RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
मैं एक बार फिर मायूस सी होकर उठी और आन्सर शीट वहीं छ्चोड़ कर ऑफीस के बाहर चली आई.. पर मुझे ना तो मेडम ही दिखाई दी और ना ही 'सर'
"कहाँ हैं मेडम?" मैने पीयान से पूचछा...
"अंदर चली जाओ.. पिछे बैठे होंगे..." पीयान ने कहा....
मैने अंदर जाकर देखा.. दोनो ऑफीस में पिछे सोफे पर साथ साथ बैठे कुच्छ पढ़ रहे थे... मेरे अंदर जाते ही मेडम ने मुझे घूर कर देखा," आ जा.. पहले तो तू मेरे पास आ...!"
"जी..", मैं मेडम के पास जाकर नज़रें झुका कर खड़ी हो गयी...
"ये क्या है?" मेडम ने एक पर्ची मुझे दिखा कर टेबल पर पटक दी....
मैने देखा.. वो वही पर्ची थी जो सर मुझसे छ्चीन कर लाए थे... उन्होने टेबल पर मेरे सामने उस 'लव लेटर' को उपर करके रखा हुआ था....," ज्जी.. मुझे नही पता कुच्छ भी..." मैने शर्मिंदा सी होकर जवाब दिया.....
"अच्च्छा.. तुझे अब कुच्छ भी नही पता.. यू.एम.सी. बना दूँगा तब तो पता चल जाएगा ना...?" सर ने गुस्से से कहा....
"ज़्ज़ि.. ययए मेरे पास पिछे से आकर गिरी थी.. मुझे नही पता किसने..." मैने धीमे स्वर में हड़बड़ा कर कहा.....
"क्या नाम है तेरा?" मेडम ने पूचछा...
"जी.. अंजलि!"
"ये देख.. तेरा ही नाम लिखा है उपर.. और तू कह रही है कि तुझे कुच्छ नही पता... ऐसे कितने यार बना लिए हैं तूने अब से पहले...!" मेडम ने तैश में आकर कहा...
मुझसे कुच्छ बोला ही नही गया... मैं चुपचाप सिर झुकाए खड़ी रही...
"मैं ना कहता था मेडम.. आजकल लड़कियाँ उमर से पहले ही जवान हो जाती हैं... अब देख लो.. सबूत आपके सामने है!" सर ने मेडम को मुस्कुराते हुए मुझे देख कर कहा.. वह मेरी मजबूरी पर चटखारे ले रहा था....
"हुम्म.. और बेशर्मी की भी हद होती है.. जवान हो गयी तो क्या? हमारे टाइम में तो ऐसी गंदी बातों का पता ही नही होता था इस उमर में.. और इसको देख लो.. कैसे कैसे गंदे लेटर आते हैं इसके पास... कौन है तेरा यार.. बता!"
"जी.. मुझे सच में कुच्छ नही पता.. भगवान की कसम.." मैने आँखों में आँसू लाते हुए कहा...
"अब छ्चोड़ो मेडम.. जो करेगी वो भरेगी.. हमारा क्या लेगी...? इसकी शीट मंगवा लो.. मैं यू.एम.सी. बना देता हूँ.. तीन साल के लिए बैठी रहेगी घर.. और ये लेटर भी तो अख़बार में देने लायक है...." सर ने कहा...
"सर प्लीज़.. ऐसा मत कीजिए..!" मैने नज़रें उठाकर सिर को देखा....मेरी आँखें दबदबा गयी.. पर वो अभी भी मेरी कमीज़ में बिना ब्रा के ही तनी हुई मेरी चूचियो को घूर रहे था.....
"तो कैसा करूँ..?" उसने मुझे देख कर कहा और फिर मेडम की तरफ बत्तीसी निकाल कर हंस दिया...
"देख लीजिए सर.. अब इसकी जिंदगी और इज़्ज़त आपके ही हाथ में है...!" मेडम भी कुच्छ अजीब से तरीके से उनकी ओर मुस्कुराइ...
"पूच्छ तो रहा हूँ.. क्या करूँ ? ये कुच्छ बोलती ही नही...." उसकी वासना से भारी आँखें लगातार मेरे बदन में ही गढ़ी हुई थी...
"सर.. प्लीज़.. मुझे माफ़ कर दो.. आइन्दा नही करूँगी..." मैने अपनी आवाज़ को धीमा ही रखा....
"इसकी तलाशी तो ले लो एक बार.. क्या पता कुच्छ और भी च्छूपा रखा हो...!" सर ने मेडम से कहा....
तलाशी की बात सुनते ही मेरे होश उड़ गये.. जो पर्चियाँ मैं घर से बना कर लाई थी.. वो अभी भी मेरी कछी में ही फँसी हुई थी.. मुझे अब याद आया....
