RE: non veg story एक औरत की दास्तान
एक औरत की दास्तान--9
गतान्क से आगे...........................
खैर धीरे धीरे शादी की सारी रस्में पूरी की जाने लगी.. राज ने स्नेहा को वरमाला पहनाया और बदले मे स्नेहा ने भी ऐसा ही किया.. इसके बाद फेरे होने लगे.. सभी लोगों ने फेरों के बाद दूल्हा दुल्हन को आशीर्वाद दिया और उनके मंगलमय जीवन की शुभकामनाएँ दी..
"कंग्रॅजुलेशन्स.. स्नेहा.." एक मर्दाना आवाज़ स्नेहा के कानो मे पड़ी जो उसने पहले भी सुन रखी थी.. उसने पीछे घूम कर देखा तो वहाँ पर वीर खड़ा था(वीर के बारे मे जानने के लिएकहानी के पहले पार्ट पढ़ें).. उसके हाथों मे एक फूलों का गुलदस्ता था और एक गिफ्ट पॅकेट था..
"अरे वीर जी.. आप..? बहुत अच्छा लगा जो आप हमारी शादी मे आए.. " स्नेहा ने वीर का धन्यवाद किया..
"अरे इसमें अच्छा लगने वाली क्या बात है, मेरे पिताजी आपके पिता जी के दोस्त हैं.. इस नाते मैं भी आपका दोस्त ही हुआ.." वीर ने मज़किया लहज़े मे कहा.. जिसका स्नेहा ने बस मुस्कुरा कर उत्तर दिया..
"बाइ दा वे, ये आपके लिए मेरी तरफ से.." वीर ने वो गुलदस्ता और गिफ्ट पॅक स्नेहा की तरफ बढ़ाया जो स्नेहा ने ख़ुसी ख़ुसी स्वीकार कर लिया..
"वैसे आप मुझे उस लकी मॅन से नही मिलवा रही जिसकी शादी आपके जैसी खूबसूरत लड़की से हुई.." वीर की ये बात सुनकर स्नेहा थोड़ा शर्मा गयी लेकिन फिर राज को भीड़ मे खोजने लगी. तभी उसे राज एक तरफ बातें करता दिख गया.. स्नेहा ने उसे इशारे से अपनी राज को अपनी ओर बुलाया और राज धीरे धीरे चलता हुआ स्नेहा के पास आ गया और उसके पास एक हत्त्ते कत्ते लड़के को खड़ा पाया..
"राज इनसे मिलो.. ये हैं हमारे पापा के दोस्त के बेटे.. वीर" स्नेहा ने इंट्रो करवाया.
"हेलो.." राज ने अपना हाथ बढ़ाया मिलाने के लिए जिसे वीर ने स्वीकार किया और उसने भी हाथ मिलाया..
"हेलो.. यू आर रियली लकी मॅन जो स्नेहा जैसी खूबसूरत लड़की तुम्हें मिली.. वरना सबको ऐसी लड़की कहाँ मिलती है ज्सिके शरीर का एक एक अंग खुदा ने फ़ुर्सत से बनाया हो.." वीर ने ये बातें डबल मीनिंग मे बोली थी जो राज को समझते देर ना लगी और उसके चेहरे का रंग बदल गया..
राज के चेहरे का बदला हुआ रंग देखकर वीर समझ गया कि वो कुछ ज़्यादा ही बोल गया है.. इसलिए उसने वहाँ से खिसकना ही ठीक समझा..
"ओके.. आप दोनो एंजाय करो मैं अंकल से मिल लेता हूँ.." ये बोलकर वीर वहाँ से निकल लिया..
" बड़ा बदतमीज़ आदमी है साला" वीर के जाने के बाद राज ने स्नेहा से कहा...
"अब जाने भी दो जानू.. आज हमारी शादी की पहली रात है, ज़्यादा टेन्षन मत लो.." स्नेहा ने राज को शांत करते हुए कहा.
"ओके.. तुम कहती हो तो" इतना बोलकर राज ने अपने होंठ स्नेहा की तरफ बढ़ाए जिसे स्नेहा ने अपने हाथों से दूर कर दिया और वहाँ से भाग गयी.
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लाल जोड़े मे स्नेहा फूलों से सजे बिस्तर पर बैठी राज का इंतेज़ार कर रही थी.. उसका पूरा शरीर गहनो से लदा हुआ था और उसका घूँघट उसके चेहरे को छिपाए हुए था.. पूरे कमरे मे इत्र की ख़ूसबू कमरे के वातावरण को और भी ज़्यादा ख़ुसनूमा बना रही थी.. कमरे मे सिर्फ़ एक नाइट लॅंप जल रही थी जिसकी दूधिया रोशनी कमरे की सुंदरता मे चार चाँद लगा रही थी.. कुल मिलकर पूरा कमरा किसी स्वर्ग की तरह लग रहा था और उसके बीच मे बैठी स्नेहा स्वर्ग की अप्सरा.
