RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
प्यार हो तो ऐसा पार्ट--19
गतान्क से आगे......................
साधना भी परेशान थी. उसकी परेशानी का कारण ये था कि बारिश बहुत तेज हो रही थी और उसका प्रेम सफ़र पे निकला हुवा था.
“क्या करूँ मैं भीग जाएगा प्रेम इस बारिश में. ये बारिश भी आज ही होनी थी. कुछ दिन रुक नही सकती थी.” बहुत ही गहरा प्यार था साधना का.
प्रेम के दिमाग़ में अजीब कसम्कश चल रही थी. एक स्वामी उलझा हुवा लग रहा था. ऐसा अन्तेर द्वन्ध उसने अपनी जींदगी में पहले कभी नही देखा था. ये सब स्वाभाविक भी था. प्रेम समझ चुका था कि साधना का प्यार बहुत अनमोल है जिसका कोई मुल्य नही है. लेकिन प्रेम अपने अध्यातम से भटकने के लिए भी कदापि तैयार नही था. पर एक बात ज़रूर थी. पहले साधना का प्यार उसके अध्यातम के आगे कुछ नही था. लेकिन अब वो प्यार अध्यातम के आगे सीना ताने खड़ा था. यही प्रेम की उलझन का कारण था.
साधना तो यही दुवा कर रही थी कि बारिश थम जाए और प्रेम सुख शांति से अपना सफ़र पूरा करे. वो भाग कर प्रेम के सर पर अपना आँचल रख देना चाहती थी ताकि वो बारिश से बचा रहे. पर वो ये सोच ही सकती थी. इश्लीए बारिश के थमने की दुवा कर रही थी बार-बार.
बारिश थम गयी और प्रेम अपने जिगर को कड़ा करके अपने सफ़र पर निकल पड़ा. "यही माया है प्रेम जो इंसान को जीवन मारन के चक्कर में फन्साति है. प्यार के परलोभन को त्याग कर मुझे आगे बढ़ना होगा." प्रेम चलते हुवे सोच रहा था.
प्रेम बढ़ता गया आगे और 2 दिन में अपने गुरु के आश्रम पहुँच गया.
प्रेम के गुरु बहुत ज्ञानी थे. प्रेम ने अध्यातम का सारा ज्ञान उन्ही से सीखा था. उन्ही के साथ वो 3 साल पहले गाँव छोड़ कर आया था. वो केसव पंडित को बिना बताए चल पड़ा था अपने गुरु के साथ क्योंकि वो जानता था कि उसके पिता उसे कभी नही जाने देंगे.
आश्रम पहुच कर प्रेम गाँव की सारी बाते भूल कर ध्यान और स्माधि में लीन हो गया. ज़्यादा तर वक्त उसका मेडिटेशन में ही गुज़रता था.
गाँव में साधना भी अपने जीवन में कुछ अद्भुत कर रही थी. प्रेम के अध्यातम से प्रेरित हो कर उसका भी झुकाव अध्यातम की ओर होने लगा था. ऐसा इस लिए हुवा क्योंकि वो उत्शुक थी ये जान-ने के लिए कि ऐसा क्या है अध्यातम में जो कि उसका प्रेम उसके प्यार को त्याग कर चला गया. वो घर के सभी काम करके रात को जल्दी अपने कमरे में आ जाती थी ताकि स्माधि में लीन हो सके. अपनी चारपाई के पास ही साधना एक चटाई बिछा कर उस पर आँखे बंद करके बैठ जाती थी. सीखा नही था उसने किसी से कुछ भी. बस खुद ही लगी रहती थी. लेकिन उसे ऐसा कुछ ख़ास अहसास नही हुवा, जिसके लिए वो ध्यान और स्माधि को जारी रखे. लेकिन उसकी उत्शुकता ने उसे रुकने नही दिया और वो रोज हर हाल में आँखे बंद करके बैठने लगी.
