RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--18
गतान्क से आगे......................
इधर साधना अभी तक बिस्तर पर पड़ी थी. उठना बहुत मुश्किल हो रहा था उसके लिए. सारी रात नींद तो आई नही थी. बहुत ज़्यादा थॅकी हुई थी. “क्या बात है साधना? आज कुछ खाने को नही दोगि क्या?” गुलाब चंद ने पूछा. साधना धीरे से बिस्तर से उठती है और कहती है, “अभी तैयार करती हूँ पिता जी.” “बात क्या है. बहुत थॅकी थॅकी सी लग रही है तू.” “कुछ नही पिता जी बस यू ही.” “बहुत भूक लगी है मुझे.” “बस अभी लाती हूँ पिता जी आप बैठिए.” साधना अपने पिता के लिए तो खाना बना देती है लेकिन वो अब भी खुद कुछ नही खाती. कुछ भी खाने का मन ही नही है उसका. प्यार का घाव कुछ ऐसा ही होता है. जखम भरने में कुछ वक्त तो लगता ही है. वक्त के साथ साथ साधना संभालने लगती है. धीरे धीरे एक हफ़्ता बीत जाता है. अब जबकि गाँव में ठाकुर की सत्ता ख़तम हो चुकी थी तो मदन वर्षा को लेकर अपने घर ही आ गया. “ह्म्म तो तुम हो साधना. बहुत तारीफ़ करते हैं तुम्हारे भैया तुम्हारी. नज़र ना लग जाए मेरी तुम्हे बहुत सुंदर हो तुम तो.” साधना वर्षा की बात सुन कर हल्का सा मुश्कुरा दी. “मैं भी आपको पहली बार देख रही हूँ. भैया रहते तो थे खोए खोए पर ये नही पता था कि आपके प्यार में खोए है. भगवान आपके प्यार को सलामत रखे.” “मैने सुना की तुमने उस दरिंदे पिशाच को मार दिया. कैसे किया तुमने ये सब.” वर्षा ने कहा. “मुझे खुद नही पता. बस हो गया.” साधना ने कहा. ये तो साधना के प्यार की ताक़त थी जिसने प्रेम को बचा लिया. इसको किसी को समझाया नही जा सकता था. मदन ने साधना को बाहों में भर लिया और बोला, “बड़ी अनोखी है मेरी बहना. ये कुछ भी कर सकती है.” वर्षा बहन भाई का प्यार देख कर मुश्कुरा पड़ती है. “कब शादी कर रहे हो आप दोनो?” साधना ने पूछा. “जब तुम कहोगी साधना…बताओ कब करें, सारी तैयारी तो तुम्हे ही करनी है.” मदन ने कहा. “मैं आप दोनो के साथ हूँ भैया. बहुत खुश हूँ मैं आप दोनो के लिए. जो भी मुझसे बन पड़ेगा मैं करूँगी.” “अभी शादी नही कर सकते हम कुछ दिन, ठाकुर साहिब का निधन हुवा है अभी अभी. वर्षा भी थोड़ा गम में है. थोड़ा रुक कर करेंगे. लेकिन तब तक वर्षा यही रहेगी तुम्हारे साथ.” “बिल्कुल रहे यही. मुझे बहुत अछा लगेगा. वैसे भी बहुत अकेली महसूस करती हूँ मैं यहा. मैं चाय लाती हूँ. ” साधना ने कहा. साधना चाय लेने चली गयी. साधना के जाते ही मदन ने वर्षा को बाहों में भर लिया. “आज रात अपने घर में मज़े करेंगे.” मदन ने कहा. “शादी होने तक तुम्हे पास भी नही फटकने दूँगी मैं अब. वाहा किशोरे के घर तुम्हारा मन नही भरा. रोज रात को मुझे परेशान करते थे.” “क्या करू मेरा दिल ही नही भरता तुमसे. जितनी बार तुम-मे समाता हूँ और इच्छा होती है करने की. शायद संभोग ऐसा ही जादू करता है.” “अब तुम्हे कुछ नही मिलने वाला जनाब. वैसे भी मैं यहा साधना के साथ लेटुंगी. तुम्हारे साथ नही.” “क्यों?” “पागल हो क्या. शादी से पहले सब के सामने अछा लगेगा क्या?” “सब सो जाएँगे तभी ना करेंगे हम. तुम भी कैसी बात करती हो. वैसे भी कुछ दिनो से तो तुम गम में डूबी हो. कहा नज़दीक आने दिया तुमने मुझे.” साधना कमरे में आती है तो मदन और वर्षा को देख कर खाँसती है, “उः..