Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
09-08-2018, 01:45 PM,
#63
RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--16 गतान्क से आगे...................... “उसे छोड़ दो वरना….” पिशाच को अपने पीछे से आवाज़ सुनाई दी. पिशाच तुरंत पीछे मूड कर देखता है. “वरना क्या देवी जी… आप क्या करेंगी…हा…हा…हा” “मैं तुम्हे जान से मार दूँगी…छोड़ दो उसे.” साधना चील्लयि “मान-ना पड़ेगा…मेरे सामने आज तक किसी ने आकर ऐसी बात नही बोली…एक ये लोंदा है और एक तू है..दोनो एक से बढ़ कर एक हो…पर मुझे अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इसके साथ-साथ तुम भी मेरे पेट में जाओगी…लेकिन पहले मैं इसे ही खाउन्गा…तू इसके बाजू में लेट जा तेरी बारी बाद में आएगी.” साधना त्रिशूल एक हाथ में पीछे छुपा कर रखती है ताकि पिशाच को उसके इरादो की भनक ना लगे. “मुझे किसी तरह इस पिशाच के पास जाना होगा…क्या करूँ” साधना खड़े खड़े सोच रही है. “पिशाच जी बहुत सुना है आपके बारे में कि आप बहुत भयानक हो पर आप ऐसे दिखते तो नही.” साधना ने कहा. पिशाच प्रेम के पास से खड़ा हुवा और साधना की ओर मूह करके बोला, “लो कर लो बात… इन्हे मैं भयानक नही लगता…मेरी आवाज़ सुन कर जंगल का शेर भी भाग जाता है, इंसान तो चीज़ क्या है…और मैं तेरे सामने इतनी भयानक बाते कर रहा हूँ…इस से ज़्यादा भयानक और क्या होता है.” “फिर भी आपको कुछ और भी करना चाहिए.” साधना ने कहा. “जैसे कि… क्या करूँ मैं अब वो भी बता दो.” “चेहरे पर थोड़ा और रोब होना चाहिए…आप हंसते रहते हैं बात बात, ये अछा नही लगता. इस से आपकी छवि खराब होती है.” “मज़ाक कर रही है तू…बहुत बढ़िया” पिशाच साधना के करीब आता है और उसके बाल पकड़ लेता है. “पिशाच से कभी भी मज़ाक नही करते लड़की…हमेशा अपनी चिंता करते हैं.” साधना बिना मोका गवाए त्रिशूल पिशाच के पेट में गाढ देती है और बोलती है, “वो तो ठीक है लेकिन कुछ पिशाचो को अपनी भी चिंता करनी चाहिए.” “ये क्या किया तूने करम जली…ये क्या मार दिया पेट में…आअहह” पिशाच दर्द से कराह उठा और तड़पने लगा. “भोले नाथ का त्रिशूल है…भगवान का नाम लो और दफ़ा हो जाओ यहा से.” साधना ने पिशाच को दोनो हाथो से दूर धकैल दिया. “आअहह तुम्हे क्या लगता है तुम इसे बचा लोगि…आअहह… मेरा जहर है इसके शरीर में…मैं इसे नही भी खाता तो भी ये सुबह तक मर ही जाता.” साधना ने तड़प्ते हुवे पिशाच के मूह पर लात मारी और बोली, “दूसरो की मौत का जशन नही मनाते…अपनी चिंता करते हैं.” “तुम इस जंगल से बाहर नही जाओगी…ये त्रिशूल मेरे पेट से निकाल दो…मैं तुम दोनो को गाँव छोड़ आउन्गा.” साधना ने त्रिशूल पकड़ा और ज़ोर लगा कर त्रिशूल थोड़ा और पिशाच के पेट में उतार दिया. पिशाच बहुत ज़ोर से चील्लाया. पिशाच की चीन्ख पूरे जंगल में गूँज गयी. उसकी चीन्ख भीमा और केसाव पंडित ने भी सुनी. वो तेज़ी से चीन्ख की दिशा का अंदाज़ा लगा कर उसकी ओर भागे. “प्रेम…प्रेम उठो क्या हो गया है तुम्हे…प्रेम…हे भगवान बचा लो मेरे प्रेम को” साधना की आँखे भर आई और वो फूट कर रोने लगी. “हा..हा..हा…मर जाएगा वो जल्दी ही..