RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
सब गाँव वालो को इक्कथा करके उन्हे चेतावनी दो वरना कोई नही बचेगा. इस वीर को तो मैं नही छोड़ूँगा.” रघु ने कहा. “ये कौन बोल रहा है दीखाई तो कोई नही दे रहा” जीवन ने कहा. “दीखाई देगा कैसे भूत जो है….और अगर दीख गया ना तो यही मूत दोगे तुम” धीरज ने कहा. “खामोश हमारी हवेली में आकर हमारा मज़ाक उड़ाते हो” जीवन चिल्ला कर बोला. “स्वामी जी ये अंकल संभाल लेंगे भूत जी को चलो हम चलते हैं.” धीरज ने कहा. “नही स्वामी जी मेरे पति को बचा लीजिए…मैं मानती हूँ कि इन्होने ग़लत किया होगा…पर एक बार उन्हे मोका दीजिए वो आगे से ऐसा नही करेंगे.” रेणुका ने कहा. “बेचारी सरिता को नंगा घसीट कर लाया था ये इस हवेली में…चलिए स्वामी जी इसके पापो की यही सज़ा है कि इसे भूत निगल जाए.” धीरज ने कहा. “धीरज तुम थोड़ा धीरज रखो….मैं हूँ ना यहा.” प्रेम ने कहा. “जी स्वामी जी आप तो हैं ही मैं तो बस यू ही” धीरज ने कहा. “रघु हमारे रहते तुम यहा कोई अनहोनी नही कर सकते” प्रेम ने कहा. “तो तुम चले जाओ मैने तुम्हे यहा नही बुलाया….वीर की मौत तो निश्चित है..जब तक ये जींदा रहेगा मेरी और राधा की आत्मा भटकती रहेगी.” रघु ने कहा. “मेरे रहते तुम ये काम नही कर सकते” प्रेम ने कहा. “प्रेम…..मेरी मदद करो…..नही आहह” एक आवाज़ आती है. प्रेम घूम कर देखता है पर कोई नज़र नही आता. “ये तो साधना की आवाज़ है” प्रेम ने सोचा. “स्वामी जी ये आवाज़ कहीं पीछे से आ रही है” “पीछे तो खेत हैं” रेणुका ने कहा. “सोच क्या रहे हो प्रेम जाओ और बचा लो अपनी साधना को….इस पापी वीर के लिए यहा क्यों खड़े हो” रघु ने कहा. “ये ठीक कह रहा है स्वामी जी आओ चलें” धीरज ने कहा. “नही प्लीज़ मेरे पति को बचा लीजिए..” रेणुका गिड़गिडाई. पर अगले ही पर रघु वीर को पीछे दरवाजे से घसीट कर खेतो की ओर ले गया. “छोड़ो मुझे…मैने तुम्हारी राधा को नही मारा था..फिर मेरे पीछे क्यों पड़े हो.” वीर गिड़गिदाया “चल ठीक है फिर तुझे जंगल में पटक देता हूँ…वो दरिन्दा तुझे भी चीर कर खाएगा तो पता चलेगा.” रघु ने कहा. “स्वामी जी कुछ कीजिए ना” रेणुका बोली. “कुछ समझ नही आ रहा कि हो क्या रहा है” प्रेम ने कहा. “चलो स्वामी जी खेतो में चलतें हैं…साधना की आवाज़ भी तो उधर से ही आई थी.” धीरज ने कहा. “ठीक है चलो” जब तक प्रेम और धीरज खेतो में पहुँचते हैं रघु वीर को लेकर जंगल में घुस्स चुका होता है. “यहा तो कोई नही है…कहा ले गया वो वीर को…और साधना भी कही नज़र नही आ रही” धीरज ने कहा. “शायद वो वीर को जंगल में ले गया है…चलो” प्रेम ने कहा. “पर स्वामी जी साधना का क्या?” “यहा कोई साधना नही थी…ये सब इन भूतो की चाल थी हमारा ध्यान बटाने के लिए” “ह्म्म….