RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
"कहा रह गये सब लोग...भीमा ने सबको बोला है कि नही." तभी प्रेम को भीमा आता दीखाई दिया. "क्या बात है सब गाँव वाले कहा हैं?" प्रेम ने पूछा. "कोई भी आने को तैयार नही हुवा स्वामी जी...गाँव वालो को लगता है कि कोई बुरी बला आपके साथ इस गाँव में घुस्स आई है और वो आपके यहा से जाने के बाद ही यहा से जाएगी...लगता है ठाकुर के आदमियों ने ये अफवाह फैलाई है" भीमा ने कहा. "अपना भी तो कोई दीमाग होता है...क्या हो गया इन लोगो को...मैं तो इनको इस मुसीबत से बचाने के बारे में ही बात करना चाहता था...खैर चलो छोड़ो मुझे अकेले ही कुछ करना होगा" "मैं आपके साथ हू स्वामी जी." भीमा ने कहा. "देख लो हमें अभी नही पता कि हम किसका सामना करने वाले हैं. वो जो कुछ भी है बहुत ख़तरनाक चीज़ है. क्योंकि जो भूतो की भी चीन्ख निकाल दे वो मामूली चीज़ नही हो सकती." "भूतो की चीन्ख!...कुछ समझ नही आया स्वामी जी" "जो चीन्ख खेतो में गूँज रही थी वो किसी इंसान की नही भूत की थी" "ब...ब..भूत की" "क्या हुवा अभी से डर गये?" प्रेम ने पूछा. "नही स्वामी जी ऐसी बात नही है...आपके होते कैसा डर...हां मुझे भूतो की बाते सुन कर थोड़ा डर ज़रूर लगता है" "हमारा सामना भूतो से नही बल्कि किसी और ही चीज़ से है" "क्या शेर भूतो से भी ज़्यादा ख़तरनाक हैं" "ये शेर का काम नही है भीमा...ये कुछ और ही बला है." "ये जो भी हो स्वामी जी मैं आपके साथ हूँ" ............................................................................. "भैया हमारा पासा बिल्कुल सही पड़ा है...सुना है की कोई भी गाँव वाला नही पहुँचा उस प्रेम के पास." जीवन ने कहा. "वो तो ठीक है पर ये जो कुछ भी हुवा अछा नही हुवा...ज़रूर कोई ख़तरा इस गाँव पर मंडरा रहा है" रुद्र ने कहा "हमें क्या लेना देना भैया...हमारी हवेली तो सुरक्षित है...कोई यहा नही घुस्स सकता." "हवेली से ही खींच कर ले गये भूत वीर को...अभी तक कुछ नही पता कि वो कहा है कैसा है. वर्षा का भी कुछ आता-पता नही...कुछ मनहूसियत सी चाय है चारो तरफ" "भैया अब जो हो गया सो हो गया...बाद में तो कोई भूत नही दीखा यहा." "फिर भी कुछ अजीब सा लग रहा है यहा." तभी रेणुका वाहा आ जाती है. "पिता जी मैं अपने घर जा रही हूँ...अब जब वीर ही नही रहे तो मैं यहा क्या करूँगी." "कुलच्छणी तूने वीर को मरा मान लिया अभी से. बहुत सारे आदमी भेजे हुवे हैं मैने जंगल में वीर को ढूँडने के लिए...और तू उशे अभी से मरा मान रही है" "भैया इश्कि अकल भी ठीकाने लगानी बाकी है...भीमा के साथ मिल कर इसी ने भगाया था उस लौंडिया को यहा से" "इसका जो करना है करो...मार कर गाड़ दो जिंदा ज़मीन में पर इसे मेरी आँखो से दूर करदो" रुद्र ने कहा. जीवन ने रेणुका की बाह पकड़ी और बोला, "चल तुझे तमीज़ सीखाता हूँ" "चाचा जी छोड़ दो मेरा हाथ...मैं अब यहा नही रुकूंगी" "तुझे यहा रखेगा भी कौन अब...चल तेरी गांद की गर्मी उतारता हूँ...बहुत बोलती है." जीवन ने कहा. "जीवन इसे हवेली से दूर ले जाओ...यहा कुछ मत करना" "पिता जी ये आप क्या कह रहे हैं...रोकिए चाचा जी को" "बहुत हो लिया तेरा नाटक...जीवन ले जाओ इसे यहा से." "आप चिंता मत करो भैया...