हे…हे.” साधना खड़ी हुई और त्रिशूल पर फिर से दबाव बनाया. त्रिशूल थोड़ा और पिशाच के पेट में सरक गया. वो फिर से ज़ोर से चील्लाया. कुछ ही पलो में उसने दम तोड़ दिया. लेकिन उसकी लाश वाहा से गायब हो गयी. शायद यमदूत उसे उठा कर नर्क में ले गये. साधना किसी तरह प्रेम को उठाती है और उसे अपनी पीठ पर लाद कर चल देती है. “मेरे होते हुवे तुम्हे कुछ नही होगा प्रेम…कुछ नही होगा तुम्हे…मैं तुम्हे कुछ नही होने दूँगी, चाहे कुछ हो जाए.” पर अब एक और मुसीबत का सामना करना था साधना को. वो मुसीबत थी ये घना जंगल और जंगंग्ली जानवर. उसके लिए गाँव की वापसी का रास्ता भी ढूंडना आसान नही था. लेकिन फिर भी दिल में उम्मीद की किरण लिए वो आगे बढ़ती रही. “हां..यही तो रास्ता है..ये पेड़ मैने इस तरफ आते हुवे देखा था..इसका मतलब मैं ठीक जा रही हूँ. प्रेम तुम बिल्कुल चिंता मत करो…मैं तुम्हे हर हाल में गाँव ले जाउन्गि.” साधना दिल में हिम्मत और प्यार लिए आगे बढ़ती रहती है. भीमा और केसव पंडित पूरा जंगल छान मारते हैं लेकिन उन्हे फिर भी कुछ नही मिलता. वो उस जगह से गुज़रते तो हैं जहा से साधना प्रेम को ले गयी है लेकिन उन्हे अहसास भी नही होता कि वाहा कुछ हुवा है. ज़मीन पर प्रेम के खून की बूंदे थी लेकिन शाम होने के कारण वो उन्हे दीखाई नही दी. “पंडित जी क्या किया जाए अब...कुछ समझ नही आ रहा कि स्वामी जी को वो पिशाच कहा ले गया…साधना का भी कुछ पता नही चल रहा. वो चीन्ख भी ना जाने किसकी थी.” “सब उस मूर्ख लड़की के कारण हुवा है.” केशव पंडित बोला. “उसकी क्या ग़लती है पंडित जी, हमें भी तो कुछ नही मिला.” भीमा ने कहा. “मान लो अगर पिशाच हमें मिल भी जाता…तो भी हम क्या बिगाड़ लेते उसका.” केसाव पंडित ने कहा. “मिलता तब ना पंडित जी…मुझे नही लगता कि वो पिशाच स्वामी जी को यहा लाया है. पूरा जंगल छान मारा हमने. अगर पिशाच यहा होता तो मिल ही जाता.” “पिशाच तो नही मिला पर..पर…भेड़िया ज़रूर मिल गया.” केसाव पंडित डरते हुवे बोला. भीमा केसाव पंडित की बात सुन कर नज़र घुमा कर देखता है. उनके दाई तरफ की झाड़ियों में एक भेड़िया खड़ा था. “पंडित जी हिलना मत…हम डरेंगे तो ये हमला ज़रूर करेगा.” भीमा ने कहा. भीमा को एक पत्थर दीखाई दीया. उसने पत्थर उठाया और भेड़िए को निशाना बनाया. पत्थर निशाने पर लगा और भेड़िया चील्लाता हुवा भाग गया. “हमें अब इस खौफनाक जंगल से निकलना चाहिए.” केसव पंडित ने कहा. “सही कहा पंडित जी…यहा रुकना ख़तरे से खाली नही है…और वैसे भी हमने पूरा जंगल तो लगभग देख ही लिया है.” भीमा और केसव पंडित गाँव की तरफ चल पड़ते हैं. लेकिन साधना की तरह उन्हे भी रास्ता ढूँढते में मुश्किल आती है. किसी तरह से आख़िर कार साधना गाँव तक पहुँच ही जाती है. लेकिन गाँव तक पहुँचते-पहुँचते रात घिर आती है. वो प्रेम को उसी तरह अपनी पीठ पर ही गाँव के वैद्य के पास ले जाती है. वैद्य साधना की पीठ पर प्रेम को देख कर हैरान रह जाता है. वैद्य प्रेम को साधना की मदद से चारपाई पर लेटा देता है. “क्या हुवा स्वामी जी को साधना?” वैद्य ने पूछा. साधना जल्दी जल्दी में वैद्य को सारी बात बताती है. “बेटी मैने कभी अपनी