RE: vasna kahani चाहत हवस की
जब विजय भावनाओं में डूबा हुआ था, तभी विजय के लण्ड में हरकत होने लगी, मेरी पनियाती गर्म चूत के दोनों बाहरी फ़ाँकों के बीच दबा हुआ, वो फ़िर से खड़ा होने लगा। विजय अच्छी तरह समझ रहा था कि उसको कभी कोई मेरी तरह ऐसा निस्वार्थ प्यार नहीं करेगा। मेरा सच्चा प्यार और मेरे गुदाज गदराये बदन का सामीप्य उसको फ़िर से उत्तेजित कर रहा था, और उसके लण्ड में हलचल बढने लगी थी।
वो बड़बड़ाते हुए अपनी जीवनदायनी माँ जिसने उसको देखभाल कर पाल पोस के बड़ा किया था को सम्बोधित करते हुए बोला, ''आई लव यू, मम्मी, विश्वास करे मैं आपको हमेशा ऐसे ही प्यार करता रहूँगा।'' विजय ने मुझे अपनी बाँहों मे जकड़ लिया, और मेरी आँखों में आँखें डालकर देखने लगा, वो शायद कुछ कहना चाहता था, लेकिन उसको शब्द नहीं मिल रहे थे। ''कुछ नहीं बदलेगा, सब ऐसे ही चलता रहेगा, मैं कैसे कहूँ…''
उसकी बात सुनकर मैं हँसने लगी, मैं उसके दिल से निकल रही भावनाओं को समझ रही थी। विजय की बाँहों में पिघलते हुए, मैंने उसके माथे पर अपना माथा छुला कर दबाते हुए कहा, ''मैं समझ रही हूँ बेटा, तुम ज्यादा मत सोचो।''
हम दोनों माँ बेटे, एक नवविवाहित युगल की तरह एक दूसरे को बारम्बार लगातार चूमने लगे, और जो कुछ हम दोनों ने एक दूसरे से कहा था, उसको जिस्मानी तौर से साबित करने लगे।
कुछ देर प्यार से धीरे चीरे चूमने के बाद हम दोनों बेताब होकर चूमाचाटी करने लगे। विजय मेरी नंगी चिकनी पींठ को सहलाते हुए, बीच बीच में मेरी गाँड़ की मोटी उभरी हुई गोलाइयों को दबा कर मसल रहा था, और मैंने अपने बेटे के चेहरे को अपने हाथों में पकड़ रखा था। इस दौरान मैं विजय की गोद में बैठकर अपनी गाँड़ उछाल रही थी, और अपनी भीगी गीली चूत की फ़ाँकों और चूत के उभरे हुए दाने को उसके खड़े लण्ड पर घिस रही थी। अपने मम्मों को विजय की छाती पर दबाते हुए, विजय की जीभ को चूसते हुए, होंठों पर होंठ घिसते हुए, मैं विजय के ऊपर छाई हुई थी।
जैसे ही मैंने विजय को चूमना बंद करते हुए, अपने आप को उसके पेट के निचले हिस्से से अपने आप को थोड़ा सा ऊपर उठाया, विजय सिहर गया। विजय के लोहे जैसे कड़क लण्ड को अपने हाथ से पकड़कर मैं उसको अपनी चिकनी चूत के छेद का रास्ता दिखाने लगी। और फ़िर उसके लण्ड को अपनी चूत में घुसाकर, उसके ऊपर लेटते हुए मैंने अपने मम्मे विजय के चेहरे पर रख दिये। जैसे ही विजय का शूल जैसा लण्ड मेरी चूत को चीरता हुआ मेरी प्यासी चूत की गुफ़ा में अंदर घुसा, मेरी चूत की पंखुड़ियाँ स्वतः ही खुल कर उसको निगलने लगी। विजय के लाजवाब मूसल जैसे लण्ड को अपनी चूत में फ़िसलकर अंदर घुसते हुए मुझे जो पूर्णता का एहसास हो रहा था, उस की वजह से मेरे मुँह से अपने आप आहें निकल रही थी। जब उसका लण्ड पूरा मेरी चूत में घुस गया तो उसका अण्डकोश मेरी गाँड़ के छेद को छूने लगा, और लण्ड मेरी गर्म चूत के छेद में जितना अंदर जा सकता था उतना अंदर घुसा हुआ था।
