RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--17 गतान्क से आगे...................... "हट जाओ अब तुम, दिक्कत की तो बात ही है" रेणुका भीमा को अपने उपर से धकैलते हुवे कहती है. भीमा रेणुका के उपर से हट जाता है और ज़मीन पर बैठ जाता है. "बहुत शुकून मिल रहा था…मेम्साब?" "ऐसे ही पड़े रहेंगे क्या हम तुम्हारे साथ भोन्दु कही के." रेणुका ने कहा. "ओह हां मैं तो सब कुछ भूल गया था…ऐसे थोड़ा हम पड़े रहेंगे." "चलो छोड़ो, ये बताओ कुछ खाया तुमने सारा दिन." "नही मेम्साब पूरा दिन अन्न का एक दाना भी नसीब नही हुवा. मैं तो कही पानी भी नही पी पाया." "क्यों ऐसा क्या हो गया था...बहुत परेशान थे क्या तुम आज की अपनी करतूत के कारण." "पूछो मत मेम्साब...आपको अब मैं जबरदस्त वाक़या सुनाता हूँ." भीमा उत्सुकता में बोला. "कैसा वाक़या?" भीमा, रेणुका को सारी कहानी सुनाता है. "यकीन नही होता कि एक साधारण सी लड़की इतना बड़ा काम कर सकती है." "सब कुछ सच है मेम्साब...मैं खुद गवाह हूँ." भीमा ने कहा. "अच्छा कुछ खाओगे अब तुम?" "बहुत भूक लगी है मेम्साब...मैं अभी कुछ बनाता हूँ." "नही मैं बनाए देती हूँ." "मेम्साब आप मेरे लिए खाना बनाएँगी, नही नही...मैं बना लूँगा." "पिटोगे तुम अगर ज़्यादा बोलॉगे तो...जाओ हाथ मूह धो कर आओ मैं खाना तैयार करती हूँ." “पहले मैं ये ज़मीन पर बिखरे माखन को सॉफ कर देता हूँ.” “हां…ये कर दो पहले फिर हाथ मूह धो लेना.” भीमा ज़मीन से माखन को साफ कर देता है और हाथ मूह धोने बाहर निकल आता है. "मेम्साब तो गजब हैं. मारती भी हैं और प्यार भी करती हैं. मेमसाब जब चली जाएँगी तो मेरा बिल्कुल मन नही लगेगा." रेणुका भी बाहर आती है और चूल्हा तैयार करती है. रेणुका जब खाना बना रही थी तो भीमा उसके साथ ही बैठ गया चूल्हे के पास. “मेम्साब आप मेरे लिए खाना बना रही हैं. मुझे तो यकीन ही नही हो रहा.” “इसमे ऐसा क्या है. हवेली में भी मैं खाना बनाती ही थी. और कयि बार तुमने वाहा मेरे हाथ का खाया भी है.” “वाहा कुछ और बात थी यहा कुछ और बात है.” भीमा ने कहा. “लो खाना तैयार है तुम अंदर चटाई लगाओ. मैं लाती हूँ.” रेणुका ने कहा. दोनो ने एक साथ चटाई पर बैठ कर खाना खाया. “बहुत स्वादिष्ट खाना बनाया आपने मेम्साब. सारी भूक शांत हो गयी.” भीमा ने कहा. खाना खाने के बाद भीमा ज़मीन पर चटाई बिछा कर लेट गया और और रेणुका चारपाई पर लेट गयी. “मेम्साब एक बात पूच्छू बुरा ना माने तो.” “हां पूछो.” “जब मैं आपके उपर था तो आपको कैसा लग रहा था.” “क्यों जान-ना चाहते हो?” “बस यू ही. मुझे तो बहुत अछा लग रहा था.” “अच्छा तुम्हे तो अच्छा लगेगा ही. उत्तेजित जो हो रहे थे तुम.” “हां बाद में थोड़ा थोड़ा होने लगा था.” “थोडा नही तुम पूरे उत्तेजित हो गये थे. बहुत तेज चुभ रहा था मुझे वो.” “हां बाद में ऐसा हो गया था.” “तुम मुझसे अश्लील बाते करते रहोगे क्या, सोना नही है आज क्या. रात बहुत हो गयी है. अब जबकि पिशाच का ख़तरा टल गया है मुझे यहा से चलना चाहिए. सो जाओ मुझे कल जल्दी उठ कर सफ़र पर निकलना है.” भीमा के तो पैरो के नीचे से जैसे ज़मीन निकल गयी. वो तुरंत अपनी चटाई से उठा और रेणुका के बिस्तर के पास आ गया. “मेम्साब