जींदगी में ऐसे मरीज का इलाज़ नही किया…पिशाच के काटे का मेरे पास कोई इलाज़ नही है.” “आप कोशिस तो कीजिए वैध जी... प्रेम को बचा लीजिए…मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ.” साधना की आँखे भर आती हैं. “अछा-अछा मुझसे जो बन पड़ेगा मैं करूँगा…तुम चुप हो जाओ” वैद्य ने कहा. वैद्य फ़ौरन प्रेम के इलाज़ में लग गया. साधना बेचैनी की हालत में वैद्य के घर के बाहर कभी इधर, कभी उधर घूम रही थी. गाँव में पूरी तरह सन्नाटा था. हो भी क्यों ना…गाँव में पिशाच का ख़ौफ़ जो फैला था. अभी ये बात सिर्फ़ साधना जानती थी की पिशाच का ख़ात्मा हो गया है. भीमा और केसव पंडित भी किसी तरह से जंगल से बाहर आ जाते हैं. “पंडित जी आपको पहले वैद्य जी के पास ले चलता हूँ…सीढ़ियों से गिरने के कारण बहुत चोट लगी है आपको. थोड़ा मरहम पट्टी करवा लीजिए.” “क्या मरहम पट्टी कर्वाउ मैं अब…मेरा इक-लौता बेटा पता नही कहा है…जींदा भी है कि नही.” “मुझे भी स्वामी जी की बहुत चिंता है…समझ में नही आता कि क्या करें अब. साधना भी कही खो गयी. हम जो कर सकते थे हमने किया. चलिए आपको वैद्य जी की शख्त ज़रूरत है” भीमा केसव पंडित को वैद्य के घर की तरफ ले चलता है. वैद्य के घर के बाहर साधना को देख कर दोनो हैरत में पड़ जाते हैं. “तुम यहा क्या कर रही हो…जंगल में ढूंड-ढूंड कर थक गये हम तुम्हे” केसव पंडित ने कहा. “मैं प्रेम को ले आई हूँ पंडित जी लेकिन वो बेहोश है अभी…वैद्य जी इलाज़ कर रहे हैं उसका.” केशव पंडित और भीमा दोनो साधना की बात सुन कर हैरान हो जाते हैं लेकिन उनकी आँखो में प्रेम की खबर सुन कर ख़ुसी भी उभर आती है. “साधना कैसे किया तुमने ये सब…हम तो जंगल में तुम्हे ढूंड ढूंड कर थक गये.” भीमा ने कहा. साधना पूरी कहानी सुनाती है. भीमा और केसव पंडित को विश्वास ही नही होता कि साधना ने पिशाच का ख़ात्मा कर दिया. “तुमने पिशाच को मार दिया…विश्वास नही होता.” केशव पंडित ने कहा. “दिल में हिम्मत हो तो कुछ भी हो सकता है पंडित जी.” साधना ने कहा. “तुमने बहुत हिम्मत दीखाई साधना…ये सब तो मैं भी नही कर पाता. मुझे तो भूत-पिशाच से वैसे ही बहुत डर लगता है.” भीमा ने कहा. तभी वैद्य बाहर आता है. “अरे पंडित जी आप” वैद्य ने कहा. “कैसा है मेरा बेटा.” केशव पंडित ने पूछा. “अभी कुछ नही कह सकता…मेरे जो बस में था मैने कर दिया है. सर से काफ़ी खून बहा है प्रेम का. सर पे पट्टी बाँध दी है. देखते है अब.” वैद्य ने कहा. “प्रेम को कुछ नही होगा मुझे पूरा विश्वास है.” साधना ने कहा. भीमा, वैद्य और केसाव पंडित तीनो ने एक साथ साधना की ओर देखा. साधना के चेहरे पर अजीब सा तेज था. भीमा तो साधना के पैरो में पड़ गया. “तुम ज़रूर कोई देवी हो…पिशाच को कोई मामूली इंसान नही मार सकता.” भीमा ने कहा. “उठो भीमा ऐसा कुछ नही है...मैने बस हिम्मत और दीमाग से काम लिया…और शायद भगवान ने मेरी मदद की.” साधना ने कहा. भीमा उठ गया और बोला, “जो भी हो तुमने केवल स्वामी जी की नही बल्कि पूरे गाँव के लोगो की जान बचाई है…और तुम हमारे लिए किसी देवी से कम नही हो...