RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
वो मंदिर के एक कोने में आ गये. केशव पंडित तो पाँव पटक कर मंदिर से निकल गया था.
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रेणुका और भीमा आँखो में चमक और दिल में ख़ुसी लिए वाहा से चल देते हैं. दोनो बार बार एक दूसरे की तरफ देख कर मुश्कुरा देते हैं.
"ऐसे क्या देख रहे हो भीमा सामने देख कर चलो." रेणुका ने कहा.
"बहुत खुस लग रही हैं आप, विश्वास दिलाता हूँ कि आपको हमेसा खुस रखूँगा."
"मुझे पता है भीमा, पता है..."
बातो-बातो में घर आ जाता है.
"पहले आप तैयार हो जाओ मेम्साब...मैं बाहर इंतेज़ार करता हूँ. मुझे ज़्यादा वक्त नही लगेगा...आपके बाद मैं तैयार हो जाउन्गा. "
"आज तो मेम्साब मत कहो..."
"ज़ुबान पर यही चढ़ा हुवा है. रहने दीजिए ना क्या दिक्कत है."
"मुझे दिक्कत है. बीवी बन-ने जा रही हूँ तुम्हारी अगर तुम मेम्साब-मेम्साब करोगे तो अछा नही लगेगा मुझे."
"ठीक है आप जल्दी तैयार हो जाओ स्वामी जी हमारा इंतेज़ार कर रहे हैं."
"ठीक है...कही से झाँकना मत."
"नही झान्कुन्गा. झाँकने की जगह ही नही है वैसे भी. आप निश्चिंत रहें."
रेणुका ने कोई आधा घंटा लगाया तैयार होने में. लाल सारी कुछ ऐसी जच रही थी कि कुछ कहा नही जा सकता. जब रेणुका ने दरवाजा खोला और भीमा अंदर आया तो भीमा की तो आँखे फटी की फटी रह गयी.
"मेरी नज़र ना लग जाए आपको...कितनी सुंदर लग रही हैं आप इस सारी में."
रेणुका तो देख ही नही पाई भीमा को. उसने नज़रे झुका ली. शरमाने लगी थी अब वो भीमा से. वो शरम देखते ही बनती थी.
“अब मैं तैयार हो जाउ. आपको बाहर रुकना होगा थोड़ी देर.” भीमा ने कहा.
“हां बिल्कुल…जल्दी तैयार हो जाओ.”
भीमा भी जल्दी से तैयार हुवा और दोनो मंदिर की तरफ चल दिए. मंदिर की तरफ चलते वक्त पाँव ज़मीन पर नही टिक रहे थे दोनो के. बात ही कुछ ऐसी थी.
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“क्या बात है प्रेम. तुम कुछ व्यथित से लग रहे हो.” साधना ने पूछा.
“क्या तुम ऐसा कुछ कर रही हो जिस से मैं व्यथित हो सकता हूँ.” प्रेम ने पूछा.
“नही प्रेम. तुम्हे व्यथित कैसे कर सकती हूँ मैं.”
“2 दिन पहले तुम मेरे पास आई थी आश्रम में. मेरे पाँव पर सर रख कर बैठी थी. जब मैं उठा नींद से तो तुम्हे देखा. लेकिन अगले ही पल तुम गायब हो गयी.”
ये सुनते ही साधना के चेहरे का रंग उड़ गया. वो प्रेम के पैरो में बैठ गयी. “क्या सच में ऐसा हुवा था. मुझे लगा वो कोई भ्रम है मेरा. मुझे माफ़ करदो प्रेम. मेरा कोई इरादा नही था तुम्हे व्यथित करने का. मैं बस स्माधि में लीन थी. कब तुम्हारे पास पहुँच गयी पता ही नही चला.” साधना की आँखे टपक रही थी बोलते हुवे.
साधना को यू प्रेम के पैरो में पड़े देख मदन और वर्षा हैरान रह गये. “क्या बात है मदन. साधना स्वामी जी के पैरो में बैठ कर रो क्यों रही है…आओ देखते हैं.”
“नही वाहा मत जाओ. इन दोनो कि लीला यही जाने. बहुत प्यार करती है साधना प्रेम से बचपन से. शायद कोई गंभीर बात है. लेकिन उनके बीच में नही पड़ सकते हम.” मदन ने कहा.
“उठो साधना रो क्यों रही हो.”
“मेरा इरादा तुम्हे दुख देने का नही था. आज तुम वापिस व्यथित हो कर आए हो. इस से बड़ा पाप नही कर सकती मैं.” साधना ने कहा.
“तुमने कोई पाप नही किया पगली. समाधि में तुमने वो उँचाई पाई है जिस से अभी तक मेरे गुरु भी वंचित हैं. मैने सुना था कि लोग स्माधि में एक जगह से दूसरी जगह पहुँच जाते हैं. आज देख भी लिया. क्या बताओगि मुझे कि कैसे किया ये चमत्कार तुमने. उठो और बताओ मुझे.”
साधना उठती है और अपने आँसू पोंछ कर बोलती है, “प्रेम मैं तो तुम में खो जाती थी आँखे बंद करके. बाकी मुझे कुछ पता नही. बहुत शांत हो जाती थी मैं. इस क्रिया को प्रेम-साधना नाम दिया है मैने. ये है भी प्रेम साधना ही क्योंकि प्यार शामिल है इसमें. और कुछ नही कह सकती क्योंकि मुझ अग्यानि को और कुछ नही पता. 2 दिन पहले मैने खुद को तुम्हारे कदमो में बैठे पाया. बहुत ख़ुसी हुई थी मुझे. मुझे लगा स्माधि में ये भाव आ गया है कि मैं तुम्हारे चरनो में बैठी हूँ. लेकिन आज तुमने बताया तो पता चला कि मैं सच में तुम्हारे पास पहुँच गयी थी. ये कैसे हुवा मुझे नही पता.”
