मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
10-08-2018, 01:14 PM,
#61
RE: मेले के रंग सास, बहु, और ननद के संग
सब लोग दावत के लिये बहुत उत्तेजित हो रहे थे. ससुरजी बैठक-खाने के सोफ़े पर बैठ गये और सासुमाँ को पुकारे, "अरे कौशल्या! तुम लोगों का काम हुआ कि नही? दावत कब शुरु करोगी?"
"बस हो ही गया है." सासुमाँ ने रसोई से जवाब दिया, "गुलाबी को भेज रही हूँ. तुम लोग शुरु करो."
"पहले दारु भेजो और कुछ चिकन के पकोड़े भेजो!" ससुरजी बोले.

सासुमाँ ने मुझे पकोड़ों की प्लेट पकड़ायी. गुलाबी ने दारु की बोतल खोलकर तीन गिलासों मे डाली और उसमे फ़्रिज से कोकाकोला निकालकर मिलाया. फिर प्लेट मे रखकर मेरे साथ बैठक मे आयी.

"आओ गुलाबी, आओ!" ससुरजी बोले, "क्या लायी हो हमारे लिये?"
"सराब है, मालिक." गुलाबी ने कहा और प्लेट सोफ़े के सामने छोटी चाय की मेज पर रख दी. मैने दो तरह के पकोड़ों की प्लेट भी मेज पर रख दी.

मेरे पतिदेव और देवरजी अपने बाप के आगे खड़े थे. उन्हे देखकर ससुरजी बोले, "अरे तुम दोनो क्यों खड़े हो? बैठो और अपनी गिलास उठाओ!"

दोनो एक दूसरे को देखने लगे.

मेरे वह बोले, "पिताजी, आपके सामने..."
"अरे मेरे सामने तुम अपनी माँ की चूत मार सकते हो तो शराब क्यों नही पी सकते?" ससुरजी बोले, "चलो बैठो और आज के शाम का मज़ा लो. पियोगे नही तो पूरा मज़ा नही मिलेगा."

दोनो बेटों ने एक एक गिलास उठा लिया और सोफ़े पर बैठकर शराब पीने लगे और पकोड़े खाने लगे.

ससुरजी ने गुलाबी को कहा, "गुलाबी, बार-बार गिलास मे दारु भरकर लाने की ज़रूरत नही है. दो बोतलें उठा ला और इधर रख."

गुलाबी और मैं रसोई मे जाने लगे तो ससुरजी बोले, "अरे बहु, तु कहाँ जा रही है. तु भी बैठ ना इधर और पी हमारे साथ."
"बाबूजी आपके सामने?" मैने कहा.
"सोनपुर मे तो मेरे सामने शराबियों की तरह पी रही थी. आज क्या हुआ?" ससुरजी ने कहा और मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने बगल मे सोफ़े पर बिठा लिया.

"हाय मालिक, भाभी भी सराब पियेगी?" गुलाबी ने हैरान होकर पूछा.
"हम सब पीयेंगे." ससुरजी बोले, "तु भी पियेगी."
"नही मालिक! हम सराब वराब नही पीते!" गुलाबी ने कहा.
"कुछ दिन पहले तो तु मर्द की मलाई भी नही पीती थी." ससुरजी बोले, "एक बार शराब पीना सीख जायेगी तो पीये बिना रह नही पायेगी. जा, रसोई से दो बोतलें, और तीन गिलास ले आ."

गुलाबी रसोई मे चली गयी तो ससुरजी ने अपने एक हाथ से मेरे कमर को घेर लिया और दूसरे हाथ से वह शराब पीने लगे. मेरे सामने तुम्हारे भैया और किशन भी पी रहे थे और पकोड़े खा रहे थे.

गुलाबी रसोई से शराब की दो बोतलें लेकर आयी और मेज पर रख दी. फिर मेरे लिये गिलास मे डालकर मुझे दी. मैं भी मज़े लेकर शराब पीने लगी. सोनपुर के बाद आज पहली बार मैं शराब पी रही थी.

ससुरजी ने सासुमाँ को आवाज़ लगाई, "अरी भाग्यवान! तुम भी आ जाओ ना, यार! सभी मिल बैठेंगे तो ना पीने का मज़ा आयेगा!"
"मै पीकर क्या करूंगी, वह भी अपने बच्चों के सामने!" सासुमाँ ने कहा.
"कौशल्या, अब नखरा छोड़ो भी! जब सारे पाप का लिये हैं तब दारु पीने मे क्या बुराई है?" ससुरजी बोले, "गुलाबी और रामु, तुम लोग रसोई सम्भालो और मालकिन को यहाँ भेज दो."