क्यों पंडित जी.” केसव पंडित ने कुछ नही कहा. उसे वैसे भी साधना और प्रेम की दोस्ती पसंद नही थी और साधना उसे एक आँख नही भाती थी. “पंडित जी आप प्रेम को घर ले जाए…यहा भीड़ भाड़ लगी रहती है…आप समझ ही सकते हैं” वैद्य ने कहा. “हां हां बिल्कुल…भीमा क्या तुम किसी की बैलगाड़ी ला सकते हो प्रेम को घर तक ले जाने में आसानी होगी.” केशव पंडित ने कहा. “जी पंडित जी अभी लाता हूँ.” भीमा किसी गाँव वेल की बैलगाड़ी ले आया और प्रेम को उस पर लेटा कर घर तक ले आए. प्रेम अभी भी बेहोश ही था. प्रेम को बैलगाड़ी से उतार कर बिस्तर पर लेटा दिया. “साधना तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद…अब तुम जाओ.” केशव पंडित ने कहा. “नही पंडित जी…प्रेम को होश आने तक मैं….” “नही तुम जाओ यहा से कहा ना…मैं अपने बेटे को संभाल लूँगा.” केशव पंडित ने साधना की बात बीच में ही काट दी. पंडित की बात भीमा को भी बुरी लगी. “चलो साधना मैं भी चलता हूँ…अब इनका मतलब निकल ही गया है…हमारी ज़रूरत ही क्या है…पोंगा पंडित कही का.” भीमा से रुका नही गया और उसने ये सब बोल दिया. “हां-हां जाओ तुम भी जाओ…रोका किसने है.” केशव पंडित चील्लाया. साधना और भीमा वाहा से चल दिए. साधना बड़े भारी कदमो से वाहा से जा रही थी. उसकी जान तो बस प्रेम में अटकी थी. पर उसके पास कोई चारा नही था. साधना घर आई तो उसके पिता ने डाँट कर पूछा, “कहा थी तू सारा दिन…ढूंड ढूंड कर परेशान हो गया मैं…कहा चली गयी थी.” साधना प्रेम के साथ हुई घटना सुनाती है और ये भी सुनाती है कि कैसे वो जंगल से प्रेम को बचा कर लाई. “क्या! तूने पिशाच को मार दिया.” “हां…अपने इन हाथो से. अब गाँव में कोई चीन्ख नही गूंजेगी और ना ही किसी की हत्या होगी.” साधना ने कहा. साधना के पिता ने तो मूह पर हाथ रख लिया. उसे यकीन नही हो रहा था. साधना अपने बिस्तर पर आ कर लेट गयी. बहुत भूक लगी थी उसे. पूरा दिन कुछ नही खाया था उसने लेकिन फिर भी बिना कुछ खाए लेट गयी. उसे बस अपने प्रेम की चिंता था. ……………………………………….. भीमा बहुत धीमी चाल से अपने घर की तरफ बढ़ रहा था. घर जाने से उसे डर जो लग रहा था. “क्या करूँ घर जाउ की नही…मेम्साब मुझे कच्चा चबा जाएँगी आज. हवेली में एक दो बार बहुत गुस्से में देखा है उन्हे. वो ज़रूर गुस्से में आग बाबूला हो कर बैठी होंगी. पर उनसे चल कर माफी तो माँगनी ही चाहिए मुझे.” भीमा चलते-चलते सोच रहा था. भीमा कछुवे की चाल चलता हुवा घर पहुँच ही जाता है. रेणुका भी भीमा का बेसब्री से इंतेज़ार कर रही है. डाँट जो पीलानी है उसे.भीमा घर पहुँच तो गया लेकिन दरवाजे पर खड़ा-खड़ा सोचता रहा कि दरवाजा खड़काए या नही…या वापिस चला जाए. रेणुका को दरवाजे पर भीमा के कदमो की आहट सुन जाती है लेकिन फिर भी वो चुपचाप बिस्तर पर लेटी रहती है. वो इंतेज़ार कर रही है कि कब भीमा दरवाजा खड़काए और कब वो दरवाजा खोल कर भीमा पर बरस पड़े. लेकिन बहुत देर हो जाती है. भीमा दरवाजे पर कोई दस्तक नही करता. “मुझे यहा से चलना चाहिए…कल माफी माँग लूँगा मेम्साब से. आज तो वो बहुत गुस्से में होंगी.” भीमा सोचता है और वापिस मूड कर चल देता है. रेणुका के सबर का बाँध टूट जाता है और वो उठ कर दरवाजा खोलती है. लेकिन वो पाती है कि भीमा जा रहा है. “भीमा क्या मज़ाक है ये…कहा जा रहे हो!” रेणुका चील्लाति है. भीमा तो रेणुका की आवाज़ सुनते ही थर-थर काँपने लगता है.