Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
12-26-2018, 11:01 PM,
#63
RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
चाची के साथ होटल में मज़े किये
मेरा नाम रवि है. बात उन दिनों की है जब मेरी उम्र 19 साल की थी और मै इंजीनियरिंग के पहले साल में बंगलौर में पढ़ रहा था. मै बनारस का रहने वाला हूँ. मेरे सेमेस्टर के एक्जाम समाप्त हो गए थे. और कुछ दिनों की छुट्टी के लिए घर आया था. मेरा घर संयुक्त परिवार का है. मेरे परिवार के अलावा मेरे चाचा एवं चाची भी साथ में ही रहते थे. मेरे चाचा पेशे से हार्डवेयर के थोक विक्रेता थे. उन्होंने काफी धन कमाया रखा था उन्होंने. उनकी शादी को सात साल हो गए थे लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं हुई थी. चाची की उम्र 28 साल की थी. वो बनारस जिले के ही एक गाँव की थी. थी तो देहाती लेकिन देखने में मस्त थी. उनकी जवानी पुरे शवाब पर थी. झक गोरा बदन और कटीले नैन नक्श और गदराये बदन की मालकिन थी. वो लोग ऊपर के मंजिल में रहते थे. जब चाचा दूकान और मेरे पापा अपने कार्यालय चले जाते थे तो मै और चाची दिन भर ऊपर बैठ कर गप्पें हाकां करते थे. चाची का नाम मोना था. सच कहूँ तो वो मुझे अपना दोस्त मानती थी. वो मेरे सामने बड़े ही सहज भाव से रहती थी. अपने कपडे लत्ते भी मेरे सामने ठीक से नहीं पहनती थी. उनकी चूची की आधी दरार हमेशा दिखती रहती थी. कभी कभी तो सेक्स की बात भी कर डालती थी. जब भी मुझे अकेली पाती थी तो हमेशा डबल मीनिंग बात बोलती थी. जैसे बछडा भी दूध देता है. तेरा डंडा कितना बड़ा है? तुझे स्पेशल दवा की जरुरत है. आदी . दिन भर मेरे कालेज और बंगलौर के किस्से सुनते रहती थी. जब मेरे बंगलौर जाने के छः दिन शेष रह गए थे तभी एक दिन चाची ने कहा – वो लोग भी बंगलौर घुमने जाना चाहते हैं.

मैंने कहा – हाँ क्यों नहीं. आप दोनों (चाचा-चाची) मेरे साथ ही अगले शनिवार को चलिए. मै आप दोनों को वहां की पूरी सैर करवा दूंगा.

चाची ने अपना प्लान चाचा को बताया. चाचा तुरंत मान गए. मैंने उसी समय इन्टरनेट से हम तीनो का टिकट एसी फर्स्ट क्लास में कटवाया. अगले शनिवार को हमारी ट्रेन थी. अगले शनिवार को सुबह हम तीनो ट्रेन से बंगलौर के लिए रवाना हुए. अगले दिन रविवार को शाम सात बजे हम सभी बंगलौर पहुच चुके थे. मैंने उनको एक बढ़िया सा होटल में कमरा दिला दिया. उसके बाद मै वापस अपने होस्टल आ गया. होस्टल आने पर पता चला कि कल से कालेज के क्लर्क लोग अपनी वेतन बढाने के मांग को ले कर अनिश्चित कालीन हड़ताल पर जा रहे हैं. और इस दौरान कालेज बंद रहेगा. मेरे अधिकाँश मित्रों को ये बात पता चल गयी थी. इसलिए सिर्फ 25 – 30 प्रतिशत छात्र ही कालेज आये थे.

मै अगले दिन करीब 11 बजे अपने चाचा के कमरे पर गया.वहां दोनों नाश्ता कर रहे थे. चाची ने मेरे लिए भी नाश्ता लगा दिया. मैंने देखा कि चाचा कुछ परेशान हैं. पूछने पर पता चला कि जिस कम्पनी का उन्होंने फ्रेंचाइजी ले रखा है उस कम्पनी ने दुबई में जबरदस्त सेल ऑफ़र किया है . अब चाचा की परेशानी ये थी कि अगर वो वापस चाची को बनारस छोड़ने जाते और वहां से दुबई जाते तो तक तक सेल समाप्त हो जाती. और अगर साथ में ले कर दुबई जा नही सकते थे क्यों कि चाची का कोई पासपोर्ट वीजा था ही नहीं.

मैंने कहा – अगर आप दुबई जाना चाहते हैं तो आप चले जाएँ. क्यों कि मेरा कालेज अभी एक साप्ताह बंद रह सकता है. मै चाची को या तो बनारस पहुंचा दूंगा या फिर आपके वापस आने तक यहीं रहेगी. आप दुबई से यहाँ आ जाना और फिर घूम फिर कर चाची के साथ वापस बनारस चले जाना.

चाचा को मेरा सुझाव पसंद आया.

चाची ने भी कहा – हां जी, आप बेफिक्र हो कर जाइए. और वापस यहीं आइयेगा . तब तक रवि मुझे बंगलौर घुमा देगा. आपके साथ मै दोबारा घूम कर वापस आपके साथ ही बनारस चले जाऊंगी. चाचा को चाची का ये सुझाव भी पसंद आया.

लैपटॉप पर इन्टरनेट खोल कर देखा तो उसी दिन के दो बजे की फ्लाईट में सीट खाली थी. चाचा ने तुरंत सीट बुक की और हम तीनो एयरपोर्ट की और निकल पड़े. दो बजे चाचा की फ्लाईट ने दुबई की राह पकड़ी और मैंने एवं चाची ने बंगलौर बाज़ार की. चाची के साथ लंच किया. घूमते घूमते हम मल्टीप्लेक्स आ गए. शाम के सात बज गए थे. चाची ने कहा – काफी महीनो से मल्टीप्लेक्स में सिनेमा नहीं देखा. आज देखूंगी.

मैंने देखा कि कोई नई पिक्चर आयी थी इसलिए सारी टिकट बिक चुकी थी. उसके किसी हाल में कोई एडल्ट टाइप की इंग्लिश पिक्चर की हिंदी वर्सन लगी हुई है. फिल्म चार सप्ताह से चल रही थी इसलिए अब उसमे कोई भीड़ नही थी. मैंने 2 टिकट सबसे कोने का लिया और हाल के अन्दर चला गया. मुझे सबसे ऊपर की कतार वाली सीट दी गयी थी. और उस पूरी कतार में दुसरा कोई भी नही था. हमारी कतार के पीछे सिर्फ दीवार थी. मैंने जान बुझ कर ऐसी सीट मांगी थी. मेरा आगे वाले तीन कतार के बाद कोने पर एक लड़का और लड़की अकेले थे. उस कतार में भी उसके अलावे कोई नही था. उसके अगले कतार में दुसरे कोने पर एक और जोड़ा था. इस तरह से उस समय 300 दर्शकों की क्षमता वाले हाल में सिर्फ 20 – 22 दर्शक रहे होंगे. पता नही इतने कम दर्शकों के लिए फिल्म क्यों लगा रखा था. वो मेरे दाहिने और बैठी. चाची के दाहिने दिवार थी. तुरंत ही फिल्म चालू हो गयी.
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