RE: non veg story एक औरत की दास्तान
जब पोलीस स्टेशन मे ये सब हो रहा था उसी दौरान राज के घर मे..
"अरे बेटवा तुम आ गये..?" राज जैसे ही अपने घर के अंदर घुसा वैसे ही वहीं पर हॉल मे बैठे हुए जग्गू काका ने कहा..
"अरे हां काका.. मैं तो आ गया.. आज ऑफीस का काम जल्दी हो गया तो मैने सोचा कि ज़रा घर चला जाउ.." राज ने वही सोफे पर बैठते हुए कहा और अपने शर्ट के ऊपर के दो बटन खोलकर सोफे पर ही लूड़ख गया..
"और बेटवा.. आफिसे मे सब कैसन चल रहा है ?" जग्गू काका अब सीधा मुद्दे की बात पर आने वाले थे..
"अरे काका सब कुछ एक दम फर्स्ट क्लास.. हमारी कंपनी जल्द ही टॉप पर होगी" राज ने अलसाए ढंग से कहा..
"पर ऊ दीपकवा तो कुछ औरे कह रहा था..?" जग्गू काका ने तीर निशाने पर लगाते हुए कहा..
"कौन दीपक काका..?" राज ने उसी तरह अलसाए ढंग से कहा..
"अरे बेटवा तोहार दिमाग़ को का हो गया है..? दीपक वोही हमारे कंपनी का मॅनेजर.. आज ऊ हमरे घर पर आया रहा.. कहत रहा कि तुम आजकल कंपनी मे बहुत घपला करात हो और सब एंप्लायी के साथ मार पीट करत हो ?" जग्गू काका ने पूछा तो राज के चेहरे का रंग उड़ गया..जिसे जग्गू काका ने बखूबी भाँप लिया..
"बकवास करता है वो.. साले की देखो कल कैसे बॅंड बजाता हूँ.." राज ने गुस्से मे कहा तो जग्गू काका ने उसे शांत करने की कोशिश की..
"बेटवा हम आज शर्मा जी से भी बात किए.. बड़े दुखी लागत रहे.. और तोहार कारनामे के बारे मे हामका बतावत रहे.. एक बुजुर्ग के साथ ऐसा व्यवहार..?" जग्गू काका ने कहा तो अचानक ना जाने राज को क्या हो गया और उसने अपनी जेब मे हाथ डाला और एक पिस्टल निकाल कर जग्गू काका पर तान दी..
"ई का करत हो बेटवा.. हम तोहार काका हैं.." जग्गू काका के पसीने छूटने लगे... ना जाने राज पर कौन सा भूत सवार हो गया था..
"अबे बूढ़े काहे का काका बे..? साले ना मैं राज हूँ और ना तू मेरा काका.. और हां मैने कंपनी मे घपले किए और एंप्लायीस को मारा भी.. बोल तू क्या बिगाड़ लेगा मेरा बुड्ढे..? और वैसे भी अब तू मरने वाला है क्यूंकी तू वो जान गया है जो तुझे नही जानना चाहिए था.. तू ये जान गया है कि मैं राज नही हूँ.." वो बोले ही जा रहा था और इससे पहले की जग्गू काका कुछ समझ पाते, बंदूक से गोली निकल चुकी थी और सीधा जग्गू काका के सर मे लगी...
गोली की आवाज़ सुनकर उस घर के सारे नौकर दौड़े चले आए और देखा कि राज ने जग्गू काका को गोली मार दी है जिसे देख कर सब डर गये..
"तुम लोग भी निकल जाओ इस घर से वरना तुम सब भी मारे जाओगे.." राज ने अपनी बंदूक उसकी तरफ करते हुए कहा जिसे सुनकर वो लोग दरवाज़े की तरफ भागे और पूरा घर खाली हो गया.. कोई वहाँ था तो सिर्फ़ राज और गोली की आवाज़ सुनकर वहाँ आई स्नेहा..
"ये क्या किया तुमने राज..? मार दिया अपने बाप सामान इंसान को...? तुम्हारे दिमाग़ को आज क्या हो गया है..?" स्नेहा ने वहाँ पड़ी जग्गू काका की लाश को देखते हुए कहा जो उसकी आँखों के सामने तड़प तड़प कर मर चुके थे..
"अबे काहे का काका और काहे का पिता...? ये सिर्फ़ एक नौकर था और नौकर की मौत मरा.." राज ने अपनी गुण हवा मे लहराते हुए कहा जिसे देख कर स्नेहा को बहुत डर लग रहा था..
"पर राज.."
"बस.." स्नेहा बोलने ही वाली थी कि राज ने उसे हाथों के इशारे से बोलने से रोक दिया..
"कौन राज..? कैसा राज..? कहाँ का राज..? वोही राज जिसे मारकर मैने उसकी लाश जला दी..? कुत्ते की तरह तड़पकर मारा उसे... मैं ठाकुर वीर सिंग हूँ.." उसने गरजती हुई आवाज़ मे कहा जिसके कारण पूरा घर गूँज उठा..
