Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
09-12-2018, 11:46 PM,
#26
RE: Incest Porn Kahani उस प्यार की तलाश में
अदिति- बंद करो अपनी ये बकवास........मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं है तुम्हारे बारे में और ना ही उस लड़की के बारे में कुछ जानने की.........मैं जैसे ही फिर मूडी अपने कमरे की तरफ वैसे ही विशाल ने झट से मेरा एक हाथ थाम लिया........मैं पहले से ही गुस्से में चूर थी उसका इस तरह से मेरा हाथ पकड़ना मेरे गुस्से को जैसे और मानो भड़का सा दिया......... मैं फ़ौरन उसकी तरफ पलटकर उसकी आँखों में घूर्ने लगी और अगले ही पल मैने एक ज़ोरदार थप्पड़ विशाल के गालों पर कसकर जड़ दिया.....थप्पड़ इतना ज़ोरदार था कि उसकी गूँज पूरे कमरे में सॉफ सुनाई देने लगी......

विशाल चुप छाप अपनी गर्दन नीचे झुकाए मेरे सामने खड़ा रहा........मेरा गुस्सा अब बहुत हद तक कम हो चुका था......फिर मेरी नज़र उस काग़ज़ के टुकड़े पर गयी जो अभी कुछ देर पहले मैने विशाल के मूह पर मारी थी.......मैने उस काग़ज़ को अपने हाथों में लिया और उसे खोलकर पढ़ने लगी.......जैसे जैसे मैं वो सब कुछ पढ़ रही थी वैसे वैसे मुझे झटके पर झटके लग रहे थे.......विशाल ने उस काग़ज़ में मेरे बारे में लिखा था.........वो भी अब मुझे चाहने लगा था मगर बेहन की रूप में नहीं बल्कि प्रेमिका के रूप में........

शायद विशाल को ऐसा लगा कि ये सब पढ़ने के बाद मैं उसके साथ ऐसा सुलूक कर रही हूँ और उसका ये सोचना बहुत हद तक सही था......मगर सच तो ये था कि मैं अब उसके सामने ही वो सब कुछ पढ़ रही थी जो उसने मेरे लिए लिखा था.......मैं पढ़ती गयी और वैसे वैसे मेरी आँखों से आँसुओ की धारा भी और तेज़ होती गयी.......

जब मैने वो सब पढ़ लिया तो मैं वही खामोश होकर विशाल के चेहरे की ओर एक टक देखने लगी......विशाल अब भी मेरे सामने अपनी गर्दन नीचे झुकाए खड़ा था......

अदिति- ये सब क्या है विशाल.........तो तुम ये कहना चाहते हो कि तुम्हें मुझसे प्यार हो गया है........ये जानते हुए भी कि तुम्हारा और मेरा रिश्ता क्या है......प्यार तो मैं भी तुमसे बहुत करती हूँ मगर.............इतना कहकर मैं खामोश हो गयी..........

विशाल फिर मेरे नज़दीक आया और मेरे सामने आकर खड़ा हो गया-दीदी जो मुझे ठीक लगा वो मैने इस काग़ज़ के ज़रिए आपसे कह दिया.......मगर सच तो ये है कि आप ही वो लड़की है जिसके बारे में मैं रात दिन सोचता रहता हूँ.......ये जानते हुए भी कि आप मेरी बेहन है..........ऐसा पहही बार किसी के साथ हुआ होगा कि किसे लड़के ने अपनी बेहन को लव लेटर दिया हो......सुनने में ये सब अजीब लगता है मगर सच तो ये है कि मैं आपसे अब दूर नहीं रह सकता.........आप मुझे ग़लत मत समझिएगा......

विशाल की बातों को सुनकर मुझे ये समझ नहीं आया कि मैं उसकी बातों से खुस होउँ या दुखी......मगर यही तो मैं चाहती थी......मैं भी तो विशाल को चाहने लगी थी.......फिर अब मैं आगे क्यों नहीं बढ़ रही थी......क्यों मैं उसके सारे सवालों का जवाब नहीं दे रही थी.........

विशाल- दीदी जाने अंजाने में मैने अगर आपका दिल दुखाया हो तो आइ अम सॉरी.......फिर विशाल मेरे सामने से होता हुआ कमरे से बाहर जाने लगा तभी मेरे अंदर की आग अचानक से भड़क उठी और मैने विशाल का हाथ फ़ौरन थाम लिया......और उसे अपनी तरफ खीच लिया.......मेरे इस तरह खीचने से विशाल फ़ौरन रुक गया और वो अब मेरे सामने आकर खड़ा हो गया........

मैं उसकी आँखों की तरफ बड़े गौर से देखने लगी......उसकी दिल की बातें अब मैं उसकी आँखों से सॉफ पढ़ सकती थी.......विशाल ने इस बार अपनी नज़रें नीचे नहीं की और मेरी आँखों में ऐसे ही घूरता रहा.......मैं भी एक पल के लिए उसी इन नशीली आँखों में मानो डूब सी गयी.......अगले ही पल मैं उसके और करीब गयी और मैने फ़ौरन विशाल के सिर पर अपना एक हाथ रखा और उसके होंटो को अपने होंठो के और करीब ले गयी.........इधर मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था........अब मेरे होंठो और विशाल के होंठो के बीच चन्द फ़ासले थे.......

