RE: Chodan Kahani छोटी सी भूल
गतांक से आगे ...................
डेट 7-02-09
पीछले 5 दीनो से देख रही हूँ, बिल्लू रोज सुबह मुझे ऑफीस जाते वक्त मेरे फ्लॅट के बाहर मिल जाता है, और जब मैं वापस आती हूँ तो भी मुझे वही मिलता है. उसके चेहरे पर ऐसे भाव रहते है, जैसे की वो बहुत इनोसेंट हो, लगता ही नही है कि उसी ने मुझे बर्बाद किया है. बिल्लू का ये दूसरा ही रूप देख रही हूँ. पता नही क्या राज है. मैं अब दीप्ति के फोन का इंतेज़ार कर रही हूँ. कल उसने बताया था कि बस एक दौ दिन की बात है सचाई सामने आ जाएगी. रोज मुझे ऑफीस से आते ही घर के अंदर दरवाजे के नीचे बिल्लू की लीखी चिट मिलती है. रोज यही लीखा होता है कि “आज फिर मैं गेट वे ऑफ इंडिया पर तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा, हो सके तो आ जाओ”
पर मैं उस से मिलने कैसे चली जाउ, जो उसने मेरे साथ किया है उसे मैं कभी नही भुला सकती. और क्या पता वो मुझे कौन सी कहानी शुनाएगा. बातें बनाने में तो वो एक्सपर्ट है ही. क्या पता कोई नयी चाल चल रहा हो.
इश्लीए मैं बिल्लू को इग्नोर करके अपने काम पर ध्यान दे रही हूँ.
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रात के 10 बज रहे है. अभी थोड़ी देर पहले पापा से फोन पर लंबी बात की.
“बेटे सिधार्थ का फोन आया था, तुमने बताया नही कि वो वही मुंबई में है, बहुत अछा लड़का है” ---- पापा ने कहा
“जी पापा मुझे ध्यान ही नही रहा, सिधार्थ हमारी कंपनी का सीए है, अक्सर ऑफीस में उस से मुलाकात हो जाती है, पर उसने आपको क्यो फोन किया” ----- मैने हैरानी में पूछा.
“बेटा, वो तुमसे शादी करना चाहता है, मुझ से कह रहा था कि आप मान जाओ तो ऋतु भी मान जाएगी. मैं तो पहले भी तुम लोगो के साथ ही था, बस उसके पापा की इज़ाज़त के बिना कुछ नही होने देना चाहता था. अछा लड़का है, उसके साथ तुम जींदगी की नयी शुरूवात कर सकती हो, बाकी सब कुछ तुम्हारे उपर है, मैं तुम्हे कुछ नही कहूँगा, जैसा तुम्हे अछा लगे करो, मैं तुम्हारे साथ हूँ.” ---- पापा ने कहा
आज तक मैने पापा की बात नही टाली है, इश्लीए मैने उन्हे कुछ नही कहा कि मैं क्या चाहती हूँ. मैं सोच रही हूँ कि अब सिधार्थ से ही बात करूँगी.
डेट : 8-02-09
आज मन बहुत उदास है चिंटू का बिर्थडे है और मैं उसके पास नही हूँ, पर क्या करूँ उस से मिलने भी नही जा सकती. नयी नयी नौकरी जाय्न की है, और फिर अभी काम भी ज़्यादा है. सुबह का वक्त है सोच रही हूँ कि मंदिर चली जाउ. शायद मन को कुछ सकुन मिले. वैसे भी आज सनडे है और मेरे पास काफ़ी वक्त है
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11:30 एम (8-02-09)
मंदिर में घुसते ही मुझे एक अनोखा सा सकुन मिला. मंदिर में बहुत प्यारा भजन चल रहा था.
♫♪♫….. हरे कृष्णा… हरे कृषणे…..कृष्णा कृष्णा….हरे.. हरे.. हरे रामा…हरे रामा… रामा रामा.. हरे…हरे....♫♪♫
किसी ने सच ही कहा है कि जब आप भगवान के पास हाथ जोड़ कर जाते है तो भगवान आपको गले लगा लेते है. कुछ ऐसा ही अहसाश मुझे हो रहा था.
ये भजन मेरी अन्तेर आत्मा में उतरता चला गया. बहुत दीनो बाद मन को कुछ शांति मिली. पर ये शांति ज़्यादा देर नही रह पाई.
मैं भगवान के आगे आँखे बंद करके खड़ी थी और मन ही मन चिंटू के लिए लंबी उमर की कामना कर रही थी. अपने लिए मैं क्या मांगती बस यही दुवा कर रही थी कि हे भगवान मुझे हमेशा आछे रास्ते पर रखना. मुझे इतनी शक्ति देना कि जब भी मेरे सामने दौ रास्ते आयें तो मैं सही रास्ते का चुनाव कर सकूँ.