"ये कैसे हो सकता है..? तुम वीर नही राज हो.. आख़िर तुम्हें ये अचानक हो क्या गया है राज..?" स्नेहा ने चीखते हुए कहा...
"कुतिया.. जब एक बार कहा कि मैं राज नही हूँ तो मान ले.." ये बोलकर उस राज उर्फ वीर ने उसके लंबे बाल पकड़ लिए और ज़ोर से खिचने लगा जिसके कारण स्नेहा को दर्द होने लगा...
"तो फिर तुम्हारी शकल राज जैसी कैसे है..?" स्नेहा ने दर्द को भुलाते हुए कहा..
"ये बहुत लंबी कहानी है मेरी रानी.. बस तू इतना जान ले कि मैने प्लास्टिक सर्जरी करवाकर अपना चेहरा तेरे उस चूतिए पति राज की तरह बनवाया है.. अब चूँकि अब तू ये सच्चाई जान चुकी है तो अब वक़्त आ गया ही कि तुझे भी उस राज और इस नौकर के साथ ऊपर पहुँचा दूं.. हाहाहा..." वीर ने शैतानी हँसी हंसते हुए कहा...
"मगर ये तो बता तो कि तुमने ये सब किया क्यूँ..?" ये बोलते हुए अब स्नेहा की आँखों मे अब आँसू आ चुके थे जो रुक ही नही रहे थे..
"तू जानना चाहती है कि मैने ये सब क्यूँ किया..? बोल कुतिया..? जानना चाहती है..? तो सुन.. मैने ये सब सिर्फ़ और सिर्फ़ दौलत के लिए किया.." वीर ने अपने दोनो हाथ हवा मे लहराते हुए कहा..उसने ये सब बोलते हुए अपना हाथ स्नेहा के बालों से अलग कर लिया था जिसका फ़ायदा उठाकर स्नेहा धीरे धीरे पीछे की तरफ जा रही थी...वो उस ड्रॉयर की तरफ बढ़ रही थी जिसमें राज की बंदूक रखी हुई थी..
" क्या दौलत ही तुम्हारे लिए सब कुछ है.. किसी इंसान की जान से बढ़कर है दौलत तुम्हारे लिए..?" स्नेहा ने उसे बातों मे फसाना ज़रूरी समझा और बात को आगे बढ़ती रही जिससे उसे उस ड्रॉयर के पास पहुँचने का मौका मिल सके..
"हां हां.. मुझे सिर्फ़ दौलत से मतलब है.. दौलत नही तो इंसान अधूरा है.. वो गाना तो सुना ही होगा तुमने.. ना बीवी बड़ा ना बच्चा, ना बाप बड़ा ना भाय्या... दा होल थिंग ईज़ दट कि भाय्या सबसे बड़ा रुपय्या.. हाहाहा.." ऐसा लग रहा था कि पृथ्वी पर एक दैत्य के अवतार मे उसने जनम लिया हो.. "अरे दौलत के लिए तो मैं कुछ भी करूँगा... फिर खून करना कौन सी बड़ी बात है..? जिस दौलत के लिए मैने खुद अपने बाप को मार दिया उसके लिए तू क्या चीज़ है..?" ये बोलकर वो फिर हँसने लगा..
"मुझे मारकर भी तुझे मेरी जयदाद नही मिलेगी कमिने.. मैं तो मर जाउन्गि पर तुझे फाँसी होगी..."वो चीखते हुए बोली..
"बहुत चिल्लाती हो तुम कुतिया.. थोड़ा वॉल्यूम कम करो.. तुम जानना नही चाहोगी कि मैने अपने बाप के साथ क्या किया..?" वीर ने एक बार फिर हंसते हुए कहा..
"क्या किया.." स्नेहा ने डरते डरते हुए पूछा पर वो लगातार पीछे हटती जा रही थी.. और वो ये बिल्कुल धीरे धीरे कर रही थी जिससे वीर को पता ना चले..
"मार डाला मैने उसे.. साला कहते था कि मैं ऐय्याश हूँ, शराबी हूँ.. और मुझे अपनी जायदाद से बेदखल करने की बात कहता था.. पहुँचा दिया साले को ऊपर.." उसने हंसते हुए कहा..
"वीर तुम एक कातिल हो खूनी हो.. " स्नेहा ने फिर चिल्लाते हुए कहा..
"हां हूँ मैं खूनी.. हूँ मैं कातिल और अब तुझे भी ऊपर पहुचाउँगा..." और ये बोलकर उसने स्नेहा के ऊपर बंदूक तान दी और इससे पहले की वो ट्रिग्गर दबाता.. एक गोली सीधा उसके सीने मे घुस गयी..
राज ने स्नेहा की तरफ देखा तो पाया कि उसके हाथ मे एक बंदूक है.. और गोली उसी मे से चली है.. इससे पहले कि वो कुछ समझ पाता, वो गिर चुका था और उसकी आत्मा उसके शरीर से निकल चुकी थी..
स्नेहा किसी बुत की तरह एक हाथ मे गुण पकड़े वहाँ खड़ी थी जो कुछ ही देर बाद उसके हाथों से छूट गयी...
क्रमशः.........................
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