वो भाग कर रेणुका के पैर पकड़ लेता है. “मेम्साब मुझे माफ़ कर दीजिए…मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गयी.” भीमा गिड़गिदाया. “सुबह से अब होश आया है तुम्हे माफी माँगने का…तब क्यों भाग गये थे तुम और पैर छोड़ो मेरे कही इनसे भी कामुक रस लेने लगो.” भीमा ने तुरंत रेणुका के पैर छोड़ दिए. लेकिन वो उसके पैरो के पास ही झुका रहा. “उठो और नज़र मिला कर बात करो मुझसे.” रेणुका ने डाँट-ते हुवे कहा. “नही मेम्साब मैं आपसे नज़रे नही मिला सकता अब…इतना बड़ा गुनाह जो हो गया मुझसे.” भीमा फिर से गिड़गिडया. “कहा ना उठो वरना मारेंगे लात तुम्हे एक.” रेणुका ने कहा. भीमा उठ गया और नज़रे झुका कर रेणुका के सामने खड़ा हो गया. “अंदर आओ…आराम से बात करते हैं.” रेणुका ने कहा. भीमा अंदर आ गया और रेणुका ने कुण्डी बंद कर ली. “लगता है मेम्साब मुझे कमरे में बंद करके पीटने वाली हैं…अब क्या होगा.” रेणुका ने एक डंडा उठाया और भीमा के चुतदो पर दे मारा. “मेम्साब नही…आअहह.” “परदा कहे बिना नही छोड़ा तुमने. क्यों देख रहे थे मुझे घूर-घूर के.” रेणुका ने एक और डंडा मारा. “आआहह.. मेम्साब मुझसे ग़लती हो गयी…मैं बहक गया था…मुझे माफ़ कर दीजिए.” “बात-बात पर बहक जाते हो क्या चक्कर है ये.” रेणुका ज़ोर से एक और डंडा मारती है. इस बार भीमा भागता है और बिस्तर के नीचे छिप जाता है. “मेम्साब माफ़ कर दीजिए मैने जान बुझ कर कुछ नही किया.” “नही मैं कल से देख रही हूँ…बार बार वही हरकत. देख तो रहे ही थे देख-देख कर उत्तेजित भी हो रहे थे. शरम नही आई तुम्हे.” “मैं कब उत्तेजित हुवा मेम्साब…ऐसा कुछ नही है.” भीमा गिड़गिडया. “अछा तुम्हारी धोती में देखा था मैने तुम्हारी उत्तेजना को. बोलो अब… क्या ये झूठ है?” “हां मेम्साब…मेरा मतलब नही मेम्साब हो गया होगा ऐसा…वो मेरे बस में नही है.” रेणुका ने झुक कर खाट के नीचे डंडा घुमाया. डंडा भीमा के हाथ पर लगा. “आओच…मेम्साब…नही..आआहह.” “कुछ भी बस में नही है तुम्हारे ना वो, ना हाथ और ना आँखे क्यों…तुम्हारी आँखे ही फोड़ दूँगी मैं अब निकलो बाहर.” भीमा चुपके से बाहर निकलता है. “जो सज़ा देनी है दे दो मेम्साब लेकिन सच कहता हूँ…मुझसे जो कुछ भी हुवा अंजाने में हुवा. मेरा आपके प्रति कोई बुरा इरादा नही था.” भीमा ने खाट के नीचे से निकलते ही कहा. “बिल्कुल… तभी बार-बार उत्तेजित हो जाते हो तुम हा.” रेणुका डंडा हवा में उपर करती है, भीमा के सर में मारने के लिए. लेकिन डंडा छत से लटकी मटकी से टकराता है और मटकी रस्सी से निकल जाती है. भीमा रेणुका को पकड़ता है और मटकी के नीचे से हटा लेता है. मटकी ज़ोर से ज़मीन पर गिरती है और फूट जाती है. मटकी का माखन ज़मीन पर बिखर जाता है. “छोड़ो मुझे…तुम्हारी आज खैर नही” भीमा फ़ौरन रेणुका का हाथ छोड़ देता है. रेणुका हाथ में डंडा लिए भीमा की ओर बढ़ती है, लेकिन रेणुका का पाँव माखन पर पड़ जाता है और वो फिसल जाती है. भीमा आनन फानन में आगे बढ़ कर रेणुका का हाथ थामता है लेकिन वो भी फिसल जाता है.