RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
शिकस्त--01
दोस्तों, राज शर्मा एक बार फिर हाज़िर है अपनी नई कहानी ले के. थोड़ी लंबी हो गयी है, पर इतमीनान से पूरी पढ़े. तब ही उसका सही स्वाद मिलेगा.
अनुपमा मेरे साथ पढ़ती थी. वो तब बहोट ही खूबसूरत हुआ करती थी. उसने कभी हिस्सा नही लिया, नही तो ब्यूटी क्वीन हो सकती थी. लेकिन उसकी पढ़ाई पूरी नही हो पाई थी. इस के लिए उसका साथ छूट गया था. कई साल बाद मुझे वो रास्ते मे मिल गई. पहले जैसा नूवर नही था. उसकी तबीयत ठीक नही लग रही थी. मैं उसे घर ले गया. वहाँ उसने मुझे जो कहानी बताई उसे मैं अनु की ज़ुबानी पेश कर रहा हू
मैं अनुपमा हू. अभी अभी 24 साल की हुई हू. दस साल पहले मेरी मया का देहांत हो गया. उसके डेढ़ साल बाद पिताजी ने दूसरी शादी कर ली. नई मया ने कुच्छ ही समय मे अपना रंग दिखाया और ढाई साल मे तो मुझे घर छ्चोड़'ने पर मजबूर कर दिया. उस वक्त मैं करीब 18 साल की थी. मुझे पढ़ाई भी छ्चोड़नी पड़ी. मैने वो शहर ही छ्चोड़ दिया.
मैं मुंबई आ गयी. नौकरी की तलाश शुरू की. जहाँ भी गयी, मुझे नौकरी तो टुरट ही ऑफर होती थी, लेकिन वो मेरी खूबसूरती का जादू था. कोई कोई तो पहले ही बेझिझक हो कर प्रपोज़ल रखता था, तो कोई इशारों मे समझाने की कोशिश करता था. लेकिन मतलब एक ही था, मुझे जॉब दे कर वो मेरे रूप को भोगना चाहते थे. ऐसी करीब बीस ऑफर मिले. मैने वो सारी ऑफर ठुकरा दी.
एक जगह जहाँ ऐसी बात नही हुई, तो मैने वो जॉब टुरट ले ली. लेकिन एक ही वीक मे वोही अनुभव हुआ. मैने वो भी छ्चोड़ दिया. एक और मिली तो वहाँ भी बीस दिन ठीक जाने के बाद वही बात हुई. मैने वो भी छ्चोड़ दिया, लेकिन अब मैं दर गयी थी. जान चुकी थी की मेरा ही रूप मेरा बैरी बन चुका है. लोगो पर से और ईश्वर पर से विश्वास उठता जेया रहा था. मान ही मान सोच'ने लगी की शायद यही इस दुनिया का दस्तूर हो. इसे स्वीकार कर'ने के ख़याल भी मान में आने लगे.
लेकिन तब मेरी किस्मत बदलने वाली थी. इत्तेफ़ाक़ से मैं एक ऑफीस मे जेया पहुँची. बड़ी साफ सुथरी ऑफीस थी. मेरा इंटरव्यू खुद बड़े सेठ ने लिया. राजन नाम था उनका. एकदम साफ इंटरव्यू रहा. मेरे रूप की और तो जैसे नज़र ही नही थी. मैं पास हो गयी और मुझे वो जॉब मिल गयी. सॅलरी भी मेरी ख्वाहिश से दुगनी थी. यहाँ कोई आल्टू फालतू बात नही होती थी. बस काम से काम रहता था. मैं राजन सिर की प.आ. थी.