"ना जी ना.. मैं क्यूँ लूं.. ? ये आपकी ड्यूटी है.. जो करना हो करिए... मुझे कोई मतलब नही...!" मेडम ने हंसते हुए जवाब दिया..
"मैं.. मैं मर्द भला इसकी तलाशी कैसे ले सकता हूँ मेडम... वैसे भी ये पूरी जवान है! मुझे तो ये हाथ भी नही लगाने देगी..." बोलते हुए उसकी आँखें कभी मुझे और कभी मेडम को देख रही थी....
"ऐसी वैसी लड़की नही है ये.. हज़ार आशिक तो जेब में रख कर चलती होगी... इसको कोई फ़र्क नही पड़ेगा मर्द के हाथों से... और मना करती है तो आपको क्या पड़ी है.. बना दीजिए यू.एम.सी. सबूत तो आपके सामने रखा ही है... पर मैं तलाशी नही लूँगी सर!" मेडम ने सॉफ मना कर दिया...
"मैं सेंटर को देख आती हूँ सर.. तब तक आप..." मेडम मुस्कुरकर कहते हुए अपनी बात को बीच में ही छ्चोड़ कर उठी और बाहर चली गयी....
उनकी बातों से मुझे अहसास होने लगा था कि सर की नज़र मेरी जवानी पर है.. और मेडम भी इसके साथ मिली हुई है....
"अब तलाशी तो लेनी ही पड़ेगी.. समझ रही हो ना!" सर ने मेरी आँखों में देख कर कहा...
मेरा टाइम निकला जा रहा था और उन्हे मस्ती सूझ रही थी... मैं कुच्छ ना बोली.. सिर्फ़ सिर झुका लिया अपना....
"बोलो.. जवाब दो..! या मैं यू.एम.सी. बना दूँ...? सर ने कहा....
"ज्जी.. मेरे पास 2 और हैं.. मैं निकाल कर आ जाती हूँ अभी..." मैने कसमसा कर कहा....
"निकालो.. जो कुच्छ है एक मिनिट में निकाल दो.. यहीं!" सर ने कहा....
मैं एक पल को हिचकिचाई.. फिर कुच्छ सोच कर तिछि हुई और उपर से अपनी स्कर्ट में हाथ डाल लिया... वो अब भी मेरी और ही देख रहा था.. मैने और अंदर हाथ लेजकर पर्चियाँ निकाली और उसको पकड़ा दी...
"हूंम्म... " उसने अपनी नाक के पास ले जाकर पर्चियों को सूँघा.. शर्म के मारे मेरा बुरा हाल हो गया... कुच्छ देर बाद वह फिर मुझे घूर्ने लगा," और निकालो..."
"जी.. और नही है.. एक भी...!" मैने जवाब दिया....
"तुम कुच्छ भी कहोगी और मैं विश्वास कर लूँगा... तलाशी तो देनी ही पड़ेगी तुम्हे...!" उसने बनावटी से गुस्से से मुझे घूरा....
"पर सर.. आधा टाइम पहले ही निकल चुका है पेपर का...!" मैने डरते डरते कहा....
"आज के पेपर को तो भूल ही जाओ... सिर्फ़ ये दुआ करो कि तुम्हारे तीन साल बच जायें.. समझी..." उसने गुर्रकार कहा...
"सर प्लीज़..." मैने सहम कर उसकी आँखों में देखा... वह एकटक मुझे ही घूरे जा रहा था...
"तुम समझ रही हो या नही.. तलाशी तो तुम्हे देनी ही पड़ेगी अगर तुम यू.एम.सी. से बचना चाहती हो.... तुम्हारी मर्ज़ी है.. कहो तो यू.एम.सी. बना दूं..." सर ने इस बार एक एक शब्द को जैसे चबा कर कहा....
"जी..." मुझे उसको तलाशी देने में कोई दिक्कत नही थी.. ऐसी तलाशी तो स्कूल के टीचर जाने कितनी ही बार ले चुके थे.. बातों बातों में.. सिर्फ़ मुझे टाइम की चिंता हो रही थी...
"क्या जी जी लगा रखा है.. मैने तो अब तुम पर ही छ्चोड़ दिया है.... तुम्ही बोलो क्या करूँ.. तलाशी लूँ या यू.एम.सी. बनाऊँ....?"
"जी.. तलाशी ले लो... पर प्लीज़.. केस मत बनाना.." मैने याचना सी करते हुए कहा...
"वो तो मैं तलाशी लेने के बाद सोचूँगा.. इधर आ जाओ.. मेरे पास...!" सर ने मुझे दूसरी और बुलाया.....