कहते हैं कि प्यार करने वाले को आँखे बंद करके अपने प्रेमी का चेहरा दीखाई देता है. ऐसा ही रोज होता था साधना के साथ. वो रोज आँखे बंद करती और रोज उसे प्रेम ही दीखाई देता. उसे पता ही नही चला और उसने प्रेम पर ही ध्यान लगाना शुरू कर दिया. एक दिन वो प्रेम में इतनी लीन हो गयी कि स्माधि में बहुत गहरे उतर गयी. ये पहली बार हुवा था. जब उसने आँखे खोली तो उसे अहसास हुवा कि वो जन्नत की सैर करके आई है. बहुत शुकून और शांति का अहसास हुवा था उसे.
फिर क्या था उसे तो रोज ही प्रेम पर ध्यान लगाने का चस्का लग गया. और इस तरह प्रेम-साधना की शुरूवात हुई. ये ऐसी प्रेम-साधना थी जिसने साधना को अध्यातम में प्रेम से भी कही आगे निकाल दिया था. पर साधना को इन बातो का कोई अहसास नही था. वो तो बहुत खुस थी प्रेम-साधना के कारण. अपने प्रेम के करीब जो महसूस करती थी वो खुद को प्रेम-साधना करके.
प्रेम तो साधना की प्रेम-साधना से बिल्कुल अंजान था. लेकिन वो रोज अपने अंदर कुछ अजीब सी हलचल महसूस करता था. जब वो स्माधि में लीन होता था तो उसे ऐसा लगता था कि कोई उसे खींच रहा है…पता नही कहा. आँखे खुलने पर भी उसे इस खींचाव का अहसास रहता था. लेकिन वो इसका कारण नही जान पा रहा था. प्रेम ने अपने गुरु से भी बात की इस बारे में लेकिन वो भी कुछ स्माधान नही बता पाए.
“हर किसी को स्माधि में अलग अहसास होते हैं. तुम अपने ध्यान में लगे रहो ये खींचाव चला जाएगा खुद ही. मन में कोई शंका मत आने तो. शंका ही इंसान को डुबाती है.” प्रेम के गुरु ने कहा.
प्रेम ने एक रात स्माधि में ना बैठने का निर्णय लिया. वो उस रात चैन से सोना चाहता था. दिल व्यथित जो था बेचारे का. सो गया ध्यान व्यान सब छोड़ कर. लेकिन आधी रात को उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस हुवा. उसने आँखे खोली तो दंग रह गया. उसने देखा कि साधना उशके पैरो पर सर टीका कर बैठी है. इतना हैरान हुवा वो कि फ़ौरन अपनी टांगे सिकोड ली उसने. साधना ने उसकी तरफ देखा और मुश्कूराते हुवे वाहा से विलुप्त हो गयी.
“ये क्या था साधना यहा कैसे आई. और वो गायब कहा हो गयी.” प्रेम तो अचंभित रह गया. बात ही कुछ ऐसी थी.
.................................................
मंदिर में शादी हो रही थी. मदन और वर्षा अग्नि के फेरे ले रहे थे. बड़ी मुश्किल से माना था केसव पंडित शादी करवाने के लिए. गाँव में उसकी मोनॉपली थी. इश्लीए ज़्यादा अकड़ थी उसकी. मोटी रकम झाड़ी उसने मदन से तब कही शादी करवाने के लिए तैयार हुवा.
साधना, मदन और वर्षा को फेरे लेते देख बहुत खुस थी. मधाम मधाम मुश्कुरा रही थी हर पल वो उन्हे देख कर.
भीमा और रेणुका भी खड़े थे वही पास ही. रेणुका भी वर्षा के लिए खुस थी. वर्षा का कन्यादान भीमा ने किया.
जब फेरे पूरे हुवे तो रेणुका ने वर्षा को गले लगा लिया.
“भाबी आप यहा आई बहुत अछा लगा मुझे.” वर्षा ने कहा.
“क्यों नही आती मैं. मुझे ख़ुसी है कि तू अपने मन पसंद लड़के से शादी कर रही है.” रेणुका ने कहा.
“मदन ने मुझे बताया कि आप भी शादी कर रही हैं भीमा से.” वर्षा ने कहा.
“हां कर रही हूँ. तुम्हे बुरा तो नही लगेगा ना.” रेणुका ने कहा.
