RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
लंड के घुसते ही मनिका के बदन में दर्द की एक तेज़ लहर उमड़ आयी, उसे बेतहाशा पीड़ा हो रही थी, उसकी चुत से थोड़ा खून निकलने लगा था, पर वो जानती थी कि अब आगे बस मज़ा ही मज़ा आने वाला है इसलिए वो अपने होठों को भींचकर अपने दर्द को सहने की कोशिश कर रही थी
इधर जयसिंह भी जानता था कि अभी कुछ देर तक मनिका को दर्द होगा इसलिए उसने मनिका के एक निप्पल को अपने मुँह में ले कर चूसना शुरू किया, जयसिंह ने थोड़ी देर तक अपने लंड को रोका रखा, तो मनिका की फुद्दि को कुछ सुकून मिला और उसने अपने जिस्म और चुत को ढीला छोड़
दिया, जयसिंह लगातार उसके मम्मे चुस रहा था,
कुछ देर बाद जब जयसिंह को लगा कि उसकी बेटी का दर्द अब थोड़ा कम हो गया तो उसने अपनी कमर को थोड़ा पीछे खींचा, जिसकी वजह से उसका लंड मनिका की चुत से रगड़ खा गया,मनिका तो मजे से दोहरी ही हो गयी,
इधर जयसिंह ने लंड को पीछे खींचकर दोबारा एक जोरदार धक्का मारा, लंड पूरा का पूरा मनिका की चुत में घुसकर बच्चेदानी से जा टकराया, मनिका के शरीर मे दोबारा दर्द की लहर उठ गई, पर अब जयसिंह रुकने के मूड में बिल्कुल नही था,
उसने तुरंत लंड को बाहर खींच ओर फिर से एक जोरदार धक्का लगाया, अब तो जैसे जयसिंह पे कोई भूत सवार हो गया, वो मनिका की चीखों की परवाह न करते हुए उसकी चुत में जोरदार तरीके से अपना लंड पेले जा रहा था, थोड़ी देर बाद मनिका को भी मज़ा आने लगा, वो अब जयसिंह के हर धक्के का जवाब अपनी गांड उठाकर दे रही थी,
जयसिंह के इन ताबड़तोड़ धक्कों को मनिका ज्यादा देर श नही पायी और उसकी चुत ने जोरदार तरीके से पानी झोड़ दिया, वो भलभला कर झाड़ गयी , उसके शरीर कल असीम आंनद की प्राप्ति हो रही थी, उसे तो इस लग रहा था कि वो स्वर्ग में आ गयी है
पर जयसिंह ने धक्के लगा के बन्द नही किये थे, वो लगातार अपनी धुन में ही उसे पेले जा रहा था ,
थोड़ी देर बाद जयसिंह ने मनिका को पलटकर घोड़ी बना लिया और पीछे से घुप्प से अपने खड़े लंड को उसकी चुत में घुसा कर जड़ तक धक्के मारने लगा, हर धक्के के साथ मनिका आगे गिरने को होती पर जयसिंह उसकी चुचियों को पकड़कर उसे वापस खींच लेता,
30 मिनट की पलंगतोड़ चुदाई में मनिका 3 बार झाड़ चुकी थी, तभी अचानक जयसिंह के लंड में सुरसुराहट हुई,
"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह मनिका मैं जाने वाला हूँ, कहाँ निकालूं" जयसिंह ने धक्के तेज़ करते हुए कहा
"पापाआआआ मैं आपको मेरी चुत में महसूस करना चाहती हूँ, आप मेरी चुत में अपना गरम पानी निकाल दीजिये" मनिका ने हाँफते हुए कहा
10-15 जबरदस्त धक्कों के साथ ही जयसिंह का लावा उबल पड़ा, वो मनिका की चुत में ही ज़ोरदार तरीके से झड़ने लगा, कपनी चुत में गरम पानी के अहसास से मनिका भी चौथी बार झड़ने लगी, उन दोनों का ही इतना पानी आज तक नहीं निकला था, उनके पानी का मिश्रण मनिका की चुत से होता हुआ बेडशीट को गिला करने