आप कल चली जाओगी.” “हां और नही तो क्या. मैं हमेशा यही थोड़ा रुकूंगी.” “हां ठीक कह रही हैं आप. ये ठहरी ग़रीब की कुटिया. आप तो हवेली में रहेंगी जाकर.” “पागल हो क्या. मेरा ये मतलब नही है. कुछ भी बोले जा रहे हो. मुझे अपने घर तो जाना ही होगा ना अब.” “मेम्साब आप मत जाओ. मेरा मन नही लगेगा.” भीमा गिड़गिदाया. “पागल हो क्या मुझे जाना ही होगा.” “कुछ दिन तो आप रुक ही सकती हैं.” “हां ताकि तुम मुझे रोज परदा उठा कर देखो…. क्यों.” “नही नही मेम्साब मेरा वो मतलब नही है.” “अछा छोड़ो ये सब. मुझे ये बताओ मुझे क्यों रोकना चाहते हो. क्या लगती हूँ मैं तुम्हारी.” “आप…आप मेरी मेम्साब हैं.” “मेम्साब हूँ तो क्या अपने घर में रखोगे मुझे.” रेणुका ने कहा. “मुझे नही पता क्यों…शायद.” “शायद क्या?” “कुछ नही रहने दीजिए. सो जाईए आप.” भीमा वापिस अपनी चटाई पर आ गया. “चले गये तुम तो. भीमा बोलो ना शायद से तुम्हारा क्या मतलब है.” “रहने दीजिए मेम्साब आपको बुरा लगेगा.” “हो सकता है ना लगे तुम बोलो तो…इधर आओ वापिस और जल्दी बताओ शायद क्या?” भीमा फिर से रेणुका के बिस्तर के पास आता है और बोलता है. “शायद मैं आपको चाहने लगा हूँ. मुझे पता है ये ग़लत है. लेकिन जो मेरे मन में था कह दिया.” “भोन्दु हो तुम एक नंबर के. किसी को चाहना ग़लत नही होता.” “लेकिन आप तो चली जाएँगी ना. क्या फ़ायडा ऐसी चाहत का.” “एक शर्त पर रुकूंगी यहा.” “बोलिए क्या शर्त है.” “मुझे अपनी बीवी बना लो.” “क्या! आप ये क्या कह रही हैं. ऐसा कैसे होगा.” “सब कुछ मुमकिन है. क्या तुम मुझे प्यार नही करते?” “वो तो करता हूँ शायद पर…आप और मेरी बीवी…ऐसा कैसे होगा.” “क्या तुम्हारा इरादा मुझे यहा रखैल बना कर रखने का है.” “ऐसा मत कहो मेम्साब. अपने बारे में ऐसा मत कहो.” “भीमा तुमने मुझे ही नही छुवा बल्कि मेरी आत्मा को छुवा है. मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे साथ खुस रहूंगी. मैं यहा से कही नही जाना चाहती. मैं तो बस यू ही तुम्हारे मन की बात जान-ने के लिए बोल रही थी. जैसा की मुझे शक था, वही हुवा. तुम भी मुझे चाहते हो और मैं भी तुम्हे चाहती हूँ. फिर हम हमेसा एक साथ क्यों नही रह सकते. मैं एक हवेली से निकल कर दूसरी हवेली नही जाना चाहती. जो शुकून की साँस मुझे तुम्हारी इस कुटिया में मिल रही है वो मुझे आज तक हवेली में नही मिली. बताओ बनाओगे मुझे अपनी दुल्हन. शादी शुदा हूँ मैं पहले से लेकिन फिर भी तुमसे ये पूछ रही हूँ. शायद मैं ग़लत हूँ. लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मुझे सिर्फ़ तुम्हारे साथ रहना चाहिए.” “मेम्साब आप ग़लत नही हो सकती. पर मैं आपके लायक नही हूँ.” “फिर क्यों रोकना चाहते थे मुझे. मुझे दुबारा फिर से नंगा देखना चाहते थे या फिर ये सब अपनी हवस के लिए बोल रहे थे.” “नही नही भगवान कसम मेम्साब ऐसा कुछ नही है. बताया तो आपको कि मैं आपको चाहने लगा हूँ.” “बस मुझे चाहोगे. अपनी बीवी नही बनाओगे. कैसी चाहत है तुम्हारी.” “क्या आप मेरे साथ इस कुटिया में रह लेंगी.” “रह नही रही हूँ क्या, और क्या चाहिए तुम्हे.” “वो तो है मेम्साब…पर गाँव वाले क्या कहेंगे. और ठाकुर रुद्र प्रताप सिंग तो मुझे जान से मार