Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
10-15-2018, 10:54 PM,
#3
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
गतान्क से आगे…………………………………….

उसका सीना धौंकनी के तरह मेरे सीने से लगा उपर नीचे हो रहा था ....मैं बिल्कुल बेख़बर सा खोया था अपनी मा की बाहों में ... वो मुझे चूम रही थी ..गालों पर .. माथे पर .. बालों पर हाथ फिरा रही थी ..मैं उसके प्यार में सराबोर था , डूबा था .... उसका असर नीचे हुआ ..मेरी जांघों के बीच ...फिर से अकड़ गया मेरा लंड ..माँ के पेट से टकरा रहा था ...मा को मेरी हालत समझ में आ गयी ..वो फ़ौरन अलग हो गयी..उसकी सांस ज़ोर ज़ोर से चल रही थी ..मैं भी हाँफ रहा था ... मेरी आँखों में मा के लिए तड़प , भूख और एक अजीब सा नशा था ..

मा की आँखों में भी वोई सब था ..पर साथ में थोड़ी शर्म और झिझक भी थी ...

शायद उसकी जिंदगी में पहली बार किसी मर्द ने उसे इतना प्यार और सहारा देते हुए अपनी बाहों में लिया था ... पर बेचारी खुल कर उसे अपना नहीं सकती थी ...उसकी खोती किस्मत वो मर्द उसका बेटा था ...

पर उसे ये नहीं मालूम था के उसका बेटा असल मर्द था और वो एक असल औरत ....और उसके बेटे ने मन बना लिया था उसे अपनी औरत बनाने का ..हां अपनी पूरी की पूरी औरत ..

उस समय मेरी आँखों में वो हवस , नशा और तड़प गायब थी ..और उसकी जगह प्यार , वादा और मर मिटने की ख्वाहिश की झलक थी ...

मा ने मेरी तरफ देखा ..मेरी आँखों में उसे वो सब कुछ दिखा .... उसने सर झुका लिया ...मानो उसने अपनी मंज़ूरी दे दी .....

मैं खुशी से झूम उठा ...मैं आगे बढ़ा ..मा वही खड़ी थी ....सर झुकाए ...

तब तक बिंदु और सिंधु नाले से आ गयी ...

मा ने उन्हें देखते ही झट अपना चेहरा ठीक किया , और उनकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और कहा

" बिंदु ...देख बेटा ..मैं तो जा रही हूँ काम पर ... तुम दोनो चाइ पी लेना जग्गू को भी चाइ पिला देना और काम पर जाना ...ठीक है ना..??"

और झोपड़ी के कोने में बने चूल्‍हे की ओर चल पड़ी चाइ बनाने .

" हां आई ..तू फिकर मत कर ..सब हो जाएगा ..तू जा ... "

थोड़ी ही देर बाद मा ने चाइ बना ली और अपनी सारी ठीक करती हुई जल्दी जल्दी चाइ पी और बाहर निकल गयी ...

मैने मग उठाया ... दोनो बहनो की ओर देखा ... उनके होंठों पर फिर से बड़ी शरारती मुस्कान थी ..शायद उन्होने मा की झुकी झुकी आँखें और शर्म से भरे चेहरे को ताड़ लिया था ...

ग़रीबी इंसान को काफ़ी समझदार बना देती है....

और मैं भी मुस्कुराता हुआ नाले की तरफ निकल गया ....

कुछ देर बाद जब मैं वापस आया .. दोनो बहेनें उस झोपड़ी की एक ही टूटी फूटी खाट पर , जिस पे कि मेरा बाप सोता था ..बैठी थीं ..कुछ खुसुर पुसर बातें कर रही थी और मेरी तरफ देख मुस्कुराए जा रही थी ...और अपनी टाँगें खाट से लटकाए हिलाए जा रही थी ...

मैं उनके पैरों के बीच फर्श पर ही बैठ गया ... और अपना एक हाथ बिंदु के घुटने पर रखा और दूसरा सिंधु के घुटने पर .हल्के से दबाया ..उनका पैरों का हिलना बंद हो गया ..पर हँसी और भी बढ़ गयी ..खास कर सिंधु का ..जो शायद घर में सब से छोटी होने के चलते सब से चुलबुली थी ..

" ह्म्‍म्म्म..क्या बात है ...इतनी हँसी ..?? मैं क्या कोई जोकर हूँ..इतना हँसे जा रही है मेरे को देख के..?"

और फिर और जोरों से अपने हाथ उनके घुटनों पर दबाए ...

जवाब सिंधु ने ही दिया " लो अब हँसी पर भी कोई रोक है भाई..? ऊऊउउ भाई अपना हाथ तो हटाओ ना गुदगुदी होती है .." और फिर उनकी हँसी ने और ज़ोर पकड़ लीआ ...

अब मैने अपना हाथ घुटने से उपर ले जाते हुए उनकी जाँघ पर रखा और फिर दबाया ...उफ़फ्फ़ क्या महसूस था..जैसे किसी पाव भाजी वाला पॉ(ब्रेड) मेरी मुट्ठी में हो ..

" तू बता पहले क्या बात है .फिर हाथ हटाउंगा .." मैने कहा

इस बात पर दोनो की हँसी तो रुकी ..पर दोनो एक दूसरे को देख मंद मंद मुस्कुरा रही थी अभी भी

पर मेरा हाथ अभी भी वहीं के वहीं था ...

" चल जल्दी बोल ..वरना मेरा हाथ अभी और भी आगे और उपर जाएगा ...." मैने सीरीयस होते हुए कहा

बिंदु ने मौके की नज़ाकत समझते हुए कहा .." अछा बाबा बताती हूँ ..पर तू हाथ हटा ना भाई ...ऐसे भी कोई भाई अपनी बहनो को दबाता है क्क्या..??"

बिंदु की इस बात पर मैं थोड़ा झेंप गया ....

" अछा ले हटा दिया अब बोल.."

"अरे बाबा चाइ पीनी है के नहीं ..पहले चाइ तो पी लो भाई, फिर बातें करेंगे ...मैं चाइ लाती हूँ ..." और सिंधु बोलते हुए उठी और चाइ लाने झोपड़ी के कोने की ओर चल दी .

मैं उठा और सिंधु के जगह बिंदु से सॅट कर बैठ गया ... और बिंदु के चेहरे को अपनी ओर खिचा और पूछा " बोल ना रे ..क्या बात है...?"

" अरे कुछ नहीं भाई ... कल से जाने क्यूँ तुम हमें बहुत अच्छे लग रहे हो...रात को तू ने आई को कितने अच्छे से संभाला और हम दोनो को भी कितने प्यार से सुलाया ..हम दोनो येई सब बातें कर रहे थे ..... "

तब तक सिंधु भी आ गयी थाली पर तीन ग्लास चाइ लिए ..

" हां भाई दीदी ठीक ही तो बोल रही है ...पहले तुम कितने चुप रहते थे ..."

मैने चाइ का ग्लास लिया , एक घूँट लिया और कहा

" हां रे ...बात तो सही है...लगता है बापू के जाने से घर का माहौल काफ़ी खुला खुला हो गया है ...पहले साला कितना टेन्षन रहता था ...जब देखो गाली गलौज़ और लड़ाई झगड़ा ... "
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