RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--5
गतान्क से आगे...........................
इतना शोर सुनकर ठाकुर साहब और स्नेहा दौड़ते हुए घर से बाहर निकले...
"क्या हो रहा है यहाँ...?" ठाकुर साहब ने कड़कती हुई आवाज़ मे कहा..जिसे सुनकर तीनो मुस्टंडे शांत हो गये... सामने राज लहूलूहान अवस्था मे पड़ा हुआ था... तबतक स्नेहा की नज़र उस तरफ जा चुकी थी पर राज का चेहरा ज़मीन की तरफ था जिससे वो उसका चेहरा नही देख पाई.....
"ठाकुर साहब ये चोर अपने घर मे चुपके से चोरी करने के लिए घुस रहा था.. मैने इसे देख लिया और पकड़ कर इसकी पिटाई कर दी.." गार्ड ने अपना सीना फूलते हुए कहा जैसे कोई बहुत बड़ा काम कर दिया हो...
"चोर को कोई ऐसे जानवरों की तरह मारता है क्या...?" स्नेहा ने दयनिय नज़रों से उस चोर की तरफ देखते हुए कहा...
"माफ़ करना बिटिया पर चोर को देखकर इतना गुस्सा आ गया था हम को की पूरा हाथ सॉफ करवा दिए इन मुस्टांडों से.. और जब ई चोरवा बोला कि वो आपसे मिलने आया था और आपके साथ पढ़ता था तो हम को और गुस्सा आ गया कि ये ससुरा हमारी बिटिया का नाम बीच मे ला रहा है और हम ने इसकी पिटाई करवा दी.." गार्ड ने कहा...
साथ पढ़ने वाली बात सुनकर स्नेहा का माता ठनका और वो दौड़ती हुई राज के पास पहुँच गयी... इतनी लात खाने के कारण वो अब तक बेहोश हो चुका था... स्नेहा ने उसका चेहरा जैसे ही अपनी तरफ घुमाया; उसकी चीख निकल गयी.. और उसकी आँखों मे आँसू आ गये...
"बेटी तू इसे जानती है क्या..?" स्नेहा की चीख सुनकर ठाकुर साहब ने पूछ ही लिया...
"हां पापा.. ये मेरे ही कॉलेज मे पढ़ता है.. इसका नाम राज सिंघानिया है.." स्नेहा ने राज का नाम बताते हुए कहा..
ठाकुर साहब:- राज सिंघानिया.. ह्म्म.. ये नाम तो कुछ जाना पहचाना लग रहा है.. कहीं ये प्रताप सिंघानिया का बेटा तो नही..
"कौन प्रताप सिंघानिया पापा..?" स्नेहा ने सवाल किया..
"अब जाने दो बेटा.. इसे होश आने दो तब ये खुद बता देगा..." ठाकुर साहब उसे देख कर कुछ सोच रहे थे.. शायद अपने पुराने दिन याद कर रहे थे...
"इसे इतना मारने की क्या ज़रूरत थी.. देखो क्या हाल बना दिया बेचारे का... तुमलोगों को मैं अभी नौकरी से निकलवा दूँगी..." अब स्नेहा ने उन्न मुस्टांडों की तरफ देखते हुए कहा.. राज अब भी उसकी गोद मे पड़ा हुआ था..
"माफ़ कर दो बिटिया... पर हमे लगा कि ई कोई चोर है..." गार्ड ने सफाई देने की कोशिश करते हुए कहा...
"तो इसने कहा था ना कि ये मेरे साथ पढ़ता है.. तुम मुझे बुलाकर पूछ भी तो सकते थे..इस अकेले को मारकर अपनी मर्दानगी झाड़ने लगे..?" पता नही क्यों आज स्नेहा को कुछ ज़्यादा ही गुस्सा आ रहा था... ठाकुर साहब ने पहले कभी उसे इतने गुस्से मे नही देखा था.. उन्हे लगा कि शायद उसकी नींद पूरी नही हुई है इसलिए वो गुस्सा रही है...
"बेटा अब जाने भी दो... ग़लती हो गयी उनसे.." ठाकुर साहब ने स्नेहा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा... तब जाकर कहीं वो शांत हुई...
"इसे उठाकर अंदर ले आओ मेरे कमरे मे.." स्नेहा ने उन लोगों को आदेश दिया..
"तुम क्या करोगी इसके साथ..?"ठाकुर साहब उसकी बात सुनकर असमंजस मे पड़ गये..
"मरहम पट्टी करूँगी पापा और क्या...?"
