RE: vasna kahani चाहत हवस की
उस रात भी खाना खाने के बाद जब हम दोनों बिस्तर पर लेटे तो विजय का लण्ड मेरी गाँड़ की गोलाईयों के बीच दस्तक देने लगा। विजय का एक हाथ मेरे मम्मों को सहला और दबा रहा था, और वो मेरी गर्दन के पिछले हिस्से को चूम और चाट रहा था। बिना कोई समय गँवाये विजय ने मेरी पेटीकोट को ऊपर कर दिया और मेरी फ़ूली हुई चूत को ऊपर से सहलाने लगा। मेरी चूत के दाने के ऊपर वो गोल गोल ऊँगली घुमा रहा था, और चूत की फ़ाँकों को सहलाये जा रहा था। उस दिन मैं इस कदर चुदासी हो रही थी, कि विजय के कुछ देर इस तरह मेरी चूत को सहलाने से ही मैं एक बार झड़ गयी।
विजय अभी भी मेरी गर्दन को पीछे से चूम रहा था, और उसका फ़नफ़नाता हुआ लण्ड मेरी गाँड़ पर टक्कर मार रहा था। उसके लण्ड से निकल रहा चिकना पानी मेरी गाँड़ के छेद को चिकना कर रहा था। मेरे मुँह से खुशी और उत्तेजना में सिसकारियाँ निकल रही थी। अपने बेटे के लण्ड के सुपाड़े को अपनी गाँड़ के छेद पर अंदर घुसने के लिये बेताब होता देख मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। जैसे ही उसने अपने लण्ड का सुपाड़ा मेरी गाँड़ के अंदर घुसाया, मेरे मुँह से आह निकल गयी। अपने बेटे के मोटे लण्ड को अपनी गाँड़ के छोटे से छेद में घुसवाने में थोड़ा दर्द होना लाजमी था। हाँलांकि मैं विजय के लण्ड से पिछले कुछ दिनों में कई बार अपनी गाँड़ मरवा चुकी थी, लेकिन हर बार जब पहली दफ़ा जब विजय अपने लण्ड मेरी गाँड़ में घुसाता था, तो मुझे अलग ही मजा आता था। विजय का मोटा लण्ड मेरी गाँड़ के छोटे से छेद को चौड़ा कर के उसका मुहाना खोल के बड़ा कर देता था। और ऐसा होता देख मुझे सम्पूर्णता का एहसास होता था, और मेरे पूरे गदराये बदन में खुशी की लहर सी दौड़ जाती थी।
हमेशा की तरह मेरी गाँड़ मारते हुए विजय ने छोटे छोटे धीमे धीमे झटके मारने शुरू कर दिये, और धीरे धीरे हर झटके के साथ उसका लण्ड इन्च दर इन्च मेरी गाँड़ में घुसता जा रहा था। जब उसका लण्ड पूरा मेरी गाँड़ में घुस गया तो उसने कस कर मुझे दबोच लिया, और मेरे मम्मों को अपनी हथेली में भरकर कस कर मसलते हुए अपना लण्ड मेरी गाँड़ में पेलने लगा। खुशी के मारे मेरे मुँह से सिसकारीयाँ निकल रही थी, और मैं मचल रही थी। जैसे ही विजय का लण्ड बाहर निकलता मुझे खालीपन मेहसूस होता और मैं विजय के मोटे लण्ड को फ़िर से अंदर लेने को बेताब होकर मचल उठती। मैंने विजय के लण्ड को अपनी गाँड़ में दबोच रखा था, और गाँड़ के छेद को बंद करते हुए विजय को टाईट गाँड़ का पूरा मजा दे रही थी।
