RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“हटो तुम…. मुझे नही सीखना ये सब” --- वर्षा ने शरमाते हुवे कहा
“अरे इसके बिना तो आदमी-औरत अधूरे हैं, ये नही होगा तो धरती पर जीवन कैसे चलेगा”
“पर ये तो बेकार तरीका है… देखो ना कैसे झुका रखा है.. बेचारी को बंदर ने”
“प्यार के बहुत सारे तरीके हैं वर्षा…. ये बस उनमे से एक है”
“बस-बस मुझे काम-क्रीड़ा का पाठ मत पधाओ और चुपचाप बेल खाओ” – वर्षा ने झुंजलाते हुवे कहा
“ये सब हमारे काम की बाते हैं वर्षा इनको समझ लो तो अछा होगा”
“मुझे कुछ नही समझना… तुम बेल खाओ और मुझे भी खाने दो…. हा.. काम की बाते”
“ऐसे गुस्सा करती हो तो और भी प्यारी लगती हो, मन कर रहा है तुम्हारी पप्पी ले लूँ”
“ले कर दीखाओ, तुम्हे नीचे धक्का दे दूँगी”
“ऐसा है क्या ?”
“हां बिल्कुल”
मदन वर्षा की तरफ बढ़ता है
“रूको मानते हो कि नही मैं सच में तुम्हे गिरा दूँगी”
“तो गिरा दो.. तुम्हे रोक कौन रहा है…. अब तो इन होंटो का रस मैं पी कर रहूँगा”
दौनो में हाथा-पाई होती है और …….
“नहियिइ…” --- वर्षा चील्लयि
“अरे तुमने तो सच में………. गिरा दिया”
मदन ज़मीन पर पड़ा था.
“जल्दी उपर आओ”
“मुझे नही आना… पहले गिराती हो, फिर उपर बुलाती हो”
“देखो कितनी मीठी बेल है.. आओ ना… वरना मैं पूरी खा जाउन्गि”
“तो खा जाओ… मुझे भूख नही है”
“उउफ्फ …. ठीक है मैं भी नही खाती फिर… मैं नीचे कूद रही हूँ”
“अरे पागल हो क्या…. चोट लग जाएगी… मेरी कमर दुख रही है… रूको मैं आ रहा हूँ”
बहुत प्यारी है इन प्यार में डूबे दो दिलो की ये खूबसूरत नोक-झोंक.
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गाँव में:------
“साधना मैं खेत में जा रहा हूँ, पता चला है कि ठाकुर के आदमियों ने वाहा खेत में कुछ अजीब देखा है” --- प्रेम ने साधना से कहा
“मैने भी देखा है प्रेम. कल सुबह मैने खुद किसी अजीब से साए को फसलों में घुसते देखा था. एक बार नही बल्कि दो बार. मैने और पिता जी ने पूरा खेत छान मारा पर हमें कुछ नही मिला. कल शाम को तुमने भी तो वो चीन्ख सुनी थी”
“हां सुनी तो थी… पर इन सब बातो से किसी नतीज़े पर नही पहुँच सकते.. अभी दिन है, एक बार मैं आछे से खेत को देख लूँ तभी कुछ कह सकूँगा” --- प्रेम ने कहा
“मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी प्रेम” --- साधना ने कहा
“कब तक साथ चलॉगी साधना, मैने जीवन से सन्यास ले लिया है. आज यहा हूँ तो बस देश-प्रेम की खातिर वरना कहीं समाधि में बैठा होता ?”
“ये क्या कह रहे हो प्रेम ? क्या ये दुख देने के लिए ही वापिस आए हो तुम. मैने सोचा मेरा प्यार तुम्हे यहा खींच लाया है.. पर नही तुम तो देश से प्यार करते हो.. मेरी इस देश के आगे क्या औकात है.. हैं ना”
ये कह कर साधना रोने लगती है
प्रेम उसकी और देखता रहता है. उसके पास साधना के सवाल का कोई जवाब नही है
“साधना तुम ये सब क्या कह रही हो ?”
“और क्या कहूँ प्रेम, तुम इतने दीनो बाद वापिस आए और अब ऐसी बाते कर रहे हो”
“देखो वाहा खेत में तुम्हारा जाना ठीक नही होगा. वाहा कुछ अजीब हो रहा है. तुम साथ रहोगी तो मुझे तुम्हारी ही चिंता रहेगी. कल तुम साथ ना होती तो मैं कल ही पता कर लेता कि क्या चक्कर है वाहा”
“जब तुम मुझे कुछ समझते नही हो तो फिर मेरी चिंता क्यो रहेगी तुम्हे”
“किसने कहा मैं तुम्हे कुछ नही समझता, मेरे दिल में आज भी तुम्हारे लिए वही आदर और सम्मान है जो पहले था”
“पर… प्यार नही है… है ना ?”
“क्या मैने तुम्हे कभी कहा कि मैं तुम्हे प्यार करता हूँ” --- प्रेम ने पूछा
“नही पर….” ---- साधना ये कह कर चुप हो गयी. उसने अपने मूह पर आते हुवे सबदो को अपने अंदर ही रोक लिया.
“हम आछे दोस्त थे साधना. क्यों इस दोस्ती को प्यार के बंधन में बाँध रही हो. वैसे भी मेरे जीवन का मकसद इस देश के लिए कुछ करने का है. तुम्हे तो ख़ुसी होनी चाहिए ये सब देख कर”
“मैं खुस हूँ प्रेम पर… मैं इस दिल का क्या करूँ जो बस तुम्हारे लिए धड़कता है”
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