RE: Kamukta kahani हरामी साहूकार
स्कूल में पिंकी और निशि का ज़्यादा मन तो लग नही रहा था,
इसलिए स्कूल के बाद उन्होने अपनी योजना अनुसार लाला की दुकान पर जाने का फ़ैसला किया...
अब वो दोनो भला क्या जानती थी की आज लाला के पास नाज़िया भी है और उसकी माँ भी
जो अपनी बेटी की फ़िक्र में वहां पहुँच रही थी...
कुल मिलाकर अजीब स्थिति उत्पन होने वाली थी आज लाला की दुकान पर...
**************
अब आगे
*************
शबाना लगभग भागती हुई सी लाला की दुकान पर पहुँची,
लाला ने दूर से उस भरंवा शरीर की मालकिन को अपने मुम्मे हिलाकर, भागकर अपनी दुकान की तरफ आते देखा तो वो कमीना मन ही मन मुस्कुरा उठा , और बोला : "लो आ गयी बकरी की माँ , अपने मेमने को बचाने....''
दुकान पर पहुँचते ही उसने लाला पर अपना सवाल दागा : "लाला....वो...वो...नाज़िया आई थी क्या....''
लाला अपनी कुटिल मुस्कान के साथ अपने लंड को रगड़ता हुआ बोला : "आई तो थी...और लाला को नाश्ता करवाकर चली भी गयी...''
शबाना ने मन में सोचा यानी उसका अंदाज़ा सही निकला, लाला ने उसकी फूल सी बच्ची को सुबह -2 ही चोद डाला.
शबाना समझ गयी की लाला उसके साथ पंगे ले रहा है....
वो गिड़गिडाई : "लाला....देख...वो वो बच्ची है....उसपर ज़्यादा ज़ुल्म ना कर....स्कूल भी जाना है उसको....बता ना....कहाँ है वो...''
लाला को सही मे उसके साथ पंगे लेने में मज़ा आ रहा था....
इसलिए वो बोला : "स्कूल का टाइम तो अब वैसे भी निकल चुका है...अब एक दिन के लिए उसे जिंदगी का लुत्फ़ उठाने दे, तुझे क्या परेशानी है इसमें ...''
शबाना अब तक ये तो समझ ही चुकी थी की वो अंदर लाला के गोडाउन में ही है... वही गोडाउन जहाँ उसने अनगिनत बार अपनी चूत मरवाई थी लाला से
पर लाला का इतना ख़ौफ़ तो था ही उसके अंदर की वो उसकी इजाज़त के बिना अंदर नही जा सकती थी...
वो फिर से बोली : "देख लाला....उसे अब जाने दे...तुझे जो करना है , मेरे साथ कर ले...पर उसे जाने दे अब...''
वो भी जानती थी की उसकी फूल जैसी बच्ची लाला के लंड को 2-3 बार नही ले पाएगी....
इसलिए एक बेचारी माँ ने अपने आप को उसके सुपुर्द करने का निर्णय ले लिया था...
पर उस निर्णय के पीछे उसकी खुद की गीली चूत का भी बहुत बड़ा हाथ था,
जो लाला से चुदने के लिए सुबह से ही मचल उठी थी,
ये सोचकर की उसके होते हुए लाला भला उसकी बेटी के पीछे ही क्यो पड़ा रहे...
सिर्फ़ माँ का प्यार ही सब कुछ नही होता,
ईर्ष्या नाम की भी कोई चीज़ होती है इस दुनिया में.
लाला तो पहले से ही जानता था की शबाना जैसी चुदक़्कड़ को अपनी बेटी को बचाने से ज़्यादा खुद की मरवाने में रूचि है...
और आज वो इस बात को जांच परख कर उसे भी बता देना चाहता था ताकि वो अपनी इस तरह की चालाकियाँ अपने जज्बातों की आड़ लेकर ना दिखाए..
वो बोला : "एक शर्त पर मैं उसे जाने दे सकता हूँ ....अगर तू वो सब करे जो मैं कहूँगा...''
वो तो पहले से ही एकदम से तैयार थी...
इसलिए लाला की बात सुनते ही झट्ट से बोली : "हाँ लाला....तू जो कहेगा, मैं वही करूँगी....''
लाला ने उसके मांसल शरीर को उपर से नीचे तक निहारा और बोला : "मुझे तेरे ये मोटे मुम्मे देखने है....अभी ....यहीं ....इसी वक़्त''
लाला की बात सुनते ही उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी...
ये लाला किस तरह का खेल खेल रहा है उसके साथ...
वो उसकी दूध की टँकिया देखना चाहता है और वो भी इस तरह से खुल्ले आम....
हालाँकि उस वक़्त दुकान पर कोई ग्राहक भी नही था, पर गली में आने जाने वाले लोग तो थे ही...
उसने अगर ऐसा कुछ भी किया तो दुकान पर उसके हुस्न को देखने वालो की भीड़ लग जानी थी...
