RE: Mastram Kahani प्रीत का रंग गुलाबी
दोनों प्रेमी बैठे थे उसी कीकर के पेड़ के पास कहने को बहुत कुछ था पर होठ जैसे खामोश थे दिल में एक टीस थी पर ख़ुशी भी थी बुरा वक्त ख़त्म हुआ अब बस जीना था एक दुसरे की बाहों में
मोहिनी- बड़ी देर लगादी तुमने कितना तडपाया मुझे
मोहन- और मेरा क्या मोहिनी क्या मैंने इंतज़ार नहीं किया
मोहिनी- बहुत सह लिया हम दोनों ने देखो कुछ भी तो नहीं है पहले जैसा कुछ भी नहीं बचा वक़्त की रेत में बस हमतुम ही रह गए है
मोहन- हां, हमतुम है अपनी मोहब्बत है अब मुझसे इंतजार नहीं होता बस अब इंतजार नहीं होता जी करता है अभी तुम्हे अपनी बाहों में भर लू कितना तडपा हु मैं
मोहिनी ने कुछ नहीं कहा
बस हौले से मोहन के सीने से लग गयी अब मैं क्या बताऊ क्या लिखू उस लम्हे के बारे में भला दिल की बाते कहा शब्दों में बयान होती है वो तो बस दिल ही जान लेता है अपने आप कुछ ऐसा ही हाल उन दोनों का भी था
मोहन- रात होने लगी है
मोहीनी- होने दो
मोहन- मेरे साथ चलो
मोहिनी- तुम्हारे साथ ही तो हु
मोहन- मतलब मेरे घर
मोहिनी- चलूंगी, अवश्य चलूंगी पर
मोहन-पर क्या
मोहिनी- काश एक बार माँ बाबा से भी मिल पाती तो
मोहन- क्या ये मुमकिन होगा
मोहिनी- नागवंश के लोग हजारो साल जीते है पर अब मैं नाग योनी से मुक्त हो गयी हु तो ...
मोहिनी के चेहरे पर एक तडप सी देख कर मोहन का कलेजा भी पसीज गया पर वो जानता था की अब कुछ बंदिशे है , मजबूरिया है पर फिर भी उसने कुछ सोचा और कहा
“पर नागराज तो आज भी मंदिर में आते होंगे तो वहा पर मिल सकते है ”
मोहिनी- पर अब मैं नागलोक से बहिश्क्र्त हु तो मुमकिन नहीं होगा
मोहन ने उसका हाथ पकड़ा और बोला- कुछ भी असंभव नहीं
मोहिनी मुस्कुरा पड़ी , मोहन उसे ले आया जहा वो ठहरा हुआ था सबसे मोहिनी का परिचय करवाया साथ ही बहुत कुछ छुपा भी लिया , इधर महल में दिव्या बहुत क्रोध में थी मोहन आया क्यों नहीं अब तक
क्या उसे मेरी याद एक पल के लिए भी नहींआई मेरे प्रेम का बस इतना ही मिल लगाया उसने कब आएगा वो कब से मैं पलके बिछाए इंतज़ार कर रही हु तभी उसे याद आया की मोहिनी की परीक्षा भी समाप्त हुई होगी
अब उसे आया और क्रोध क्रोध में चीखने लगी वो, आसमान में जैसे तूफ़ान ही आ गया था तेज हवाए चलने लगी थी बदल गरजने लगे, बिजली कडक रही गाँव वालो ने आसमान में ऐसा कहर पहले कभी नहीं देखा था
संयुक्ता-बस अब शांत होजा बेटी शांत हो जा
दिव्या- कैसे माँ कैसे शांत हो जाऊ, देखो ना क्यों तडपा रहा है वो मुझे क्या उसको याद नहीं आइ मेरी
संयुक्ता- वो आएगा बेटी जुरूर आयेगा
दिव्या- पर कब माँ कब
शिवाय अब मोहन बन चूका था पर वर्तमान जिन्दगी में भी कुछ काम थे उसके और उसी सिलसिले में उसे आज वो महल देखने जाना था जिसका हिस्सा हुआ करता था वो खुद कभी, और फिर महल के मालिक भी उसको वही मिलने वाले थे
समय का ये कैसा फेर था जिस महल में वो कभी काम करता था आज खुद उसका मालिक बनने चला था वो ,मोहन की गाड़ी पूरी रफ़्तार से दौड़ रही थी पर किस तरफ कयामत शायद आने ही वाली थी और जब गाडियों ने ब्रेक लगायी तो जैसे सब लोगो की आँखे चुंधिया गयी
महल जगमगा रहा था , आस पास के लोगो में अचरज के साथ साथ खौफ भी था खौफ भी था एक घबराहट थी खुद मोहन भी घबरा गया था इतिहास जो जिन्दा हो गया था और जैसे ही दिव्या को मोहन के कदमों की आहट मिली झूम उठी वो तन बदन पुलकित हो गया दिल में एक आह सी भरी
तमाम लोगो ने तो अन्दर जाने से इनकार ही कर दिया पर मोहन को तो जाना ही था जैसे ही उसके पैर आगे बढे महल के दरवाजे अपने आप खुलते चले गए फूल बरसने लगे एक पल को तो मोहन भी अचंभित हो गया था
इधर दिव्या मगन थी अपने श्रृंगार में वो उसी तरह से सजी थी जैसे की वो उस दिन सजी थी जब उसे मंडप में छोड़ गया था मोहन पर आज फिर पिया से मिलने को बेताब थी वो मचल रही थी इंतजार जो ख़त्म हो रहा था
पुरे महल में अजीब सी शांति पसरी पड़ी थी मोहन के कदम इस तरह आगे बढ़ रहे थे जैसे की उसको पता था उसे कहा जाना था और फिर वो उसी जगह पहुच गया जहा वो बैठ कर दिव्या से बाते किया करता था
आज भी वो वहा जाकर बैठ गया किसलिए आया था वो सब भूल चूका था अब वो कहा वर्तमान में जी रहा था कहा था वो कुछ पता नहीं बस इतना जरुर था की इतिहास खुद को दोहरा रहा था
“बहुत देर लगाई आने में इतना भी कोई किसी को तड़पाता है क्या ”
मोहन ने उसकी तरफ देखा और उसे यकीन नहीं हुआ- तुम यहाँ पर तुम ........................... तुम तो..........
