Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 02:35 PM,
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -61 

गतान्क से आगे... 

मैने दर्द से अपनी आँखें बंद कर ली थी और मुँह खुल गया था. मेरे मुँह से चीख निकल रही थी. दोनो अपनी कामयाबी पर एक दूसरे को देखते हुए मुस्कुरा रहे थे. 



“ इतनी ठुकाई के बाद भी काफ़ी टाइट है. मज़ा आ गया. लग रहा है किसी चक्की के पाटों के बीच मेरा लंड पीसा जा रहा है.” सत्या जी ने कहा. 



“ बस अब कुच्छ देर मे तुझे भी आराम मिलने लगेगा.” कहकर राजेश जी ने मेरे होंठो को एक बार चूम लिया. मैने निढाल होकर अपने चेहरे को राजेश जी के चेहरे पर रख दिया और आँखे बंद रख कर उनकी चुदाई का मज़ा लेने की कोशिश करने लगी. 



सत्या जी मेरे गुदा मे ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे मगर राजेश जी उतने खुश किस्मत नही रहे. हम दोनो के बोझ तले दबे वो अपने लंड को ज़ोर के धक्के नही दे पा रहे थे. वो तो हमारे साथ साथ ही उपर नीचे होने की कोशिश कर रहे थे. और तो और सत्या जी के धक्कों का पूरा मज़ा लेने के लिए अपने नितंब उपर की ओर उठाए तो राजेश जी का लंड ऑलमोस्ट पूरा ही बाहर आ गया. उसका सिर्फ़ सामने का हिस्सा ही मेरी योनि की फांको के बीच जकड़ा हुया था. 



वो अपनी कमर को उठाने की पूरी कोशिश कर रहा था मगर हम दोनो के नीचे दबे होने की वजह से उनको सफलता नही मिल पा रही थी. कुच्छ देर तक कई तरह से कोशिश करने के बाद वो तक कर शांत हो गये. शायद अब उनको सत्या जी के झड़ने का इंतेज़ार था. अब वो इंतेज़ार कर रहे थे कि सत्या जी झाड़ कर मेरे उपर से हटें तो वो मुझे जी भर कर चोद सकें. 



राजेश जी के धक्कों मे तेज़ी आती जा रही थी. मैं तो पता नही कितनी बार झड़ी. ऐसा लग रहा था मानो मेरी योनि से वीर्य का कोई बाँध टूट गया. सत्या जी चोद नही पाने की वजह से अपनी उत्तेजना मुझे चूम कर और मेरी चूचियो को मसल कर शांत करने की कोशिश कर रहे थे. 



पंद्रह मिनिट की आस पास मेरे गुदा को घिस घिस कार लाल करने के बाद उन्हों ने एक ज़ोर के धक्के के साथ अपने लिंग को पूरा अंदर कर दिया और अपने लंड उसी अवस्था मे कई मिनिट तक दबाए रखे. उनके आख़िरी धक्के की ताक़त से मेरा मुँह खुल गया और मुँह से “ आआहह” की एक दबी दबी कराह निकली. 



मैने उनके लिंग से गर्म गरम रस निकलता हुया महसूस किया. उनका पूरा नग्न बदन पसीने से लथपथ था. उनके जिस्म से पसीने की बूंदे मेरे बदन पर टपक रही थी. 



वो अपने लंड को मेरी गांद मे डाले हुए “सस्सस्स….आआअहह…. उम्म्म्म…..ले.. ली…. मेरिइई राआनद लीई… और ले…….टेरिइई गाआंद सीए तेरी पीट तक भाअर दूंगाआ..” जैसी बे सिर पैर की बातें बॅड बड़ा रहे थे. 



“ हाआन्न…..हाआअन्न…माऐइ प्याअसीईई हूऊं…..मीरीईई प्याआस बुझाअ डूऊ….आआआहह….. माआर डाालूओ मुझीईए….. उफफफफ्फ़ ईईए गाअरमीईिइ आब स्ाआहान नहिी होटिईईईईईई” मई भी उनके साथ बड़बड़ाती जा रही थी. 



कुच्छ देर बाद वो मेरे उपर से हट गया और पास लेते लेते लंबी लंबी साँसे ले रहा था. उसके हटने के बाद राजेश जी ने मुझे पल भर भी आराम नही करने दिया उन्हों ने किसी गुड़िया की तरह मुझे उठाया और अपनी दोनो हथेलियों को मेरे दोनो बगलों के भीतर लगा कर मेरे पूरे बदन को अपने लिंग पर ऊपर नीचे करने लगे. मैं तो उनकी ताक़त की कायल हो गयी. मैने अपने टाँगों को उसकी कमर के दोनो ओर रख कर उसके लंड पर अपनी चूत को उपर नीचे करने लगी. मैने अपने चूत की मुस्सलेस से उसके लंड को जाकड़ रखा था जिससे उसके लंड को उल्टियाँ करने मे समय नही लगे.