“बुरा क्यों लगेगा भाभी भीमा बहुत अछा है. आप लोग भी अभी निपटा दो ने ये काम यही पर. देर क्यों कर रहे हैं. सब लोग भी हैं यहा.” वर्षा ने कहा.
रेणुका ने भीमा की तरफ देखा.
“ये तो बहुत अछा रहेगा. एक साथ 2 प्रेम विवाह इस से अछी बात क्या हो सकती है.” भीमा ने कहा.
“मैं पंडित जी से बात करता हूँ…तुम दोनो की शादी के बाद ही हम घर जाएँगे.” मदन ने कहा.
केशव पंडित मदन और वर्षा के फेरे कराने के बाद भोले नाथ की मूर्ति के सामने आरती कर रहा था.
“पंडित जी आपसे कुछ बात करनी है ज़रा आएँगे.” मदन ने कहा.
केशव पंडित बाहर आया और मदन के साथ वही आ गया जहा रेणुका, भीमा, साधना और वर्षा खड़े थे.
“बताओ क्या बात है?” केसव पंडित ने पूछा.
“आप भीमा और रेणुका जी के भी फेरे करवा दीजिए. साथ साथ इनका भी काम निपट जाएगा.” मदन ने कहा.
"शादी और इन दोनो की. मैं इस पाप का भागीदार नही बनूंगा. ठाकुर के घर की बहू होकर ये शादी करने चली है वो भी इस जैसे निर्लज्ज और अधर्मी के साथ. ये पाप मैं नही होने दूँगा." केशव पंडित ने कहा.
रेणुका और भीमा तो ये सुनते ही स्तब्ध रह गये. उनके चेहरे उतर गये ऐसे कठोर शब्द शन कर. वो दोनो ही कुछ बोल नही पाए. उनके प्यार को पाप का नाम दिया गया था. दोनो बहुत व्यथित थे.
साधना उनकी हालत समझ गयी और बोली, “ये क्या बोल रहे हैं आप पंडित जी. ये प्रेम करते हैं आपस में. और प्रेम करना कोई पाप नही है. और रेणुका जी अब ठाकुर के घर की बहू नही हैं. अब ये आज़ाद हैं उस हवेली से. इनकी शादी कराना पुन्य का काम है.”
“अब तू मुझे बताएगी कि क्या पाप है और क्या पुन्य है. दो कौड़ी की लड़की मुझे पाठ पढ़ा रही है.” केशव पंडित चील्लया.
"प्यार करते हैं हम एक दूसरे से कोई पाप नही. ऐसी बाते मत करो पंडित जी. प्रार्थना है आपसे कि ये शादी करवा दे. आप जो दक्षिणा कहेंगे दे दूँगा." भीमा ने कहा.
"अछा ऐसा है क्या जाओ हज़ार किलो सोना ले आओ. करवा दूँगा शादी तुम्हारी. " केसव पंडित बोला.
"हज़ार किलो सोना, क्यों मज़ाक कर रहे हैं पंडित जी. इतनी बड़ी झोली ना फैलाए कि हम भर ना पाए." भीमा ने कहा.
"तुम मेरी बात समझे नही. मेरा कहने का मतलब ये है कि तुम दो पापियों की शादी मैं नही कर्वाउन्गा. दफ़ा हो जाओ यहा से." केसव पंडित ने गुस्से में कहा.
"चलो भीमा इनसे कुछ भी कहने का फ़ायडा नही है." रेणुका ने भीमा का हाथ पकड़ कर कहा.
“हां हां निकल जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.
“वर्षा तुम जाओ अपने पिया के घर. हमारी चिंता मत करो. शादी हुई है तुम्हारी आज. सब कुछ भुला कर अपनी गृहस्ती में परवेश करो. भगवान ने चाहा तो हमारी शादी जल्द होगी.”
“कभी नही होगी तुम्हारी शादी. मैं देखता हूँ कौन कराता है शादी तुम्हारी. दूसरे गाँव के पंडित भी नही करेंगे ये पाप. तुम्हारे लिए यही अछा है कि किसी कुवें में जा कर डूब मरो.” केशव पंडित ने कहा.
“आप अपनी हद पार कर रहें हैं पंडित जी. ये आपको सोभा नही देता.” साधना ने कहा.