मैं टेबल के साथ साथ चलकर सर के पास जाकर खड़ी हो गयी.. मेरा चेहरा ये सोच कर ही लाल हो गया था कि अब वह तलाशी के बहाने जाने कहाँ कहाँ हाथ मारेगा... वह मुझे यूँ घूर रहा था मानो कच्चा ही चबा जाने के मूड में हो...
थोड़ा हिचकने के बाद उसने मेरी कमर पर हाथ रख दिया," अब भी सोच लो.. मैं तलाशी लूँगा तो अच्छे से लूँगा.. फिर ये मत कहना कि यहाँ हाथ मत लगाओ.. वहाँ हाथ मत लगाओ.. तुम्हारे पास अब भी मौका है.. बीच में अगर टोका तो मैं तुरंत यू.एम.सी. बना दूँगा...."
"जी.. मैं कुच्छ नही बोलूँगी... पर आप प्लीज़ केस मत बनाना.." मैं अब थोड़ा खुल कर बोलने लगी थी...
"ठीक है.. मैं देखता हूँ.." कहकर वो मेरे नितंबों पर हाथ फेरने लगा...," एक बात तो है..." उसने बात अधूरी छ्चोड़ दी और मेरे नितंबों की दरार टटोलने लगा.....
मेरे पुर बदन में झुरजुरी सी मचने लगी.. अब मुझे पूरा यकीन हो चला था कि तलाशी सिर्फ़ एक बहाना है.. मेरे बदन से खेलने के लिए...
"मेरी तरफ मुँह करके खड़ी हो जाओ.." उसने कहा और मैं उसकी तरफ घूम गयी... मेरी पकी हुई सी गोल गोल मस्त चूचियाँ अब कुर्सी पर बैठे हुए सर की आँखों से कुच्छ ही उपर थी.. और उसके होंटो से कुच्छ ही दूर...
"एक बात सच सच बतओगि तो मैं तुम्हे माफ़ कर दूँगा..!" सर ने मेरी शर्ट स्कर्ट में से निकालते हुए कहा....
"ज्जी..." मैने आँखें बंद कर ली थी...
"तुम्हे पता है ना कि ये लेटर वाली पर्ची किसने दी है तुम्हे?" उसने मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाला और मेरे चिकने पेट पर हाथ फेरने लगा..
मैं सिहर उठी.. उसके खुरदारे मोटे हाथ का स्पर्श मुझे अपने पेट पर बहुत कामुक अहसास दे रहा था... मैने आह सी भरकर जवाब दिया," नही सर.. भगवान की कसम..."
"चलो कोई बात नही.. जवानी में ये सब तो होता ही है.. इस उमर में मज़े नही लिए तो कब लॉगी..? ठीक कह रहा हूँ ना...?" उसने बोलते बोलते दूसरा हाथ मेरी स्कर्ट के नीचे से ले जाकर मेरे घुटनो से थोड़ा उपर मेरी जाँघ को कसकर पकड़ लिया....
"जी.. प्लीज़.. जल्दी कर लो ना!" मैने उस'से प्रार्थना की...
"मुझे कोई दिक्कत नही है.. मैं तो इसीलिए धीरे कर रहा हूँ.. ताकि तुम्हे शर्म ना आए.. ऐसा करने से तुम गरम हो रही होगी ना..." सर ने कहा और अपना हाथ एक दम उपर चढ़ा कर कछी के उपर से ही मेरे मांसल नितंबों में से एक को मसल सा दिया...
"आआअहह.." मेरे मुँह से एकदम तेज साँस निकली.. उत्तेजना के मारे मेरा बदन अकड़ने सा लगा था.....
"कैसा लग रहा है.. मतलब कोई दिक्कत तो नही है ना?" उसने नितंब पर अपनी पकड़ थोड़ी ढीली करते हुए कहा...
"जी.. नही..." मैने जवाब दिया.. मेरी टाँगें काँपने सी लगी थी.... यूँ लग रहा था जैसे ज़्यादा देर खड़ी नही रह पाउन्गि....
"अच्च्छा लग रहा है ना.." उसने दूसरे नितंब पर हाथ फेरते हुए पूचछा...
मैने सहमति में सिर हिलाया और थोड़ी आगे होकर उसके और पास आ गयी... मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.. सिर्फ़ पेपर की चिंता थी....
अगले ही पल वो अपनी औकात पर आ ही गया.. मेरे नितंब को अपनी हथेली में दबोचे दूसरे हाथ को वो धीरे धीरे पेट से उपर ले जाने लगा..," तुम गजब की हसीन और चिकनी हो.. तुम्हारे जैसी लड़की तो मैने आज तक देखी भी नही... तुम चिंता मत करो.. तुम्हारा हर पेपर अब अच्च्छा होगा... मैं गॅरेंटी देता हूँ... बस. तुम थोड़ा सा मुझे खुश कर दो.. मैं तुम्हारी ऐश कर दूँगा यहाँ.."