उः..चाय तैयार है.” मदन फ़ौरन वर्षा को अपनी बाहों से आज़ाद कर देता है. वर्षा मदन को चुटकी काट-ती है. “करा दी ना मेरी बेज़्जती तुमने? क्या सोचेगी साधना.” वर्षा ने धीरे से कहा. साधना ने ये सुन लिया. “मैं कुछ नही सोचूँगी भाबी. ग़लती मेरी ही थी. मैं बिना दरवाजा खड़काए अंदर आ गयी मैं कुछ खाने को बनाती हूँ. आप दोनो तब तक बाते करो.” “हां साधना बहुत अछा सा खाना बना दे आज. पहली बार आई है वर्षा घर. इसको पता चलना चाहिए कि मेरी बहना बहुत अछा खाना बनाती है.” साधना मुश्कूराते हुवे बाहर आ जाती है और चूल्हा तैयार करती है. बहुत बिज़ी रखती है वो खुद को घर के काम काज में लेकिन फिर भी रह-रह कर प्रेम की याद आ ही जाती है. ………………………………………………………………. प्रेम अब बिल्कुल ठीक हो चुका है और अब वो गाँव से जाने की तैयारी में है. केशव पंडित उसे रोकने की कोशिस तो करता है पर वो नही मानता. “मुझे मेरे गुरु के पास जाना होगा पिता जी. आपको पता ही है कि मैने सन्यास ले लिया है. यहा मेरे अध्यातम का विकास नही हो पाएगा. तरह तरह के भटकाव हैं यहा. जब से यहा आया हूँ क्रोध, घृणा पता नही क्या क्या आ गया है मेरे अंदर. यहा थोड़े दिन और रुका तो मेरा अध्यात्मिक विकास रुक जाएगा. मुझे यहा से जाना ही होगा.” “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी बेटा. रोकुंगा नही तुम्हे. लेकिन कभी कभी अपने बूढ़े बाप को देखने आते रहना. अकेला हूँ यहा, तेरे शिवा मेरा कौन है.” “आता रहूँगा पिता जी. ज़रूर आता रहूँगा. ये भी क्या कोई कहने की बात है.” प्रेम घर से बाहर निकलता है और चारो तरफ देखता है. “भगवान इस गाँव में सुख शांति बनाए रखे. पिता जी ठीक है मैं चलता हूँ. सफ़र थोड़ा लंबा है, मुझे अभी निकलना होगा.” “ठीक है बेटा अपना ख्याल रखना.” प्रेम चलने लगता है. लेकिन तभी उसे पीछे से आवाज़ आती है. “स्वामी जी!” प्रेम मूड कर देखता है. “भीमा कहा थे तुम. मिलने भी नही आए एक बार भी.” भीमा दौड़ कर प्रेम के पास आता है और कहता है, “आया था स्वामी जी लेकिन मुझे आपसे मिलने नही दिया गया.” “जाओ बेटा. तुम्हे देर हो रही है. इन गाँव वालो से इतना मूह मत लगो.” केशव पंडित ने कहा. “कैसी बात करते है आप पिता जी. ये सब अछा नही लगता मुझे….हां भीमा बताओ कैसे हो तुम. अब तो गाँव में शांति है ना.” प्रेम ने कहा. “कह नही सकता स्वामी जी, बहुत ख़ुसी हुई आपको बिल्कुल ठीक ठाक देख कर. रही गाँव की बात, जिसमे देवी समान साधना रहती हो वाहा अशांति ज़्यादा दिनो तक टिक नही सकती.” “ये क्या बोल रहे हो साधना ने क्या कर दिया ऐसा?” प्रेम ने हैरानी में पूछा. “क्या आपको पंडित जी ने कुछ बताया नही. ये तो धूर्त पने की हद पार कर दी पंडित जी ने.” “बेटा तुम जाओ यहा से ये पागलो जैसी बाते कर रहा है.” केशव पंडित ने कहा. “रुकिये पिता जी…भीमा ये सब क्या है. कहना क्या चाहते हो तुम.” “स्वामी जी पिशाच आपको जंगल में उठा ले