RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मैने बिना कोई देरी किए उसकी कामरस से बरसाती और महकती चूत पर अपनी जीभ लगा दी. जीभ की नोंक को जैसे ही मैने माँ की चूत की लकीर पर उपर से नीचे तक फेरा तो माँ "हाए" करके बहुत ज़ोर से करही. मैने अपने हाथ पीछे माँ के चूतड़ो पर ज़मा दिए.
"माँ ज़रा अपनी चूत तो खोल अपने हाथों से" माँ ने तुरंत अपने हाथों से अपनी चूत को फैला दिया. अंदर से गुलबीपन लिए उसकी चूत रस से लबालब भरी दिखाई दे रही थी. मैने अपने होंठ चूत पर लगाकर उसका रस पीने लगा. रस चूस कर मैं अपनी जीभ से उसकी चूत को चाटते हुए उसका बाकी का रस भी समेटने लगा. एक बार जब उसको पूरा सॉफ कर दिया फिर मैने अपने होंठो से उसके भग्नासे को दबा लिया और उस पर अपनी खुरदरी जीभ घिसने लगा. माँ तो जैसे पागल होने लगी. आआहह.....हइईई............,उूुुुउउफफफफफफफफफ्फ़......करके चीखने चिल्लाने लगी. उधर मेरी भी बुरी हालत थी. लॉडा इतना अकड़ चुका था कि दर्द कर रहा था. मैने किसी प्रकार सबर रखा और उसकी चूत के दाने को अपनी जीभ से घिसना चालू रखा. कभी कभी उसे मैं दाँतों से काटता तो माँ का जिस्म काँपने लगता. उसने चूत से हाथ हटाकर मेरे सर पर रखकर मेरे बालों को मुत्ठियों में भीच लिया. वो मेरा मुँह अपनी चूत पर रगड़ रही थी. चीख रही थी, चिल्ला रही थी, आहें भर रही थी. उसके बदन मे ज़ोर की कंपकंपी होने लगी, मैं समझ गया कि क्या होने वाला है. मैने पूरा ज़ोर लगाकर भन्कुर को चूसने लगा और उसकी चूत में एक उंगली घुसा कर आगे पीछे करने लगा.
आआआहझज...............हहिईीईईईईईईईईईईईईईईईई...........मैं गयी.........मैं गयी...............आआआआहज्ज.........वो झाड़ रही थी. मेरे बालों को इतने ज़ोरों से खींच रही थी कि मुझे बहुत दर्द होने लगा. मगर मैने अपने होंठ उसकी चूत पर दबाए रखे और उसकी रस बरसाती चूत से बहते रस को तब तक चूस्ता रहा जब तक उसका सखलन होना बंद ना हो गया. एक बार झड कर जब वो थोड़ी निढाल सी होने लगी और मेरे बालों पर उसकी पकड़ ढीली पड़ गयी तो मैं झटके से उठ खड़ा हुआ. मेरा पूरा मुँह उसकी चूत के रस से भीगा हुआ था. मैने माँ को अपनी बाहों में उठाया और चारपाई पर लिटा दिया. जैसे ही मैं चारपाई पर चढ़ने लगा, माँ ने अपनी टाँगे फैला दीं ताकि मैं उनमे समा सकूँ, उसने अपनी बाहें मेरी ओर फैला दीं. "आजा.....आजा....जल्दी कर....जल्दी कर.....हाए..,,उफफफफफ्फ़.....,"
माँ की टाँगो के बीच पोज़िशन सेट करके मैने अपना लंड माँ की चूत से भिड़ा दिया. माँ कुहनीओ के बल होकर हमारे मध्य में देखने लगी."डाल.....जल्दी........जल्दी डाल........उफफफफफ्फ़......" मैने लंड को निशाने पर लगाकर माँ की कमर को थाम लिया.
"डाल दे ....घुसा दे पूरा.......हाए.......जल्दी से घुसा....." मैने कमर पर हाथ ज़माए एक करारा झटका मारा और लंड माँ की मक्खन सी चूत को भाले की तरह छेदता हुआ पूरा अंदर जा धंसा.
"हहिईीईईईईईईईईईईई........हाए....हाए .....मेरी चूत......उफफफफ्फ़....चोद....चोद मुझे.....चोद बेटा........चोद अपनी माँ को......,उफफफफफफफफ्फ़...,,चोद मुझीईई......" माँ ने आनी टाँगे मेरी कमर पर कस दीं थी. मैने भी कमर खींच कर लंड पेलना सुरू कर दिया. पहले धक्के से ही माँ अपनी कमर उछालने लगी. जितना ज़ोर मैं उपर से लगाता, उतना ही ज़ोर वो मेरे कंधे थामे नीचे से लगती. हमारी ताल से ताल मिल रही थी. लंड और चूत खटक खटक एक दूसरे पर वार पे वार कर रहे थे. उस ठंडे मौसम में भी हमारे बदन पसीने से भीगने लगे थे.
