RE: Maa Chudai Kahani आखिर मा चुद ही गई
विशाल सुरु से ही बहुत तेज़ तर्रार दिमाग वाला लड़का था। उसने हमेशा क्लास में टॉप किया था। पढ़ने में उसकी इतनी दिलचप्सी थी के वो कभी कभी पूरी पूरी रात जाग कर पढता था। उसके माँ बाप को उसके टीचर्स को उस पर फक्र था। उसने जब्ब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग की डिग्री में पूरे स्टेट में टॉप किया तोह ऊसके सामने जॉब ऑफर्स की झड़ी लग गायी। मगर इससे पहले के वो कोई ऑफर स्वीकार कर पाता, उसे एक और ऑफर मिला। वो था अमेरिका की एक टॉप यूनिवर्सिटी द्वारा आगे पढ़ने के लिए फुल स्कालरशिप का ऑफर। मतलब पढ़ाई और रेहना खाने पिने का सबका खर्चा स्कालरशिप में कवर्ड था। वो ऐसा ऑफर था जिसको पाने के लिए हज़ारों लाखों स्टूडेंट्स ख़्वाब देखते हैं। मगर विशाल खुश नहीं था। अपने माँ बाप की एकलौती औलाद होने के कारन उन्होनो विशाल को इतने प्यार से पाला था खास करके उसकी माँ ने के वो उनसे दूर जाने के बारे में सोच भी नहीं सकता था। अपनी माँ को अकेला छोडने का ख्याल भी उसे गंवारा नहीं था।
मगर आंतता उसे मानना पढा। खुद उसके माँ बाप की जिद्द थी। उसका बाप जो खुद एक जूनियर इंजीनियर था, विशाल को इंडिया के किसी अच्छे कॉलेज में पढ़ा सकता था मगर विदेश में खास करके अमेरिका जैसे देश में, यह उसके बूते के बहार की बात थी। इसलिए जब विशाल को स्कालरशिप का ऑफर मिला तोह उसके माँ बाप की ख़ुशी की कोई सिमा नहीं थी। मगर फिर विशाल जाना नहीं चाहता था। उसका तर्क था के उसके पास कई जॉब ऑफर्स हैं और वो कोई नौकरी करके बहुत अच्छे से रह सकता है। लेकिन उसके माँ बाप नहीं माने। मानते भी कैसे, अमेरिका में उच्च पढ़ाई करने के बाद उनका बेटा जिस मुकाम को हासिल कर सकता था, पैसा, नाम सोहरत की जिस बुलन्दी को वो छू सकता था उस समय नौकरी करके कभी नहीं कर सकता था। आखिर विशाल ने अपने माँ बाप की जिद्द के आगे घुटने टेक दिए।
समय अपनी रफ़्तार से चलता रहा और धीरे धीरे विशाल की डिग्री के चार साल पूरे हो गये रिजल्ट आने से पहले ही उसे कई बड़े बड़े ऑफर आये जिनमे से उसने एक मल्टीनेशनल कंपनी का ऑफर स्वीकार कर लिया। चार साल पहले उसे जो ऑफर मिला था इस बार उसने उस ऑफर से दस् गुणा ज्यादा पाया था। एक्साम्स देते ही उसने नौकरी ज्वाइन करली। उसे अपना स्टडी वीसा अब वर्किंग वीसा में तब्दील करना था। अखिरकार एक्साम्स का रिजल्ट आ गेया, उसने हमेशा की तेरह टॉप किया था। उसका वीसा भी लग्ग चुका था। अब वो अपने माँ बाप को अपने पास बुला सकता था जिनसे मिलने के लिए वो तरसा हुआ था।
जीस दिन विशाल ने अंजलि को बताया के उसका वीसा लग्ग चुका है तो वो उसे जलद से जलद घर आने के लिए कहने लागी। खुद विशाल भी अपनी माँ से केह चुका था के वो वीसा लगते ही छुट्टी लेकर घर आ जाएग। मगर उस दिन ७थ जुलाई को वीसा लागने के अगले दिन, जब्ब उसने अपनी माँ को फ़ोन किया और उसने उससे बतायाके उसे एक और हफ्ता लगेगा तोह अंजलि का दिल टूट गेया। विशाल ने अगर पहले न कहा होता तोह कोई और बात होती मगर वो खुद अपनी माँ को बता चुका था के वीसा लगते ही वो महीने भर के लिए घर आने वाला है मगर अब वो अपनी माँ को कह रहा था के वो १४ जुलाई के बाद ही घर आ सकता था और वो वजह बताने में भी अनाकानी कर रहा था। अंजलि का दिल टूट गया। वो तोह कब्ब से एक एक पल गिण कर निकाल रही थी के कब्ब वो अपने जिगर के टुकड़े को देख पाएगी। एक हफ्ता उसके लिए एक सदी के बराबर था। उसने भरे गले से विशाल को यह कहा के "जब उसका मन करे वो तब्ब आए" फ़ोन काट दिया।
विशाल यह देख कर के उसने अपनी माँ का दिल दुखाया था आतम गलानि से भर उठा उसने उसी समय टिकट का इन्तेज़ाम किया और उसी रात अपनी माँ को फ़ोन पर बताया के वो अगले दिन दोपहर तक्क दिल्ली में होगा। अंजलि का तोह जैसे ख़ुशी का ठिकाना ही न रहा वो पूरी रात सो न सकी और अगले दिन अपने पति को फ्लाइट उतरने के कई घंटे पहले ही एयरपोर्ट पर ले गायी। वो ख़ुशी के मारे लगभग नाचति फिर रही थी।
विशाल के बाहर आते ही जैसे ही वो भीड़ से थोड़ी दूर पहुंचा और उधर उसके माँ बाप उसके पास पहुंचे तोह उसने आगे बढ़कर अपनी रोती हुयी माँ को अपनी बाँहों में भर लिया। उसने उसे अपने सीने से भींच लिया। अंजलि और भी बुरी तेरह रो पढी। विशाल ने अपनी माँ से अलग होकर उसे देखा। उसके चेहरे से अभी भी आंसू बहे जा रहे थे। विशाल ने उसके चेहरे से आंसू पोंछे और उसे फिर से गले लगा लिया। उसकी खुद की ऑंखे नम हो चुकी थी।
माँ देख अब रो मत। अब आ गया हु ना तेरे पास ही रेहंगा। और तुझे अपने साथ ले जाऊंगा विशाल अपनी माँ के चेहरे को अपने हाथों में लेकर बोला
आंजलि अपनी साड़ी के पल्लू से अपना चेहरा पोंछती है और खुद को कण्ट्रोल करने की कोशिश करती है। विशाल अपने बाप के पैर छूता है। उसका बाप उसे अशीर्वाद देता है, खुद उसकी ऑंखे भी नम हो चुकी थी। जलद ही विशाल का सामान गाड़ी में रखकर तीनो घर के लिए निकल पढते है। अंजलि की नज़र अपने बेटे के चेहरे पर तिकी हुयी थी। वो इतने प्यार और स्नेह से अपलक उसे देखे जा रही थी। वो अब रो नहीं रही थी। अब वो खुश थी। उसका चेहरा उस ख़ुशी से चमक रहा था। आज उसे संसार की सभी खुशियां सभी सुख मिल गए थे उसका बेटा उसके पास था, उसे और कुछ नहीं चाहिए था।
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