रेणुका तो गिरती ही है…दिक्कत वाली बात ये हो जाती है कि भीमा भी उसके साथ उसके उपर गिर जाता है. बड़ी ही नाज़ुक स्थिति बन जाती है. रेणुका आँखो में शोले लिए ज़मीन पर पड़ी है और भीमा उसके उपर. रेणुका भीमा की आँखो में देखती है. उसे आँसू दीखाई देते हैं. “मेम्साब मैने कुछ जान बुझ कर नही किया…मेरा यकीन कीजिए मैं सच कह रहा हू” भीमा ने कहा. “पर तुमने किया तो ना…तुम्हे सोचना चाहिए था…परदा उठाए खड़े रहे तुम और मुझे घूरते रहे.” “आप मुझे जान से मार दीजिए…मेम्साब” भीमा भावुक हो कर कहता है. भीमा रोने लगता है और अपना सर रेणुका के उभारो पर रख देता है, जैसे की छोटा बच्चा हो. रेणुका भीमा को रोते देख उसका सर थाम लेती है. इतना भावुक सा माहॉल बन जाता है कि दोनो में से कोई भी वाहा से हिलने की कोशिस नही करता. “अब भी तो ये ठीक है अब तो ये उत्तेजित नही हो रहा. सब डंडे का असर है. बिल्कुल बच्चा है ये.” रेणुका सोचती है. भीमा चुपचाप रेणुका के उभारो पर सर रखे सुबक्ता रहता है. “मेम्साब आप बहुत अच्छी हो…कोई और होता तो मुझे मार डालता.” “अच्छा डंडे कम पड़े लगते हैं.” “नही…नही वो तो बहुत पड़े हैं.” “नही कुछ कमी रही हो तो और मार देती हूँ.” “मार लीजिए मेम्साब अब चू भी नही करूँगा.” “अगर दुबारा ऐसा किया तो और ज़्यादा डंडे लगेंगे.” अब जबकि भीमा रेणुका के उपर पड़ा था तो उत्तेजना का जागना तो स्वाभाविक था. धीरे धीरे भीमा के लिंग में हरकत होने लगती है और वो रेणुका की योनि पर चुभने लगता है. “भीमा!” रेणुका लिंग की चुभन महसूस होते ही ज़ोर से बोलती है. “जी मेम्साब.” “जी के बच्चे क्या हो रहा है ये फिर से और पीटाई करनी पड़ेगी क्या तुम्हारी.” भीमा सर उठाता है और रेणुका की आँखो में झाँक कर बोलता है “मैं सच कहता हूँ आपके करीब आकर ऐसा अपने आप हो जाता है. मेरे बस में होता तो रोक लेता. क्या औरत के करीब आकर आदमी को ऐसा ही होता है.” “मुझे नही पता शायद होता होगा.” “फिर ठीक है…मुझे लगा मेरे साथ ही ऐसा हो रहा है.” “तुम बिल्कुल भोन्दु हो.” “मेम्साब एक बात कहूँ…बुरा तो नही मानेंगी आप.” “हां बोलो.” “मुझे कुछ देर यू ही अपने उपर रहने दीजिए. बहुत सुकून मिल रहा है मुझे.” पता नही क्यों रेणुका भीमा को अपने उपर से हटा नही पाती. वो भीमा की बात का कोई जवाब भी नही देती. बस अपनी आँखे बंद कर लेती है. “सुकून तो मुझे भी मिल रहा है…मैने तुम्हारे अंदर आदमी का अलग ही रूप देखा है भीमा. अब तक बस अपने पति को ही देखा था इतने नज़दीक से. वो तो किसी भेड़िए से कम नही थे. वो जब मेरे उपर होते थे तो मेरी रूह काँप उठती थी. एक तुम हो आज…हां भीमा मुझे भी सुकून मिल रहा है ये जान कर कि आदमी तुम्हारे जैसा भी हो सकता है…मासूम और प्यारा… बिल्कुल किसी बच्चे की तरह. हमएसा ये बाते अपने अंदर बनाए रखना भीमा…तुम अच्छे इंसान हो. दिल के सच्चे हो.” रेणुका आँखे बंद किए चुपचाप सोच रही है. “मेम्साब मेरा वो दिक्कत तो नही दे रहा आपको.” भीमा ने पूछा. क्रमशः.........................
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