RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“तुम इतना कुछ क्यों कर रहे हो.” वर्षा ने पूछा. “तुम दोनो के प्यार की खातिर.” किशोरे ने कहा. मदन भी किसी तरह से किशोरे के घर तक पहुँच जाता है. मदन के आते ही वर्षा उस से लिपट जाती है. “कल तो मुझसे दूर भाग रही थी आज क्या हुवा?” “मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी.” वर्षा ने कहा. “मैं कुछ खाने का इंटेज़ाम करता हूँ तुम दोनो आराम करो” किशोरे ने पीछे से आवाज़ दी. किशोरे की आवाज़ सुनते ही वर्षा मदन से अलग हो गयी. मदन किशोरे के पास गया और बोला, “तुम हमारी बहुत मदद कर रहे हो…कैसे चुकाउंगा इस अहसान का बदला मैं.” मदन ने कहा. “ये अहसान नही है, ये मेरा दो प्यार करने वालो के प्रति फ़र्ज़ है…और वैसे भी तुमने भी तो मेरी और रूपा की जान बचाई थी उन गौरो से… तुम आराम करो मैं कुछ खाने को लाता हूँ” किशोरे ने कहा …………………….. इधर ठाकुर के आदमियों ने पूरा खेत छान मारा पर वीर का कोई पता नही चला. शाम घिर आई थी सभी हतास और निराश थे. “अब तो बात सॉफ है…वो वीर को जंगल में ही ले गया है.” प्रेम ने कहा. “अब तक तो उसने वीर की चटनी बना दी होगी….स्वामी जी रहने दीजिए..उसे उसके पापो की सज़ा मिल गयी हमें क्या लेना देना.” “तुम समझ नही रहे मेरा इरादा उसे बीच गाँव में सज़ा देने का था ताकि गाँव वालो के दिल से ठाकुर का ख़ौफ़ कम हो….वो ऐसी चुपचाप मरेगा तो क्या फ़ायडा….और उसके मरने से कुछ हाँसिल नही होगा…बात तो तब थी जब वो पूरे गाँव के आगे जलील होता और माफी माँगता वो सज़ा उसके लिए ज़्यादा अछी होती” प्रेम ने कहा. “पर भूतो का अपना क़ानून है…वो उसे जंगल में मारेगा तो हम क्या करे.” धीरज ने कहा. “स्वामी जी अब क्या होगा…कुछ तो बोलिए?” रेणुका गिड़गिडाई. “देखो स्वामी जी जो कर सकते थे उन्होने किया…..अब वो वीर को जंगल में ले गया तो हम क्या करें. इतने बड़े जंगल में उसे कहा ढूंदेंगे.” धीरज ने कहा. “धीरज तुम चुप रहो….इनकी परेशानी भी तो समझो.” प्रेम ने कहा. “देखिए अब वीर के बचने की संभावना बहुत कम है….अब तक शायद…” प्रेम ने कहा. दो आँसू रेणुका की आँखो से टपक गये. “मुझे पता था कि एक ना एक दिन भगवान उनके साथ न्याय ज़रूर करेंगे पर इस तरह से करेंगे सोचा नही था.” रेणुका ने कहा और अपने आँसू पोंछ कर वापिस हवेली की तरफ चल दी. ऱुद्र और जीवन वही खड़े रहे. “चलो स्वामी जी हम चलते हैं….इनको अपने किए की सज़ा मिल गयी.” धीरज ने कहा. ऱुद्र और जीवन ने धीरज की बात पर कोई रिक्ट नही किया. प्रेम और धीरज भी वाहा से चल दिए, साधना के घर की तरफ. ………………………………… वर्षा और मदन खाना खा कर किशोरे के घर की खिड़की पर खड़े हैं. मदन ने वर्षा को पीछे से बाहों में भरा और बोला, “क्या सोच रही हो.” “कुछ नही….घर में सब परेशान होंगे.” “हाँ मेरे घर पे भी सब परेशान होंगे…साधना तो रो रो कर पागल हो गयी होगी.” मदन ने कहा. “बहुत प्यार करते हो तुम अपनी बहन से.” “हां बिल्कुल ये भी क्या पूछने की बात है.” “मुझे शरम आ रही है.” वर्षा ने कहा. “शरम….