और जैसा सोचा था वैसा ही हुया. मुश्किल से पाँच मिनिट टिक पाए होंगे. वो अपने जबड़ों को भींच कर पूरी कोशिश कर रहे थे और कुच्छ वक़्त टिक जाएँ. मगर मेरी कोशिशों ने उन्हे बहुत जल्दी अपने आगे नतमस्तक कर दिया. उन्हों ने मुझे खींच कर अपने सीने पर दबा लिया और मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी. मैने भी उनकी जीभ से अपनी जीभ सहलाने लगी. उनके जिस्म से वीर्य का एक रेला बहता हुया कॉंडम मे इकट्ठा होने लगा. 



वो मुझे अपने सीने पर लिटाए ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रहे थे. जब उनका लंड सिकुड कर छ्होटा हो गया तब जा कर उनकी बाँहों का बंधन शिथिल हुया. मैं लुढ़क कर नीचे उतर गयी. कुच्छ देर तक अपनी सांसो को व्यवस्थित करने के बाद मैं उठी और उनके सिकुदे हुए लंड से कॉंडम को बिना एक बूँद भी अमृत व्यर्थ किए उतारा और उसमे इकट्ठा वीर्य को अपने लोटे मे भर लिया. लोटा उनके वीर्य से पूरा भर गया था. मैं उन दोनो के होंठों को चूम कर उठी और किसी तरह अपनी सांसो को काबू मे किया. फिर अपने कपड़े को पहन कर बाहर आ गयी. 



बाहर रत्ना के साथ दो और युवतियाँ मेरे इंतेज़ार मे ही खड़ी थी. तीनो ने मुझे लपक कर सहारा दिया और मुझे सम्हालते हुए एक कमरे मे ले गये. उन मे से एक युवती ने मेरे हाथों से वो लोटा ले लिया था. तीनो मुझे एक आरामदेयः बिस्तर पर बिठा कर बाहर निकल गये. 



अभी सूरज डूबने मे कुच्छ वक़्त बाकी था. उनकी आपसी बातों के हिसाब से आगे के कार्य क्रम सूरज ढलने के बाद होने थे. मैं आधे घंटे के करीब वहाँ लेटी आराम करती रही. आधे घंटे बाद माइक मे कुच्छ अनाउन्स्मेंट हुई. 



रत्ना और वही दोनो युवतियाँ आकर मुझे उठा कर अपने साथ बाहर ले आइ. बाहर एक हॉल के बीचों बीच फर्श पर एक काफ़ी बड़ी तश्तरी जैसा कुच्छ रखा हुआ था. तश्तरी का दिया कम से कम पाँच फीट होगा. उस तश्तरी के बीच एक काले पत्थर की एक फुट के करीब उँची देवता की प्रतिमा रखी हुई थी. उस प्रतिमा की घेराई करीब साढ़े तीन चार इंच होगी. 



वो प्रतिमा बड़ी विचित्र थी उसमे उनका चेहरा सामने की ओर ना होकर आसमान की ओर था. प्रतिमा के मुँह से आधे इंच लंबी जीभ उपर की ओर निकली थी. दोनो मुझे लेकर उस तश्तरी के पास पहुँची. 



“ चलो इस पर चढ़ जाओ. “ रत्ना ने कहा तो मैं उस तश्तरी के उपर चढ़ गयी. मैने देखा कमरे मे ढेर सारे मर्द शिष्य एवं अन्य लोग खड़े थे. सबके हाथों मे फूलों की एक एक टोकरी थी. जिसमे गुलाब के सुर्ख लाल फूलों की सिर्फ़ पंखुड़ीयाँ थी. 



मैं तश्तरी पर चढ़ कर रुकी तो रत्ना ने मेरे बदन से कपड़ा हटा कर मुझे बिल्कुल नग्न अवस्था मे ला दिया. मैं पूरी नग्न अवस्था मे ढेर सारे मर्दों के बीच खड़ी थी. 



“ अब इनके उपर बैठ जाओ.” रत्ना के साथ वाली एक युवती ने कहा. मैं उनके कहने का आशय नही समझ पाई और मैने उसकी ओर देखा. 



“ इस तरह बैठो कि ये देवता की मूर्ति तुम्हारी योनि मे प्रवश् कर जाए.” मैं उसके कहे अनुसार करने मे अब भी झिझक रही थी. 



