RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“छोड़ दूं तुझे हां..ताकि तू ज़ुबान लड़ा सके. बहुत दर्द होता है ना तुझे गांद में लेते हुवे. आज तेरी अकल ठीकने ना लगा दी तो मेरा नाम वीर नही”
“मैं आपकी पत्नी हूँ कोई जानवर नही”
“तो पत्नी की तरह रहती क्यों नही.. चल झुक आगे”
“देखिए दरवाजा खुला पड़ा है.. कोई आ गया तो क्या सोचेगा”
वीर दरवाजा बंद करता है और कहता है, “अब तेरी चीन्ख इस बंद कमरे में ही रहेगी… चल झुक आगे”
“आहह…. नहियीईईईई”
“क्या हुवा… अभी तो एक इंच भी नही घुस्सा और चील्ला रही है. देख मैं आज तेरा क्या हाल करता हूँ”
“आप में इतना दम नही है कि मेरा कोई हाल कर सकें”
“क्या कहा कुतिया… ये ले फिर”
“आआहह……”
“आप इंसान नही जानवर हैं… आअहह”
“तू क्या है… बिगड़ैल बाप की बिगड़ैल बेटी”
“आआअहह… अब दर्द नही हो रहा.. आदत हो गयी है इस ज़ुल्म की.. कुछ और कीजिए मुझे रुलाने के लिए”
“आदत हो गयी है… अभी बताता हूँ…”
वीर पूरे जोश से बहुत तेज-तेज संभोग करने लगता है
“आआहह… और तेज हो जाए तो अछा होगा… और ज़ोर से कीजिए ना”
“तुझे और तेज चाहिए…. ले फिर” --- वीर ने हांपते हुवे कहा
थोड़ी देर बाद वीर हट गया और गुस्से में बोला, “चल हट यहा से”
“क्या हुवा आपका हो गया क्या… मुझे अभी और चाहिए.. मेरी अभी सन्तुस्ति नही हुई”
“तो जा और जा के पानी में डूब जा”
“ठीक है मैं जा रही हूँ….आप किसी काम के नही हैं”
“साली, कुतिया तेरा कुछ नही हो सकता. मैने सोचा भी नही था कि तू ऐसी निकलेगी” --- वीर ने गुस्से में कहा
तभी दरवाजे पर ठक-ठक की आवाज़ आती है
“मैं चारपाई के नीचे छुप रही हूँ”
“क्यों.. ये सब क्या नाटक लगा रखा है” ---- वीर हैरानी में पूछता है.
“आप दरवाजा खोलो ना, कोई मुझे पूछे तो कह देना कि मैं यहा नही हूँ”
“तू पागल हो गयी है” वीर ये कह कर दरवाजा खोलता है
जैसे ही वो दरवाजा खोलता है… उसके पैरो के नीचे से ज़मीन निकल जाती है
उसके सामने रेणुका खड़ी थी हाथ में खाने की थाली लिए.
वीर की कांप-कपि छूट जाती है… वो फॉरन बाहर आ कर कमरे को बाहर से बंद कर देता है
“क्या हुवा, ये दरवाजा क्यों बंद कर दिया.. चलिए मैं खाना यही ले आई हूँ… खा लीजिए ” – रेणुका ने कहा
“मुझे नही खाना तुम्हारे हाथ से कुछ भी” --- वीर ने थाली पर हाथ मारते हुवे कहा
थाली दूर जा कर गिरी और उसमे रखा खाना ज़मीन पर बीखर गया
रेणुका बस खड़ी-खड़ी तमाशा देखती रही.
वीर के माथे पर पसीने के साथ-साथ अजीब सी सिकन उभर आई थी. रेणुका वीर को यू डरा हुवा सा देख कर हैरान हो रही थी
खेत में:------
“स्वामी जी यहा खेत में तो कुछ नही है. लोग यू ही अफवाह उड़ा रहे है शायद” ---- धीरज ने कहा
“ऐसा नही है… मुझे ना जाने क्यों यहा कुछ बहुत अजीब लग रहा है”
“क्या लग रहा है स्वामी जी आपको ?”
“ठीक से तो नही कह सकता पर एक बात अजीब है”
“क्या अजीब बात है स्वामी जी”
“कोई है…जो नही चाहता कि हम यहा रहे”
“समझा नही स्वामी जी… क्या आप का इशारा ठाकुर की तरफ है” --- धीरज ने पूछा
“नही ठाकुर की तरफ बिल्कुल नही… ये ताक़त कुछ और ही है”
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