"हाए चोद....ऐसे ही चोद........मार मेरी चूत.........उउउफफफफ्फ़.......कस कस कर मार मेरी चूत............चोद दे अपनी माँ को.......चोद दे अपनी माँ को मेरे लाल......" माँ पूरी बेशहमी पर उतर आई थी जा मैने उसे मजबूर कर दिया था जो भी हो मगर उस घमसान चुदाई का एक अलग ही मज़ा था.
"ले......ले मेरा लंड माँ.......,,,चुदवा ले अपने बेटे से.......ऐसा चोदुन्गा जैसे आज तक ना चुदि होगी तू.........." मैं ताबड़तोड़ धक्के मारता अपना पूरा ज़ोर लगा रहा था.
"आजा मेरे लाल....चोद ले अपनी माँ को.........चोद ले हाए.............हाए मेरे मम्मे मसल........मसल मेरे मम्मों को..........ऐसे ही पूरा लंड जड़ तक पेल मेरी चूत में ........हाए....हाए......" मैं हर धक्के पर और भी गहराई तक लंड घुसेड़ने की कोशिश करता. मेरे हाथ पूरी बेरेहमी से माँ के मॅमन को मसल रहे थे. इतनी बेरहमी से शायद वो आम हालातों मे बर्दाशत ना कर पाती मगर इस समय जितना मैं उससे ज़ोर आज़माइश करता उतना ही उसे मज़ा आता.
"ऐसे ही चुदवा बेशर्म बनके माँ......ऐसे ही.....हाए बड़ा मज़ा आता है मुझे.....जब...तू...हाए......उफफफ़फ़गगग......"
"बस तू अपना लॉडा पेलता रह मेरे बेटे ..........अपनी माँ को ठोकता रह.........हाए....जितना तू चाहेगा........ उससे ज़्यादा ...........तेरी माँ बेशर्म बनके तुझसे चुदवायेगी..........मेरे लाल.....मेरे बच्चे.......अपनी माँ की ले ले .....ले ले अपनी माँ की......"
"तू देखती जा कैसे चोदता हूँ तुझे .........साली कुतिया बनाकर चोदुन्गा तुझे........कुतिया बनाकर" कामोउन्माद मे कोई हद नही होती, कोई हद नही होती.
"कुतिया बनाएगा मुझे.... अपनी माँ को कुतिया बनाएगा......." माँ ने अपनी कमर एक पल के लिए रोक दी, शायद मुझे वो नही कहना चाहिए था उस समय मेरी हालत एसी थी कि मुझे कोई परवाह नही थी.
"हां बनाउन्गा कुतिया..........कुतिया बनाकर चोदुन्गा तुझे" मैने भी धक्के रोककर उससे कहा.
"तो बना ना कुतिया....बना मुझे कुतिया और चोद मुझे...." माँ का ये रूप मेरे लिए बिल्कुल अलग था मगर उस समय मेरे पास बिस्मित होने के लिए भी समय नही था. मैं फॉरन झटके से माँ के उपर से हटा और चारपाई से उतरा. माँ भी तुरंत मेरे पीछे उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ पीठ करने लगी. मगर मैने उसे पकड़ कर नीचे को झुकाया, उसने सवालिया नज़रों से मेरी ओर देखा मगर वो नीचे बैठ गयी.
"अपना मुँह खोल कुतिया...." मैने अपना लंड माँ के मुँह के आगे कर दिया. माँ को समझ आ गया और उसने अपना मुँह खोल दिया. मैने लंड उसके मुँह में ठोक दिया और उसके बाल पकड़ उसका मुँह चोदने लगा.
"चूस मेरा लंड....चूस इसे...,तेरी चूत का रस भी लगा है इस्पे.....चूस" हालाँकि मैं माँ के गले तक लंड ठेल देता था मगर उसने कमाल का साहस दिखाया और एक बार भी मुझे नही रोका बल्कि अपने होंठ मेरे लंड पर कस वो सुपाडे पर खूब जीभ घिस रही थी. मैने ज़्यादा देर माँ को लंड ना चुस्वाया. उसे उठाकर खड़ा किया और फिर दूसरी और घुमाया. माँ थोड़ी घूम गयी और खुद ही चारपाई पर हाथ रख अपनी गान्ड पीछे को उभार कर चौपाया बन गयी. मैने बिना एक पल गँवाए माँ की चूत पर लंड रखा और अपने हाथों से उसकी पतली कमर को थाम लिया. दाँत भींच मैने ज़ोर लगाया तो लंड पूरी चूत को चीरता अंदर जा घुसा. फिर से वोही वहशी चुदाई चालू हो गयी.