“दफ़ा हो जाओ तुम सब लोग यहा से. वर्षा और मदन की शादी करा कर भी ग़लती कर ली मैने. निकल जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.
भीमा को बहुत गुस्सा आया और वो दाँत भींच कर केसव पंडित की तरफ बढ़ा.
“आज तुझे पटकनी लगानी ही पड़ेगी पोंगे पंडित.” भीमा ने केसव पंडित की तरफ बढ़ते हुवे कहा.
पर रेणुका ने भीमा का हाथ पकड़ लिया, “रहने दो…चलो चलते हैं यहा से.”
"भगवान सब देख रहा है पोंगे पंडित...तुझे छोड़ेंगे नही वो." भीमा ने कहा और वापिस मूड कर चलने लगा मंदिर से बाहर की ओर.
"दफ़ा हो जाओ...निकल जाओ अभी इस मंदिर से." केसव पंडित चील्लया.
"रूको मैं करूँगा क्रिया पाठ तुम्हारी शादी का....और मैं धन्य समझूंगा खुद को." भीमा और रेणुका को अपने पीछे से आवाज़ आई. केशव पंडित तो बोलने वाले को देखता ही रह गया.
"स्वामी जी आप" भीमा की आँखे छलक गयी प्रेम को देख कर.
"हां मैं. तुम दोनो तैयार हो कर आओ अभी. मैं अभी और इसी वक्त कर्वाउन्गा ये शादी. बहुत देर से देख रहा था छुप कर अपने पिता के इस तमासे को. यकीन नही हो रहा था मुझे." प्रेम ने कहा.
"बहुत खूब बेटा. अपने पिता को ना दुवा ना सलाम और इन पापियों के लिए इतना कुछ." केसव पंडित ने कहा.
"ये प्रेमी हैं पिता जी पापी नही हैं. प्यार का अपमान ना करें इस मंदिर में खड़े हो कर. प्यार और भगवान दोनो एक ही हैं. प्यार का अपमान भगवान का अपमान होगा." प्रेम ने कहा.
"मेरे होते हुवे इस मंदिर में ये अनर्थ नही होने दूँगा मैं." केसव पंडित ने कहा.
"फिर मुझे अफ़सोस है कि आपको यहा से जाना पड़ेगा. ये शादी तो मैं करवा कर रहूँगा." प्रेम ने दृढ़ता से कहा.
रेणुका और भीमा के लिए इस से अछा क्या हो सकता था कि प्रेम खुद उनकी शादी करवाए. उनकी तो आँखे ही छलक उठी.
"स्वामी जी आपको देख कर बहुत ख़ुसी हुई है. मेरे पास शब्द नही हैं कुछ कहने को."
"बस भीमा देर मत करो तुम दोनो तैयार हो कर आओ. जितनी जल्दी ये शुभ कार्य संपन्न हो जाए अछा है."
"जैसा आप कहें स्वामी जी हम थोड़ी देर में आते हैं." भीमा ने कहा.
“हम सब यही तुम्हारा इंतेज़ार कर रहें हैं, जल्दी आना तुम दोनो.” साधना ने मुश्कूराते हुवे कहा.
“साधना कैसी हो तुम?”
“मैं ठीक हूँ प्रेम तुम कैसे हो. मुझे तो लगा था कि फिर कभी मुलाकात नही होगी तुमसे. आज तुम्हे देख कर बहुत अछा लगा.” साधना ने मुस्कुराते हुवे कहा
“प्रेम हमसे भी मिलोगे या नही. हमारी शादी हुई है आज.” मदन ने कहा.
“मैं खुस हू तुम दोनो के लिए. काश वक्त पर आ जाता तो तुम्हे फेरे लेते हुवे देख लेता.”
“कोई बात नही आप भीमा और रेणुका की शादी करवा दो बस हमें बहुत ख़ुसी होगी.” वर्षा ने कहा.
“शादी हो ही गयी समझो. जैसे ही वो आते हैं मैं फेरे दिलवा दूँगा. साधना तुमसे कुछ बात करनी थी…ज़रा एक तरफ आओगी.” प्रेम ने कहा.
साधना हैरत में पड़ गयी कि पता नही क्या हो गया.
|