मैं कुछ पल तक विशाल की आँखों में देखती रही फिर मैने अपना लब बहुत आहिस्ता से विशाल के लबों पर रख दिए........ऐसा पहली बार था जब मैं किसी मर्द के होंठ चूम रही थी ये एहसास मेरे लिए बिल्कुल नया था......जैसे ही मैने विशाल के लबों को छुआ मेरी आँखे खुद ब खुद बंद हो गयी.......मैं उस पल में सब कुछ भूल चुकी थी .......हमारे बीच सारे रिश्ते नाते.......मान मर्यादा......मुझे ये भी होश नहीं था कि मैं क्या कर रही हूँ.....बस मुझे ये होश था कि मैं अपने अंदर की आग को जल्द से जल्द बुझाना चाहती हूँ......चाहे वो ग़लत कदम ही क्यों ना हो......

विशाल के लिए ये बहुत बड़ा झटका था......वो मेरे अंदर इस तरह के बदलाव को बिकलूल नहीं समझ पा रहा था......मगर उस वक़्त वो भी सब कुछ भूल चुका था......वो भी अब मुझ में पूरी तरह से डूबना चाहता था.......मेरी जवानी का रूस पीना चाहता था......देखना ये था कि आगे ये हवस की आग हम दोनो को कौन से मोड़ पर लाकर खड़ा करती है.

मैं इस वक़्त सब कुछ भूल चुकी थी.........मुझे ये भी होश ना था कि सामने मेरा अपना भाई है......ना की कोई प्रेमी......मेरे लब इस वक़्त विशाल के लबों को छू रहें थे......मैं बहुत आहिस्ता से विशाल के नचले होंठ को अपने दाँतों के बीच दबाकर उसे हौले हौले काट रही थी......मेरी गरम साँसें विशाल भी अपने अंदर पल पल महसूस कर रहा था.........उसकी साँसें भी मेरी रगों में धीरे धीरे घुल रही थी.....अब मैं पूरी तरह से मदहोश होने लगी थी.......धीरे धीरे मेरे बदन से अब मेरा कंट्रोल मानो ख़तम सा होता जा रहा था......मेरी आँखें इस वक़्त बंद थी मगर मैं इस वक़्त अपने आप को जैसे जन्नत में महसूस कर रही थी.......

विशाल कुछ देर तक वैसे ही खामोशी से मेरे सामने खड़ा रहा फिर उसने भी अपने होंठो को धीरे धीरे हरकत करनी शुरू कर दी......उसने मेरे गुलाबी होंठो को धीरे धीरे चूसना शुरू कर दिया.........अब वो भी मेरे नीचले होंठ को अपने दाँतों के बीच दबाकर उसे हौले हौले काट रहा था......उसकी जीभ मेरी जीभ से बार बार टच हो रही थी.......जीभ के टच होने से मेरे बदन में मानो एक आग सी लगती जा रही थी........मेरे अंदर की आग अब धीरे धीरे सुलग रही थी......मैं लगभग अपने आपको विशाल के हवाले कर चुकी थी.......करीब दो मिनिट तक विशाल मेरे लबों को ऐसे ही चूस्ता रहा और इधेर मैं भी उसका पूरा साथ देती रही.........अब मेरा बदन किसी आग की भट्टी के समान तप रहा था.......

तभी अचानक मेरे दिमाग़ में कुछ ख्याल आया और मैं फ़ौरन विशाल से दूर हो गयी......मैने फ़ौरन अपनी आँखें खोली तो उस वक़्त मेरी आँखें सुर्ख लाल हो चुकी थी......मैं विशाल की आँखों में देखने लगी........वो भी मेरी इन आँखों को घूर रहा था.......एक पल बाद मैने झट से अपनी नज़रें नीचे की और मैने विशाल को अपने आप से दूर किया और लगभग वहाँ से भागते हुए अपने कमरे में आ गयी और अंदर आकर मैने दरवाज़ा बंद कर लिया......इस वक़्त मेरा दिल बहुत ज़ोरों से धड़क रहा था......मेरी साँसें बहुत ज़ोरों से चल रही थी........घबराहट और बेचैनी की वजह से मेरे चेहरे पर पसीने की कुछ बूँदें भी सॉफ नज़र आ रही थी.......

मैं इस वक़्त दरवाज़े से सट कर खड़ी थी........मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि जो कुछ मेरे साथ हो रहा है क्या वो सही है......जो मैं कर रही हूँ क्या वो ठीक है........एक तरफ मेरा दिल इस बात को मान रहा था कि जो हो रहा है सब सही है......मगर दूसरी तरफ मेरा दिमाग़ पल पल इस बात की मुझे चेतावनी दे रहा था कि अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अदिति .......रुक जा ......नहीं तो इस हवस की आग में एक दिन सब कुछ जलकर खाख हो जाएगा........

उधेर विशाल अपने कमरे में ही रहा शायद उसकी बिल्कुल हिम्मत नहीं थी कि वो मेरे सामने भी आ सके.......मैं घंटों अपने कमरे में चुप चाप बैठी यही सब सोचती रही......आज ये सब मेरी ही ग़लती का नतीज़ा था......ना मैं विशाल को ऐसे ऐक्स्पोज करती और ना ही ये बात यहाँ तक आती......मगर कमाल की बात तो ये थी कि मेरे दिल में कहीं कोई इस बात का पस्चाताप नहीं हो रहा था.....थोड़ी देर बाद मम्मी पापा भी आ गये.......मैं असमंजस में फँसी रही कि आज मैं अपने दिल की सुनू या फिर अपने ............दिमाग़ की........
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