XXX Chudai Kahani चूत के चक्कर में
09-14-2018, 12:29 PM,
#6
RE: XXX Chudai Kahani चूत के चक्कर में
घर से बहार निकलकर रामलाल ने पेड़ की छाँव में अपनी खाट बिछा दी और उसपर लेट कर आराम करने की कोशिश करने लगा | पर उसका आराम और चैन तो अब लुट चुका था उसके मन में रुकसाना को लेके जो विचार आ रहे थे वो उन्हें जितना दबाने की कोशिश कर रहा था वो उतना ही उसे बेचैन किये जा रहे थे | रामलाल बड़ी देर तक ऐसे ही खाट पर पड़ा रहा पर जब उसे लगा की उसकी भावनाए कहीं कोई अनर्थ न कर दे तो वो उठा और गाँव में बहने वाली नदी पे चला गया | नदी किनारे बैठा रामलाल अपने मन में उठते विचारो को निकलते हुए नदी की बहती धारा को निहारे जा रहा था | तभी वहां एक घोडा गाड़ी आके रुकी जिसके साथ कुछ लठैत घोड़ो पे थे | उस घोडा गाडी से एक अत्यंत ही रूपवान युवती निकली | रामलाल की नजरे उसे देख ही रही थी की एक लठैत रामलाल के पास पहुच गया और कड़क आवाज में रामलाल से बोला " गाँव में नए हो क्या ?"
रामलाल की तन्द्रा टूटी वो बोला " जी क्या कहा आपने ?"
लठैत ने फिर अपनी बात दोहराते हुए कहा " गाँव में नए आये लगते हो इसीलिए शायद तुम्हे नहीं पता की राजकुमारी को ऐसे घूरने की सजा क्या हो सकती है "
रामलाल को अब अंदाजा हो गया की सामने जो युवती थी वो बड़ी हवेली की राजकुमारी थी | रामलाल ने तुरंत अपना सर झुका लिया और बोला " माफ़ कीजियेगा हुजुर आप सही कह रहे हैं मैं गाँव में नया हूँ आइन्दा ऐसा कभी नहीं होगा |"
लठैत " ठीक है अब जाओ यहाँ से "
रामलाल तुरंत वहां से निकला उसे पुराना जमाना याद आ गया की कैसे पहले जब बड़ी हवेली की औरते घर से निकलती थी तो रास्ते के सारे मर्द अपनी नजरें झुका लिया करते थे ऐसा न करने वालो को घड़ियालो के तालाब में फिकवा दिया जाता था | रामलाल कुछ आगे बढ़ा था की पंडित जी आते हुए दिखाई पड गए रामलाल ने उन्हें प्रणाम किया और पूछा " पंडित जी कहाँ जा रहे हैं "
पंडित जी " रामलाल मैं संध्या वंदना के लिए नदी किनारे जा रहा हु "
रामलाल " अरे वहां बड़ी हवेली की राजकुमारी आई हुई हैं "
पंडित जी " अच्छा तब तो मैं अभी वहां नहीं जा सकता तुम कहाँ से आ रहे हो?"
रामलाल " मैं भी नदी किनारे गया था पर वहां राजकुमारी आ गयी तो उनके लठैतो ने मुझे वहां से भगा दिया अब घर जा रहा हूँ "
पंडितजी " अरे कहाँ घर जाओगे बैठो यहीं मेरे साथ मैं अपनी संध्या वंदना के बिना घर नहीं जाऊंगा और अकेला यहाँ उनके जाने का इन्तेजार कैसे करूँगा "
रामलाल " ठीक है पंडित जी "
रामलाल और पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं | रामलाल बात आगे बढाता है " बड़ी हवेली का डर अभी भी कम नहीं हुआ है ?"
पंडित जी " अरे नहीं बेटा अब हुकुमसिंह के ज़माने जैसा खौफ्फ़ कहाँ है उसके ज़माने में तो बड़ा डर रहता था न जाने कब किसकी मौत उसे हुकुमसिंह के रूप में मिल जाए | रानी ललिता देवी बहुत दयालु हैं हम गाँव वालो की हर संभव मदद करती रहती हैं | बीते साल अपने गाँव के मदिर का जीर्णोधार उन्होंने ही करवाया था | वो तो राजकुमारी जी को लेकर रानी ललिता देवी बहुत फिक्रमंद रहती हैं इसलिए किसी को उनके पास फटकने नहीं दिया जाता |"
रामलाल " ऐसा क्यों पंडित जी रानी जी राजकुमारी के लिए इतना चिंता क्यों करती हैं ?"
पंडित जी " अरे बेटा भगवान् ने उस बेचारी बच्ची के साथ बहुत अन्याय किया है ?"
रामलाल " क्या मतलब पंडित जी "
पंडित जी " बेटा राजकुमारी जी जन्म से ही नेत्रहीन हैं |"
रामलाल को धक्का सा लगा की भगवान् ने इतनी सुन्दर युवती के साथ ऐसा कैसे किया |
थोड़ी देर बाद राजकुमारी का काफिला वहां से निकल जाता है | 
पंडित जी " अच्छा रामलाल अब मैं चलता हूँ अपनी संध्या वंदना के लिए |"
रामलाल " ठीक है पंडितजी प्रणाम "
रामलाल वापस अपने घर को चल पड़ता है | रामलाल जब घर पहुचता है तो शाम हो चुकी रहती है | घर में रुकसाना रात के खाने की तयारी कर रही होती है | रामलाल कजरी को झोपड़े पे जाके देखता है तो रामू खाट पे लेटा रहता है | रामलाल रामू को एक लात लगता है तो रामू हडबडा के उठ जाता है रामलाल को देख के कहता है " क्या हुआ भैया "
रामलाल " ससुरे पहले तू बता पहले कहाँ था ?"
रामू " भैया बस नाच देखने २ कोस दूर एक गाँव चला गया था "
रामलाल ने एक खेच के रामू के कान के नीचे लगाया और बोला " साले तुझे काम पे इसी लिए रखा है ?"
रामलाल का गुस्सा देख रामू की घिग्गी बांध गयी वो रेरियते हुए बोला " माफ़ कर दो भैया "
रामू " साले तेरी सास की तबियत खराब है और तेरी जोरू मायेके गयी है तुझे भी बुलाया है निकल तू भी अभी के अभी "
रामू डर के मारे तुरंत कुछ सामान उठाता है और निकल जाता है | रामलाल घर में वापस आता है तो रुकसाना खाना बना चुकी होती है वो रामलाल से कहती है " हुजुर खाना तैयार है बोले तो मैं आपके लिए लगा दूँ "
रामलाल " ठीक है लगा दो "
रुकसाना खाना लगा के ले आती है और रामलाल उसके हाथ से खाना लेके आगन में एक जगह बैठके खाने लगता है | वो अब रुकसाना के तरफ देख भी नहीं रहा था जिससे उसके ह्रदय में कोई और विचार आये | रामलाल ने जल्दी जल्दी अपना खाना ख़त्म किया और हाथ मुह धोया | फिर वो रुकसाना से बोला " मैं बाहर जा रहा हूँ सोने के लिए तुम अन्दर से किवाड़ बंद कर लेना "|
ये कहकर रामलाल घर से बाहर चला गया | उसके जाने के बाद रुकसाना सोचने लगी की सुबह तो ये आदमी उसे घूर घूर के देख रहा था अब क्या हो गया इसको | रुकसाना ने भी खाना खाया और वो बिस्तर पे लेट गयी |
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