RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--6
गतान्क से आगे...........................
जिस दिन तू आएगा मुझे सर-ए-आम अपनाने,
उस दिन मैं खामोशी के दायरे को तोड़ दूँगी,
फास्लो पे रहकर भी हमारे जज़्बात जुड़े है मज़बूत धागे से,
जब हम होंगे साथ तो मैं अपनी सांसो की लड़िया भी तुझसे जोड़ दूँगी,
यू तो आज भी मेरे रुख़ सार तेरी ही तरफ मुड़ते है,
पर तुझे पा के मैं अपनी ज़िंदगी भी तेरी तरफ मोड़ दूँगी,
इंतेज़ार है मुझे उस पल का मेरे अजनबी..
जब थाम के तेरा हाथ मैं तन्हाई का दामन हमेशा के लिए छ्चोड़ दूँगी.........
कॉलेज जाते हुए स्नेहा के मंन मे यही बात घूम रही थी.. उसका मंन ऐसा कर रहा था जैसे वो उड़ कर जाए और राज की बाहों मे समा जाए. पर उसे सबसे ज़्यादा डर अपने पापा से लग रहा था.. हालाँकि उसने अपने दिल मे राज को जगह तो दे दी थी पर क्या ये रिश्ता उसके बाप को मंजूर होगा.. राज के बारे मे उसे कोई फिकर ना थी क्यूंकी वो जानती थी कि वो उससे बेन्तेहा प्यार करता है..
इन्ही सोचों मे डूबी हुई वो कॉलेज पहुँच गयी..
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ट्रेन पर बैठी लड़की अचानक चौंक उठी.. वो अपने सोच से बाहर आ चुकी थी.. क्यूंकी सामने जो लोग उसे दिखाई दे रहे थे उन्हे देखते ही उसकी जान निकल गयी.. वो जल्दी से अपनी सीट से उठी और भागती हुई ट्रेन मे बने बाथरूम मे घुस गयी..
"खोजो उसे.. यहीं कहीं होनी चाहिए वो लड़की.. बच के जानी नही चाहिए.. वरना हम सर को क्या जवाब देंगे.." बाहर से आवाज़ें आ रही थी. ट्रेन अभी किसी अंजान स्टेशन पर रुकी हुई थी. उससे लड़की को पता नही चल पा रहा था, कि ट्रेन कहाँ है.
उसने बाथरूम की खिड़की से आस पास देखा तो पाया कि वो एक छोटा सा स्टेशन है..जहाँ इकके दुक्के लोग ही दिखाई दे रहे थे. उसे साइड मे एक बोर्ड दिखाई दिया जिसमें छोटे अक्षरों मे रामपुर दिखाई दिया.
वो तो यूँही इस ट्रेन मे घुस गयी थी.. जहाँ उसे मंज़िल ले जाती वो वहीं जाने वाली थी.. ज़िंदगी मे अब उसके कुछ नही बचा था..
हां.. सबकुछ खो दिया था उसने.. वो भी एक ही झटके मे..
जीने की इच्छा ख़त्म हो चुकी थी.. पर खुदको मार भी तो नही सकती थी.. कैसे ख़त्म करती खुदको...?
उसके पेट मे उसके पति के प्यार का तोहफा जो पल रहा था..
तभी ट्रेन खुल गयी... शाम हो चुकी थी.. और अंधेरा घिरने को था. बाहर से आवाज़ें आनी भी बंद हो चुकी थी. उसने दरवाज़ा खोला और बाहर झाँका..पर उसे उनमे से कोई आदमी नही दिखा..ट्रेन भी अब अपनी पूरी रफ़्तार पकड़ चुकी थी.. वो अपने सीट पर वापस आई और कुछ सोचने लगी.. शायद यही सोच रही थी कि उसे पोलीस ने यहाँ तक ढूँढ लिया है तो आगे भी उसका बचना अब मुश्किल ही था.. उसने सर को झटका दिया और फिर वापस उन्ही ख़यालों मे खो गयी...
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स्नेहा कॉलेज पहुँच चुकी थी मगर राज अब भी उसे कहीं दिखाई नही दे रहा था..
"पता नही कहाँ चला गया.." वो अभी ये सोच ही रही थी कि उसे सामने से रवि आता हुआ दिखाई दिया... रवि ने दूर से ही भाँप लिया था कि स्नेहा उसी की तरफ देख रही है..बस उसके इशारे का इंतेज़ार कर रहा था.. और उसे ज़्यादा देर इंतेज़ार भी नही करना पड़ा..
स्नेहा ने हाथों के हल्के से इशारे से उसे अपने पास बुलाया ताकि कोई देख ना ले... फिर स्नेहा धीरे धीरे गार्डन की तरफ जाने लगी और रवि भी उसके पीछे पीछे गार्डन की ओर चला गया..
एक सुनसान जगह पाकर वो दोनो रुक गये...
"हां स्नेहा बोलो.. यहाँ कोने मे क्यूँ बुलाया.." रवि ने शैतानी मुस्कान के साथ कहा..
"ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नही है... ये बताओ राज कहाँ है...?" स्नेहा के इस तरह से पूछने से रवि ने अपने होंठों को नॉर्मल कर लिया और किसी जेंटलमॅन की तरह खड़ा हो गया पर जैसे ही स्नेहा ने राज के बारे मे पूछा तो उसकी मुस्कान फिर वापस आ गयी..
"क्यूँ बड़ी याद आ रही है राज की.. क्या बात है...?" रवि ने फिर से दाँत निकालते हुए कहा..
रवि को ऐसे दाँत निकालते देख कर स्नेहा को बड़ा गुस्सा आया और उसके सुंदर चेहरा लाल हो गया..
ये देखकर रवि भाई साहब फिर शांत हो गये..
"देखो स्नेहा.. मैं भी सुबह से राज का फोन ट्राइ कर रहा हूँ.. पर पता नही कहाँ मर गया साला.." रवि ने भी राज के प्रति गुस्से का इज़हार करते हुए कहा..
"आज सुबह तो वो मेरे घर से निकला.. पर पता नही फिर कहाँ चला गया..." अब स्नेहा के चेहरे पर उदासी का भाव आ गया..
"क्या वो तुम्हारे घर पर था..?" रवि ने ऐसा मुह्न बनाया जैसे उसे कुछ पता ही ना हो.. पर एक बात स्नेहा नोट करना भूल गयी..वो ये कि रवि ये बोलते हुए बड़ी मुश्किल से अपनी हसी को रोक पा रहा था... स्नेहा की सूरत ऐसी हो गयी..जैसे वो बस अब रोने ही वाली हो..
"कहाँ चला गया मेरा राज..?" स्नेहा अब शायद सच मे रोने लगी थी.. उसकी सिसकियाँ सॉफ सुनी जा सकती थी..
रवि ये सब देख कर मंद मंद मुस्कुराए जा रहा था.. और सामने स्नेहा के आँसू अब और तेज़ी से बह रहे थे...
तभी स्नेहा को अपने कंधों पर कुछ महसूस हुआ... उसने पीछे घूमकर देखा तो सामने राज खड़ा था.. और बड़े जोरों से हस रहा था... हस्ते हस्ते उसकी आँखों से पानी निकल आया...
स्नेहा ने जैसे उसे हस्ते देखा.. उसके आँसू गुस्से मे बदल गये और "चटाक़" की आवाज़ से पूरा गार्डन गूँज उठा.
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