Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:31 PM,
#36
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मेरी हिम्मत थोड़ी सी और बढ़ी मैंने अपनी उंगलियों से उसकी नाभि से छेड़खानी शुरू कर दी रति के पेट वाला हिस्से में कम्पन होने लगा मुझे भी मजा आने लगा रति ने अपने सर को बिना घुमाये ही मेरी तरफ किया और बोली क्या कर रहे हो गुदगुदी होती है 

मैं- अच्छा लग रहा है तुम्हे 

रति- हाथ हटाओ वहा से आस पास कितने लोग है और तुम मुझे छेड़ रहे हो 

मैं- सच में 

वो- और नहीं तो क्या 

मैं- तो फिर छिड लो ना थोड़ी देर 

वो- ना जी ना 

मैं उसकी नाभि को धीरे से कुरेदते हुए उसके कान के पास फुसफुसाया - अच्छा नहीं लग रहा क्या 

वो- बेकार की बाते न करो और चुप चाप खड़े रहो लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे 

मैं- क्या कहेंगे 

वो- कहेंगे नहीं बल्कि मुझे छेड़ने के लिए सुताई कर देंगे तुम्हारी 

मैं- वो भी मंजूर है पर इस मोके को ना छोडूंगा 

रति फुसफुसाते हुए- क्यों तंग कर रहे हो मुझे 

मैं- कुछ कुछ होता है क्या 

वो- कुछ क्यों होगा 

मैं- क्यों नहीं होगा 

वो- बस मान भी जाओ ना आराम से खड़े रहो अपना नंबर आने ही वाला है थोड़ी देर में 

मैं- कहा देखो कितनी देर से इधर ही खड़े है 

वो- तो थोड़ी देर और खड़े रहो ना बस कुछ देर की बात है 


पर वो कुछ देर बहुत थी कुछ देर ऐसे ही मैं चुपचाप अपने लंड को उसकी गांड से सटाए खड़ा रहा लाइन बिलकुल धीमी गति से सरक रही थी ऊपर से जब रति अपनी गांड को जानबूझ कर हिलती जिस से मेरा लंड और रगड़ खता वहा पर ऐसे लगता था की जैसे वो आज तो मेरे ऊपर फुल बिजलिया गिराने का ही इरादा करके आये थी गर्मी को सहना बहुत ही मुस्किल हो रहा था वातावरण में काफी उमस हो रही थी रति के गले से बहती पसीने की बूंदे उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी , मुझ से कण्ट्रोल नहीं हुआ उसके कान के साइड के पसीने को मैंने हौले से चाट लिया नजर बचा कर मेरी जीभ के स्पर्श से रति का पूरा बदन किसी सूखे पत्ते की तरफ कांप उठा 


उसने अपने हाथ से मेरे हाथ को कस कर दबाया और कातिल निगाहों से मेरी तरफ देखा और तभी मेरे दिल को एक ख़ास एहसास छुते हुए निकल गया

रति के साथ वो थोड़े से पल मुझे ऐसे लगने लगे थे जैसे की काफ़ी सदियाँ बीत गयी हो ऐसा लगता था की जैसे बहुत गहरे से जुडी हो मुझसे वो कही न कही उसको पा भर लेने की लालसा मेरे अन्दर बेचैनी बन कर दोड़ रही थी उसके बदन से उठती वो पसीने की महक मुझे पागल किये जा रही थी जैसे जैसे लाइन आगे बढती जा रही थी भीड़ का दवाब महसूस होने लगा था रति ने बताया की आज यहाँ विशेष पूजा है इसलिए भीड़ ज्यादा है पर मुझे तो बस रति ही दिख रही थी वहा पर इन्सान की भी अदि अजीब फितरत होती है जब उसको ठरक चढ़ती हैं तो क्या माहौल है क्या जगह है कुछ नहीं देखता अगर कुछ देखता है तो बस अपना नजरिया 


मैं रति से बहुत चिपक के खड़ा हुआ था अबकी बार उसने जो खुद को थोडा सा एडजस्ट किया मेरा लंड बिलकुल उसकी गांड की दरार पर सेट हो गया करार आ गया मुझे तो रति के कुलहो ने झुरझुरी सी ली पर उसने पीछे मुड के नहीं देखा मैंने उसकी गांड पर थोडा सा और दवाब डाला रति के बदन में कम्पन होने लगी उसका चेहरा एक दम लाल हो गया था जैसे की सूरज की पूरी आभा उसके मुख पर ही आ गयी हो , उसकी सांसो की गति बढ़ने लगी पर मैं भी क्या करता मेरी भी मज़बूरी ऐसी ही थी थोड़ी थोड़ी देर बाद मौका देख कर मैं अपने लंड को गांड पर रगड़ने लगा 


हम दोनों कुछ नहीं बोल रहे थे बल्कि जो हो रहा था उसको समझ नहीं पा रहे थे उसके चेहरे पर काफ़ी भाव आ जा रहे थे तभी उसने मुझे टोका और कहा –“ प्यास लगी है बड़ी तेज ”


