RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
हम दोनो छोटे भाइयों पर बचपन से ही घर खेत के कामों का बोझ रहा फिर भी हम पढ़ाई और काम का बॅलेन्स बनाए हुए, बस पास होते रहे.
10थ तक आते-आते, 14 साल की उम्र में ही मेरी हाइट कोई 5’5” हो चुकी थी, चूँकि घर में खाने की कोई कमी नही थी, मन मर्ज़ी दूध कहो, घी खाओ, कोई हाथ पकड़ने वाला नही था,
रात के खाने के बाद रूटिन से डेढ़ लिटेर दूध में 50ग्राम घी और एक देसी अंडा(एग) मीठा डालके पीना और खेतों में जी तोड़ मेहनत करना,
अगर काम कम हो जाता तब डंड पेलना, समय मिला तो पढ़ाई करना यही रुटीन था मेरा,
थोड़ा बहुत यार दोस्तों के साथ मौज मस्ती भी होती रहती थी,
बॉडी एकदम स्टील के माफिक सॉलिड थी, नया-नया फिल्मों का शौक लग चुका था, अमिताभ बच्चन के फॅन थे, तो उनके जैसे हो बाल, कान ढके हुए, शर्ट के कॉलर पीछे से दिखते नही थे बालों की वजह से.
कपड़े भी शेम टू शेम, 28” की मोहरी की बेलबटम, जांघों में एकदम कसी हुई… अब आप समझ ही गये होंगे उस फैसन के बारे में.
ज़्यादा अंग्रेज जैसा तो नही, लेकिन सॉफ रंग, गोल चेहरा, कुल मिला कर एक टीनेज हीरो, ये पर्सनाल्टी थी मेरी.
संगीत का बहुत शौक था, किशोर दा के गाने हर समय ज़ुबान पर रहते, चलते-फिरते, काम करते वक़्त भी वोही गुनगुनाना…. एक दम मस्त लाइफ.
वो भी क्या दिन थे, इतनी मेहनत के बावजूद एक नयी उमंग, मस्ती सी भरी रहती थी दिल में.
गाँव में ही एक कीर्तन मंडल था, जिसका में लेड गायक था, चारों ओर बहुत नाम हो चुका था हमारा.
यही नाम मेरे कॉलेज में काम आया…
उन दिनों, हमारे कॉलेज में शिक्षामंत्री का इनस्पेक्षन होनेवाला था, जिसके स्वागत की तैयारियाँ चल रही थी महीनों पहले से.
उसमें संगीत प्रोग्राम भी देना था, जिसके लिए अच्छे-2 बच्चों का सेलेक्षन हुआ, जो भी इंट्रेस्टेड थे उन्होने अपने-2 नाम लिखा दिए,
मेरा नाम भी मुझे बिना पुच्छे ही हमारे गाँव के सीनियर लड़कों ने लिखा दिया,
लिस्ट सर्क्युलेट हुई तब पता चला, और दूसरे दिन से पप्पू मास्टर साब (<5” फीट की हाइट, शरीर में भी हल्के हिन्दी के टीचर एज करीब 40-42, सौम्या स्वाभाव) उनके पास टाइम टेबल से रिहर्सल के लिए जाना था,
लड़के और लड़कियाँ दोनो ने ही इस प्रोग्राम में पार्टिसिपेट करना था,
सबका ट्रेल लिया गया, अपनी अपनी स्पेशॅलिटी के हिसाब से, मुझे एक ड्रामा, कब्बली और एक डुयेट के लिए सेलेक्ट किया गया.
मेरे साथ डुयेट में एक लड़की, रिंकी जैन को गाना था, बॉब्बी फिल्म का गाना “हम तुम एक कमरे में बंद हों, और चाबी खो जाए”
इस फिल्म के गानों का बड़ा क्रेज़ था उस टाइम..
रिंकी जैन- क्या लिखूं उसके बारे में, शायद मेरे पास शब्दों की कमी है, या मेरी कल्पना शक्ति इतनी अच्छी नही है कि कुछ लिख सकूँ.
अल्हड़ बाला, मीडियम हाइट, खूबसूरत इतनी की पुछो मत, वैसे तो उस उम्र में खूबसूरती निखारना शुरू ही होती है,
काले थोड़े घुघराले बाल पीठ के निचले भाग तका आते थे, गोल गुलाबी चेहरा, हिरनी जैसी कॅटिली आँखें लगता था जैसे कुछ कहने वाली हैं.
सुराहीदार गर्दन, कच्चे अमरूदो जैसे उठे हुए कड़क वक्ष, स्कूल शर्ट में और भी सुंदर दिखते थे, एकदम पतली कोई 22 की कमर,
कमर के जस्ट थोड़ा सा स्लोप लेता हुआ जांघों का उभार, पीछे से थोड़े से बाहर को निकलते हुई गोल-गोल चूतड़, लेकिन एकदम टाइट, ज़रा सी भी थिरकन नही.
घुटनों तक की स्कर्ट में से झाँकती हुई मांसल जांघे, जब चलती थी तो लगता था मानो कोई वाटिका में तितली उड़ रही हो,
कॉलेज के सीनियर 12थ तक के स्टूडेंट भी इस मौके की तलाश में रहते थे, कि सिर्फ़ एक मौका इसके नज़दीक जाने का मिल जाए, तो चैन आजाए.
उसे देखते ही मेरा मन बार-बार किशोरदा का वो गाना गुनगुनाने का करता था और गुनगुनाने लगता भी था.
रूप तेरा ऐसा दर्पण में ना समाय,
खुश्बू तेरे तन की मधुबन में ना समय,
हो मुझे खुशी मिली इतनी….. हो मुझे खुशी मिली इतनी,
जीवन में ना समय,
पलक बंद करलूँ कही छलक ही ना जाए….
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