RE: Sex Kahani हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर
रात हो चुकी थी। बेला अपने घर से वापिस आ चुकी थी। पर आज रात वहाँ पर कुछ ख़ास नहीं होने वाला था। दूसरी तरफ सेठ के घर पर सब लोग खाना खा कर अपने-अपने कमरों में जा चुके थे, पर आज रात रजनी की आँखों से नींद कोसों दूर थी। अपने मायके में जिस तरह उसने चुदाई का खुला आनन्द लिया था, वो अब यहाँ नहीं मिलने वाला था।
यही सोचते हुए रजनी अपनी चूत में सुलग रही आग के बारे में सोच रही थी। दूसरी तरफ सोनू घोड़े बेच कर सो रहा था। पिछले कुछ दिनों से वो रात को कम ही सो पाता था। रात के करीब एक बजे सोनू पेशाब लगने से उठा और कमरे से बाहर आकर गुसलखाने की तरफ बढ़ा। यहाँ अक्सर घर की औरतें नहाती थीं।
जैसे ही सोनू उस गुसलखाने के पास पहुँचा। उसे अन्दर से किसी के क़दमों की आवाज़ आई। उसने सोचा शायद अन्दर कोई है और वो वहीं रुक गया और इंतजार करने लगा।
थोड़ी देर बाद गुसलखाने से दीपा बाहर निकली और सामने खड़े सोनू को देख कर एक बार तो वो घबरा गई, पर जब उसने अंधेरे में सोनू के चेहरे को देखा, तो उसने शरमा कर अपनी नजरें झुका लीं और घर के आगे की तरफ जाने लगी।
सोनू वहीं खड़ा दीपा को घर के आगे की तरफ़ जाता देखता रहा। जब वो अन्दर के तरफ मुड़ने लगी, तो उसने एक बार फिर पीछे पलट कर सोनू की तरफ देखा। अंधेरा होने के कारण दोनों एक-दूसरे को दूर से ठीक से नहीं देख पा रहे थी, पर दोनों के जज़्बात आपस में ज़रूर टकरा रहे थे। दीपा फिर मुड़ कर चली गई।
सोनू पेशाब करने गुसलखाने में चला गया, पेशाब करने के बाद जब वो वापिस अपने कमरे की तरफ जा रहा था, तब उसे रजनी के कमरे की खिड़की जो घर के पीछे की तरफ थी, उसमें से लालटेन की रोशनी अन्दर आती हुई नज़र आई। एक पल के लिए सोनू वहीं रुक गया और फिर कुछ सोच कर उस खिड़की की तरफ बढ़ गया।
जब वो खिड़की के पास पहुँचा, तो उसने अन्दर झाँकने की कोशिश की।
लकड़ी की बनी खिड़की में झिरी होना आम बात है और वो सोनू को आसानी से मिल भी गई। सोनू उस झिरी से अन्दर झाँकने लगा। वो खिड़की रजनी के बिस्तर के बिल्कुल पास थी, मतलब जिसस दीवार से रजनी का बिस्तर सटा हुआ था, उसी में वो खिड़की थी। सबसे पहले उसे रजनी रज़ाई ओढ़े दिखाई दी। उसके बाद उसने पूरे कमरे का मुआयना किया, उसके कमरे में रजनी के अलावा और कोई नहीं था।
सोनू ने चारों तरफ एक बार देखा और फिर धीरे से रजनी को आवाज़ दी। एक-दो बार आवाज़ देने के बाद रजनी के बिस्तर के हिलने की आवाज़ हुई। सोनू चुप हो गया और दिल थामे खिड़की खुलने का इंतजार करने लगा। जैसे ही रजनी ने खिड़की खोली, सामने सोनू को देख उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
रजनी- तू यहाँ क्या कर रहा है.. अभी तक सोया नहीं..?
सोनू- वो मैं पेशाब करने बाहर आया था… आप के कमरे के लालटेन जलती हुई नज़र आई, तो देखने चला आया और वैसे भी अब मुझे आपके बिना नींद नहीं आती।
रजनी ने सोनू की बात सुन कर मन ही मन खुश होते हुए कहा- क्यों.. नींद क्यों नहीं आती..?