मैंने बैग से पानी की बोतल निकाल कर उसको दी थोड़ी हड़बड़ी में वो पानी पि रही थी जिस से कुछ घूँट छलक कर उसके ब्लाउज पर गिर गए है रे तेरा कटीला हूँस्न मार ही डालोगी क्या उसकी चूचियो की घाटी वाली जगह पानी से गीली हो गयी थी बड़ा सेक्सी सा नजारा था वो मैं एक तक देखता ही गया तो उसने टोक ही दिया “ क्या देख रहे हो इतनी गोर से ” 

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही 

और फिर से हम अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गए हमारा नंबर आने में ज्यादा देर नहीं थी हमे तो फिर मैं भी चुप चाप ही खड़ा रहा धीरे धीरे हम लोग मंदिर के गर्भ गृह में पहूँच गए अन्दर बेहद ही अद्भुद नजारा था रति पूजा करने लगी मैंने अपने कैमरे से कुछ तस्वीरे निकाल ली पूजा करते टाइम रति के चेहरे पर जो तेज था कसम से मेरा दिल मुझसे कहने लगा की यही है तेरी तलाश थाम ले इसका हाथ पर कहा ये मुमकिन था मेरे लिए उसने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और पूजा करने को कहा मैं भी उसका साथ देने लगा करीब दो घंटे बाद हम लोग फ्री हुए वहा से और थोड़ी साइड में एक पेड़ के नीचे बैठ गए गर्मी बहुत भयंकर पड़ रही थी पूरा बदन पसीना पसीना हो रहा था मैंने अपना रुमाल उसको दिया और कहा “पसीना पोंछ लो ”

मुझसे रुका नहीं गया मैंने उसको कह ही दिया – रति आज तुम बहुत सुन्दर लग रही हो 

रति- सच में 

मैं- हां 

वो- तभी तुम कुछ ज्यादा ही एडवांटेज ले रहे थे लाइन में 

मैं- वो तो ऐसे ही 

वो- ऐसे ही क्या , ऐसा भला कोई करता है क्या तुम्हारी जगह कोई और ऐसा करता तो वाही के वही चप्पल 
उतार के तगड़ी रंगाई करती उसकी 

मैं- तो की क्यों नहीं , मुझे भी तो सजा मिलनी चाहिए ना 

वो- सजा तो मिलेगी तुम्हे भी पर अभी नहीं 

मैं- जो मैंने किया उसके लिए हो सकते तो माफ़ करना पर मैं सच कहता हूँ की तुम्हारे रूप की ज्वाला में मैं पिघलने लगा था खुद को लाख समझाया पर कण्ट्रोल कर नहीं पापय मुझे शर्मिंदगी भी है तुम्हारी हर सजा मंजूर है मुझे 

रति- बस तुम्हारी यही साफगोई तुम्हारा बचाव कर जाती है वर्ना मैंने तो इरादा कर लिया था पक्का 

मैं- तो फिर हर सजा सर आँखों पर 

वो- मुझे भूख लगी है आओ पहले कुछ खाना पीना हो जाये बाते तो फिर भी होती रहेंगे 

पर मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक लिया और कहा –“रति, मरे मन में कुछ उलझाने है कौन सुलझाएगा उनको मुझे कुछ कहना है तुमसे ”


वो- कहा ना फिर बात करेंगे 

मैं- फिर कब अभी क्यों नहीं 

वो- क्योंकि मैं बचना चाहती हूँ तुम्हारी बातो से नहीं सुनना चाहती क्योकि कुछ सवालों के कभी कोई जवाब नहीं होते है और फिर क्या कहोगे तुम वो बाते जो कभी हो नहीं सकती है तुम्हारा मेरा साथ है भी कितना बस जब तक तुम यहाँ हो फिर उसके बाद क्या रहना तो मुझे है अपने उसी अकेलेपन के साथ जिसके साथ मैं रह रही हूँ, तुम पता नहीं कहा से एक ठन्डे झोंके की तरह आ गए पर एक झोंके की उम्र भला कितनी है सच कहू तो मैं डरती हूँ जो पल महसूस कर रही हूँ मैं कल को जब मैं अपने आप से जुन्झुंगी तब कैसे संभाल पाऊँगी खुद को 


मैं- जानता हूँ रति पर क्या तुम्हे कोई हक नहीं है अपनी ज़िन्दगी को खुसी से जीने का 

वो- जब मेरा हक़दार ही इस बात को नहीं समझता तो फिर दुनिया को क्या 

मैं- सब ठीक होगा भरोसा रखो 

वो- कुछ ठीक नहीं होगा 

मैं- भरोसा रखो कोशिश करो ज़िन्दगी हर दिन एक नया दरवाजा खोलती है 

वो- मुझे भूख लगी है 

मैं- ठीक है खाना खाते है 
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:31 PM

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