"ले साली कुतिया....ले मेरा लंड..........ले ले मेरा लंड.........तेरी चूत का भोसड़ा बना दूँगा आज" मैं दाँत भींचते चिल्लाया. ऐसे पीछे से खड़े होकर धक्के मारने में बहुत आसानी थी, इस अवस्था में मर्द वाकई अपनी पूरी ताक़त इस्तेमाल कर सकता है और मेरे उन ताक़तबर धक्कों का प्रभाव माँ पर दिखाई दे रहा था. माँ अब बोलना बंद कर बस अब सिसक रही थी.
"आआअहह बेटा मैं झड़ने वाली हूँ.......हाए उफफफफफफफफफफ्फ़...........मैं हाए.....आआहह....हे भगवान....चोद.....चोद....उफफफफ्फ़..बेटा....बेटा......मेरे लाल...."
"मेरा भी निकलने वाला है माँ.....हाए ...बस थोड़ी देर माँ ........." मैं उन पलों को कुछ देर और बढ़ाना चाहता था मगर जिस ज़ोर से मैने चुदाई की थी अब ज़्यादा देर मैं टिकने वाला नही था. उन आख़िरी धक्कों के बीच मेरा ध्यान माँ की गान्ड के उस बेहद संकरे छेद पर गया और अगले ही पल मेरे मन में एक नया विचार आया.
"माँ हाए मेरा तो....अभी...उफ़फ्फ़ ध्यान ही नही गया.......तुम्हारी...,गान्ड कितनी .........टाइट है.......उफफफफफ्फ़...बड़ा मज़ा आएगा...,तेरी गान्ड मारने में........" मैने एक हाथ उठाकर दोनो चुतड़ों के बीच की खाई में डाल उसकी गान्ड का छेद रगड़ने लगा. मैने अपनी एक उंगली माँ की गान्ड में घुसा दी.
"आआआआआआहह..." माँ चिहुनक पड़ी. मैने चूत में लंड पेलते हुए उसकी गान्ड में जब उंगली आगे पीछे की. बस अगले ही पल माँ का पूरा जिस्म काँपने लगा, चूत संकुचित होने लगी वो चीखती, चिल्लाती मेरे लंड पर अपनी चूत रगड़ती छूटने लगी. उसके छूटते ही मेरा भी बाँध ढह गया और मेरे लंड से भी विराज की गरमागरम पिककारियाँ छूटने लगीं. माँ सिसक रही थी, कराह रही थी, मैं हुंकारे भर रहा था.
आह्ह्ह्ह 'बेटा....बेटा' कह रही थी और मेरे मुख से 'माँ...माँ......ओह माँ' फुट रहा था. ऐसे स्खलन के बारे में कभी सोचा तक नही था.
हम दोनो बुरी तरह थक कर पस्त हो चुके थे. किसी में भी हिकने का दम नही था. आधे से भी ज़्यादा घंटे तक माँ और मैं बिना हीले डुले पड़े रहे. अंत मैं माँ ने ही हिम्मत दिखाई. उसने कपड़े पहने और मेरे कपड़े मेरे पास रख वो बाल्टी लेकर दूध निकालने चली गयी. मैं कुछ देर पड़ा रहा. हिम्मत ही नही थी, मगर उतना तो आख़िर था ही. उठकर मैं शेड से बाहर आया तो शाम को ही रात जैसा अंधेरा हो गया था. हल्की हल्की बूंदे धरती पर गिर रही थी. माँ दूध निकल कर आ रही थी. मैं पशुओं को पानी पिला उनको चारा डालने लगा. चारा डाल जब मैं वापस शेड में गया तो माँ मेरा ही इंतजार कर रही थी. उसने दूध की बाल्टी उठाई हुई थी. वो सब्जियाँ तोड़ लाई थी. मैने साइकल निकली. समान को साइकल पर अच्छे से रख हम घर की ओर चल पड़े.
घर पहुँचते पहुँचते बारिश काफ़ी तेज़ हो गयी थी. हम दोनो भीग गये थे. घर के अंदर घुसते ही माँ बाथरूम मे नहाने चली गई और मैं सामान अंदर रखने लगा. सामान रखकर मैने सब्ज़ी काटनी चालू की ताकि माँ के आने तक उसकी कुछ मदद कर सकूँ. माँ ने आते ही मुझसे छुरी छीन ली और मुझे रसोई से भगा दिया. मैं भी नहाने चला गया. नाहकार कपड़े पहने मैने रेडियो लगाया. तब तक खाना तैयार था. खाना खाने के बाद माँ किचेन में बर्तन सॉफ करने चली गयी. खाना खाने के पूरे समय हम लगभग चुप रहे थे. बारिश के सिवा और कोई बात नही हुई थी. हम दोनो उस चुदाई के बाद से एक दूसरे से कुछ सकुचा से रहे थे. हालाँकि मुझे किसी किस्म का पछतावा नही था कि हमने आज ऐसे निर्लज्ज होकर चुदाई की थी ही मुझे लगता था माँ को भी कोई शिकवा है. फिर भी हम एक दूसरे से कतरा रहे थे.
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