RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
साड़ी के मोटे आँचल के उपर से मालूम नही चलता था मगर जैसे ही मैने आँचल हटाया तो देखा कि उसके मोटे मोटे सख़्त मम्मे उसकी चोली को फाड़ने को आतुर थे. मैने उन पर प्यार से हाथ फेरा. माँ अभी भी मुझे बड़ी अजीब सी नज़रों से देख रही थी. शायद इस अचानक हमले से सकते मे आ गयी थी. मैने चेहरा नीचे कर चोली के उपर से उसके मम्मों को अपने होंठो से सहलाया. बड़े प्यार से धीरे धीरे मैं उसके मम्मों पर हल्के हल्के चुंबनो की बरसात करने लगा. कुछ देर बाद जब मैने चेहरा उपर उठाया तो देखा माँ अपने होंठ भींच रही थी, उसके चेहरे का रंग थोड़ा थोड़ा लाल होने लगा था और उसकी चोली पर से दोनो मम्मों के निपल अपनी मोजूदगी का एहसास करवाने लगे थे. दिल तो मेरा बहुत था कि अभी उन्हे ऐसे ही प्यार से दुलारू, सहलाऊ मगर एक साल से उपर हो गया था मुझे चुदाई किए हुए. जब तक मन में चुदाई को लेकर कोई विचार नही आया था तब तक मुझे सेक्स की कोई इच्छा महसूस नही हुई थी मगर आज माँ का आँचल हटते जैसे ही मेरी नज़र उसके मॅमन पर गयी तो मेरा लंड पेंट में दुहाई देने लगा. एक साल की दबी हुई भावनाएँ जैसे समुंदर में तूफान बनकर सामने आ गयी. आज माँ की खैर नही थी.
मैने माँ के कंधे पर हाथ रख उसे पीछे की ओर घुमाया तो वो बिना किसी हील हुज्जत के घूम गयी. वैसे भी उसकी तेज़ तेज़ साँसे मुझे बता रही थी वो इस समय किस हालत में है. मैने चोली के पीछे लगी हुक खोल दी और साथ ही उसकी ब्रा की हुक भी. पीछे से माँ से चिपटता हुआ मैं उसकी चोली और ब्रा उतारने लगा तो माँ ने बाहें सीधी कर मेरी मदद की. माँ अब कमर के ऊपर से नंगी खड़ी थी. मैं माँ से पूरी तरह चिपक गया और अपने हाथ उसके फूल से नरम मगर पत्थर की तरह सख़्त मम्मों पर रख दिए. इधर मेरे हाथ उनपर कसे उधर माँ के मुँह से सिसकी निकल गयी. मेरी उत्तेजना अपनी हद की ओर अग्रसर होने लगी और शायद माँ की भी. मेरे हाथ उसके मम्मों को आटे की तरह गुंधने लगे, कभी मैं पीछे से उसके निपलों को अपनी अंगुलियों के बीच लेकर मसलता. माँ अपने हाथ मेरे हाथों पर रखकर कभी मेरे हाथों को दबाती तो कभी उनको रोकने की कोशिश करती. माँ अब उँची उँची सिसक रही थी, उसका बदन भी हल्का हल्का कांप रहा था. खुद मेरा बहुत बुरा हाल था. मैने फिर से माँ को अपनी ओर घुमाया. इस बार जब वो घूमी तो मेरी पहली नज़र उसके चेहरे पर पड़ी जो वासना और उत्तेजना से लाल हो गया था. उसके होंठ खुले हुए थे. आँखो से मदहोशी झलक रही थी. साँस धोन्कनि की तरह चल रही थी. प्यासी वो भी बहुत थी. आग दोनो तरफ बराबर लगी हुई थी.
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