और जब विजय अपने लण्ड से वीर्य का पानी मेरी गाँड़ में निकाल कर फ़ारिग हुआ, तब तक अपनी चूत में उंगली घुसाकर और चूत के दाने को अपने हाथ की उंगली से सहलाते हुए मैं दो बार झड़ चुकी थी। जैसे ही विजय ने मेरी गाँड़ में अपने लण्ड का आखिरी झटका मारा, मेरे मुँह से खुशी के मारे चीख निकल गयी। विजय के लण्ड से निकले पानी ने मेरी गाँड़ के छेद में मानो बाढ ला दी थी। विजय का मोटा मूसल जैसा लण्ड झड़ते हुए मेरी गाँड़ में और ज्यादा कड़क और मोटा हो जाता था, और उसको अपनी गाँड़ में कड़क होता मेहसूस करते हुए मुझे बहुत मजा आता था, और मेरा भी उसके साथ झड़ने का मजा दोगुना हो जाता था।
वासना का तूफ़ान शांत होने के बाद, मैंने अपना सिर घुमाकर विजय के होंठो को चूम लिया। विजय का लण्ड अभी भी मेरी गाँड़ में घुसा हुआ था। विजय अभी भी अपने मुलायम नरम हो चुके लण्ड के हल्के हल्के झटके मार कर मेरी गाँड़ में मानो अपने वीर्य के बीज को रोपने का प्रयास कर रहा था।
मैंने धीमे से फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा, ''विजय बेटा, आज तो वायदे के मुताबिक तुम मेरी चूत में भी अपने लण्ड को घुसाकर, मेरी चूत को भी अपने लण्ड के पानी से भर सकते हो…''
मेरी इस बात को सुनकर विजय का लण्ड मेरी गाँड़ में अकड़ने लगा। विजय मेरे होंठों को चूमने, मेरे मम्मों को मसलने और मेरी चूत में उँगली करने के बाद फ़िर से अपने लण्ड को मेरी गाँड़ में पेलने लगा, और मेरी खूबसूरती की तारीफ़ करने लगा। एक बार फ़िर से मेरी गाँड़ में अपने लण्ड का पानी छोड़ने के साथ ही मुझे भी झड़ने पर मजबूर करते हुए, विजय मुझ से कस कर चिपक गया, और मेरे कन्धे पर अपना सिर रख दिया। विजय साथ साथ बोले जा रहा था, ''मम्मी आप बहुत अच्छी हो, आप बहुत सुन्दर हो, आप मेरा बह्तु ख्याल रखती हो,'' उसका हर एक शब्द मुझे उसको और ज्यादा प्यार करने पर बाध्य कर रहा था।
एक दूसरे से चिपक कर लेटे हुए, हम दोनों ही के दिमाग में चूत में लण्ड डालने की ईनाम वाली बात घूम रही थी। विजय मुझे बता रहा था कि वो मेरी चूत को चोदने के लिये कितना बेकरार था, और वो भी इसलिये नहीं कि वो अपना लण्ड किसी चूत में पहली बार घुसाने जा रहा था, बल्कि इसलिये कि वो चूत उसकी प्यारी मम्मी की चूत थी। मैं भी उसको बता रही थी कि मैं भी उसके लण्ड से चुदने को उतनी ही बेकरार थी, और भगवान की शुक्र गुजार थी कि मेरे बेटे ने अपनी मेहनत से टैक्सी खरीदी थी, और उसका अपने ईनाम पर पूरा हक था।
''मैं पहली बार किसी चूत को चोदूँगा, और मैं इसे यादगार बनाना चाहता हूँ, क्यों ना मम्मी हम दोनों कल शाम जयपुर घूमने चलें और वहाँ किसी होटल में नव विवाहित जोड़े की तरह सुहाग रात मनायेंगे,'' विजय ने किसी बच्चे की तरह उत्साहित होते हुए कहा। मुझे भी विजय का प्रस्ताव सही लगा, और मैंने हामी में अपनी गर्दन हिला दी।