सासुमाँ साड़ी का आंचल कमर मे बांधे बैठक मे आयी और किशन के पास सोफ़े पर बैठ गयी. गुलाबी ने उन्हे भी एक गिलास बना कर दिया. सासुमाँ भी हमारे साथ शराब पीने लगी और पकोड़े खाने लगी.

"बहु ने पकोड़े बहुत अच्छे बनाये हैं." सासुमाँ एक चिकन का पकोड़ा खाते हुए बोली, "क्यों जी?"
"हमारी बहु सब काम बहुत अच्छे से करती है. वह तो करोड़ों मे एक है!" ससुरजी ने मेरी एक चूची को दबाकर कहा.

मै अपनी तारीफ़ सुनकर थोड़ा झेंप गयी. वैसे शराब का नशा मुझ पर चढ़ने लगा था. किशन ने शायद पहले कभी शराब नही पी थी. लग रहा था उसे बहुत जल्दी चढ़ गयी है.

"किशन, धीरे धीरे पी, नही तो तुझे बहुत ज़्यादा चढ़ जायेगी." सासुमाँ बोली, "टल्ली हो गया तो आज का मज़ा नही ले पायेगा."
"ठी-ठीक है म-माँ." किशन ने कहा. उसकी आवाज़ लड़खड़ाने लगी थी.

इस तरह बातें करते हुए हमने अपनी गिलासें खाली कर दी.

रामु ने फिर हमारी गिलासें भर दी. हम सब को काफ़ी नशा हो गया था. गुलाबी और रामु खाने का सामान लाते जा रहे थे और हम सब शराब के साथ साथ खाना-पीना कर रहे थे. हंसी मज़ाक चल रहा था. तुम्हारे मामा, मामी, और मैं सोनपुर मे अपनी चुदाई के कारनामे सब को सुना रहे थे. कमरे मे पूरा मस्ती का माहौल हो गया था.

मेरा और सासुमाँ का आंचल ढलकर नीचे गिर गया था. ससुरजी अब खुलकर मेरी चूचियों को मसल रहे थे और मैं लुंगी के ऊपर से उनके लन्ड को दबा रही थी. उन्होने चड्डी नही पहनी थी और उनका लौड़ा लुंगी मे तंबू बनाकर खड़ा था. सासुमाँ किशन के लौड़े को उसके पजामे मे से दबा रही थी और वह अपनी माँ की चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से दबा रहा था.

"बलराम, तुझे मज़ा आ रहा है कि नही?" सासुमाँ ने शराब की एक बड़ी घूंट ली और पूछा.
"नही, माँ." मेरे वह बोले, "आप सब लोग मज़े ले रहो हो पर मैं तो यहाँ अकेला बैठा हूँ."
"तो गुलाबी को बुला देते हैं!" ससुरजी बोले, "गुलाबी! इधर आकर बड़े भैया के साथ बैठ!"

गुलाबी ने आज ने एक सुन्दर घाघरा चोली पहनी थी. उसके पाँव मे मेरी पायल थी और हाथों मे कांच चूड़ियाँ. आंखों मे उसने काजल भी लगाया था. चूचियां तो उसकी उठी उठी थी ही, बदन भी गदराया हुआ था. सांवली होने के बावजूद वह बहुत सुन्दर लग रही थी.

ससुरजी ने बुलाया तो वह बैठक मे आयी और सकुचाते हुए मेरे उनके पास बैठ गयी. उन्होने तुरंत गुलाबी को खींचकर खुद से चिपका लिया और उसके होठों को चूमने लगे.

"हाय बड़े भैया!" गुलाबी शरमा के बोली, "सबके सामने ई सब मत कीजिये! हम रात को आपके पास आ जायेंगे."
"गुलाबी, आज जो कुछ होगा सबके सामने होगा." मेरे वह बोले, "देखे नही रही मीना कैसे पिताजी से अपनी चूची मिसवा रही है? और माँ किशन से अपनी चूची मलवा रही है?"

गुलाबी ने देखा मैं सचमुच शराब पी रही थी और मस्ती मे अपनी चूची दबवाये जा रही थी. सासुमाँ की भी यही हालत थी.

वह बोली, "हाय, मालकिन आप अपने बेटे से चूची दबवा रही हैं!"
"तो क्या हुआ? मेरा किशन एक मर्द नही है क्या?" सासुमाँ बोली और उन्होने किशन के होठों की एक गहरी चुंबन ली.