लगा
जयसिंह अपनी बेटी की नारंगीयो पर ढह चुका था, झटके खा-खाकर उसके लंड से गर्म पानी निकल कर उसकी बेटी की गरम बुर को तर कर रहा था। मनिका भी अपने पापा को अपनी बाहों में भरकर गहरी गहरी सांसे छोड़ रही थी, वासना का तूफान अब शांत हो चुका था ,दोनों एक दूसरे की बाहों में खोए बिस्तर पर लेटे अपनी उखड़ी हुई सांसो को दुरुस्त कर रहे थे, मनिका के चेहरे पर संतुष्टि के भाव साफ झलक रहे थे, उसके जीवन का यह अनमोल पल था, मनिका के गोरे चेहरे पर पसीने की बूंदें मोतियों की तरह चमक रही थी, बाप बेटी दोनों ने जमकर पसीना बहाया था , इस अद्भुत अदम्य पल की प्राप्ति के लिए
मनिका आंखों को मूंद कर इस अद्भुत पल का आनंद ले रही थी, वो अपनी बुर में अपने पापा के लंड से निकलती एक एक बूंद को बराबर महसुस कर रहीे थी, जयसिंह की खुशी का तो ठिकाना ही नही था, जयसिंह को ऐसा लग रहा था कि अपनी बेटी की चुदाई करके उसने जैसे किसी अमूल्य वस्तु को हासिल कर लिया हो, और वैसे भी मनिका की चुत तो वास्तव में अमूल्य ही थी, उसकी खूबसूरती उसके बदन की बनावट देख कर किसी के भी मुंह से आहहहह निकल जाए,
वो दोनों हांफकर वहीं गिर गये, जयसिंह ने अभी भी अपना लंड मनिका की चुत से नही निकाला था,
लगभग 30 मीनट के बाद जयसिंह का लंड दोबारा मनिका की चुत में फूलने लगा, जिसे मनिका ने महसूस कर लिया, वो भी अब दूसरे राउंड के लिए बिल्कुल तैयार थी
रात भर जयसिंह और मनिका का चुदाई कार्यक्रम चलता रहा, जयसिंह ने 3 बार मनिका को जबरदस्त तरीके से चोदा और फिर थक हारकर दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले सो गए
सुबह सूरज की पहली किरण के साथ ही मनिका की आंखे खुल गई, रात की घनघोर बारिश के बाद मौसम अब बिल्कुल साफ हो चुका था, पक्षियों की चहचहाहट साफ सुनी जा सकती थी,
मनिका खुद को अपने पापा के आगोश में पाकर एकदम से शर्मसार होने लगी, उसके गालों की लालिमा कश्मीरी सेब की याद दिला रहे थे, वो दोनो संपूर्ण नग्नावस्था में बिस्तर पर एक दूसरे की बाहों में सोए हुए थे,
मनिका ने उठने के लिए अपने बदन को थोड़ा आगे खिसकना चाहा पर अचानक उसके बदन में एक तेज़ सुरसुराहट दौड़ गयी क्योंकि जयसिंह का लंड अभी भी उसकी चुत की फांको के बीच में फसा हुआ था
अपने पापा के लंड का अहसास अपनी चुत के इर्द गिर्द होते ही मनिका के दिल की धड़कनें तेज़ होने लगी, वो बिस्तर से उठना तो चाहती थी लेकिन अपने पापा की लंड की गर्माहट उसे वही रुके रहने पर मजबूर कर रही थी
मनिका का मन एक बार फिर से मचलने लगा, वो अपनी भरावदार गांड को जयसिंह के लंड पर होले होले रगड़ने लगी जिससे उसके चुत की गुलाबी अधखुली पत्तियां जयसिंह के लंड पर दस्तक देने लगी,
