RE: Desi Sex Kahani बाली उमर की प्यास
पिंकी बहुत डरी हुई थी.. शायद वो भी घर में ही शेर थी.. सर के सामने वो खड़ी खड़ी काँपने लगी थी...
मैं कुच्छ बोल नही पा रही थी... पर सच में मुझे बिल्कुल भी अच्च्छा नही लग रहा था उस समय.. पिंकी के कारण!
"अभी तो एक ही पेपर हुआ है.. 5 तो बाकी हैं ना.. सेंटर में इतनी सख्तयि कर दूँगा कि एक दूसरे से भी कुच्छ पूच्छ नही सकोगी.. देखता हूँ तुम जैसी लड़कियाँ कैसे पास होती हैं फिर...." सर ने गुर्राते हुए धमकी दी और मेरी कमीज़ के अंदर हाथ डाल कर मेरी चूचियो को मसल्ने लगे...
उनकी इस धमकी का पिंकी पर क्या असर हुआ.. ये तो मैं समझ नही पाई.. पर खुद मैं एकदम ढीली हो गयी.. और उनका विरोध करना छ्चोड़ दिया.. मैं मजबूर होकर पिंकी को देखने लगी... वो खड़ी खड़ी रो रही थी....
"हमें जाने दो सर.. प्लीज़.. मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूँ... आप कुच्छ भी कर लेना.. पर हमें अभी जाने दो.." पिंकी सुबक्ती हुई बोली....
"चुप चाप खड़ी रह वहाँ.. मैने नही बुलाया था तुम्हे अंदर.. तुम्हारी ये 'छमियिया' लेकर आई थी.. और मैं तुम्हे कुच्छ कह भी नही रहा.. अब ज़्यादा बकवास मत करो और चुपचाप तमाशा देखो..." सर ने कहा और मुझे खड़ा कर दिया... पिंकी की सूरत देख मेरी भी आँखों में आँसू आ गये..
सर आगे हाथ लाकर मेरी स्कर्ट का हुक खोलने लगे.. मैने पिंकी को दिखाने के लिए उनका हाथ पकड़ लिया..," छ्चोड़ दो ना सर! प्लीज़"
"बहुत प्ल्ज़ सुन ली तेरी.. अब चुपचाप मेरी प्लीज़ सुन ले.. ज़्यादा बोली तो पता है ना.." उन्होने कहा और झटके के साथ हुक खोल कर स्कर्ट को नीचे सरका दिया... पिंकी जैसी लड़की के सामने इस तरह खुद को नंगी होते देख मेरी आँखें एक बार फिर डॅब्डबॉ गयी... मैं अब नीचे सिर्फ़ कछी में खड़ी थी... और अगले ही पल कछी भी नीचे सरक गयी.. मेरे नंगे नितंब अब 'सर' की आँखों के सामने थे.. और योनि 'पिंकी' के सामने.. पर पिंकी ने इस हालत में मुझे देखते ही अपनी आँखें झुका ली और सुबक्ती रही.....
"अया.. क्या माल है तू भी लौंडिया!.. चूतड़ तो देखो! कितने मस्त और टाइट हैं.. एक दम गोल गोल... पके हुए खरबूजे की तरह..." सर ने मेरे नितंबों पर थपकी सी मारने के बाद उनको अलग अलग करने की कोशिश करते हुए कहा..," हाए.. बिल्कुल एक नंबर. का माल है...कितनी चिकनी चूत है तेरी... मैने तो सपने में भी नही सोचा था कि इंडिया में भी ऐसी चूते मिल जाएँगी... क्या इंपोर्टेड पीस है यार..."
पिंकी का रो रो कर बुरा हाल हो रहा था.. पर उसकी सुन'ने वाला वहाँ था कौन.. उसने अपना चेहरा दूसरी और घुमा लिया...
"चल.. टेबल पर झुक जा.. पहले तेरा रस पी लूँ..." सिर ने कहते हुए मेरी कमर पर हाथ रख कर आगे को दबा दिया... ना चाहते हुए भी मुझे झुकना पड़ा... मैने अपनी कोहनियाँ टेबल पर टीका ली....
"हां.. ऐसे.. शाबाश.. अब टाँग चौड़ी करके अपने चूतड़ पिछे निकल ले..!" सर ने उत्तेजित स्वर में कहा....
उसकी बात समझने में मुझे ज़्यादा परेशानी नही हुई.. अब पिंकी के सामने मेरी जो मिट्टी पलीत होनी थी.. वह तो हो ही चुकी थी.... मैं अब जल्द से जल्द उसको निपटाने की सोच रही थी.. मैने अपनी कमर को झुकाया और अपनी जांघें खोलते हुए अपने नितंबों को पिछे धकेल सा दिया... मेरी योनि अब लगभग बाहर की ओर निकल चुकी होगी....
"ओये होये.. मा कसम.. क्या चूत है तेरी.. दिल करता है इसको तो मैं काट कर अपने साथ ही ले जाउ!" कहकर उसने सिसकते हुए मेरे नितंबों को अपने दोनो हाथों में पकड़ा और अपनी जीभ निकाल कर एक ही बार में योनि को नीचे से उपर तक चाट गया.. मेरी सिसकी निकल गयी....