वो करीब 45 की उमरा के थे. उनके तीन बेटे थे, मझला मेरी उमरा का था. सभी भाइयों मे 2 साल का अंतर था. वी पढ़ते थे लेकिन कभी कभी ऑफीस आ जया करते थे किसी काम से. मैं उन सब से परिचित हो गयी थी. राजन सिर की पत्नी पिच्छाले एक साल से बीमार रहा करती थी. उसे ले कर राजन सिर चिंतित भी रहते थे. कभी कभी मेरे पास भी वी अपनी चिंता व्यक्त करते थे. उनकी पत्नी के बच'ने के चान्स कम थे. मुझे राजन सिर से हमदर्दी होने लगी थी और शायद....... प्यार भी. कच्ची उमरा का पक्का प्यार....... आख़िर जीवन मे पहली बार कोई ऐसा आदमी मिला था जो संपूर्णा था, श्रीमंत था, स्वरूपवान था, शिक्षित था, अच्च्चे शरीर सौस्ठव का और बहुत ही अच्च्चे व्यव'हार वाला था. यूँ कह सकती हूँ, चुंबकिया व्यक्तित्वा था उनका. वक्त गुजरता जेया रहा था. यूँ ही चार महीने बीत गये. एक रोज़ शनिवार के दिन दोपहर को वो बोले,
"अनु चलो" ( अब वो मेरा पूरा नाम अनुपमा नही कहते थे, अनु से बुलाते थे). मैने पुचछा,
"कहाँ ?" वो कड़क टोने मे बोल उठे,
"चलो भी" और खुद चल दिए. मैं भी साथ हो गयी. नीचे आ कर वो अपनी नई होंडा क्र्व मे बैठे. मेरे लिए बाजुवाला दरवाज़ा खोल दिया. मैं भी बाजू मे बैठ गयी. पुचचाने की हिम्मत ही नही हुई कहाँ जेया रहे है. कार चल पड़ी और थोड़ी देर मे हम शहर से बाहर आ गये. वो गुमसूँ थे. मैं भी कुच्छ बोली नही. गाड़ी पहाड़ो मे होती हुई खंडाला जेया पहुँची और 'डूक्स' रिट्रीट मे एंट्री ली. बड़ी शानदार जगह थी. उन्हों ने एक सूट ऑफीस से फोन कर के बुक किया हुआ था. यहाँ उन्हे सब जानते थे. काउंटर पर रिसेप्षनिस्ट ने मुस्कराते हुए कहा,
"युवर सूट इस चिल्ड, सिर, आंड मिनी फ्रीज़ इस फुल वित स्टॉक". उसने रूम की की दे दी, राजन सिर ने कार की की वहाँ दे दी और हम अंदर चले गये. सूट आलीशान था और एकदम ठंडा भी. एर-कंडीशनर पहले से ही ओं था. रूम बॉय आ कर कार मे से राजन सिर की छ्होटी सी बाग ला कर रख गया और कार की चाबी छ्चोड़ गया. अंदर पहुँच के उन्होने कोट उतार फैंका और नेक्टिये ढीली करते हुए सोफे मे जेया गिरे, जुटे उतरे और पावं लंबा कर के सेंटर टिपोय पर रखते हुए बोले
" अनु, तुम सोच रही होगी , ये सब मैं क्या कर रहा हूँ, है ना ?" मैने मंडी हिलाई. उन्हों ने पास बैठने का इशारा किया. मैं बाजू मे जेया कर बैठी. उन्हों ने मुझे नज़दीक खींचते हुए कहा (मैं उनके इतने पास कभी नही बैठी थी पहले)
" अनु, आज डॉक्टर ने जवाब दे दिया. संगीता (उनकी पत्नी) अब 20-25 दिन की मेहमान है." गिड़गिड़ती आवाज़ मे आयेज कहा,
"हमारा 23 साल का साथ च्छुत जाएगा, मैं अकेला हो जौंगा". मैने सांत्वना दी,
" ये सब तो उपरवाले के हाथ मे है. लेकिन आप खुद को अकेला ना सम'झे. मैं जो साथ हूँ." वो आयेज झुके और मेरी आँखों मे झाँकते हुए कहा,
"सच ? क्या तुम वाकई मेरे साथ हो ?" मेरी आँखों मे झाँकति हुई उनकी आँखों मे कुच्छ अजीब से भाव मैने महसूस किए पर मैं समझ नही पाई और बोली,
"हन, सिर" उनका दूसरा प्रश्ना पिच्चे ही आया,
"संगीता की तरह ?" मैं चौंकी, पर बोल उठी,
"हन, सिर". वापस सोफे की बॅक का सहारा लेते हुए बोले,
"चलो अच्च्छा है..... ज़रा फ्रीज़ से विस्की और सोडा ला. और तुम भी सफ़र से ताकि होगी. जेया, नहा के फ्रेश हो जेया." मैने उनका पेग भरते हुए कहा,
"मैं तो कपड़ा भी नही लाई. नहा के क्या पहनूँगी ? मुझे नही नहाना." मुस्कराते हुए उन्हों ने अपनी बाग से कुर्ता और लूँगी निकल के फैंकते हुए कहा,
" ले, ये तुझ पर बहोट जाचेगा." मैं ने उसे उठाया और शरमाते हुए बोली,
"लेकिन आप की बाग मे ब्रा और पनटी थोड़ी होगी ?" विस्की की सीप लेते हुए वो बोल उठे,
" अब जेया भी, एक दिन ब्रा-पनटी नही पहनेगी तो नंगी नही दिखेगी" खिल खिल हंसते मैं कपड़े उठा के अंदर चली गयी. बातरूम बड़ा लग्षूरीयस था. पूरे कद का मिरर लगा हुआ था. मैने अपने कपड़े उतरे और अपने ही फिगर को आडमाइर करते हुए देख'टी रही. सोचा, वे सब लोग जो मुझे जॉब देते समय मेरे रूप के पागल होते थे....... आख़िर ग़लत तो नही थे !! मैं हूँ ही ऐसी.