मनिका की सांसे उसके बस में नहीं थी, एक बार तो उसका मन किया कि जयसिंह को जगा कर फिर से अपनी चुत की प्यास बुझा ले पर रात के अंधेरे में शर्म और हया का जो पर्दा तार तार हो चुका था, वो अब दोबारा उसे संस्कारो के बंधन की याद दिलाने लगा था
बारिश के पानी की तरह मनिका के वासना का भी पानी भी उतर चुका था, खिड़की से हल्की हल्की रोशनी कमरे में आ रही थी और रोशनी के साथ ही मनिका की बेशर्मी भी दूर होने लगी थी,
अपने नंगे बदन पर गौर करते ही मनिका ने शरम के मारे अपनी आंखों को बंद कर लिया, अब वो धीरे धीरे अपनी गांड को हिलाती हुई जयसिंह की बाहों के चंगुल से आज़ाद होने की कोशिश करने लगी, क्योंकि वो जयसिंह के जगने से पहले ही कमरे से चली जाना चाहती थी नहीं तो वो रात की हरकत के बाद अपने पापा से नजरें नहीं मिला पाती,
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थोड़ी ही देर की कसमसाहट के बाद मनिका ने खुद को जयसिंह की बाहों से आज़ाद कर लिया, उसका नंगा खूबसूरत बदन और चुत की खुली फांके रात की कारस्तानी को चीख चीख कर बता रही थी ,
मनिका ने एक बार नज़रे अपने नंगे जिस्म पर घुमाई तो कल रात का मंज़र याद करके उसने अपने चेहरे को अपनी कोमल हथेलियों से छुपाने की नाकाम सी कोशिश की, अब उस कमरे में रुकना उसके लिए मुश्किल हुआ जा रहा था क्योंकि उसको डर था कि कहीं वो दोबारा हवस की शिकार होकर अपने पापा पर न टूट पड़े, इसलिए वो तेज़ तेज़ कदमो से चलती हुई कमरे से बाहर निकली और नीचे जाकर कनिका के रूम में बाथरूम में घुस गई,
उसने अपने बदन को पानी की फुंहारो से पोंछा, और अपनी चुत को भी रगड़ रगड़ कर साफ किया, अब उसकी चुत के अंदर से लालिमा की झलक उसे साफ दिखाई दे रही थी, जिसे देखकर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई क्योंकि ये लालिमा उसके कली से फूल बनने की निशानी जो थी
लगभग आधे घण्टे में मनिका नहा धोकर बिल्कुल फ्रेश हो चुकी थी, अब उसके पेट मे चूहे कूदने लगे क्योंकि कल रात तो उन दोनों ने खाना खाया ही नही था, इसलिए वो फटाफट सुबह का नाश्ता तैयार करने के लिए किचन में घुस गई
किचन में काम करते हुए उuसका ध्यान बार-बार रात वाली घटना पर केंद्रित होनल रहा था, रह रह कर उसे अपने पापा का मोटा लंड याद आने लगा जिससे उसे अपनी चुत में मीठे-मीठे से दर्द का अहसास होने लगा,
रात भर जमकर चुदवाने के बाद उसे इस बात का एहसास हो गया था कि उसके पापा एक दमदार और तगडे लंड के मालिक है , उनके जबरदस्त धक्को को याद करके मनिका मन-ही-मन सिहर रही थी,
वो नाश्ता बनाते बनाते रात के ख्यालो में खो गई "कितना मोटा लंड है पापा का, मेरी चुत की कैसे धज्जियां उड़ा कर रख थी, क्या जबरदस्त स्टैमिना है उनका, हाय्य मन तो करता है कि अभी ऊपर जाकर उनके मोटे लंड को दोबारा अपनी चुत में घुसेड़ लूं, इसस्ससस कितने अच्छे से चोदते है ना पापा, मन करता है कि बस दिन रात उनके मोटे लंड को अपनी चुत में ही घुसाए रखूं"
लेकिन समस्या ये थी कि ये सब वो करे कैसे?