देंगे.” “बस डर गये.” “नही मेम्साब ऐसा नही है लेकिन इन बातो का ख़तरा तो है ही.” “वो सब देखा जाएगा. तुम बस ये बताओ कि तुम मुझे अपनी बीवी बनाओगे की नही.” “मैं तैयार हूँ मेम्साब. मेरा तो ये शोभाग्य होगा की आप जैसी बीवी मुझे मिलेगी.” “वो तो ठीक है पहले ये मेम्साब कहना बंद करो. मुझे अबसे रेणुका कहोगे तुम…क्या कहोगे?” “अभी नही मेम्साब धीरे सीख लूँगा. अभी आप मेरी मेम्साब ही रहो.” “भोन्दु हो तुम एक नंबर के.” “मेम्साब आपको हवेली जैसा सुख तो नही दे पाउन्गा पर प्यार बहुत करूँगा आपको.” “मुझे पता है भीमा…तभी तुम्हारी बीवी बन-ना चाहती हूँ.” भीमा ने रेणुका का हाथ पकड़ा और उस पर अपने होन्ट टीका दिए. रेणुका के पूरे शरीर में जैसे बीजली दौड़ गयी. “ये सब अभी नही भीमा बाद में.” “बस आपको अपना प्यार दिखाना चाहता था.” “वो तुम बहुत दीखा चुके हो…चलो अब सो जाओ. कल हम शादी कर लेंगे.” “कल ही कर लेंगे.” भीमा हैरान रह गया. “जब तुम कहो तब कर लेंगे इसमे हैरान होने की क्या बात है.” “नही नही कल ही ठीक रहेगा. आपसे ज़्यादा दिन दूर नही रह पाउन्गा मैं अब.” “ठीक है. ठीक है सो जाओ अब तुम.” भीमा का तो जैसे कोई बहुत बड़ा सपना सच हो गया. वो बहुत खुश था. खुश होने वाली बात ही थी. रेणुका जैसी बीवी उसे कही नही मिल सकती थी. ……………………………………………………………………………………. साधना तो सारी रात तड़पति रही. कभी इस करवट कभी उस करवट. उसकी जान तो बस प्रेम में अटकी थी. बार बार बस उसकी सलामती की दुआ कर रही थी. वो बेसब्री से सुबह होने का इंतेज़ार कर रही थी. जैसे ही मुर्गे ने बांग दी वो बिस्तर से उठ गयी. सुबह के कोई 6 बज रहे थे. बाहर अभी भी हल्का हल्का अंधेरा था.साधना चुपचाप घर से निकली और प्रेम के घर की तरफ चल पड़ी. प्रेम को कुछ देर पहले ही होश आया था. आँखे खुलते ही वो खुद को अपने घर में पाकर हैरान रह गया. “ओह तुम्हे होश आ गया. भगवान का लाख-लाख शूकर है.” केशव पंडित ने कहा. “मैं यहा कैसे आया पिता जी मुझे तो वो पिशाच उठा कर ले गया था.” प्रेम ने पूछा. “जो हो गया सो हो गया छोड़ो ये सब. पिशाच का ख़ात्मा हो चुका है. अब वो यहा नही आएगा.” “ये सब कैसे हुवा?” “सब भगवान की कृपा है. इस बारे में ज़्यादा मत सोचो. पिशाच के बारे में बाते करना ठीक नही होता.” “पर मैं जान-ना चाहता हूँ कि…ये सब कैसे हुवा?” “पिशाच के पेट में त्रिशूल मारा हमने और वो ख़तम हो गया. फिर हम तुम्हे यहा ले आए.” केशव पंडित बड़ी चालाकी से बोल रहा था. वो झूठ भी बोल रहा था और सच भी. हम कह कर वो अपने मन से झूठ का बोझ हटा रहा था, हम वो भीमा साधना और अपने संधर्ब में कह रहा था.. वो नही चाहता था कि साधना के बारे में प्रेम को कुछ भी पता चले. प्रेम अपने पिता का विश्वास कैसे ना करता. वो उनकी बहुत इज़्ज़त करता था. “बेटा तुम आराम करो. मैं मंदिर जा रहा हूँ. और हां गाँव के किसी आदमी से बात करने की ज़रूरत नही है. सब घरो में घुस गये थे जब वो पिशाच तुम्हे ले जा रहा था.” “गाँव वाले डरे हुवे थे पिता जी और वैसे भी क्या कर सकते थे वो पिशाच का.” “जो भी हो तुम गाँव वालो से दूर ही रहना.” “मुझे तो वैसे भी यहा से जाना ही है पिता जी. मुझे वापिस अपने गुरु के आश्रम लोटना