वो क्यों.” “समझा करो हटो पीछे.” “नही हटूँगा…बड़ी मुस्किल से तो ये पल नसीब हुवे हैं…मैं नही हटूँगा.” वर्षा को अपने नितंबो पर मदन का लिंग महसूष हो रहा था इसलिए वो शर्मा रही थी. “हटो ना कुछ चुभ रहा है.” “क्या चुभ रहा है…बताओ ना.” “मुझे नही पता लेकिन कुछ है.” “इस कुछ का कोई नाम तो होगा.” “मुझे नाम नही पता…तुम हट जाओ.” “अछा…ये लो अब और ज़्यादा चुभावँगा.” मदन ने वर्षा के नितंबो पर धक्का मारा. “बदमास क्या कर रहे हो.” “वही जिसके लिए ये प्यार हुवा है.” “प्यार क्या ये सब करने की लिए किया था तुमने.” “नही…पर इसके बिना प्यार अधूरा रहेगा.” मदन ने कहा मदन ने वर्षा की गर्दन को बड़े प्यार से किस किया. “आहह…हट जाओ…तन्हाई का फ़ायडा मत उठाओ.” मदन ने वर्षा के उभारो को अपने दोनो हाथो में जाकड़ लिया और उन्हे ज़ोर से मसल्ने लगा. “आहह….नही मदन…अभी नही…शादी के बाद…” “शादी तक हम जींदा ना रहे तो.” मदन ने कहा. “नही…नही ऐसा नही होगा.” वर्षा ने कहा और दो बूंदे उष्की आँखो से टपक गयी. “जो वक्त है हमारे पास उस में एक दूसरे में डूब जाते हैं…बाकी जींदगी का कोई भरोसा नही.” “ऐसा मत कहो…मुझे डर लग रहा है.” मदन ने वर्षा को अपनी तरफ घुमाया और उसके होंटो पर अपने होन्ट टिका दिए. दो प्यार से भरे होन्ट प्यार के सागर में डूब गये. एक बार उनके होन्ट क्या मिले…मिले ही रह गये. पूरे आधा घंटा वो एक दूसरे को चूमते रहे. “बस बहुत हो गया प्यार क्या सारी रात चूस्ते रहोगे मेरे होन्ट.” “नही अभी कुछ और भी करना है?” “क्या?” मदन ने अपना लिंग कपड़ो की क़ैद से बाहर खींच लिया और बोला, “इसे भी प्यार चाहिए.” वर्षा ने अपनी नज़रे झुकाई और मदन के लिंग को देखा. कमरे में दिया जल रहा था उसकी रोशनी इतनी तो थी ही कि मदन और वर्षा नज़दीक से एक दूसरे को देख सकें. “यही है वो बदमाश जो मेरे पीछे चुभ रहा था.” “हां…लो पकड़ लो…तुम्हारा ही है ये.” मदन ने वर्षा को कहा. “ना बाबा ना मुझे शरम आती है…अंदर डालो इसे.” “अंदर भी डालेंगे पहले थोड़ा कुछ और तो कर लें.” “क्या मतलब मैने कहा जनाब इसे वापिस अंदर डालो…जहा से निकाला है…मेरा अभी कोई इरादा नही है.” “ऐसा मत कहो….ये वक्त ये रात दुबारा नही आएगी.” “ऐसी रात रोज आएगी चिंता मत करो.” “समझा करो…पाकड़ो ना.” मदन ने कहा और वर्षा का हाथ खींच कर अपने लिंग पर रख दिया. वर्षा को जैसे करंट लग गया उसने फॉरन अपना हाथ वापिस खींच लिया. “क्या हुवा…क्या मेरे लंड को प्यार नही करोगी.” “क्या कहा तुमने?” “लंड…यही नाम है इस बेचारे का.” मदन ने हंसते हुवे कहा. “लंड….ये कैसा नाम है.” वर्षा हैरान हो कर बोली. शायद उसे किसी ने ये नाम नही बताया था. “यही नाम है लो पाकड़ो अब.” “पकड़ तो लूँगी पर लंड…हे..हे..हा..हा.” “इसमें हस्ने की क्या बात है…ज़्यादा मत हँसो वरना अभी चूत में डाल दूँगा.” “हाई राम ऐसी बाते मत करो.” “अछा चूत का तुम्हे पता है और लंड का तुम्हे कुछ नही पता…सिर्फ़ अपना अपना ख्याल रखती हो हा…” मदन ने कहा. तभी अचानक दरवाजा खड़का. “अफ अब कौन आ गया.” मदन ने कहा. “बड़े अच्छे वक्त आया है कोई…हे..हे” वर्षा मुस्कुराइ. “देखता हूँ कब तक बचाओगि अपनी चूत मुझसे….आज की रात उसकी खैर नही.” मदन ने वर्षा के उभारो को दबा कर कहा. “पहले दरवाजा खोलो…देखो तो सही कौन है.” मदन ने दरवाजा खोला. "मदन गाँव में माहॉल बहुत खराब है...मैं बाहर से ताला मार देता हूँ...तुम अंदर शांति से रहना." "हम तो शांति से ही हैं...अछा ये बताओ मेरे घर का का कुछ हाल चाल पता चला" किशोरे गहरी साँस ली, "अभी तुम्हारे घर नही जा पाया...चिंता मत करो सब ठीक ही होगा." किशोरे को मदन की बहन सरिता और मा के बारे में सब पता चल गया था लेकिन उसने जानबूझ कर मदन को कुछ नही बताया. शायद वो प्यार से भरे दो दिलो को परेशान नही करना चाहता था. क्रमशः.....................
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