RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
धीरज ने प्रेम के कान में कहा “काका आपको कुछ नही पता कि वो कहा गया”
“पता होता तो जाकर ले ना आता बेटा, उसके जाने के बाद मेरी तो दुनिया ही उजड़ गयी”
“मैं समझ सकता हूँ काका… आप चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा… मैं अब चलता हूँ” --- प्रेम ने हाथ जोड़ कर कहा
“बेटा रघु की कोई खबर लगे तो फॉरन आ कर बताना, उसकी मा खाट पकड़े पड़ी है. किसी भी वक्त प्राण त्याग सकती है. रघु के गम में ही उसकी ये हालत हुई है. जाते-जाते उसे रघु का कुछ पता चल जाए तो उसकी आत्मा को सुकून मिलेगा” “आप फिकर मत करो काका, रघु का कुछ ना कुछ पता चल ही जाएगा. मैं खुद उसकी तलाश करूँगा” – प्रेम ने उस बुजुर्ग के हाथ पकड़ कर कहा “ठीक है बेटा….. इस पूरे गाँव में तुम्हारी खूब प्रशंसा होती है. मुझे तुम पर पूरा भरोसा है कि तुम मेरे बेटे को ढूंड लाओगे” “ठीक है काका….. मैं चलता हूँ… आप चिंता मत करना” ये कह कर प्रेम वाहा से चल देता है “स्वामी जी मेरी तो आँखे भर आई थी, आप कैसे इतने मजबूत बने रहते हैं” “सब कुछ जींदगी ने सीखाया है मुझे, तुम भी सीख जाओगे” “पर स्वामी जी मुझे कुछ समझ नही आया, उस चिड़ी मार के लिए हम यहा क्यों आए थे” प्रेम किन्ही गहरे ख़यालों में होता है, वो धीरज की बात का कोई जवाब नही देता “स्वामी जी……. क्या हुवा?” “कुछ नही… बात काफ़ी उलझी हुई है. बहुत भारी गड़बड़ हुई लगती है मेरे पीछे इस गाँव में” “क्या मतलब स्वामी जी मुझे भी तो कुछ बता दिया करो. मैं हर वक्त सोच-सोच कर परेशान रहता हूँ” “तुम्हे क्या बताउ अभी जब मुझे ही ठीक से कुछ समझ नही आ रहा. बात वही बताई जाती है जिसका आपको पता हो. मैं खुद अभी अंधेरे में हूँ तो क्या बताउ तुम्हे” “ह्म्म्म…. कोई बात नही स्वामी जी. अब आगे हमें क्या करना है ?” “हवेली चलते हैं” “क्या !!” “क्या हुवा” – प्रेम ने पूछा “क्या वाहा ऐसे अकेले जाना ठीक होगा स्वामी जी” “मैं हूँ ना तुम्हारे साथ डर क्यों रहे हो. उस चिड़ी मार के पीछे तो बड़ी जल्दी भाग रहे थे” --- प्रेम ने मुस्कुराते हुवे कहा “मरे हुवे, ज़िंदा लोगो से कम ख़तरनाक होते हैं, आप ही ने कहा था ना एक दिन” --- धीरज ने कहा “हां कहा था, इसका मतलब ये नही कि ज़िंदा लोगो से डर महसूष करो” “पर स्वामी जी मैने सुना है कि बहुत ख़तरनाक है वो ठाकुर, पूरे गाँव में उसी की चलती है” “चलती थी….. अब नही चलेगी… चलो हमें और भी बहुत काम करने हैं” “स्वामी जी गोविंद को बुला लेते हैं, वो मार-धाड़ में माहिर है” “तुम चलते हो कि नही या मैं अकेला जाउ” “बुरा क्यों मानते हैं स्वामी जी मैं तो आपकी चिंता कर रहा था” “मेरी चिंता मत करो, और चुपचाप मेरे साथ चलो” ---- प्रेम ने कहा “ठीक है स्वामी जी जैसी आपकी मर्ज़ी” प्रेम और धीरज ठाकुर की हवेली की तरफ चल पड़ते हैं. हवेली में सभी वर्षा को लेकर परेशान हैं उपर से हवेली के पीछे खेत की चीन्खे भी सबकी नींद उड़ाए हुवे है. वीर और रेणुका गहरे सदमे में हैं. रेणुका से ज़्यादा वीर की हालत खराब है. वो समझ नही पा रहा है कि आख़िर हो क्या रहा है. क्रमशः............
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