सोनू ने खिड़की की सलाखों पर हाथ रखते हुए कहा- अब क्या कहूँ मालकिन… जब तक मेरा लण्ड आपकी चूत का पानी चख नहीं लेता.. साला सोने नहीं देता और वैसे भी आपके बदन की गरमी में कुछ अलग सा नशा है।
रजनी ने उदास होते हुए कहा- हाँ.. मेरे राजा, मुझे अब तुम्हारे बिना नींद नहीं आ रही थी… देख ना.. कब से मेरी चूत में खुजली मची हुई है।
सोनू- तो फिर मालकिन आप कमरे का दरवाजा खोल कर रखो… मैं अभी आता हूँ।
रजनी- अरे नहीं… आगे से नहीं.. अगर किसी ने देख लिया तो..?
सोनू ने पजामे के ऊपर से अपने लण्ड को मसलते हुए कहा कहा- तो फिर क्या करूँ… मालकिन देखो ना मेरा लण्ड फूल कर तुम्हारी चूत में जाने को बेताब हो रहा है।
रजनी ने सोनू के बेताबी को देख कर मन ही मन मुस्कुराते हुए कहा- हाँ.. वो तो देख रही हूँ.. अच्छा रुक ज़रा…।
ये कह कर रजनी ने खिड़की के बीच वाली
सलाख को ऊपर की और उठाना शुरू कर दिया।
सोनू- ये आप क्या रही हैं मालकिन.. लोहे की सलाख ऐसे थोड़ा टूटेगी।
रजनी- शी.. चुप.. एक पल रुक तो सही.. टूटेगी नहीं.. तो ना सही… इसमें से निकल तो सकती है ना…।
आख़िर कार रजनी ने सलाख को आधा टेढ़ा करके घुन लगी लकड़ी से उसे निकाल दिया, जिससे दो सलाखों के बीच में इतनी जगह तो बन ही गई थी कि सोनू चढ़ कर अन्दर आ सके। जैसे ही वो सलाख खिड़की से निकली.. रजनी और सोनू दोनों के होंठों पर वासना भरी मुस्कान फ़ैल गई और सोनू झट से दोनों सलाखों के बीच से रजनी के कमरे में आ गया।
सोनू के अन्दर आने के बाद रजनी ने उस सलाख को फिर से वहाँ पर हल्का सा अटका दिया। फिर उसने खिड़की बंद करके ऊपर से परदा गिरा दिया। इससे पहले की रजनी पीछे हटती, सोनू ने उसे पीछे से बाँहों में भरते हुए, रजनी की दोनों चूचियों को अपने हाथों में भर कर मसलना शुरू कर दिया।
“आह्ह.. रुक तो सही.. मैं कहीं भागे थोड़ा जा रही हूँ…।”
सोनू ने रजनी की दोनों चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से मसलते हुए कहा- आह.. बस अब और रुका नहीं जाता मालकिन… और आप सबर रखने को कह रही हो.. सोनू ने अपने दहकते हुए होंठों को रजनी की गर्दन पर रख दिया और उसकी गर्दन और ब्लाउज के ऊपर पीठ के खुले हुए हिस्से.. कंधों और बाकी खुली जगह को पागलों की तरह चूमने और चाटने लगा।
रजनी ने मदहोशी भरी आवाज़ में कहा- ओह्ह.. सोनू तूने मुझ पर कौन सा जादू कर दिया है.. ओह्ह ह..इईईई आह्ह.. मैं अब एक पल भी तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।
सोनू ने रजनी की दोनों चूचियों को ज़ोर-ज़ोर से अपने हाथों में भर कर मसलते हुए कहा- आह मालकिन.. मैं भी तो तुम्हारे बिना एक पल नहीं रह सकता।
ये कहते हुए उसने रजनी को अपनी तरफ घुमा लिया। रजनी के साँसें उखड़ी हुई थीं, उसकी आँखें मस्ती के कारण बंद होती मालूम हो रही थीं और गुलाबी रसीले होंठ कामवासना के कारण थरथरा रहे थे। सोनू ने अपने हाथों को रजनी की कमर में डाल कर उसे अपनी तरफ खींच लिया। रजनी की गुंदाज.. कसी हुई चूचियां.. सोनू की छाती से जा टकराईं।
अगले ही पल दोनों एक-दूसरे के होंठों में होंठों को डाल कर पागलों की तरह चूस रहे थे, रजनी ने अपनी बाहें सोनू की पीठ पर कस रखी थीं और वो सोनू की पीठ को अपने कोमल हाथों से सहला रही थी।
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