गया था. गाँव के सारे लोग घरो में घुस्स गये थे. किसी ने कोई मदद नही की. आपके पिता श्री भी कुछ करने का विचार नही रखते थे. इन्होने तो आपको मरा मान लिया था.” “ऐसा कुछ नही है प्रेम ये झूठ बोल रहा है.” केशव पंडित बीच में बोल पड़ा. “रुकिये पिता जी कहने दीजिए इसे.” प्रेम बहुत उत्शुक था सब कुछ जान-ने के लिए. “मैं झूठ नही बोल रहा स्वामी जी. झूठ बोल कर मुझे क्या कोई इनाम मिलेगा?. स्वामी जी ये तो साधना थी जिसने हिम्मत नही हारी थी. उसी ने पंडित जी से प्रार्थना करके कुछ उपाय पूछा. इन्होने बताया की भोले नाथ के त्रिशूल से ख़ात्मा हो सकता है पिशाच का. बस फिर क्या था. साधना त्रिशूल ले कर अकेले ही निकल पड़ी जंगल की ओर.” “मैं नही गया था क्या.” केसव पंडित गुस्से में बोला. “आपने तो और मुसीबत ही बढ़ाई थी. रास्ते पर ढोता रहा मैं आपको. साधना अकेली रह गयी थी. आपके साथ होने की बजाए मुझे साधना के साथ होना चाहिए था.” “हां आगे बताओ फिर क्या हुवा.” प्रेम ने कहा. “स्वामी जी पता नही साधना ने कैसे किया ये सब लेकिन वो जंगल में पिशाच के ठीकाने तक पहुँच ही गयी. ना केवल उसने पिशाच को मारा बल्कि अपनी पीठ पर ढो कर आपको गाँव तक लाई. सीधा वैद्य के पास ले गयी थी वो आपको. मुझे तो साधना किसी देवी से कम नही लगी. ऐसा काम कोई आम इंसान नही कर सकता.” पूरी कहानी सुन कर प्रेम की आँखे भर आई और उसकी आँखे टपकने लगी. प्रेम की आँखो में आँसू देख कर भीमा ने पूछा, “क्या हुवा स्वामी जी आपकी आँखो में आँसू. मैने कुछ ग़लत कह दिया क्या?” “नही भीमा तुमने बहुत अछा किया जो ये मुझे बता दिया. मैं तो खुद पे रो रहा हूँ. साधना सही कहती थी ‘इतना भी उपर नही उठा मैं’. बहुत बड़ा अनर्थ हो गया है मुझसे.” भीमा को कुछ समझ नही आ रहा था. समझता भी कैसे उसे बिल्कुल नही पता था कि प्रेम और साधना के बीच क्या चल रहा है. “बेटा तुझे जो समझना है तू समझ. बस इतना ध्यान रखना कि मैं तेरा पिता हूँ और ये गाँव वाले तेरे कुछ नही लगते.” “पिता जी बस कुछ और ना कहें मेरा दिल बहुत व्यथित है. जो पाप मुझसे हुवा है मैं उसके लिए खुद को कभी माफ़ नही कर पाउन्गा.” “ऐसा क्यों बोल रहे हो बेटा. ऐसा क्या हो गया?” केसव पंडित ने पूछा. “हाँ स्वामी जी ऐसा क्यों कह रहे हैं.” भीमा ने भी पूछा. “आप लोग नही समझेंगे. मुझे अभी साधना से मिलना होगा…वरना भगवान मुझे कभी माफ़ नही करेंगे.” प्रेम ने कहा और साधना के घर की तरफ चल पड़ा. “पागल मत बनो वो कोई देवी-वेवी नही है. तुम्हे देर हो जाएगी…कहा जा रहे हो?” “जाने दो उन्हे पोंगे पंडित…क्यों हमेशा बेकार की बाते करते हो.” भीमा ने कहा. “तू दफ़ा हो जा यहा से. मैं तेरी शकल भी नही देखना चाहता मक्कार कही का.” “हा..हा..