RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
"अच्छा है झाड़. जाएगा. कम से कम मेरी गांद तो बच जाएगी. मैं नही मराती बाबा" मेरी हालत खराब थी. झाड़. ना जाउ इसलिए मैं पलंग से उठ कर भागा और दूर खड़ा हो गया. किसी तरह सनसनाते लंड पर काबू किया. मोम मेरा हाल देखकर पासीज गयी. पलंग पर लेटते हुए बोली "मैं मज़ाक कर रही थी मेरे लाल, देख रही थी कि चप्पालों का तुझ पर क्या असर होता है, तू सच मे इनका शौकीन है. आ कर ले तुझे जो करना है. तेरा यह मूसल मेरी फाड़. देगा शायद पर तेरी खुशी के लिए मैं यह दर्द भी सह लूँगी." मैंने मोम के पास जाकर उसकी बुर का चुंबन लेते हुए कहा.
"नही माँ, मैं कम से कम दर्द होने दूँगा तुझे. बहुत प्यार से लूँगा तेरी. अब पलट कर लेट जाओ" मोम पेट के बल लेट गयी.
"ले मार" उसके फूले विशाल नितंबों को हाथों से सहलाकार मैं बोला
"पहले इन्हे प्यार तो कर लेने दो माँ, कब से तरस रहा हू इनके लिए" और मैं मोम के नितंबों पर भूखे की तरह टूट पड़ा. अगले पाँच मिनिट मेरे लिए ऐसे थे जैसे भूखे के आगे दावत रख दी गयी हो. मैंने मोम के नितंब चाते, उन्हे खूब चूमा, हल्के हल्के दाँत से काटा और फिर उन्हे अलग करके देखने लगा. बीच का भूरा सकरा छेद मुझे आमंत्रित कर रहा था. मैंने उसे चूमना शुरू कर दिया. जीभ बाहर निकालकर उसे लगाई. मोम बिचक गयी.
"अरे क्या कर रहा है? पागल तो नही है, कहाँ मुँहा लगा रहा है." मैंने मोम का गुदा चूमते हुए कहा
"तुम नही समझोगी माँ, मेरे लिए यहा जन्नत का दरवाजा है" मोम भी अब गरमा गयी थी. नीचे से खुद ही अपनी उंगली से अपनी चूत को रगड़. रही थी.
"अनिल जल्दी कर ना, फिर मैं करती हू मुझे जो करना है"
"माँ, चलो घोड़ी बन जाओ कल जैसी, पर पलंग के छ्होर पर" मेरी बात मान कर मोम घोड़ी बन गयी. पीछे से अब उसकी चूत और गांद का छेद दोनों दिख रहे थे. चूत मे से पानी बह रहा था. पहले मैंने उसके नितंब पकड़.आकर उसकी बुर को चाटना शुरू कर दिया. जब वह और गरम हो गयी और अपने कूल्हे हिलाने लगी तब मैंने वेसलिन की शीशी उठाकर अपने लंड मे खूब सा वेसलिन चुपद. लिया. फिर उंगली पर थोड़ा लेकर मों के गुदा मे उंगली डाल दी. क्या कसा था मोम का छेद!
"उई मों , धीरे से रे" मोम बोली. मैं हँसने लगा
"माँ, अभी तो एक उंगली डाली है, फिर दो डालूँगा और फिर लंड दूँगा अंदर. तू सच मे टाइत है, कुँवारी कन्या जैसी"
"चल बाते ना बना, जल्दी कर" मोम ने परेशान होकर कहा. मैंने एक उंगली अंदर बाहर करके ठीक से अंदर तक वेसलिन चुपद. दिया. फिर दो उंगली मे लेकर वैसा ही किया. इस बार मोम को ज़्यादा दर्द हुआ पर वह बस सिसक कर फिर चुप हो गयी. इस बार मैंने खूब देर मोम की गांद मे दो उंगलियाँ की कि उसे आदत हो जाए.
आख़िर उंगलियाँ निकालकर मैं उसके पीछे खड़ा हो गया. उसके नितंब एक हाथ से पकड़कर दूसरे से सुपाड़ा उसके गुदा पर जमाया
"तैयार हो जा माँ, मैं अंदर आ रहा हम तेरे पीछे के दरवाजे से." मैंने लंड अंदर पेलना शुरू किया. मों ने गांद सिकोडी हुई थी इसलिए अंदर नही जा रहा था. "माँ, ज़रा ढीला छोड़ो ना, रिलैक्स करो"
"ठीक है अनिल, पर तेरी दो उंगली अंदर जाती है तो दर्द होता है, तेरा ये मूसल जाएगा तो क्या होगा" मोम ने चिंतित स्वर मे पूछा.
"मूसल कहाँ है माँ, बिलकुल छोटा है, लोगों के तो कितने बड़े होते हैं, दस दस इंच के" मैने मन ही मन खुश होते हुए कहा. मुझे हमेशा लगता था कि मेरा लंड और थोड़ा बड़ा होता तो मज़ा आता. पर मोम को मेरा लंड बड़ा लगता था यह सुनकर बहुत अच्छा लगा.
मों ने एक साँस ली और अपना गुदा थोड़ा ढीला किया. मैंने तुरंत सुपाड़ा मोम की गांद के छल्ले के अंदर कर दिया. मोम का शरीर कड़ा हो गया और उसके मुँहा से एक हल्की चीख निकल गयी. मैंने लंड पेलना बंद कर दिया. मोम को पूछा
"माँ, बहुत दुख रहा है क्या? निकाल लूँ बाहर"
"नही बेटे, अभी मैं ठीक हो जवँगी. बस एक मिनिट रुक जा" कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि मों के गुदा का छल्ला थोड़ा ढीला हो गया है. उसका शरीर जो तन सा गया था, थोड़ा रिलैक्स हो गया. मैंने फिर लंड पेलना शुरू किया. मोम बीच मे सीत्कार उठती "अनिल, बहुत दुखाता है रे" तब मैं रुक जाता. पर मोम ने मुझे यह नही कहा कि बेटे निकाल लो, मैं नही मरा सकती.
क्या आनंद था, क्या सुख था, मोम की मुलायामा गांद मे जैसे मेरा लंड अंदर धँसाता गया, मुझे ऐसे लगाने लगा कि घच्च से एक बार पेल दूं और ज़ोर से चोद डालूं. पर मैंने खुद पर पूरा नियंत्रणा रखा, आख़िर मेरी प्यारी मोम थी, कोई चुदैल रंडी नहीं. और मोम ने मेरी खुशी के लिए इस दर्द को भी हँसते हँसते स्वीकार कर लिया था तो मेरा भी फ़र्ज़ था कि मैं उसे तकलीफ़ ना होने दूं.
आख़िर मेरा लंड जड़. तक मोम के नितंबों के बीच समा गया और मेरा पेट उनसे सॅट गया. मैं एक मिनिट बस खड़ा रहा. अपने हाथों से मोम की पीठ और नितंब प्यार से सहलाता रहा. आख़िर मोम बोली
क्रमशः.................
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