" रात को तो ना जाने उसे क्या हो गया था और थोड़ी बहुत मदद तो उसे बारिश से भी मिल चुकी थी , पर रात के अंधेरे में जो हिम्मत उसने दिखाई थी वो दिन के उजाले में कैसे दिखाए, वो ऐसा क्या करें कि उसके पापा खुद एक बार फिर अपने लंड को उसकी चुत में डालने को मजबूर हो जाये,
पर थोड़ी हिम्मत तो उसे दिखानी ही पड़ेगी वरना बना बनाया खेल बिगड़ने में वक्त नही लगेगा, वैसे भी रात को दो-तीन बार तो अपने पापा का लंड अपनी चुत में डलवा कर चुदवा ही चुकी थी तो अब शर्म कैसी ,
एक बार हो या बार बार , हो तो गया ही, और अब अगर उसे चुदवाना है तो रात की तरह अपने पापा को उकसाना ही होगा ताकि वो फिर से चुदाई करने के लिए मजबूर हो जाये"
मनिका इसी उधेड़बुन में लगी थी,
नहाने के बाद मनिका ने एक बेहद पतले कपड़े का लहंगा (घघरी या घेर) पहना था जो वो अक्सर दिल्ली में ही पहना करती थी, गहरे नीले चटकदार रंग के इस लहंगे के ऊपर उसने एक छोटी सी टीशर्ट डाली हुई थी, पर आज भी उसने अंदर ब्रा नही पहनी हुई थी,
लहंगे के अंदर नीले कलर की ही थोंग वाली पैंटी पहनी थी जो पीछे से उसकी बड़ी भरावदार गांड में कही ओझल सी हो गई थी, ध्यान से देखने पर उसके बड़ी सी गांड और उभरी हुई चुंचियों को साफ साफ महसूस किया जा सकता था,
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दूसरी तरफ जयसिंह अब नींद से जग चुका था, उसने जब खुद को बिल्कुल नंगा मनिका के बिस्तर पर पाया, तो उसकी आँखों के सामने रात वाला मंज़र घूम गया और उसके होंठो पर एक गहरी मुस्कान आ गयी,
उसे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि आखिर उसने अपनी बेटी की फुलकुंवारी का रस चख लिया था, उसे कली से फूल बना दिया था, उसके लिए तो ये सब एक सपने की तरह प्रतीत हो रहा था, जल्दी ही रात की खुमारी को याद कर उसके लंड में जोश भरता चला गया, अपने लंड में आए तनाव को देखकर उसका मन बहकने लगा था, वो सोचने लगा कि कि अगर इस समय उसकी बेटी इधर होती तो, वो जरूर एक बार फिर से उसे चोद कर अपने आप को शांत कर लेता, एक बार फिर उसकी नाजुक चुत को अपने हलब्बी लंड से भर देता ,
लेकिन मनिका तो पहले ही नीचे जा चुकी थी इसलिए वो भी बस हाथ मसल कर रह गया, अब वो जल्दी जल्दी नीचे उतरकर सीधा अपने रूम की तरफ गया, मनिका अब भी किचन में ही काम कर रही थी, मनिका ने पहले ही जयसिंह के लिए एक लोअर(पजामा) और एक टीशर्ट निकालकर उसके रूम में रख दी थी ताकि जयसिंह नहाने के बाद उन्हें पहन सके, जयसिंह दबे पांव अपने रूम में आया और सीधा बाथरुम के अंदर चला गया, तकरीबन 30 मिनट में वो नहा धोकर बिल्कुल तैयार था, उसने वो लोअर और टीशर्ट पहनी ओर सीधा नाश्ता करने के लिए किचन कि तरफ चल पड़ा
वो अभी किचन की तरफ जा ही रह था कि अचानक उसके मोबाइल पर मधु का फ़ोन आ गया
जयसिंह - हेलो
मधु - हाँ, हेलो, मैं मधु बोल रही हूं
जयसिंह को मधु की आवाज़ से लगा जैसे वो रो रही हो, वो थोड़ा घबरा गया
जयसिंह - अरे मधु, क्या हुआ, तुम रो क्यों रही हो??????
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