हा मक्कारी खुद करते हो और मक्कार मुझे बोलते हो…पोंगे पंडित.” भीमा कह कर चल दिया. केशव दाँत भींच कर रह गया. प्रेम जब साधना के घर पहुँचा तो वो अपने घर के बाहर चूल्हे के सामने बैठी खाना बना रही थी. उसकी पीठ प्रेम की ओर थी इश्लीए उसे पता ही नही चला की प्रेम उसके पीछे खड़ा है. कुछ देर तक प्रेम साधना को चुपचाप खड़े हुवे देखता रहा. उसे समझ नही आ रहा था कि साधना को क्या कहे. स्वामी लोग भी कभी कभी अजीब दुविधा में पड़ जाते हैं. साधना तो अपने काम में खोई थी. चूल्हे में आग ठीक से जल नही रही थी इश्लीए वो फूँक मार रही थी चूल्हे में. धुंवा ही धुंवा हो रखा था. हाथो में उसके राख लगी थी. धुनवे के कारण बार बार आँखो में आँसू आते थे और वो हाथ से आँसू पोंछने की कोशिस करती थी. चेहरे पर भी राख लग गयी थी उसके. “बहुत व्यस्त हो काम में. मेरी तरफ मूड कर नही देखोगी क्या.” अचानक अपने पीछे आवाज़ सुन कर साधना घबरा गयी और फ़ौरन खड़ी हो गयी. वो एक शब्द भी नही बोली. शायद बोल ही नही पाई. उसने बस अपने दिल पर हाथ रख लिया. बहुत जोरो से धड़क रहा था दिल उसका. उसे विश्वास ही नही हो रहा था की प्रेम वाहा खड़ा है. “दिन में भी सपने देखने लगी हूँ मैं अब” साधना ने कहा और मूड कर वापिस चूल्हे के सामने बैठ गयी. “मैं सपना नही हूँ साधना, मैं तुमसे मिलने आया हूँ.” प्रेम ने कहा. अब तो साधना को विश्वास करना ही पड़ा. वो खड़ी हुई और बोली, “प्रेम तुम्हे बिल्कुल ठीक देख कर मुझे जो ख़ुसी मिल रही है मैं शब्दो में नही कह सकती. बिल्कुल ठीक हो ना तुम अब. कही कोई तकलीफ़ तो नही है.” “बस अब रुलाओगि क्या तुम मुझे. क्यों करती हो इतना प्यार मुझे तुम. मैं तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ साधना. नही हूँ मैं लायक तुम्हारे प्यार के.” प्रेम भावुक हो उठा. “मेरे हाथ में नही है प्रेम… नही है मेरे हाथ में. और तुम्हे प्यार करना तो शोभाग्य है मेरा.” “मैने तुम्हे डाँट कर भगा दिया था उस दिन. आज मुझे भीमा ने बताया कि कैसे तुम मुझे जंगल से लेकर आई. क्या करूँ मैं अब मैं जा रहा था अपने गुरु के पास. लेकिन अब ये जींदगी तो तुम्हारी हो गयी. कैसे जाउन्गा मैं अब. ” “तुम जाओ प्रेम. ख़ुसी ख़ुसी जाओ मेरा प्यार तुम्हारे पाँव की बेड़िया नही है. मैं शायद स्वार्थी हो गयी थी जो हर वक्त बस अपना ही सोचती थी. पर अब नही. प्यार सिर्फ़ मिलन का नाम नही है. बिछड़ना भी प्यार ही है. तुम हमेसा मेरे दिल में रहोगे. तुम्हे निकाल नही पाउन्गि दिल से. तुम ख़ुसी ख़ुसी जा सकते हो प्रेम. अब मैं समझ गयी हूँ की मुझे तुम्हारे मकसद में रोड़े नही अटकाने चाहिए. मुझसे जो भी भूल हुई उसके लिए मैं तुमसे माफी चाहती हूँ.” “क्या तुम सच कह रही हो?” “क्या कभी झूठ बोला है मैने तुमसे. तुम्हारे सर की कसम. जाओ तुम अपनी मंज़िल को हाँसिल करो. तुम्हारे लिए मेरा प्यार हमेसा बना रहेगा. मुझे तुमसे कोई गिला शिकवा नही है.” “मैं जा ही रहा था. अछा हुवा जो भीमा ने मुझे सब कुछ बताया और मैं तुमसे मिलने आ गया. अब मैं दिल पर बिना कोई बोझ लिए जा सकता हूँ. मुझे देर हो रही है क्या मैं निकलु.” “अगर ऐसा है तो तुरंत निकलो प्रेम वरना मुझे तुम्हारी चिंता रहेगी. बस जहा भी रहना अपना ख्याल रखना. भगवान तुम्हे वो सब दे जो तुम पाना चाहते हो.” “मैं किस मूह से तुम्हारा शुक्रिया करूँ.” “उसकी कोई ज़रूरत नही है प्रेम. मेरी जगह तुम होते तो तुम भी यही करते. जाओ अब देर मत करो.” “हां मैं चलता हूँ साधना. तुम