इसे तो मैं वो सबक सीक्खाउन्गा की याद रखेगी" जीवन रेणुका को घसीट कर हवेली के पीछे के खेतो में ले आया. उसने उसे ज़मीन पर पटक दिया. रेणुका का पेट ज़मीन से टकराया तो वो कराह उठी. जीवन रेणुका के उपर लेट गया. "इतनी जल्दी नही मारूँगा मैं तुझे...पहले तेरी गांद मारूँगा फिर तुझे मारूँगा....बोल अब कैसी रही." "तुम्हे इसकी सज़ा मिलेगी" "कौन देगा मुझे सज़ा...तुम दोगि...हे..हे..पहले अपनी गांद तो बचा लो हा..हा.." जीवन ने रेणुका की साड़ी नीचे से उपर सरका दी और उसके निर्वस्त्र नितंबो को मसल्ने लगा. "वर्षा की तो नही मिल पाई....तेरी गांद भी वर्षा की गांद से कम सुंदर नही" "त..त..तुम अपनी भतीजी को ऐसी नज़रो से देखते थे...कामीने कही के." "मैं तो तुझे भी ऐसी नज़रो से ही देखता था...पर वीर के कारण चुप था वरना कब का ठोक देता तुझे." "ये बाते पिता जी को पता चल गयी तो तुम्हे जींदा नही छोड़ेंगे वो." "कौन बताएगा भैया को....तू तो ये गांद मरवाने के बाद खुद भी मरने जा रही है." जीवन ने अपना लिंग निकाल कर रेणुका के नितंब पर रख दिया. रेणुका शरम और डर से काँप उठी. "ऐसा अनर्थ मत करो...तुम्हे भगवान भी माफ़ नही करेगा" "ऐसे अनर्थ तो मैं रोज कर लेता हूँ और रोज माफी भी मिल जाती है...हे...हे...तुम मेरी चिंता मत करो अपनी गांद की चिंता करो" जीवन अपने लिंग को रेणुका के अंदर डालने ही लगता है कि उसके सर पर वार होता है और वो खून से लठ..पथ एक तरफ गिर जाता है. "कामीने तू फिर से मेरे रास्ते में टाँग अड़ा रहा है...मैं तुझे जींदा नही छोड़ूँगा" भीमा ने रेणुका की साड़ी नीचे की और उसे ज़मीन से उठाया. "आज तो हद ही कर दी तुमने...मुझे ख़ुसी है कि मैं अब तुम लोगो के लिए काम नही करता." "भीमा मार दो इसे...मेरी खातिर मार दो इसे." रेणुका ने कहा. "जैसा आपका हूकम." भीमा ने कहा और जीवन की तरफ बढ़ने लगा. "मुझसे दूर रहो तुम....वरना अछा नही होगा" जीवन गिड़गिदाया. "छोड़ना मत इस कमिने को भीमा मार दो इसे." रेणुका ने कहा. भीमा ने एक बहुत भारी पत्थर उठाया और जीवन के सर पर दे मारा. तुरंत ही उसकी मौत हो गयी. "तुम यहा कैसे आए..भीमा" रेणुका ने पूछा. बोलते बोलते उसकी आँखे भर आई और उसे पता भी नही चला की वो कब भीमा के सीने से लग गयी. भीमा एक मूर्ति की तरह खड़ा रहा और रेणुका सुबक्ती रही. "मेम्साब सम्भालो खुद को" भीमा ने कहा. रेणुका फ़ौरन भीमा से अलग हो गयी. "ओह मैं भावुक हो गयी थी....पर आज तुम ना आते तो अनर्थ हो जाता." "सब स्वामी जी की कृपा है...उन्होने ही आपकी आवाज़ सुनी थी" "कहा है स्वामी जी." "उस पेड़ के पीछे खड़े हैं" रेणुका भाग कर वाहा पहुँच गयी. "स्वामी जी मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?" "सब भगवान की माया है...हम तो बस खिलोने हैं" "स्वामी जी मुझे अपने घर जाना है" रेणुका ने कहा. "कैसे जाओगी?" प्रेम ने पूछा. "चली जाउन्गि जैसे भी पर अब यहा नही रुकूंगी" "ह्म्म....देखो अभी गाँव में माहॉल खराब है अभी यात्रा करना ठीक नही...कुछ अजीब सी बाते हो रही हैं यहा. अभी अभी पता चला है कि कुछ दिन पहले अगले गाँव में भी किसी जानवर ने एक पति-पत्नी को चीर-चीर कर खा लिया. ऐसे माहॉल में कही भी जाना ठीक नही होगा." "पर मैं वापिस हवेली नही जा सकती" रेणुका ने कहा.
|