RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
वर्षा ने फिर से अपने दांतो में मुति दबा ली कोई आधा घंटे बाद मदन बहुत तेज तेज धक्के लगा कर वर्षा पर गिर गया. "आअहह अछा हुवा तुम रुक गये वरना मैं तुम्हे अब धक्का देने वाली थी?" "काम ख़तम हुवा तो रुकना ही था. बहुत मज़ा आया...कसम से." "बिन फेरे मैं तुम्हारी पत्नी बन गयी" "बिल्कुल वर्षा....ये जो हमने किया वो फेरो से भी ज़्यादा मजबूती देगा हमारे रिश्ते को.....आराम कर लो एक बार फिर करेंगे." "क्या....नही अब मुझे सच में नींद आ रही है...कल भी नही सोई...आज भी नही सोने दोगे तो बीमार पड़ जाउन्गि" वर्षा ने कहा. "ह्म्म ठीक है चलो अब सोते हैं" "पहले अपना लंड तो बाहर निकाल लो" "ओह...भूल ही गया....ये लो" "अछा नाम है लंड....हे..हे काम भी अछा करता है...." वर्षा ने कहा. "ये काम हर रोज कर देगा ये तुम बस अपनी चूत को गीली रखना" "मुझे नही पता वो कैसे गीली होती है....ये काम भी तुम ही करना." "हा...हा...हे..हे...बहुत अछा मज़ाक कर लेती हो." "सस्शह चुप बाहर कुछ हलचल हो रही है" वर्षा ने कहा. "आधी रात को कौन घूम रहा है बाहर मैं खिड़की से देखता हूँ." "रहने दो ना..मुझे डर लग रहा है मेरे पास ही रहो." तभी कमरे का दरवाजा हल्का सा हिला, जैसे की बाहर किसी ने हल्का सा धक्का मारा हो. "मैं देखता हूँ खिड़की से" मदन ने कहा और उठ कर खिड़की के पास आ गया. "हे भगवान ये तो वही दरिन्दा है जो हमने जंगल में देखा था." मदन ने मन ही मन कहा. मदन फॉरन वर्षा के पास आ गया और बोला, "बिल्कुल आवाज़ मत करना...वो दरिन्दा घूम रहा है बाहर." "हे भगवान अब क्या होगा?" वर्षा ने कहा. "बिल्कुल चुप रहो..." मदन ने कहा. दोनो बिल्कुल शांत पड़े रहे...बाहर हलचल होती रही. "ये सब हमारे साथ ही क्यों हो रहा है मदन" वर्षा ने पूछा. "मुझे तो हमारा गाँव ख़तरे में लग रहा है." मदन ने कहा. "अब तो बाहर कोई आवाज़ नही है" वर्षा ने कहा "बाहर हलचल तो कुछ नही हो रही लेकिन फिर भी हमें शांत रहना होगा" रात बीत जाती है और सुबह की किरण खिड़की से अंदर आती है तो वर्षा की आँख खुल जाती है. "उठो खिड़की बंद कर्लो...दिन निकल आया है कही कोई झाँक के देख ले" वर्षा ने कहा. मदन उठ कर खिड़की बंद करने लगता है लेकिन बाहर की हलचल देख कर रुक जाता है. "ये सब लोग कहा भागे जा रहे हैं इतनी सुबह" मदन ने कहा. "तुम खिड़की बंद करो ना पहले बाद में सोचना" वर्षा ने कहा. मदन खिड़की बंद करके वर्षा के पास आ गया. "ज़रूर कुछ गड़बड़ है....रात को उस दरिंदे ने कही यहा गाँव में भी किसी को मार तो नही दिया?" मदन ने कहा. "मुझे तो अभी नींद आ रही है...बहुत हो लिया ये तमासा रात भर वैसे ही नींद नही आई" "लगता है रात का नशा अभी तक नही उतरा" मदन ने कहा "नशा तो तभी उतर गया था जब रात बाहर हलचल हो रही थी...बड़ी मुस्किल से नींद आई थी सोने दो अब." "ठीक है तुम सो जाओ.....ये किशोरे कब आएगा?" ...................................................... साधना के घर के बाहर प्रेम और साधना खड़े बाते कर रहे हैं. "साधना मैने अपने साथ आए लोगो को भेज दिया है.....उन्हे दूसरे गाँव जाना है वाहा कुछ काम है" प्रेम ने कहा. "तुम क्यों नही गये प्रेम?" साधना ने पूछा. "पिता जी की तबीयत खराब है और अभी गाँव में माहॉल खराब है सोचा थोड़े दिन यही रुक जाउ." "शूकर है कोई तो कारण है तुम्हारे पास यहा रुकने का." "ऐसी बात नही है...मुझे तुम्हारी भी चिंता है" "अगर ऐसा है तो क्या तुम हमेशा मेरे साथ रह सकते हो?" "तुम हमेशा इस रिस्ते को बंधन में क्यों बाँधना चाहती हो, समझने की कोशिस क्यों नही करती...मैं अब सन्यासी हूँ" "क्योंकि मैं तुम्हे प्यार करती हूँ इश्लीए...और मुझे तुम्हारा ये सन्यास समझ नही आता...जो की किसी का दिल तोड़ देता है" साधना ने कहा. साधना ने प्रेम का हाथ पकड़ा और अपने दिल पर रख दिया और बोली, "देखो हर वक्त इस दिल में बस तुम्हारा ही प्यार बस्ता है और तुम हो कि मेरी कोई परवाह नही करते अब. पहले तो तुम ऐसे नही थे...सब इस सन्यास के कारण हुवा है...कैसा सन्यास है ये जो प्यार को ख़तम कर देता है" क्रमशः........................
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