तभी बाहर थोड़ी आहट हुई और कुछ औरतों के हस्ने की आवाज़ें आई जिससे स्नेहा समझ गयी कि राज अब उससे कुछ ही कदम दूर है और उन दोनो के मिलन मे अब कुछ ही पल और बाकी रह गये हैं.
तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और कदमों की आवाज़ कमरे के अंदर आ गयी.. वो दो कदम धीरे धीरे स्नेहा की ऊवार बढ़ रहे थे जिसे सुनकर स्नेहा का दिल बहुत ज़ोर से धड़कने लगा. घूँघट के अंदर छुपे उसके चेहरे पर हया की लाली छा गयी..और उसने अपने दोनो हाथ कसकर एक दूसरे मे जाकड़ लिए और अपने फूलों की पंखुड़ी जैसे कोमल होंठ दाँतों के बीच दबा लिए, और अपने दोनो टाँगों को कसकर दबा लिया जैसे कोई उसकी टाँगों के बीच से कुछ चुरा ले जाने आया हो.
तभी कदमों की आवाज़ बिस्तर के बिल्कुल पास आ गयी और कुछ ही क्षानो मे कदमों की आवाज़ आनी बंद हो गयी और किसी के बिस्तर पर बैठने की आहट स्नेहा को महसूस हुई.
"अब ये घूँघट उठा भी दो.. कब तक ये चेहरा हम से छुपा कर रखोगी..?" राज ने धीरे से कहा.
"इतना ही चेहरा देखने का मंन है तो खुद उठा लो ना मेरा घूँघट.." शरम के मारे स्नेहा के मुह्न से बहुत धीरे धीरे आवाज़ निकल रही थी.
"वो तो हम उठा ही लेंगे.." राज ने अपना हाथ बढ़ाते हुए स्नेहा का घूँघट उठाने की कोशिश की मगर स्नेहा को इतनी शरम आ रही थी कि उसने अपनी साड़ी को कसकर पकड़ लिया ताकि वो उसका घूँघट ना उठा सके.
"घूँघट उठा दे ओ सनम;
वरना मैं खा लूँगा आज एक कसम..;
कि कल से तुझे नही तेरी सहेली को कहूँगा..जानेमन जानेमन जानेमन.."
ये शायरी राज के मुह्न से निकलने की देर थी कि बस स्नेहा ने जल्दी से घूँघट उठाया और टूट पड़ी राज के ऊपर..
"फिर से ये बात बोली तो मैं तुम्हेरी जान ले लूँगी.." स्नेहा ने तकिया उठाकर उससे राज के ऊपर हमला कर दिया और तकियों की बरसात कर दी.. जवाब मे राज ने भी दूसरा तकिया उठा लिया और शुरू हो गयी तकिया लड़ाई..
बहुत देर लड़ने के बाद आख़िरकार दोनो थक गये और बिस्तर पर लुढ़क गये..
"काश आज रवि यहाँ होता.." कुछ देर यूँ ही छत की तरफ देखने के बाद राज ने कहा..
"हां जान.. मैं तुम्हारा दुख समझ सकती हूँ.. रिया भी मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी मगर होनी को कौन टाल सकता है.." स्नेहा ये बोलते हुए राज के ऊपर चढ़ गयी..
" सही बोला तुमने अब जो हो चुका उसे तो बदला नही जा सकता.. स्नेहा.. आज हमारी शादी की पहली रात है और आज रात मैं तुमसे एक वादा करना चाहता हूँ.." ये बोलकर राज ने स्नेहा के हाथ अपने हाथों मे कसकर दबा लिया..
"चाहे ज़िंदगी मे कोई भी दुख हो या कोई भी ख़ुसी.. मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा और ये साथ तबतक बना रहेगा जबतक मेरी मौत तुम्हें मुझसे जुदा ना कर दे.." ये बोलकर राज ने स्नेहा को कसकर अपनी बाहों मे जाकड़ लिया.. और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए.. माहौल बड़ा भावुक हो चुका था..
और हालत को समझते हुए स्नेहा भी राज का पूरा साथ दे रही थी..
आज रात वो दोनो दो जिस्म और एक जान होने वाले थे.. और होते भी क्यूँ ना.. आज उनके मिलन की रात जो थी..
राज ने हाथ बढ़कर नाइट लॅंप ऑफ कर दिया और फिर दोनो खो गये अपने मधुर मिलन की रात मे..
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