"पर बेटा उसके लिए मैं डॉक्टर को फोन कर दूँगा.. तुम्हें क्या ज़रूरत है इसकी..?" ठाकुर साहब ने स्नेहा की तरफ देखते हुए कहा..क्योंकि स्नेहा ने आज तक खुद की भी महराम पट्टी नही की थी और अचानक अब वो नर्स बनने चली थी..
"पापा.. ये मेरे कॉलेज मे पढ़ता है.. आपको चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है... मैं कर दूँगी.." स्नेहा ने फिर ज़िद्द की..
"अच्छा ठीक है बेटा.. जैसी तेरी मर्ज़ी.." ठाकुर साहब ने ज़्यादा बहस करना ठीक नही समझा और उन्न मुस्टांडों को राज को कमरे मे पहुँचाने का आदेश देकर चले गये...
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"एम्म..मैं कहाँ हूँ...?" राज की आँखें धीरे धीरे खुल रही थी... इतनी ज़्यादा मार खा कर वो आज दिन भर बेहोश रहा था.. स्नेहा ने उसे फर्स्ट एड देने के बाद डॉक्टर को भी बुला लिया था ताकि किसी तरह की लापरवाही की गुंजाइश ना रह जाए... उसके सर पर पट्टी बँधी हुई थी और मुह्न पर भी पट्टी सटी हुई थी.. वो उठने की कोशिश करने लगा पर स्नेहा ने उसे उसके कंधे पकड़ कर उसे उठने से रोक दिया..
"मैं कहाँ हूँ.." अपनी कमज़ोर लड़खड़ाती आवाज़ मे उसने एक बार फिर पूछा..
"तुम अभी मेरे घर ठाकुर विला मे हो.." उसके कानो मे एक पतली सुरीली सी आवाज़ गूँज उठी... उसने सर थोड़ा सा ऊपर करके देखने की कोशिश की तो सामने उसने चाँद से भी सुंदर.. अपने सपनो की राजकुमारी स्नेहा को पाया... उसे देखते ही ऐसा लगा जैसे उसका दर्द एक पल मे ही गायब हो गया हो...
"अरे स्नेहा तुम... पर मैं यहाँ कैसे पहुँचा...?" उसने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा..
"भगवान का शुकर करो कि तुम यहीं तक पहुँचे हो.. अगर मैं वहाँ समय पर नही पहुँची होती तो अभी ऊपर पहुँच गये होते.." स्नेहा ने ऊपर की तरफ इशारा करते हुए कहा...
"बहुत मारते हैं तुम्हारे नौकर यार... कीमा बना दिया मेरा.. हाए शरीर मे बड़ा दर्द हो रहा है..." राज ने अंगड़ाई लेते हुए कहा..
"उसी काम के लिए रखा है पापा ने उन्हे.. और तुम्हें क्या ज़रूरत थी ऐसे चोरों की तरह अंदर घुसने की..? इतना मारा उन्होने तुम्हें..अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो..?" स्नेहा ने उसे डाँटते हुए कहा...
"मैं तो सिर्फ़ तुमसे मिलना चाहता था स्नेहा.."
"इतनी सुबह सुबह कोई मिलने आता है भला..? तुम्हें कुछ हो जाता तो मेरा क्या होता..?" ना चाहते हुए भी उसकी ज़ुबान से ये बात निकल ही गयी... उसने राज की तरफ देखा जो मुस्कुराता हुआ प्यार भरी नज़रों से उसकी तरफ देख रहा था पर स्नेहा की हिम्मत नही हो रही थी की वो राज से नज़रें मिला सके...
"तुम्हें अब थोड़े आराम की ज़रूरत है... मैं तुम्हारे लिए दूध भिजवा देती हूँ.. अगर हर फोन करना हो तो(रूम मे लगे टेबल की तरफ इशारा करते हुए) फोन उधर है... अब मैं चलती हूँ... कल सुबह मिलते हैं..." इतना बोलकर वो नज़रें झुकाए हुए बाहर की तरफ लगभग दौड़ती हुई चली गयी... उसने राज को कुछ भी बोलने का मौका नही दिया.. पर वो अब तक स्नेहा के दिल की बात भी जान चुका था और अब उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी जैसे उसने अपना सबसे बड़ा लक्ष्य पा लिया हो..
मोहब्बत में तेरी खो गये हम इस कदर,
ख़यालों खवाबों में आए सिर्फ़ तू ही नज़र,
ना है कोई होश ना कोई खबर खुद की अब,
तू ही है मेरी मंज़िल तू ही है हर मंज़र
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