रामु हैरान होकर सासुमाँ की हरकत को देखने लगा. उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नही हो रहा था कि एक माँ अपने बेटे के होठों को एक प्रेमिका की तरह चुम रही थी.

गुलाबी ने कहा, "तो क्या आज सब लोग एक दूसरे के सामने मुंह काला करेंगे? माँ-बेटा भी? हमे तो बहुत सरम आयेगी."
"गुलाबी, थोड़ी पी ले, फिर तेरी शरम वरम सब चली जायेगी और तु रंडी की तरह चुदने को तैयार हो जायेगी." मैने कहा.
"नही भाभी, हम सराब नही पीते ना." गुलाबी ने कहा.

तुम्हारे भैया ने गुलाबी के लिये एक गिलास मे शराब डाली और उसमे कोकाकोला मिलाकर बोले, "साली, लगता है तु कोई काम जबरदस्ती के बिना नही सीखती. चल मुंह इधर कर और पी."
"नही बड़े भैया! हम नही पीयेंगे!" गुलाबी ने कहा और मुंह फेर लिया.

रामु जो खड़े-खड़े अपनी बीवी को देख रहा था बोला, "अरी लड़की, बड़े भैया कह रहे हैं तो पी ले ना! काहे नखरा करके सबका मजा खराब करती है? देख नही रही भाभी और मालकिन कितनी सराब पी रही हैं!"

तुम्हारे भैया ने जबरदस्ती गुलाबी के मुंह मे गिलास लगाया और उसे दो चार घूंट पिला दी.

"कैसा लगा, गुलाबी?" सासुमाँ ने पूछा.
"अच्छा है, मालकिन." गुलाबी ने कहा, "पर हमरा गला थोड़ा जल रहा है."
"पहली बार पी रही है ना, इसलिये. पूरी गिलास गटागट गले से उतार दे" सासुमाँ ने कहा.

गुलाबी ने पूरी गिलास खाली कर दी तो रामु ने फिर उसकी गिलास भर दी.

गुलाबी ने पूछा, "ई का चीज है, बड़े भैया?"
"इसको रम कहते हैं." मेरे वह बोले, "कैसा लग रहा है पीकर?"
"हमे तो चक्कर सा आ रहा है."
"तुने खाली पेट मे खूब सारी पी ली हैं ना इसलिये." सासुमाँ बोली, "थोड़े पकोड़े खा ले. अभी देखना, थोड़ी देर मे कैसी मस्ती चढ़ती है."

इधर ससुरजी ने मेरे उनको कहा, "बलराम, तुझे मैने कुछ हाज़िपुर बाज़ार से लाने को कहा था. तु लाया है क्या?"
"हाँ पिताजी, लाया हूँ." उन्होने कहा.
"देसी है कि विदेसी?"
"देसी है, पिताजी."
"तो लगा दे." ससुरजी ने कहा.

मैने उत्सुक होकर पूछा, "क्या है, ब-बाबूजी? ब-बताइये ना!"
ससुरजी मेरे होठों को चुम कर बोले, "बहु, अभी पता चल जायेगा. तुने कभी ऐसी चीज़ देखी नही होगी."
"क्या है, ब-बोलो ना!" सासुमाँ बोली. उन्हे भी काफ़ी चढ़ गयी थी.
"अरे रुको ना, कौशल्या." ससुरजी बोले, "बलराम को लगाने तो दो!"

मेरे पति हमारे कमरे से एक सीडी लेकर आये. ऊन्होने टीवी चलाया और सीडी प्लेयर मे वह सीडी लगा दी.

किशन उत्साहित होकर बोला, "मुझे प-पता है भाभी, यह क्या है! यह एक फ़िलम है! मैने अपने दोस्तों के साथ देखी है."

गुलाबी बोली, "भला ई कोई फ-फिलम-सिलम देखने का समय है? अभी तो हम लोग सब मुंह काला करने वाले हैं!"
उसे काफ़ी नशा हो गया था और उसकी आवाज़ लड़खड़ा रही थी. वह बहुत मस्त हो गयी थी और अपने ही हाथों से चोली के ऊपर से अपनी चूचियों को दबा रही थी.

"यह शाहरुख-काजोल की फ़िलम नही है रे, पगली." तुम्हारे भैया ने कहा, "ऐसी मस्त फ़िलम तुने कभी नही देखी होगी. रामु, कमरे ही बत्तियां बुझा दे!"
बोलकर वह गुलाबी के पास आकर बैठ गये.
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