अगले दिन सुबह से ही मैंने अपने बेटे की सुहाग रात के लिये तैयारी शुरू कर दी। बाजार जाकर मैंने अपने हाथों पर मेंहदी लगवाई, और नई ब्रा पैण्टी खरीदीं। घर आकर अपनी बगल और झाँटों के बाल साफ़ किये, और शाम को विजय के लौटने से पहले मैं एक अच्छी सी साड़ी पहन कर तैयार हो गयी।
शाम 6 बजे विजय और मैं विजय की नई टैक्सी में बैठकर जयपुर के लिये रवाना हो गये। गाड़ी ड्राईव करते हुए बीच बीच में विजय कनखियों से मुझे देखकर मुस्कुरा देता, और अपना एक हाथ मेरी जाँघों पर रख देता। हम दोनों किसी किशोर नवयुवक नवयुवती की तरह व्यवहार कर रहे थे। मिड-वे बहरोड़ पर जब एक रेस्टॉरेण्ट पर विजय ने गाड़ी रोकी तो गाड़ी से उतरने से पहले विजय ने मुझे अपनी बाँहों में भरकर मुझे जोरों से होंठों पर किस कर लिया, और मेरे मुँह में अपनी जीभ घुसा दी। हम दोनों की जीभ एक दूसरे की जीभ के साथ अठखेलियाँ करने लगी।
विजय ने गाड़ी की हैडलाईट बंद कर दी, और अंदर की लाईट ऑन नहीं की, पार्किंग में कोई लाईट नहीं थी।मैंने विजय को अपनी बाँहों में भर लिया, और उसकी छाती पर अपने मम्मों को दबाने लगी, विजय मेरे चूतड़ों को अपने हाथों में भरकर मसल रहा था। मैं उसके लण्ड को अपनी चूत में लेने को बेताब थी। लेकिन उस मिड-वे की कार पार्किंग में ऐसा करना सुरक्षित नहीं था। विजय ने एक हाथ नीचे ले जाकर मेरे पेटीकोट के अंदर घुसा दिया, और पेटीकोट और साड़ी दोनों को ऊपर कर दिया। विजय ने मुझे कार की अगली सीट पर ही घोड़ी बनाकर मेरी पैण्टी को नीचे खींच कर उतार दिया, और मेरी गाँड़ की दोनों गोलाईयों को अपने हाथों से अलग करते हुए मेरी चूत और गाँड़ के छेदों को निहारने लगा।
विजय ने जैसे ही मेरी चूत और गाँड़ के छेदों में उँगली घुसानी शुरू की, मैं किसी चुदासी कुतिया की तरह आवाजें निकालने लगी। विजय का अँगूठा मेरी ग़ाँड़ के छेद को सहला रहा था, तो उसकी उँगलियां मेरी चूत की फ़ाँकों के साथ खेल रही थीं। कुछ देर बाद उसकी पहली और बीच वाली उँगली मेरी पनिया रही चूत के अंदर घुसने लगी। अपने बेटे के इस तरह मेरी गाँड़ और चूत में उँगली घुसाने को मैं ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर पायी, और वहीं कार पर्किंग में ही मैं एक बार जोरदार तरीके से झड़ गयी। समाज की वर्जनाओं को हम दोनों माँ बेटे कब की धता बता चुके थे, और अब हम दोनों के बीच शर्म लाज लिहाज का कोई बंधन नहीं था। जिस वासना और हवस के लावा को हम दोनों ने किसी तरह तब तक दबाया हुआ था, उसका ज्वालामुखी अब फ़ूट चुका था।
''मम्मी, अब मुझसे नहीं रहा जाता,'' विजय मेरी चूत में उँगली घुसाते हुए,मेरे कानों के पास धीमे से बोला, उसकी आवाज काँप रही थी, ''मेरे लण्ड को अपनी चूत में घुसवा लो ना मम्मी।''
