RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
"तो तुम मदद कर दो वैसे भी तुम्हारी चूत है तुम आछे से जानती हो इसके रास्ते हे.हे.." "मैं अजनबी को रास्ता नही दीखाती...खुद ढूंड लो." अगले ही पल वर्षा चीन्ख उठी... "आआय्य्यीईइ.....नही" वो इतनी ज़ोर से चीन्खि की मदन घबरा गया. "ज़्यादा ज़ोर से मत चील्लाओ...किसी ने शुन लिया तो मुसीबत हो जाएगी" "घुस्साने से पहले मुझे बता तो देते...जान निकाल दी मेरी...निकालो बाहर वरना मैं फिर चील्लाउन्गि" "कैसी बात करती हो...तुम तो ऐसे फसवा दोगि" "मुझे दर्द हो रहा है..तुम समझते क्यों नही...हटो" मदन ने अपना लिंग बाहर खींच लिया और वर्षा के उपर से हट कर करवट ले कर लेट गया. वर्षा थोड़ी देर चुपचाप पड़ी रही. थोड़ी देर बाद उसे अहसास हुवा कि मदन नाराज़ है. "मदन क्या हुवा...क्या तुम नाराज़ हो गये पर मैं क्या करती बहुत दर्द हो रहा था." "रहने दो, क्या कोई ऐसे अंदर डलवा कर बाहर निकलवाता है?" मदन ने कहा. "मैने नही डलवाया था...तुमने अचानक डाल दिया मैं तैयार नही थी" "चूत तो तुम्हारी गीली पड़ी है और फिर वही मज़ाक कर रही हो." "मदन तुम्हारा लंड भी तो इतना मोटा है....क्या पता उसके लिए मेरी वो छोटी हो" "ऐसा कुछ नही है सब बहाने हैं तुम्हारे." मदन ने कहा. "कितना डाला था तुमने?" वर्षा ने पूछा. "अभी आधे से भी बहुत कम घुस्साया था और तुम नाटक करने लगी" "ये नाटक नही था मदन...सच में बहुत दर्द हो रहा था...अछा आओ तुम दुबारा डालो मैं मूह से छू भी नही करूँगी" "पक्का" मदन ने कहा. "हां बिल्कुल पक्का." मदन फिर से वर्षा के उपर चढ़ गया. इस बार उसने अपने लिंग पर ढेर सारा थूक लगा लिया. "ये क्या कर रहे हो?" वर्षा ने पूछा. "लंड को चिकना कर रहा हूँ ताकि आराम से अंदर जाए." "ह्म्म पहले क्यों नही किया था ये काम..बेकार में मेरी जान निकाल दी" "तुम्हारी चूत बहुत गीली थी मुझे लगा थूक की कोई ज़रूरत नही है" "अब जब डालो तो बता देना." "मैं डालने ही जा रहा हूँ...तैयार हो जाओ" मदन ने कहा. मदन ने वर्षा की योनि पर लिंग रख कर ज़ोर से खुद को आगे की ओर धकेला. "म्म्म्ममम" वर्षा ने अपनी मुथि दातों में भींच ली. "क्या पूरा गया...आहह" "नही अभी आधा ही गया है" "क्या पूरा डालना ज़रूरी होता है...आधे से काम नही चलेगा क्या?" "नही....मेरा पूरा डालने का मन है आअहह लो सम्भालो" "आहह.....म्म्म्ममम" वर्षा बहुत धीरे से कराह रही थी. "घुस्स गया पूरा....बस अब सब ठीक है" "क्या ठीक है...मेरी हालत खराब हो रही है" "तो क्या निकाल लू बाहर" "नही-नही इतनी मुस्किल से तो एक बार अंदर लिया है" "ह्म्म....वर्षा मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ" "तभी इतना दर्द दे रहे हो." "ये दर्द तो एक पल का है प्यार की खुसबू जो इसके बाद बीखरेगी उसका तुम्हे अंदाज़ा नही" "अछा तुम्हे कैसे पता ये सब" "बस पता है....लड़को को सब पता होता है" "ह्म्म...अब इसके बाद क्या होगा?" वर्षा ने बड़ी मासूमियत से पूछा. "कुछ नही अब मैं बस तुम्हारी चूत मारूँगा" मदन ने वर्षा के उभारो को मसल्ते हुवे कहा. "तुम तो बहुत बदमास निकले" वर्षा ने कहा. "प्रेमिका के साथ बदमासी करनी पड़ती है वरना कुछ नही मिलता" "शुरू भी करो अब काम..तुम तो बातो में लग गये" "लगता है मेरी वर्षा का दर्द गायब हो गया." "हां अब आराम है" "इसका मतलब मैं अब अपनी वर्षा की चूत मार सकता हूँ" "बिल्कुल" वर्षा ने अपने चेहर को अपने हाथो मे ढक कर कहा. मदन ने बिल्कुल सुनते ही वर्षा के उपर हलचल शुरू कर दी. "आअहह मदन....थोड़ा धीरे आअहह" "ठीक है" मदन ने रफ़्तार कम कर दी. वो अपने लिंग को बहुत धीरे धीरे वर्षा की योनि में अंदर बाहर करने लगा. "इतनी धीरे भी नही....आहह थोड़ा तेज" "ह्म्म मेरी वर्षा को अब तेज चाहिए ये लो फिर." "उउम्म्म्मम........ आअहह मदन अछा लग रहा है ऐसे ही करते रहो....आअहह" "थोड़ा धीरे बोलो किसी ने शुन लिया तो ये काम बीच में ही रोकना पड़ जाएगा" मदन ने कहा.
|