RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
गतान्क से आगे...................... प्रेम का हाथ साधना के दिल के साथ-साथ उसके उभारो के उपर भी था. साधना के उभारो की गोलाई महसूस होते ही प्रेम ने अपना हाथ वापिस खींच लिया.उसका हाथ काँप रहा था. "ये क्या कर रही हो....ये सब मेरे लिए पाप है" प्रेम थोडा गुस्से में बोला. "मैं तो आपको अपना दिल दीखा रही थी स्वामी जी आपने कुछ और ही महसूस किया शायद...कैसा सन्यास है ये" साधना ने कहा. "मैं तुमसे कोई बात नही करना चाहता...मैं जा रहा हूँ" प्रेम ने कहा. "प्रेम मेरी बात सुनो मेरा वो मतलब नही था...रुक जाओ" साधना गिड़गिडाई. प्रेम साधना की बात उन्शुनि करके आगे बढ़ गया लेकिन अभी वो चार कदम ही बढ़ा था कि, सामने से भीमा भागता हुवा आया और बोला, "स्वामी जी अनर्थ हो गया" "क्या हुवा भीमा?" प्रेम ने पूछा. "आपके साथ जो लोग थे.." भीमा बोलते-बोलते चुप हो गया. "हां-हां बोलो क्या हुवा?" "वो सब मारे गये स्वामी जी... हवेली के नज़दीक जो सड़क गाँव से बाहर की ओर जाती है वाहा सब की लाश बहुत बुरी हालत में पड़ी हैं. ऐसा लगता है जैसे किसी शेर ने उनको नोच-नोच कर खाया हो" भीमा ने कहा एक पल को प्रेम स्तब्ध रह गया. "ये क्या कह रहे हो...होश में तो हो" "मैं खुद अपनी आँखो से देख के आ रहा हूँ स्वामी जी" "हे भगवान धीरज और नीरज के मा बाप को मैं क्या जवाब दूँगा." प्रेम ने कहा. साधना भी भाग कर प्रेम के नज़दीक आ गयी और बोली, "क्या हुवा प्रेम?" प्रेम ने कोई जवाब नही दिया. "स्वामी जी के साथ जो लोग थे उनके साथ अनर्थ हो गया." भीमा ने कहा. "काश मैं उन्हे रोक लेता कल...कह रहे थे रात-रात में पहुँच जाएगे अगले गाँव...मुझे उन्हे रोकना चाहिए था...मेरा दीमाग कहाँ है आजकल" प्रेम बड़बड़ाया "प्रेम तुम्हारी ग़लती नही है...." साधना ने कहा. "चुप रहो तुम सब तुम्हारे कारण हुवा है....मेरा दीमाग खराब कर दिया तुमने" प्रेम गुस्से में बोला. ये सुनते ही साधना की आँखे भर आई और वो वापिस मूड कर अपने घर की तरफ चल दी. प्रेम को जल्दी ही अहसास हो गया कि उसने कुछ ग़लत बोल दिया लेकिन उसके पास साधना के पीछे जाने का वक्त नही था. "चलो भीमा मैं खुद देखना चाहता हूँ कि उनके साथ क्या हुवा." "आओ स्वामी जी पूरा गाँव वही मौजूद है" भीमा ने कहा. प्रेम भीमा के साथ वाहा पहुँच जाता है. सड़क पर हर तरफ चिथड़े पड़े थे. बहुत ही भयानक मंज़र था. "आपको क्या लगता है स्वामी जी क्या ये किसी शेर का काम है?" भीमा ने पूछा. "हो भी सकता है और नही भी" प्रेम ने कहा. बहुत ही दर्दनाक मंज़र था जिसने भी देखा उसकी रूह काँप उठी. ऱुद्र और जीवन भी वही मौजूद थे. प्रेम को देख कर वो उसके पास आ गये. "लगता है कोई बुरी बला तुम्हारे और तुम्हारे साथियो के पीछे पड़ी है...वक्त रहते चले जाओ यहा से कही तुम्हारा भी यही हाल हो जाए" रुद्र ने कहा. "बुरी बला तो तुम्हारे उपर भी है ठाकुर भूल गये कैसे घर से खींच कर ले गये थे वीर को भूत कल. रही बात मेरा ऐसा हाल होने की तो मैं इन बातो से नही डरता. तुम बच कर रहो...तुम्हारी हवेली के बहुत नज़दीक है ये सड़क...कल कही ऐसा मंज़र तुम्हारी हवेली में ना हो जाए" "तुम्हारी इतनी जुर्रत" रुद्र गुस्से में बोला. "मेरी जुर्रत तो तुम देख ही चुके हो कल...मेरा दीमाग वैसे ही घूम रहा है चले जाओ चुपचाप वरना अभी तुम्हे यही जींदा गाढ दूँगा" प्रेम ने कहा. "चलो भैया सब गाँव वाले इसके साथ हैं कही कोई गड़बड़ हो जाए" जीवन ने कहा. "तुम्हे तो मैं देख लूँगा....और भीमा तू...मेरे टुकड़ो पर पलता था... आज इसके तलवे चाट रहा है" रुद्र ने कहा. भीमा ने कुछ नही कहा. ऱुद्र और जीवन वाहा से चले गये. "भीमा सभी गाँव वालो को कहो कि मंदिर के बाहर इक्कथा हो जायें. मुझे सभी से बहुत ज़रूरी बात करनी है" "जी स्वामी जी" प्रेम मंदिर के बाहर खड़ा गाँव वालो का इंतेज़ार कर रहा था. पर उसे दूर-दूर तक कोई भी आता दीखाई नही दिया.
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