होगा.” प्रेम ने कहा. “तुम फिर से चले जाओगे?” “हां पिता जी जाना ही होगा.” “ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. मैं मंदिर के लिए निकलता हूँ. उठ सको तो कुण्डी बंद कर लेना.” “आप जाओ मैं देख लूँगा.” केशव पंडित चला गया. साधना बहुत अच्छे समय पर प्रेम से मिलने आ रही थी नही तो केसव पंडित उसे घर में ना घुसने देता. साधना पहुँच तो गयी प्रेम के घर लेकिन दरवाजे पर पहुँच कर थिटाक गयी. वो केसव पंडित की वजह से घबरा रही थी. फिर भी उसने हिम्मत करके दरवाजा खाट खटाया. “कौन है? आ जाओ दरवाजा खुला ही है.” प्रेम ने अंदर से आवाज़ दी. प्रेम की आवाज़ सुनते ही साधना की खुशी का ठिकाना नही रहा. उसने तुरंत दरवाजा धकैला और अंदर आ गयी. “प्रेम तुम ठीक हो भगवान का लाख लाख शूकर है.” “मुझे क्या होना था. मैं बिल्कुल ठीक हूँ. तुम इतनी सुबह सुबह यहा क्या कर रही हो.” प्रेम ने कठोर शब्दो में कहा. “मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी. बस तुम्हे देखने आई हूँ.” “देख लिया ठीक से. हो गया तुम्हारा. अब जाओ यहा से और मुझे अकेला छोड़ दो.” प्रेम की आवाज़ में कठोरता बरकरार थी. “मैं बस तुम्हे देखने आई थी. क्या करूँ दिल से मजबूर हूँ.” साधना की आँखे छलक उठी. “देखो इस रोने धोने का मुझ पे कोई असर नही होगा. बेहतर यही होगा कि तुम यहा से चली जाओ.” प्रेम ने कहा. “जा रही हूँ प्रेम…जा रही हूँ…अपना ख्याल रखना.” साधना आँखो में आँसू लिए भारी कदमो से बाहर आ गयी. प्रेम इस बात से बिल्कुल अंजान था कि साधना ही उशे अपनी जान पर खेल कर जंगल से बचा कर लाई है. वो तो बस हर हाल में साधना से पीछा छुड़ाना चाहता था. वो अपने सन्यास से कदाप भटकना नही चाहता था. साधना के दिल पर बहुत गहरी चोट लगी. इतनी गहरी की शायद उसके घाव कभी नही भर पाएँगे. वो किसी तरह से घर पहुँच गयी और वापिस आ कर बिस्तर पर गिर गयी. उसकी आँखे थमने का नाम ही नही ले रही थी. शायद एक यही रास्ता था उसके पास अपने गम को दूर करने का. सुबह हो चुकी थी लेकिन भीमा बहुत गहरी नींद में सोया था. हसीन सपने देख रहा था. नींद में ही उसे घंटी की आवाज़ सुनाई दी. वो अचानक उठ कर बैठ गया. “ये घंटी की आवाज़ कहा से आ रही है.” “ऐसे ही सोते हो क्या देर तक तुम. तभी कहु क्यों हवेली अक्सर लेट पहुँचते थे तुम. उठ जाओ अब.” भीमा ने तुरंत घूम कर देखा. भीमा के घर में उसने एक छोटा सा मंदिर बना रखा था जिसमे कि भोले नाथ की एक छोटी सी मूर्ति रखी थी. रेणुका उस छोटे से मंदिर के आगे बैठी थी और धूपबत्ती लगा कर आरती कर रही थी. “मेम्साब, तो आप बजा रही थी घंटी.” “हां तुम्हे क्या लगा?” “मुझे लगा मैं सपना देख रहा हूँ.” “अछा है कि तुमने यही छोटा सा मंदिर बना रखा है. मुझे सुबह सेवेरे भगवान की आरती करना पसंद है.” “बना तो रखा है पर मुश्किल से कभी ही इसमें धूप लगाता हूँ. आज बड़े दिनो बाद इसमें धूपबत्ती लगाई है आपने.” “अबसे रोज लगेगी धूपबत्ती इसमें. चलो उठो और नहा धो लो.” रेणुका ने मंदिर के आगे से उठते हुवे कहा. “आप नहा ली क्या?” “क्यों..क्या फिर से परदा उठा कर देखना था तुम्हे?” “नही नही मैं वैसे ही पूछ रहा हूँ.” “हां नहा ली हूँ मैं. नहा कर ही धूपबत्ती की जाती है. पता नही क्या ये तुम्हे.” “ओह हां ये तो पता है…खि….