सभी कुछ अछा चल रहा था आँखे बंद करके में अंदर ही अंदर खो गयी थी और हरे कृष्णा हरे रामा भजन मेरे कानो में गूँज रहा था.
अचानक मुझे एक आवाज़ शुनाई दी
“भगवान मुझे आपसे कुछ नही चाहिए, वैसे भी जो था वो तो आपने पहले ही छीन लिया है, अगर मुझे कुछ देने को बचा हो तो वो इस देवी को दे दो. मैं ज़्यादा दिन नही जीना चाहता, मेरी उमर आप इस देवी को लगा दो. और ये देवी आपसे जो भी मांगती है दे दो भगवान मैं इस देवी को बहुत प्यार करता हूँ…”
मैने हैरानी में आँखे खोल कर देखा और चोंक गयी..
बिल्लू मेरे पास आँखे बंद करके भगवान के आगे हाथ जोड़े खड़ा था. मैने मन ही मन में सोचा कि इसकी हिम्मत कैसे हो गयी यहा आने की और ऐसे मेरे साथ खड़े होने की.
मैने पुजारी से परसाद लिया और झट से मंदिर से बाहर आ गयी.
“ऋतु रुक जाओ, प्लीज़…. एक बार मेरी बात तो सुन लो, मैं बस तुम्हे कुछ बताना चाहता हूँ, और तो कुछ नही चाहता, प्लीज़….” ---- बिल्लू ने मेरे पीछे आते हुवे कहा.
मैं रुक गयी और पीछे मूड कर उसे कहा, “बिल्लू अगर तुम में ज़रा सी भी शरम बाकी है तो यहा से चले जाओ. और मुझे तुमसे कुछ नही सुन-ना. वैसे भी मुझे काफ़ी कुछ पता चल गया है. मेरा पीछा छ्चोड़ दो और यहा से दफ़ा हो जाओ.”
मंदिर मेरे फ्लॅट के नज़दीक ही था, इश्लीए तेज़ी से चल कर मैं अपने घर आ गयी. मुझे बहुत बुरा लग रहा था कि वो मेरे पीछे मंदिर तक आ गया. पता नही बिल्लू ऐसा क्यो कर रहा है ?
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रात के 11 बजने को है और मन बहुत बेचन हो रहा है. ये बेचानी सिधार्थ के कारण है. समझ नही आता की उसे कैसे सम्झाउ.
जैसे ही मैं मंदिर से आई थी सिधार्थ घर आ गया था.
“ऋतु मैं बिना बताए आ गया, तुम बुरा तो नही मानोगी” ---- सिधार्थ ने हंसते हुवे पूछा.
“नही कोई बात नही, बैठो मैं कॉफी बनाती हूँ” --- मैने कहा.
मैं खुद उस से मिलना चाहती थी. अब जब उसने पापा से बात कर ली थी तो उसे सब कुछ बताना ज़रूरी हो गया था.
“ऋतु, मैने कल तुम्हारे पापा से बात की थी, शायद उन्होने तुम्हे बताया होगा. वो तो तैयार है, अब बस तुम्हारे हाँ कहने की देर है, जो सपना हम पहले पूरा नही कर पाए थे वो अब कर सकते है. तुम बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी” ? --- सिधार्थ ने कॉफी पीते हुवे पूछा.
“ह्म्म…. सिधार्थ आइ रेस्पेक्ट यू ए लॉट. यू आर रियल जेन्तल्मेन. एनी वोमेन वुड लव टू मॅरी यू. बट..” ---- मैने कहा
“बट क्या, वो वोमेन तुम क्यो नही हो सकती ? आख़िर तुम क्यो मुझ से शादी नही करना चाहती ? बहाना बना रही हो है ना, तुम्हे शायद अब मैं अछा नही लगता” ? --- सिधार्थ ने एमोशनल टोन में कहा.
“ऐसी बात नही है सिधार्थ, मेरी जींदगी उलझी हुई है, मैं तुम्हे कैसे सम्झाउ” ---- मैने कहा.
“मुझे मोका तो दो मैं तुम्हारी हर उलझन दूर कर दूँगा, पर ऐसे बहाना मत बनाओ. मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ और तुम मुझे सता रही हो” ---- सिधार्थ ने कहा.
“मैं तुम्हे सता नही रही हूँ सिधार्थ, मैं तुम्हे कैसे बताउ, अछा रूको मैं तुम्हे कुछ देती हूँ” --- मैने सिधार्थ से कहा.
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