रत्ना ने मेरी झिझक समझ कर मुझे अपनी टाँगें चौड़ी करने का इशारा किया. मैने वैसा ही किया और धीरे धीरे अपनी टाँगे मोड़ कर अपनी कमर को नीचे करने लगी. कमर को काफ़ी नीचे करने पर अचानक अपनी जांघों के बीच ठंडे पत्थर की चुअन महसूस की. रत्ना ने मुझे उसी अवस्था मे रुकने का इशारा किया. मैं उसी अवस्था मे रुक गयी. 



एक युवती नीचे बैठ कर मेरी योनि की फांकों को अपनी उंगलियों से फैलाया. तभी दूसरी युवती ने देवता की मूर्ति को मेरी खुली हुई योनि के नीचे सेट किया. रत्ना ने अब मुझे बैठने का इशारा किया. मैने अपनी कमर को नीचे की ओर दबाया तो मेरी योनि को चीरता हुए वो पत्थर कि शीला मेरी योनि मे घुसने लगी. उसका सिरा इतना मोटा था कि मेरी योनि पूरी तरह फैल गयी थी मगर अब भी वो अंदर नही जा पा रही थी. 



“ आअहह……काफ़ी मोटाआ है……ये अंदर नही जा पाएगा.” मैने कराहते हुए कहा. 



“ सब चला जाएगा. नयी नवेली दुल्हनो की चूत मे घुस जाता है तो फिर तेरी चूत मे क्यों नही जा पाएगा.” रत्ना ने कहा. 



“ नही……मैं इसे नही ले पाउन्गी” मैने अपने निचले होंठ को अपने दाँतों के बीच भींच कर वापस ज़ोर लगाया मगर फिर भी मेरी योनि ने उस पत्थर की शीला को अंदर प्रवेश करने का रास्ता नही दिया. हां दर्द से ज़रूर मेरा जबड़ा खुल गया और दबी दबी चीख निकल गयी. मैने आँखें बंद कर ली. 



“ थोडा धीरज रखो.” रत्ना की आवाज़ सुनाई दी. 



“ थोड़ा ताक़त और लगाओ. एक बार अंदर जाते ही सारा दर्द ख़त्म हो जायगा. बस कुच्छ ही पल की परेशानी है.” किसी महिला की आवाज़ कानो मे पड़ी. मैने अपनी आँखें खोली तो पाया रत्ना मेरे सामने घुटनो के बल झुक कर मेरी योनि के मुँह को अपनी एक हाथ की उंगलियों से चौड़ा कर रही है और दूसरे हाथ से उस मूर्ति के सिरे को मेरी योनि की फांकों के बीच सेट कर रही है. उसने अपनी दो उंगलियाँ अंदर डाल कर उन्हे मेरे योनि रस से सान कर उसे मूर्ति के उपर लगाया. 



मैने भी हिम्मत नही हारी. पूरी हिम्मत को वापस जुटा कर मैने अपनी कमर को नीचे उस मूर्ति पर दबाया. पहले तो दो पल को थोड़ा दर्द हुआ और फिर “प्लुक” जैसी आवाज़ के साथ मूर्ति का मोटा सिरा मेरी योनि को पूरी तरह फैलाता हुया अंदर घुस गया. दिन भर की इतनी चुदाई के बाद भी मूर्ति के उस विशाल के सिर को अंदर लेने मे मेरे पसीने छ्छूट गये. मैं उसी अवस्था मे अपनी कमर को रोक कर लंबी लंबी साँसे लेने लगी. रत्ना मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी. 



दो पल उसी तरह रुक कर मैने वापस एक लंबी साँस ली और अपनी कमर को नीचे किया. धीरे धीरे वो मूर्ति मेरी योनि की दीवारों को चीरती हुई अंदर प्रवेश होती गयी. मैं धाम से ज़मीन पर बैठ गयी और वो मूर्ति जड़ तक मेरी योनि मे घुस गयी. मैने अपनी उंगलियों को नीचे ले जा कर टटोल ; कर देखा कि मूर्ति के बेस के अलावा पूरी मूर्ति अब मेरी योनि मे थी. मैने अपने चारों ओर खड़े लोगों को देखा. सबके होंठों पर मुस्कुराहट थी. 



मैं कुच्छ देर उसी तरह बैठी रही तभी अचानक. उस मूर्ति मे सरसराहट होने लगी. वो मूर्ति एक तरह से वाइब्रटर जैसी थी जिसका तार फर्श मे कहीं छिपा था. किसी ने उसका स्विच ऑन कर दिया था. उस मूर्ति मे कंपकंपी बढ़ने लगी और उसकी तरंगे मेरे पूरे वजूद को हिला कर रख दे रही थी. 
क्रमशः............
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