मैं विजय की हालत समझ सकती थी, लेकिन रात के अंधेरे में जब भी कोई कार आती तो उसकी हैडलाईट की रोशनी में कोई भी हमारी हरकतें देख सकता था, इसलिये मैंने विजय को समझाया, ''विजय बेटा, मन तो मेरा भी बहुत हो रहा हैं चुदने का, लेकिन इस तरह यहाँ पर किसी ने देख लिया तो अच्छा नहीं होगा, तुम जयपुर पहुँच के जी भर के चोद लेना, लेकिन अब जल्दी से टॉयलेट कर के यहाँ से चलते हैं।'' ऐसा बोलकर मैंने विजय के होंठों को किस कर लिया।
किसी तरह विजय ने अपने को काबू में किया, और हम दोनों कार लॉक करने के के बाद पेशाब करने के लिये चल दिये। जिस तरह कुछ मिनट पहले विजय ने मुझे मेरी गाँड़ और चूत में उँगली घुसाकर मुझे झड़ने पर मजबूर किया था, उसके बाद मानो मेरी टाँगों में से जान ही निकल गयी थी, और मुझसे ठीक से चलना मुश्किल हो रहा था। हमने डिनर वहीं मिड-वे रेस्टोरेन्ट पर ही किया और फ़िर जयपुर की तरफ़ चल दिये।
जयपुर में हम पहले भी रह चुके थे इसलिये विजय को वहाँ के सभी होटल की अच्छी जानकारी थी। एक अच्छे से बजट होटल में हमने एक कमरा ले लिया। विजय गाड़ी को पार्क करने पार्किंग में चला गया, और जब तक वो चैक इन की फ़ॉर्मेलीटी को खत्म करता, मैं रूम में आकर बाथरूम में नहाने के लिये चली गयी। नहाते हुए अपनी चूत को विजय से चुदवाने कि उत्सुकता के विचारों से ही मेरा दिमाग घूम रहा था। विजय आज पहली बार किसी की चूत मारने वाला था, और वो भी अपनी मम्मी की, ये वाकई में हम दोनों के लिये एक बड़ा अवसर था।
अपने बेटे का लण्ड मेरी चूत में घुसाने का विचार केवल इस वजह से मुझे इतना ज्यादा उत्तेजित नहीं कर रहा था कि ये सामाजिक मान्यताओं के खिलाफ़ था बल्कि जिन परिस्थितियों में हम माँ बेटे के ये रिश्ते बने थे, वो मुझे ज्यादा उत्साहित और उत्तेजित कर रहे थे। अब हम सिर्फ़ माँ बेटे ना रहकर दो प्रेमी बन चुके थे। प्रेमी नाम का शब्द ही मुझे अंदर ही अंदर बेहद उत्तेजित कर रहा था। जब से हम दोनों माँ बेटे के शारीरिक सम्बंध बने थे, तब से हम दोनों की एक दूसरे के प्रति भावनायें, और अटूट बंधन और ज्यादा गहरा हो गया था। मेरे जीवन में अभी तक कोई रिश्ता इतना गहरा और सतुष्टीपूर्ण नहीं हुआ था, और ये सब अपने आप हुआ था। शायद इसी वजह से मैं थोड़ा नर्वस भी हो रही थी।
नहाने के बाद मैंने अपने गदराये बदन पर बॉडी लोशन लगा लिया, जिसकी वजह से मेरी गोरी त्वचा और ज्यादा निखर उठी, और फ़िर नंगे बदन ही होटल रूम के बैड पर आकर बैठ गयी। मेरे अंदर उत्साह उत्तेजना और घबराहट सब एक साथ हो रही थी। पता नहीं क्यों मुझे थोड़ी टेन्शन भी हो रही थी, हाँलांकि ऐसा नहीं था कि मेरी चूत में पहली बार कोई लण्ड घुसने वाला हो, लेकिन ऐसा बहुत सालों बाद होने वाला था। विजय ने मेरे जीवन में कुछ नया, उत्साह, उत्तेजना और खुशी का संचार कर दिया था।
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