दिव्या- हां ............ पर आज भी इंतजार है तुम्हारा आज भी मोहन मुझसे रूठ कर क्यों चले गये तुम पर पुराणी बातो को छोड़ो अब तुम आ गए हो तो अब मुझे अपना लो पूरी कर दो मुझे
मोहन- दिव्या, मैं तब भी क्षमाप्रार्थी था आज भी हु मेरी हर सांस बस मोहिनी से ही जुडी है
दिव्या- तोड़ दूंगी हर उस साँस को जो मोहिनी से जुडी है मोहन तुम मेरे थे और मेरे ही रहोगे मैंने ये इंतज़ार इसलिए नहीं किया की मैं ये बाते सुनु वचन का मान तुमने नहीं रखा था महादेव के आदेश को तुमने नहीं मना किया था
मोहन- तो उसकी सजा भी मैंने ही भोगी थी तुम तब भी मेरे लिए कुछ नहीं थी मैं मोहिनी का हु और वो मेरी और ना तब कोई जुदा कर पाया था हमे ना अब मैं जा रहा हु उसे यहाँ से दूर लेकर जहा तुम तो क्या किसी भी परछाई नहीं पड़ेगी
मैं विवाह का रहा हु मोहिनी से जल्दी ही हमारे मिलन को कोई नहीं रोक सकता दिव्या, मैं हमेशा तुमहरा क्षमाप्रार्थी रहूँगा पर साथ ही कहता भी हु ये जिद छोड़ दो और आगे बढ़ जाओ इस जिद ने पहले ही सब कुछ बर्बाद कर दिया है
“कैसे रोक लू मैं खुद को तुम्हे चाहने से मोहन, कैसे रोक लू जीवन में वो तुम ही तो थे जिसने मेरे मन में प्रेम की तरंग जगाई, ये जो आग में मैं जल रही हु इसकी लौ तुमने ही तो जलाई थी ”
“मैने तो बस मित्रता की थी राजकुमारी और आज भी बस मित्र ही हु ये तो आपने मेरी मित्रता को प्रेम समझ लिया है क्या फायदा है आपने बहुत इंतज़ार किया पर आप पूर्ण हो जाइये मैं ना तब आपका था और ना अब आपका हु ”
“नहीं, मोहन नहीं ऐसी कोई ताकत नहीं जो मुझे तुम्हारी होने से रोक सके ”
“मैं तो किसी और का हो ही चूका हु राजकुमारी , मेरा आपसे निवेदन था आगे आपकी मर्ज़ी ना तब आपने किसी की सुनी थी ना अब आप बाध्य है पर मोहन और मोहिनी एक सांस, एक जान है मुझे पीड़ा है आपके लिए पर प्रेम तो बस एक बार ही होता है अब आप ही बताइए मैं क्या करू ”
“क्या है उसमे जो मुझमे नहीं मोहन, क्या मैं सुन्दर नहीं क्या मुझमे काम नहीं उस से ज्यादा सुख दूंगी तुमहे, एक बार मेरे प्रेम की स्वीकार तो करो ”
“उसके साथ दुःख में रहना मंजूर है मुझे राजकुमारी आया तो किसी और काम के लिए था पर जिंदगी मिल गयी यहाँ , मैं आज के आज ही मोहिनी को लेकर यहाँ से दूर चला जाऊंगा ”
“मैं तुम्हे नहीं जाने दूंगी मोहन, नहीं जाने दूंगी ”
“रोक के देख लो, समय बदल गया है राजकुमारी अब मैना आपका गुलाम नहीं और ना ही आपकी सत्ता है यहाँ पर ”
“मैं हर उस बंदिश को तोड़ दूंगी मोहन जो तुम्हारे और मेरे बीच आएगी तुम मेरे थे और मेरे ही रहोगे मोहन सुना तुमने ”चीखी दिव्य
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