शबाना : "लाला....ये...ये क्या कह रहा है तू.....तुझे जो देखना है, अंदर चल कर देख ले ना....उपर से क्या, नीचे से भी...पूरी नंगी हो जाउंगी तेरे लिए तो मैं ....''
लाला गुर्राया : "जो बोला है वो कर...वरना सीधा घर चली जा ...शाम तक तेरी बेटी भी घर पहुँच जाएगी....''
शबाना लाला के इस रूप को देखकर समझ गयी की उससे बहस करना बेकार है....
या तो वो उसकी बात मान ले या वापिस घर चली जाए...
उसने डरते-2 इधर उधर देखा और फिर अपने सूट को धीरे -2 उपर करने लगी...
पहले उसका नंगा पेट दिखा और फिर उसके मोटे मुम्मे जो खरबूजे की तरह गुलाबी थे , बाहर आने को आतुर हो रहे थे...
लाला की धोती में भी लैंटर लग गया और उसका रामलाल कड़क होकर खंबा बनकर खड़ा हो गया.
चाहे जो भी कह लो, इस उम्र में भी इसके हुस्न को देखकर लाला हमेशा उसका दीवाना बन ही जाता था..
लाला : "वाह .....तेरे कड़क निप्पलों को देखकर लग रहा है की तेरी चूत में भी आज भयंकर आग लगी है....अब एक काम कर, सीधा भागती हुई अंदर जा और अंदर पहुँचने से पहले अपने कपड़े उतार कर नंगी हो जा, मैं बस एक मिनट में आया....''
लाला सच ही तो कह रहा था....
एक तो पहले ही उसकी चूत की आग उसे वहां तक ले आई थी,
उपर से लाला की ये हरकतें उसे और भी ज़्यादा उत्तेजित कर रही थी....
शुरू से ही वो अपने आप को एक नंबर की रंडी समझती थी, और सच में उसे लाला की ये बातें मानकर वो गंदे काम करने में कुछ ज़्यादा ही मज़े आ रहे थे...
ऐसा करते हुए उसे इस बात की भी चिंता नही थी की गली के जमादार ने भी उसके हुस्न के दीदार कर लिए है...
वो भी लाला के हरामीपन से वाकिफ़ था, इसलिए अपने लंड को मसलते हुए वो लाला की किस्मत की दाद देता हुआ अपनी आँखे सेंकता रहा...
लाला ने जब उसे अंदर जाने को कहा तो एक पल के लिए वो ये भी भूल गयी की वो वहां करने क्या आई थी,
अपनी बेटी के बारे में बिल्कुल भूल चुकी थी वो इस वक़्त और लाला की बात मानकर अपने कपड़े उतारकर रास्ते में फेंकती हुई सी वो अंदर आ गयी, वहां पहुँचते-2 उसने अपना आख़िरी कपड़ा यानी कच्छी भी उतार फेंकी...
हमेशा की तरह अंदर घुपप अंधेरा था,
बाहर की रोशनी से अंदर आई शबाना को तो अंदर का कुछ दिखाई ही नही दिया पर अंदर ज़मीन पर नंगी लेटी नाज़िया ने अपनी अम्मी को नंगा होकर अंदर आते हुए ज़रूर देख लिया..
वो उतनी हैरान नही हुई जितना एक बेटी को अपनी माँ को नंगा देखकर होना चाहिए था,
उसे तो पहले से ही पता था की उसकी माँ उसे ढूँढते हुए वहां ज़रूर आएगी और लाला से उसके संबंध भी नाज़िया से छुपे हुए नही थे, इसलिए भी वो अपनी माँ को गोडाउन में देखकर हैरान नही हुई....
पर लाला ने उसे नंगा होकर अंदर आने को मजबूर कर दिया इस बात पर उसे थोड़ी बहुत हैरानी ज़रूर हुई...
क्योंकि लाला को अच्छे से पता था की नाज़िया अंदर ही है तो ऐसे में अम्मी को अंदर भेजने का क्या मतलब है...
कुछ ही देर में लाला भी अंदर आ गया....
तब तक शबाना को भी शायद ये एहसास हो चुका था की वो वहां किसलिए आई थी...
पर अब तो काफ़ी देर हो चुकी थी, अपनी उत्तेजना के मारे वो नंगी ही अंदर आ चुकी थी और जब उसकी आँखे अंधेरे में देखने को अभ्यस्त हुई तो सामने अपनी नंगी बेटी को लेटे देखकर उसे शर्म का एहसास हुआ...
और इसी बीच लाला भी अंदर आ गया और उसने भी अपनी धोती निकाल फेंकी...
कभी वो अपनी बेटी को देखती तो कभी लाला के अकड़ रहे लंड को....
बेचारी असमंजस में थी की बेटी को घर जाने को कहे या लाला के लंड को अंदर ले...
लाला तो पूरी प्लानिंग कर चुका था की अब माँ बेटी के साथ क्या करना है...
इसलिए अपने लंड को सहलाता हुआ वो बोला : "देख क्या रही है शबाना....चल इधर आ....चूस इसे...''
|