विजय के लण्ड को अपनी चूत में घुसाकर, उसके ऊपर सवारी करते हुए, अपनी नशीली आँखें खोलकर मैं अपने बेटे को देखकर मुस्कुराई। मेरे बदन में चुदाई का खुमार चढने लगा था, और मेरी आँखें सवतः ही बंद होने लगी थी।
''तू मेरा बहुत प्यार बेटा है विजय, मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ… बहुत ज्यादा बेटा… ओह्ह्ह्…''
''आह मम्मी, मैं भी आपको बहुत प्यार करता हूँ…''
इससे पहले कि विजय कुछ और बोलता मैं उसके ऊपर सवार होकर चुदाई शुरू कर दी। मानो मेरे ऊपर किसी आत्मा का साया हो, मैं पागलों की तरह उसके लण्ड को अपनी चूत में घुसाकर उसके ऊपर कूद रही थी। हम दोनों अपने यौनांगों को आपस में चिपका कर चुदाई का मजा ले रहे थे, हम समझ चुके थे कि दोनों को ही सबसे ज्यादा मजा सहवास में आता था, और इससे बेहतर कुछ और नहीं लगता था, मैं बेसुध होकर विजय के लण्ड को अंदर घुसाये ऊपर नीचे हो रही थी।
अपनी चूत को अपने बेटे के लण्ड पर बार बार पेलते हुए एक ख्याल मेरे जेहन में आ रहा था कि विजय के लण्ड को मेरी वीर्य से भरी चिकनी चूत में ज्यादा से ज्यादा अंदर ले सकूँ। इस पल को अपने जेहन में संजोते हुए, चुदाई के इस बेहतरीन पल जिसमें विजय का लण्ड मेरी चूत के अंदर बाहर हो रहा था, मैं उसके लण्ड पर उछलते हुए आनंदित होकर धीमे धीमे चीख रही थी। मैं बता नहीं सकती कि अपने बेटे के प्यारे लण्ड को अपनी चुत में घुसाकर मुझे जिस पूर्णता का एहसास हो रहा था वो अवर्णनीय है।
ताल में ताल मिलाते हुए विजय भी अपने लण्ड के नीचे से ऊपर झटके मार रहा था। मेरी चूत की फ़ाँको ने उसके लण्ड को जकड़ रखा था और उनके बीच वो अपने लण्ड को पिस्टन की तरह अंदर बाहर कर रहा था। मेरे चूतड़ों को अपनी उसने अपनी हथेली में भर कर वो उनको मसल कर मींड़ते हुए अपने डण्डे जैसे लण्ड के ऊपर उछाल रहा था। मेरे उछलते हुए मम्मे देखकर वो उनके निप्पल को मुँह में भरकर चूसने से अपने आप को रोक नहीं पाया, और बारी बार से उनको कभी चूमकर, तो कभी चूसकर और मींजकर अपनी भड़ास निकालने लगा, मैं पागलों की तरह कसमसाते हुए चीखने लगी।
अपने बेटे के लण्ड पर सवारी करते हुए, रतिक्रीड़ा में डूबकर मैं कामोन्माद के चरम के करीब पहुँच रही थी। विजय के कंधो को अपने हाथों में पकड़कर मैंने स्पीड तेज कर दी, विजय के लण्ड पर अपनी रस से भीगी चूत की छेद के थाप मारते हुए, मेरा बदन काँप रहा था और मैं रिरिया रही थी।
''अंदर ही पानी निकाल देना बेटा, आह्ह्ह्… विजय मैं बस होने ही वाली हूँ! आह चोद दे अपनी मम्मी को, निकाल दे अपना पानी मम्मी की चूत में!"
विजय भी झड़ने ही वाला था, लेकिन वो अब भी मेरे मम्मों का मोह नहीं छोड़ पा रहा था, एक निप्पल को मुँह में भरकर वो तेजी से अपनी गाँड़ को उछालकर अपनी माँ की मोहक गर्म चूत में अपने लण्ड को पेलने लगा। बेकरार होकर उसके लण्ड पर उछलते हुए, मैं कसमसाते हुए काँपने लगी, कामोन्माद में डूबकर बड़बड़ाने लगी, '' चोदो, बेटा, हाँ ऐसे ही, तुम भी मेरे साथ ही हो जाओ बेटा, अपनी मम्मी के साथ साथ झड़ जा……!"