खि” भीमा हंसते हुवे अपनी चटाई से उठता है और बाहर आ जाता है. रेणुका चूल्हे पर रात की ही तरह नाश्ता तैयार करती है. एक बहुत ही सुंदर सा रिश्ता बनता जा रहा है भीमा और रेणुका के बीच. नाश्ता करने के बाद भीमा कहता है, “मेम्साब मुझे जाना होगा अभी.” “कहा जाना होगा?” रेणुका ने पूछा. “मुझे स्वामी जी की चिंता हो रही है. पता नही उन्हे होश आया है या नही. जा कर देख आता हूँ.” “हां तुम देख आओ…मैं भी उनके बारे में जान-ना चाहती हूँ.” “ओह हां…आप कह रही थी कि आज शादी करेंगे” “तुम हो आओ पहले…फिर देखते हैं…शादी तो हम कर ही लेंगे.” “वही मैं भी कह रहा था. आज ही आज सब मुमकिन नही होगा.” “तुम हो आओ पहले फिर देखते हैं.” रेणुका ने कहा. भीमा प्रेम की हालत जान-ने के लिए उसके घर के लिए निकल पड़ता है. रास्ते में उसे कुछ लोग दीखाई दिए. वो कुछ बाते करते जा रहे थे जो कि भीमा ने सुन ली. “बड़ा बुरा हुवा ठाकुर के साथ. एक-एक करके सब चले गये हवेली से. बड़ी मनहूस हवेली है.” “हां भाई अब तो उस तरफ जाते हुवे भी डर लगेगा.” भीमा ने उन्हे रोका और पूछा,”क्या हुवा हवेली में भाई” “ठाकुर रुद्र परताप सिंग चल बसे. अब हवेली बिल्कुल शुन्सान हो गयी है.” लोग बाते करते करते आगे निकल गये. भीमा वही खड़ा खड़ा गहरी चिंता में खो गया. “अब कुछ दिन हम शादी नही कर पाएँगे. ऐसे में शादी करना ठीक नही रहेगा. चल कर स्वामी जी को देखता हूँ पहले. फिर घर जा कर ये बात बताउन्गा मेम्साब को.” भीमा प्रेम के घर पहुँचता है. घर के बाहर ही उसे केसव पंडित मिल जाता है. “क्या करने आए हो यहा. मुझे पोंगा पंडित बोल के गये थे कल…हा.” केशव पंडित ने कहा. “छोड़िए ये सब पंडित जी. मैं आपसे किसी बहस में नही पड़ना चाहता. आप ठहरे ज्ञानी पंडित और मैं ठहरा मूर्ख अग्यानि. मैं तो यहा स्वामी जी का हाल चाल जान-ने के लिए आया हूँ.” “ठीक है वो अब. होश आ गया था उसे सुबह. अभी दवाई ले कर लेटा है.” “क्या मैं मिल सकता हूँ स्वामी जी से.” “मेरे घर में तो तुम्हे घुसने नही दूँगा मैं. चुपचाप यहा से चले जाओ तो अच्छा है.” “मैं तुम्हे देखते ही समझ गया था कि यही होना है. तुम सच में पोंगे पंडित हो. तुम्हारे जैसा धूर्त पंडित मैने आज तक नही देखा.” “दफ़ा हो जाओ यहा से.” केसव पंडित चील्लाया. “जाता हूँ जाता हूँ. स्वामी जी के कारण चुप हूँ वरना अभी पटक देता तुम्हे हा.” भीमा वाहा से चल देता है. भीमा वापिस अपने घर आ जाता है. “कैसे हैं स्वामी जी?” रेणुका ने पूछा. “वो तो ठीक हैं लेकिन ठाकुर साहिब चल बसे.” “क्या! कब हुवा ये सब.” रेणुका का मूह खुला का खुला रह गया. “वो तो नही पता…लेकिन अब हम थोड़े दिन शादी नही कर पाएँगे मेम्साब.” “कोई बात नही. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. शादी तो हमारी हो ही जाएगी देर सबेर.” एक तरह से ठाकुर का सम्राज्य गाँव से ख़तम हो चुका था. ये बात रेणुका और भीमा के लिए भी अच्छी थी और मदन और वर्षा के लिए भी. वरना बहुत दिक्कत आ सकती थी उन्हे. ……………………………………………………………….. क्रमशः.........................
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