भी अपना ख्याल रखना.” प्रेम मूड कर चल देता है. साधना उसे जाते हुवे देखती रहती है. प्रेम पीछे मूड कर देखता है तो दोनो प्यार भरी मुश्कान से देखते हैं एक दूसरे को. धीरे धीरे प्रेम साधना की आँखो से ओझल हो जाता है. ना चाहते हुवे भी साधना की आँखे भर आती है. “खुस रहना प्रेम. जहा भी रहो खुस रहना” साधना आँसुओ को पोंछते हुवे कहती है. …………………………………………………………………. जैसे जैसे दिन चढ़ता है मौसम करवट बदलने लगता है. आसमान में घने बादल छा जाते हैं. भीमा अपने खेतो में कुछ बो रहा था. “पहले तो अकेला था मैं. अब मेम्साब भी हैं. खूब मेहनत करनी होगी मुझे खेतो में.” भीमा आसमान की तरफ देखता है. “अफ लगता है बड़े जोरो की बारिश आने वाली है. जल्दी से घर चलता हूँ वरना मेम्साब के लिए जो तोहफा लिया है वो भीग जाएगा.” भीमा घर की तरफ भागता है. लेकिन रास्ते में ही जोरो की बारिश शुरू हो जाती है. लेकिन फिर भी वो खुद तो भीग जाता है लेकिन किसी तरह से तोहफे को भीगने से बचा लेता है. “आ गये तुम कहा रह गये थे?” भीमा ने तोहफा अपने पीछे छुपा रखा था. “पहले आँखे बंद कीजिए.” “क्या बात है?” “कीजिए तो मेम्साब.” रेणुका आँखे बंद कर लेती है. “अब हाथ आगे कीजिए.” रेणुका हैरत में हाथ भी आगे कर लेती है. भीमा रेणुका के हाथ में एक सुंदर सी साड़ी रख देता है. “इतनी प्यारी साड़ी…कहा से लाए.” “खरीद कर लाया हूँ मेम्साब.” रेणुका ख़ुसी से भीमा के गले लग जाती है. “मेरे कपड़े गीले हैं मेम्साब और मौसम भी खराब है. ऐसे में गले लगेंगी आप तो कही मैं उत्तेजित ना हो जाउ.” “घबराओ मत डंडा तैयार है.” “फिर ठीक है.” दोनो ठहाका लगा कर हँसने लगते हैं. “बहुत प्यार करने लगी हूँ मैं तुम्हे पता नही क्यों” रेणुका ने कहा. “मेरी भी कुछ ऐसी ही हालत थी. खेतो में हर पल आपका ही ख्याल आ रहा था. मेम्साब मीटा दो ना ये दूरिया. कब तक हम शादी का इंतेज़ार करेंगे.” भीमा के लिंग में उत्तेजना होने लगी थी और वो अब रेणुका को चुभ रहा था. “नही भीमा अभी नही. मैं तब तक तुम्हे खुद को समर्पित नही कर सकती जब तक हम पति पत्नी ना बन जाए. बुरा मत मान-ना लेकिन मेरे विचार में अभी ये सब ठीक नही है.” “क्या मैं आपको चूम सकता हूँ…होंटो पर.” “रोकूंगी नही तुम्हे पर बात तो वो भी वही रहेगी. क्या तुम थोड़ा और इंतेज़ार नही कर सकते. मैं बिना किसी ग्लानि के खुद को तुम्हे समर्पित करना चाहती हूँ. और ये तभी होगा जब तुम मेरी माँग में सिंदूर भर दोगे.” “माफ़ कीजिए मेम्साब…मैं उत्तेजित हो कर ये सब बोल बैठा. ये उत्तेजना बहका देती है मुझे. पर हम जैसे अब हैं वैसे तो रह सकते हैं. बड़ा सुकून मिलता है आपके करीब मेम्साब.” “हां इतना तो ठीक है. लेकिन दिक्कत यही है कि तुम्हारा वो बार बार तन जाता है मेरी तरफ और मुझे डर लगता है की कही हम बहक ना जायें. अगर उसे थाम लो तो हम एक दूसरे के करीब रह सकते हैं.” “वो तो मेरे बस में है ही नही आप जान ही गयी होगी अब तक. आप बस डंडा रखो हाथ में शायद कुछ बात बन जाए.” “नही अब मैं अपने होने वाले पति पर डंडा नही बर्साउन्गि.” “ऐसा है क्या मेम्साब. मुझे तो ऐसा