"पर.. आज का पेपर सर...?" मैने कसमसाते हुए कहा....
"ओह्हो..मैं कह तो रहा हूँ.. तुम्हे चिंता करने की कोई ज़रूरत नही अब... आज तुम्हे पेपर के बाद एक घंटा दे दूँगा... और किसी अच्छे बच्चे का पेपर भी तुम्हारे सामने रखवा दूँगा... बस.. अब तुम पेपर की बात भूल जाओ थोड़ी देर...." उसने कहा और मेरी कछी के अंदर हथेली डाल कर मेरी दरार को उंगलियों से कुरेद'ने लगा...
मैं मॅन को मिल्ली शांति और तन को मिली इस गुदगुदी से मचल सी उठी.. एक बार मैने अपनी आएडियन उठाई और और आगे हो गयी.. अब उसके चेहरे और मेरी चूचियो के बीच 2 इंच का ही फासला रहा होगा....," अयाया.. थॅंक्स सर.."
"हाए.. कितनी गरम गरम है तू.. मेरी किस्मत में ही थी तू.. तभी मुझे लव लेटर वाली पर्ची हाथ लगी.. वरना तो मैं सपने में भी नही सोच पाता कि यहाँ स्कूल में मुझे तुझ जैसी लौंडिया मिल सकती है... मज़ा आ रहा है ना..?" उसकी भी साँसें सी उखाड़ने लगी थी...
"जी.. आप जी भर कर तलाशी ले लो. बहुत मज़ा आ रहा है...!" मैने भी सिसकी सी लेकर कहा...
मेरे लाइन देते ही उसने झट से अपना हाथ उपर चढ़ा कर मेरे उरोज को पकड़ लिया... मेरी गदराई हुई चूचियाँ हाथ में आते ही वह मचल उठा," वाह.. क्या चीज़ बनाई है तू राम ने... तेरी चूचियाँ तो बड़ी मस्त हैं.. सेब के जैसी... दिल कर रहा है खा जाउ इन्हे..." वह मेरे उरोज के दाने को छेड़ता हुआ बोला.. वो भी अकड़ से गये थे....
मैं अपनी प्रशंसा सुनकर बाग बाग हो गयी.. थोड़ा इतराते हुए मैने आँखें खोल कर उसको देखा और मुस्कुरा दी..
उसने अपना हाथ निकाल कर मेरी कछी को थोड़ा नीचे सरका दिया.. गरम हो चुकी मेरी योनि ठंडी हवा लगते ही तिठुर सी उठी.. अगले ही पल वो अपनी एक उंगली को मेरी योनि की फांकों के बीच ले गया और उपर नीचे करते हुए उसका च्छेद ढूँढने लगा... मैं दहक उठी.. मेरी योनि ने रस बहाना शुरू कर दिया... उतावलेपन और उत्तेजना में मैने 'सर' का सिर पकड़ और अपनी तरफ खींच कर अपनी चूचियो में दबा लिया...
इसी दौरान उसकी उंगली मेरी योनि में उतर गयी.. मैं उच्छल सी पड़ी.. पर योनि ने उसको जल्दी ही अपने अंदर अड्जस्ट कर लिया...
"बहुत टाइट है तेरी 'ये' तो.. पहले कभी किया नही.. लगता है..!" उसने कहा और मेरी शर्ट के उपर वाले दो बटन खोल दिए... मेरी मस्तयि हुई गौरी चूचियाँ तपाक से उपर से छलक सी आई....
मेरी कमीज़ में घुसे हुए उसके हाथ से उसने एक चूची को और उपर खिसका दिया.. और चूची पर जड़े मोती जैसे गुलाबी दाने को कमीज़ से बाहर निकाल लिया.... उसको देखते ही वह पागल सा हो गया," वाह.. इसको कहते हैं चूचक.. कितना प्यारा और रसीला है.." आगे वह कुच्छ ना बोला.. अपने होंटो में उसने मेरे दाने को दबा लिया था और किसी बच्चे की तरह उसको चूसने लगा...
मैं घिघिया उठी... बुरा हाल हो रहा था... उसने अपनी उंगली बाहर निकाली और फिर से अंदर सरका दी... इतना मज़ा आ रहा था कि बयान नही कर सकती... मेरे होश उड़े जा रहे थे.. मैं सब कुच्छ भूल चुकी थी... ये भी कि मैं यहाँ पेपर देने आई हूँ...
|