झड़ते हुए बीच बीच में सिंकुड़ कर जैसे जैसे मेरी चूत की मखमली पकड़ उसके लण्ड पर मजबूत होने लगी। तभी विजय ने एक अंतिम झटका मारा, और उसका ज्वालामुखी मेरी चूत के अंदर ही फ़ूट गया। विजय के लण्ड को चूत में अंदर तक घुसाते हुए मैं उसके लक्कड़ जैसे लण्ड पर ऊपर से नीचे होते हुए बैठ गयी, विजय का लण्ड अपनी मम्मी की चूत की सुरंग में अंदर तक घुसकर वीर्य की धार पर धार निकाल रहा था।
झड़ते हुए पगलाकर मैं मस्ती में चीखने लगी, मेरी चूत का निकलता हुआ पानी मेरे बेटे के लण्ड से निकल रही वीर्य की बौछार से मिश्रित हो रहा था। झड़ते हुए विजय की मस्ती भरी आवाज घुटी घुटी सी बाहर आ रही थी, क्योंकि उसने अभी भी मेरे एक निप्पल को किसी भूखे बच्चे की तरह मुँह में भर रखा था, मेरे संवेदनशील निप्पल को उसका इस तरह चूसना, झड़ते हुए मुझे और ज्यादा मजा दे रहा था। विजय का मोटा मूसल लण्ड एक बार फ़िर से अपने वीर्य की पिचकारी मार मारकर मेरी चूत को वीर्य के गाढे पानी से भर रहा था, मेरी चूत में मानो बाढ आ गयी थी।
उस जबरदस्त चरमोत्कर्ष के बाद मेरी तो मानो आवाज ही गायब हो गयी, मेरे पूरे बदन में गजब का हल्कापन मेहसूस हो रहा था। मैंने करवट लेकर अपना सिर विजय की छाती के ऊपर रख दिया, और सोचने लगी कि किस तरह मैंने अपने बदन को अपने बेटे को सौंप, उसकी बाँहों में समर्पण कर चुदाई का मजा लिया था, किस तरह उसने मेरी चूत को वीर्य के गाढे पानी से भर दिया था, मैं उन पलों का आँख बंद कर संवरण करने लगी।
विजय ने पहली बार किसी चूत में अपना लण्ड घुसाकर चुदाई का मजा लिया था, उसके लिये यह इसलिये और ज्यादा अविस्मरणीय था क्योंकि वो चूत उसकी प्यारी मम्मी की थी। लेकिन शायद विजय और मेरा दोनों का ही मन अभी भरा नहीं था।
कुछ देर वैसे ही लेट कर आराम करते हुए, हम दोनों एक दुसरे को सहलाते हुए, चूमते हुए, साथ चिपक कर अठखेलियाँ करते रहे। और फ़िर नींद के आगोश में चले गए।
अगले दिन सारा समय हम एक दूसरे के साथ उस होटल के कमरे में एक साथ ही रहे। हम दोनों ही ज्यादा से ज्यादा समय एक दूसरे का साथ ही रहकर बिताना चाहते थे। सारा दिन हम दोनों ने कभी चूसकर तो कभी चुदाई करते हुए बिताया, बस खाना खाने, पानी पीने और टॉयलेट जाने को छोड़कर हम कामक्रीड़ा में व्यस्त रहे।
जब हम दोनों बिस्तर में ना भी होते, तब भी हम दोनों नंगे ही रहते, और एक दूसरे के नग्न बदन के स्पर्षसुख का मजा लेते रहते। जब चाहे एक दूसरे के होंठों को चूम लेते, जिस से जिस्म की भूख फ़िर जाग उठती और हमारे जिस्म एक दूसरे में आलिंगनबद्ध हो जाते, और हम फ़िर से चुदाई शुरू कर देते। हम किशोर नवविवाहितों जैसा बर्ताव कर रहे थे, हम माँ बेटे प्यार के बंधन को समझते हुए बार बार एकाकार हो जाते।
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