लगता था कि मुझे पीटाई के लिए तैयार रहना होगा हर वक्त.” “ये मेम्साब कहना कब छोड़ोगे तुम. अब तुम्हारी मेम्साब नही हूँ मैं बीवी बन-ने वाली हूँ तुम्हारी.” “छूट जाएगी धीरे धीरे मेम्साब आओ थोडा यू ही बिस्तर पर लेट-ते हैं.” भीमा रेणुका को बाहों में लिए हुवे बिस्तर की तरफ बढ़ता है. रेणुका तुरंत भीमा की बाहों से आज़ाद हो जाती है और कहती है “ना बाबा बिस्तर पर नही जाउन्गि तुम्हारे साथ. मौसम बेईमान है और तुम्हारा वो तना हुवा है. तुम्हारे बस में कुछ है नही. कुछ ऐसा वैसा हो गया तो……ऐसे में तुमसे दूर ही रहना ठीक है.” “देखता हूँ कब तक बचेंगी आप. कभी तो आपको आना ही होगा मेरे बहुत…बहुत…बहुत करीब.” “ये शादी के बाद ही हो पाएगा.” “अफ कब होगी ये शादी” भीमा सर खुजाता हुवा बिस्तर पर गिर गया. “अरे गीला मत करो मेरा बिस्तर…उठो कपड़े बदलो पहले.” “आप वो साड़ी पहन के दीखाओ ना.” “उसके लिए तुम्हे बाहर जाना होगा और बाहर बारिश हो रही है.” “मैं आँखे बंद कर लेता हूँ आप पहन लो.” “नही नही तुम्हारी आँखे खुल गयी तो…बाद में पहनूँगी…चलो तुम कपड़े बदल लो.” “मैं कैसे बदलू आप हो ना यहा.” “ओह हां ये तो दिक्कत हो गयी.” “दिक्कत की कोई बात नही है. आप दूसरी तरफ घूम जाओ मैं अभी बदल लेता हूँ कपड़े.” “ठीक है लो मैं घूम गयी…हे..हे..हे.” भीमा कपड़े बदलने लगा. “क्यों ना मैं भी तुम्हे देख लू जैसे तुमने मुझे देखा था.” “नही मेम्साब ऐसा मत करना…बस थोड़ी देर रूको….हां बस हो गया. घूम जाओ आप अब.” “बड़ी जल्दी पहन लिए कपड़े.” “आपने डरा जो दिया था.” इश् तरह छोटी छोटी सुंदर सी घटनाए हो रही थी रेणुका और भीमा के बीच जिनसे उनका रिश्ता और प्यार दोनो और ज़्यादा निखरते जा रहे थे. एक अद्भुत प्यार पनप रहा था उनके बीच जो की बहुत ही सुंदर और अनमोल था. …………………………………………………………………………. प्रेम बारिश के कारण गाँव के बाहर एक बड़े से वृक्ष के नीचे बैठा था. रह रह कर उसे साधना का ख़याल आ रहा था. “साधना मुझसे बहुत उपर उठ गयी प्यार में. मैने उसे क्या कुछ नही कहा और वो बस अपने प्यार का दामन थामे रही. आज तो हद ही कर दी उसने. मुझे यकीन नही था की वो इस तरह मुझे अपने प्यार के बंधन से आज़ाद कर देगी. जा तो रहा हूँ मैं साधना को छोड़ कर अपने अध्यातम की ओर. पर क्या सच में अध्यातम साधना के प्यार से ज़्यादा अनमोल है. मैं क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा. ये किस दुविधा में डाल दिया भगवान ने मुझे. साधना ने मुझे आज़ाद तो कर दिया लेकिन अब लग रहा है कि मैं और ज़्यादा जाकड़ गया हूँ उसके प्यार में. प्यार बहुत अनमोल है उसका. वैसा प्यार शायद ही कोई कर पाएगा किसी को. मैं ऐसा प्यार छोड़ के जा रहा हूँ अध्यातम की और. पता नही कितना सही हूँ मैं. मगर ना जाने क्यों ऐसा लग रहा है कि कुछ बहुत ही अनमोल चीज़ पीछे गाँव में ही रह गयी. हे प्रभु मुझे माफ़ करना अगर मैं कुछ ग़लत सोच रहा हूँ. मुझे रास्ता दीखायें प्रभु मुझे कुछ समझ नही आ रहा कि मैं क्या करूँ.” क्रमशः.........................
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