“अब मैं समझा कि क्यों मुझे स्माधि के दौरान खींचाव महसूस होता है. तुम यहा गाँव में बैठी प्रेम-साधना जो करती थी.”
“तुम्हे जो दुख और परेशानी हुई उसके लिए मुझे माफ़ कर दो प्रेम. आगे से ऐसा नही होगा. छोड़ दूँगी मैं वो चीज़ जो तुम्हे परेशानी दे.”
“एक मैं हूँ जिसने अध्यातम के लिए तुम्हे छोड़ दिया. एक तुम हो जो मेरे लिए, मेरे सुख के लिए अध्यातम छोड़ देना चाहती हो. क्या कहूँ अब मैं. तुम बहुत आगे निकल गयी अध्यातम में साधना. इतनी आगे कि शायद मैं वाहा तक कभी नही पहुँच पाउन्गा…मुझे अपना शिस्य बना लो साधना अपने गुरु को छोड़ आया हूँ मैं. मुझे भी ये प्रेम-साधना करनी है. मैं आ गया हूँ तुम्हारे पास अपना लो मुझे. मैने बहुत बड़ी भूल की थी जो प्यार को अध्यात्म के आगे कम आँकता था. तुमने दीखा दिया आज की प्यार का रास्ता भी भगवान तक ही ले जाता है. मुझे अपना लो साधना…आ गया हूँ मैं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास और अब तुम्हारा गुलाम हूँ. मुझे स्वीकार कर लो अपनी जींदगी में.”
साधना तो रो ही पड़ी ये सब सुन कर. उसे समझ ही नही आ रहा था कि प्रेम क्या बोल रहा है. वो समझती भी कैसे. अध्यातम की भासा नही जानती थी वो. वो तो अपने प्रेम की प्रेम-साधना करती थी बस. बाकी उसे कुछ नही पता था.
“क्या हुवा तुम कुछ बोल नही रही. क्या मुझे नही अपनाओगी.”
“नही प्रेम ऐसा मत कहो. मैं तो तुम्हारे चरनो में रहना चाहती हूँ सारी उमर. तुम ही मेरे भगवान हो.”
“शादी करोगी अपने भगवान से.” प्रेम ने पूछा.
साधना कहती भी तो क्या कहती. बस आँखो में आँसू लिए चिपक गयी प्रेम से. उसे ज़रा भी ध्यान नही आया कि उसकी प्रेम-साधना के कारण ही उसका प्यार परवान चढ़ रहा है. वो इन बातो से अंजान थी. उसे प्रेम मिल गया बस इशी में खुस थी.
प्रेम साधना का हाथ पकड़ कर साधना को मदन और वर्षा के पास ले आया.
“तुम लोगो को थोड़ी देर और रुकना होगा.” प्रेम ने कहा.
“क्या हुवा प्रेम, क्या बात है. और साधना रो क्यों रही है.” मदन ने कहा.
“कुछ नही ये प्यार के आँसू है इसके. हम दोनो भी शादी करेंगे आज. तुम्हे रुकना होगा थोड़ी देर और.”
“अचानक ये सब कैसे.” मदन और वर्षा तो हैरान ही रह गये.
“वो हमारे बीच की बात है. तुम बस रूको यहा.” प्रेम ने कहा.
“ पर तुम दोनो की शादी कौन करवाएगा. पंडित जी तो कभी तैयार नही होंगे.” मदन ने कहा.
“उन्हे मैं मना कर लाता हूँ. तुम साधना को तैयार करके लाओ. ये थोडा भावुक हो रही है.”
वर्षा ने साधना का हाथ पकड़ा और कहा, “आओ मैं तैयार करूँगी अपनी ननद को. चलो घर चलते हैं. मदन तुम यही रूको मैं साधना को लेकर अभी आती हूँ.”
वर्षा साधना को लेकर चली गयी और प्रेम अपने पिता से मिलने अपने घर की तरफ निकल लिया.
“आ गये तुम. करवा दी उन दोनो की शादी? मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगा.” केशव पंडित ने कहा.
“शादी करवाई नही है. आपके आशीर्वाद के बिना अधूरी रहेगी शादी पिता जी. चलिए मेरे साथ आपको मेरी शादी भी करवानी है.”
“ये क्या बोल रहे हो?” केसव पंडित हैरानी में पूछता है.
“मेरी जींदगी साधना से जुड़ी हुई है पिता जी. मैं चाह कर भी उसे खुद से अलग नही कर पाया. आज मैं उसके साथ शादी के बंधन में बँध जाना चाहता हूँ. और ये शुभ काम आपको ही करना होगा.”
“बेटा मैं नही कर्वाउन्गा ये शादी. मुझे वो लड़की पसंद नही है. और शादी करनी ही है तो किसी पंडित से करो.”
“मैं शादी साधना से करना चाहता हूँ. मेरी शादी करने में रूचि नही है. बस साधना के साथ बंधना चाहता हूँ प्रेम के बंधन में. आप आशीर्वाद देंगे तो ख़ुसी होगी मुझे. आपके आशीर्वाद के बिना कुछ नही होगा.”
“मैं ऐसा कोई आशीर्वाद नही दूँगा. चले जाओ यहा से.” केसव पंडित ने कहा.
“मैं मंदिर में साधना के साथ आपका इंतेज़ार कर रहा हूँ पिता जी.” प्रेम कह कर घर से निकल जाता है.
भीमा और रेणुका मंदिर पहुँच गये.
क्रमशः.........................
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