा कि आख़िर बात क्या है ?.
“वीर, क्या बात है… तुम कुछ बोलते क्यों नही” – रुद्र प्रताप ने वीर के कंधे पर हाथ रख कर पूछा
पर वीर ने कुछ जवाब नही दिया
“हां बेटा बोलो ना क्या बात है, ये दरवाजा क्यों तोड़ा तुमने” ---- जीवन प्रताप ने पूछा
तभी बलवंत नीचे से आवाज़ लगाता है और पूछता है, “मालिक सब लोग तैयार हैं, चलें क्या ?”
वीर गहरे विचारो में खो जाता है… फिर कुछ सोच कर कहता है, “आज रहने दो, वो सब बाद में देखेंगे”
“क्या कह रहे हो बेटा !! ऐसे तो ये गाँव वाले सिर पे चढ़ जाएँगे” --- जीवन प्रताप ने कहा
“एक-दो दिन में कोई तूफान नही आ जाएगा चाचा जी” --- वीर ने कहा
“पर बात क्या है कुछ बताते क्यों नही ?? बहू कह रही थी कि वर्षा थी कमरे में ??. वो थी तो कहा गयी ?” --- रुद्र ने पूछा
“ऐसा कुछ नही है, उसे भ्रम हुवा होगा” --- वीर ने कहा
“तो फिर तुमने दरवाजा क्यों तोड़ा.... वो बाहर से बंद था ना” --- रुद्र ने हैरानी भरे शब्दो में पूछा
“पिता जी दरवाजा अटक गया था. उसे खोलने की कोशिश कर रहा था… बस इतनी सी बात है”
“तो फिर बहू क्यों कह रही थी कि वर्षा कमरे में थी ?”
“उसका दिमाग़ खराब है पिता जी. दरवाजा अटका हुवा था.. इसलिए उसने सोचा कि वर्षा अंदर है”
रेणुका वही खड़ी हुई सब सुन रही थी.
“दिमाग़ तो इसका खराब है ही... हा” --- रुद्र ने कहा और कह कर वाहा से चल दिया.
जीवन भी वाहा से चुपचाप चला गया.
वीर ने गहरी साँस ली और भारी-भारी कदमो से अपने कमरे की तरफ चल पड़ा
रेणुका भी उसके पीछे-पीछे कमरे में आ गयी
“क्या कहा आपने…. मेरा दिमाग़ खराब है !!!! क्या आपने वर्षा को कमरे में नही देखा ?” --- रेणुका ने पूछा
“चुप कर.... मैं अभी बहस के मूड में नही हूँ” – वीर ने कहा
“पर ये सब था क्या....?” --- रेणुका ने पूछा
“मैने कहा ना… चुप रहो, अपना काम देखो जा कर… मुझे अकेला छोड़ दो”
रेणुका कमरे से बाहर निकल कर रसोई में आ जाती है.
“क्या हुवा मालकिन “ – माधव ने पूछा
“कुछ नही काका... चलिए खाना तैयार करते हैं” --- रेणुका ने कहा
“किशोर कब तक बैठे रहेंगे हम इस गुफा में” – रूपा ने झुंजलाहट में कहा
“लगता है रास्ता साफ है… काफ़ी देर से कोई आवाज़ तो नही आई. ऐसा करता हूँ थोडा सा पथर हटा कर देखता हूँ” --- किशोर ने कहा
“हां देखो, पर ज़रा ध्यान से”
“तुम चिंता मत करो और पथर छोड़ कर पीछे हट जाओ, मैं बाहर झाँक कर देखता हूँ”
किशोर बाहर झाँक कर देखता है
“दीख तो कुछ नही रहा, लगता है रास्ता साफ है, आओ चलते हैं”
“ठीक है चलो जल्दी… हमे हर हाल में आज वापिस गाँव पहुँचना है”
“ठीक है आओ”
दोनो गुफा से बाहर आ कर सुबह की खुली हवा में साँस लेते हैं और चारो तरफ देखते हैं कि कहीं कोई ख़तरा तो नही.
“रूको मैं ये मोटी सी लकड़ी उठा लेता हूँ. रास्ते में काम आएगी” --- किशोर ने कहा
“ठीक कह रहे हो… जिस तरह का ये जंगल है, हमारे पास कुछ तो होना ही चाहिए”
“ये लो एक डंडा तुम भी पकड़ लो” – किशोर लकड़ी का एक मोटा सा डंडा रूपा की तरफ बढ़ाता है.
“मदन और वर्षा पता नही कहा होंगे ? क्या वो गाँव पहुँच गये होंगे ?” --- रूपा ने किशोर से पूछा
“पता नही… क्या पता वो भी हमारी तरह कहीं भटक रहे हो ?”
“ह्म्म्म….. बिल्कुल हो सकता है” --- रूपा ने कहा
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