"देखा.. कितना मज़ा आया ना? इसको भी समझा.. ये भी थोड़े मज़े लेना सीख ले मुझसे.. जवानी चार दिन की होती है.. फिर पछ्तायेगि नही तो... " सर ने कहने के बाद एक बार और जीभ लपलपते हुए मेरी योनि की फांकों में खलबली मचाई और फिर बोले," कह दे ना इसको.. दो मैं तो अलग ही मज़ा आएगा.. बोल दे इसको.. मौज कर दूँगा ससूरी की.. मेरिट ना आए तो कहना..."
मैं कुच्छ ना बोली... मैं क्या बोलती..? मेरा बुरा हाल हो चुका था.. अब लगातार नागिन की तरह मेरी योनि में लहरा रही उसकी जीभ से मैं बेकाबू हो चुकी थी.. अपने आपको सिसकियाँ भरने से भी नही रोक पा रही थी...,"अया... सर्ररर... आआआः..."
"पगली.. सर की हालत भी तेरी ही तरह हो चुकी है.. कुच्छ मत बोल अब... अब तो मुझे घुसने दे जल्दी से!" बोल कर वह खड़ा हो गया...
मैं आँखें बंद किए सिसकियाँ लेती हुई मस्ती में खड़ी थी.. अचानक मुझे अपनी योनि की फांकों के बीच कुच्छ गड़ता हुआ महसूस हुआ.. समझ में आते ही मैं हड़बड़ा गयी और इसी हड़बड़ाहट में टेबल पर गिर गयी...
"अया.. ऐसे मत तडपा अब... बिल्कुल आराम से अंदर करूँगा.. मा कसम.. पता भी नही लगने दूँगा तुझे... तेरी तो वैसे भी इतनी चिकनी है कि सर्ररर से जाएगा.. आजा अंजू आजाआअ!" पगलाए हुए से सर ने मुझे कमर से पकड़ कर ज़बरदस्ती फिर से वैसे ही करने की कोशिश की... पर इस बार मैं अड़ गयी...
"नही सर.. ये नही!" मैने एक दम से सीधी खड़ी होकर कहा....
"ये क्यूँ नही मेरी जान... ये ही तो लेना है.. एक बार थोड़ा सा दर्द होगा और फिर देखना... चल आजा.. जल्दी से आजा... टाइम वेस्ट मत कर अब!" सर ने अपने लिंग को हाथ में लेकर हिलाते हुए कहा....
"नही सर.. अब बहुत हो गया.. जाने दो हमें.." मैं अकड़ सी गयी...
"ज़्यादा बकबक की तो साली की गांद में घुसेड दूँगा ये.. नौ सौ चूहे खाकर अब बिल्ली हज को जाएगी... चुपचाप मान जा वरना अपनी सहेली को बोल के चूस देगी थोड़ा सा... फिर मैं मान जाउन्गा..." सर ने कहा...
अजीब उलझन में आ फाँसी थी मैं... अगर घुस्वा लेती तो फिर मा बन'ने का डर.. पिंकी को बोलती तो बोलती कैसे? वो पहले ही मुझे कोस रही होगी... अचानक सर मेरी तरफ लपके तो मेरे मुँह से घबराहट में निकल ही गया," पिंकी.. प्लीज़..."
पिंकी ने मेरी तरफ घूर कर घृणा से देखा.. और फिर अपना चेहरा दीवार की तरफ कर लिया...
सर अब ज़्यादा मौके देने के मूड में नही थे.. उन्होने ज़बरदस्ती मुझे पकड़ कर सोफे पर गिरा लिया और मेरी टाँगें पकड़ कर दूर दूर फैला दी.. इसके साथ ही मेरी योनि की फाँकें अलग अलग होकर सर को आक्रमण के लिए आमंत्रित करने लगी...
सर ने जैसे ही घुटने सोफे पर रखे.. मैं दर्दनाक ढंग से बिलख पड़ी," पिनकयययी.. प्लीज़.. बचा ले मुझे...!"
सर ने मेरे आह्वान पर मुड़कर पिंकी को देखा तो मेरी भी नज़र उसी पर चली गयी.. पर वह चुपचाप खड़ी रही....
"ऐसी सहेलियाँ बनाती ही क्यूँ है जो तेरे सामने खड़ी होकर भी तेरी सील टूट'ते देखती रहें... ये किसी काम की नही है.. तुझे चुदना ही पड़ेगा आज..." सर ने कहा और मेरी जांघों को फैलाकर फिर से मुझ पर झुकने लगे.. मैं बिलख रही थी.. पर वो 'कहाँ' सुनते? उन्होने वापस अपना लिंग मेरी योनि पर टीकाया ही था कि अचानक खड़े हो कर पलट गये...
"क्या करना है सर?" पिंकी आँखें बंद किए उनके पास खड़ी थी.. और उसकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लगी हुई थी......
क्रमशः ..................
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