चलो फिर इस भूत को मज़ा चखाते हैं स्वामी जी” प्रेम और धीरज के पीछे-पीछे रुद्र, रेणुका और जीवन भी आ गये. “कहा ले गया वो मेरे पति को” रेणुका ने कहा. “शायद जंगल में ले गया है…फिर भी पहले हम यहा खेतो में देख लेते हैं…ठाकुर अपने आदमियों से कहो खेत के हर कोने में तलास करें.” ……………………….. इधर जंगल में. “देखो हमें देर नही करनी चाहिए और जल्द से जल्द यहा से निकलना चाहिए” किशोरे ने कहा. “ठीक है...जैसी तुम सब की मर्ज़ी लेकिन किस रास्ते से जाएँगे और अगर वो भयानक चीज़ कही रास्ते में मिल गयी तो” मदन ने कहा. “देखो कुछ तो ख़तरा हमें उठाना ही होगा…चलो मेरे पीछे-पीछे मुझे लगता है कि मैं गाँव का रास्ता जानता हूँ.” किशोरे ने कहा. “ठीक है चलो फिर, हमें ज़्यादा देर नही करनी चाहिए.” मदन ने कहा. सभी गुफा से निकल कर किशोरे के पीछे-पीछे चल पड़ते हैं. “मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं यहा आ चुका हूँ” किशोरे ने कहा. “देखो कोई ग़लती मत करना वरना सब मारे जाएँगे” मदन ने कहा. “हां याद आ गया वो पेड़ मैने पहले देखा है….आओ मेरे पीछे-पीछे हम गाँव से ज़्यादा दूर नही हैं.” किशोरे ने कहा. आख़िर कार भटकते-भटकते वो सब गाँव के नज़दीक पहुँच ही जाते हैं. “वो देखो…वो रहा अपना गाँव…पहुँच गये ना हम” किशोरे ने कहा. “तुम अपने घर जाओगी?” मदन ने वर्षा से पूछा. “घर क्यों जाउन्गि…मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर जाउन्गि.” वर्षा ने मदन का हाथ पकड़ कर कहा “ठीक है आओ फिर.” मदन ने वर्षा का हाथ भींच कर कहा. “मेरी बात सुनो….अभी मेरे घर चलो…गाँव का माहॉल देख कर घर जाना ज़रूर ठाकुर ने तूफान मचा रखा होगा. मेरा घर अलग थलग है…कोई चिंता की बात नही रहेगी” वर्षा ने मदन की और देखा और इशारो इशारो में किशोरे की बात मान-ने को कहा. “तुम ठीक कह रहे हो…तुम्हारा घर सुरक्षित रहेगा…वर्षा तुम अपना मूह ढक लो ताकि कोई तुम्हे पहचान ना सके.” मदन ने कहा. “रूपा तुम घर जाओ और किसी को भी मदन और वर्षा के बारे में कुछ मत बताना..अपने भाई बलवंत को तुम कोई कहानी बता देना..मेरा नाम मत लेना वरना वो यहा पहुँच जाएगा.” किशोरे ने कहा. “तुम चिंता मत करो…मैं संभाल लूँगी” रूपा ने कहा. रूपा ने वर्षा को गले लगाया और बोली, “भगवान तुम्हारा प्यार सलामत रखे…अपना ख़याल रखना.” “तुम भी अपना ख्याल रखना” वर्षा ने कहा. “मदन तुम यही रूको अभी पहले मैं वर्षा को छोड़ आउ…तुम सबकी नज़रो से बचते बचाते थोड़ी देर में आ जाना.” किशोरे ने कहा. “ठीक है मैं यही खड़ा हूँ तुम निकलो…और हां गाँव वालो को उस भयानक जानवर के बारे में भी तो सचेत करना है” मदन ने कहा. “वो काम तुम मुझपे छोड़ दो…मैं संभाल लूँगा…अभी तुम्हे बस ठाकुर से बच के रहना है” वर्षा मूह पर दुपपता लपेट कर चुपचाप किशोरे के साथ चल पड़ती है. किशोरे वर्षा को अपने घर ले आता है. “तुम आराम करो…बहुत थक गयी होगी…मैं मदन को भी यहा तक सुरक्षित लाने का इंटेज़ाम करता हूँ.”
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