फिर पानी भरे टब मे लेती और आज के बारे मे सोचने लगी. टुरट ख़याल आया, राजन सिर आज कुच्छ बदले बदले लग रहे है. वैसे भी औरत किसी भी मर्द की नियत को जल्दी ही समझ लेती है. मुझे भी वो पल याद आया, जब उन्हों ने मेरी आँखों मे अपनी आँखो से झाँकते हुए कहा था ;
"सच ? क्या तुम वाकई मेरे साथ हो ?" और दूसरा प्रश्ना था,
"संगीता की तरह ?" मुझे बात समझ मे आने लगी. भले ही इतने समय राजन सिर ने नेक व्यवहार किया हो, आज की बात कुच्छ और है. आज वो भी उसी लाइन पर है और मुझे भोगना चाहते है. लेकिन आश्चर्या !!!! पहले जहाँ मैं ऐसे हर मौके पर जॉब ठुकरा के भागी थी, इस बार मान मे कोई विरोध उठना तो दूर रहा, एक मीठी गुदगुदी सी हो रही थी. मैने टब मे अपने ही स्तन को सहलाते हुए अपने मान को टटोला. नतीजा सामने था. इन चार महीनो मे मैं मान ही मान उन्हे पसंद करने लगी थी. और संगीता की जान लेवा बीमारी की बात ने तो ये आशा भी जगाई थी की उसकी मृत्यु के बाद मैं म्र्स. राजन भी बन सकती हू.
ये ख़याल आते ही मान पुलकित हो उठा. फ्रेश हो के बाहर आई तो वो दूसरी ही अनु थी. मैं बाहर आई तो देखा की राजन सिर सोफे से बेड पर आ गये थे, कपड़े बदल के अब सिर्फ़ शॉर्ट्स मे थे. उपर का बदन खुला था, मैं उनके कसे हुए सिने को लोलूपता से देख रही थी. वो दो पेग पी चुके थे. उनकी नज़र मुझ पर पड़ी तो आँखे फाड़ कर देखते ही रह गये. कुर्ता लूँगी मे, बिना ब्रा-पनटी के, मैं बहोट ही सेक्सी लग रही थी. बालों से पानी तपाक रहा था, और मेरे स्तनों के उपर गिर के कुर्ते के उस भाग को गीला कर रहा था.
गीला कुर्ता मेरे स्तनों से चिपक कर , मुझे और सेक्सी लुक दे रहा था. मैं बेड पर उनके बाजू मे बाईं और जेया के लेती और एक गहरी साँस ले के मेरे स्तनों को उभरा. कुर्ते का उपरी बटन भी खुला छ्चोड़ रखा था मैने. मेरी आधी क्लीवेज सॉफ नज़र आ रही थी. उनके दिल मे हल्का सा तूफान तो उठा ही हुआ था. अब मेरी हरकत से उनके दिल मे खलभाली मची. उन्हों ने पेग साइड टेबल पर छ्चोड़ दिया और मेरी और मुड़े.
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